Waqf Board : मुसलिम समाज के पास कितनी वक्फ संपत्ति है और उसे किस तरह उस से छीना जाए, मसजिदों पर पंडोंपुजारियों को कैसे बिठाया जाए, इस को ले कर लंबे समय से कवायद जारी है. इस के लिए एक्ट में संशोधन के बहाने भाजपा नेता जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में जौइंट पार्लियामैंट्री कमेटी का गठन किया गया, जिस में दिखाने के लिए कुछ मुसलिम नेता तो शामिल किए गए लेकिन उन के सुझावों या आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
वक्फ संपत्तियों को ले कर मोदी सरकार की नीयत पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. जिस तरह देशभर में मसजिदों के नीचे मंदिर तलाशे जा रहे हैं और मसजिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, दरगाहों की जमीनों से मुसलिम समुदाय को खदेड़ने की कोशिशें की जा रही हैं, वह एक लोकतांत्रिक देश के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसी घटनाओं का संज्ञान ले कर समयसमय पर सरकार को फटकार न लगाए, कान न उमेठे और बुलडोजर की तालाबंदी न करे तो ध्रुवीकरण की बदौलत सत्ता की चाशनी चाटने वाली संघ और भाजपा की सरकारें (केंद्र और राज्य) देश में गृहयुद्ध की स्थितियां पैदा कर दें.
मुसलिम समाज के पास कितनी वक्फ संपत्ति है, उसे किस तरह उन से छीना जा सकता है, उसे किस तरह सरकार अपने हाथों में ले सकती है, मसजिदों की जगहें पंडेपुजारियों को कैसे सौंपी जाएं, इस को ले कर लंबे समय से कवायद जारी है.
इस के लिए बाकायदा भाजपा नेता जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में जौइंट पार्लियामैंट्री कमेटी (जेपीसी) का गठन किया गया, जिस में दिखाने के लिए मुसलिम नेता शामिल किए गए जबकि उन के सुझावों या आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. उलटे, हंगामा करने और काम में बाधा बनने के आरोप लगा कर उन को कभी निष्कासित किया गया, कभी अध्यक्ष की मनमानी देख कर वे खुद वाकआउट कर गए.
मगर इस सारी उठापटक के बीच भी जगदम्बिका पाल ने दिल्ली चुनाव से पूर्व संशोधित बिल का मसौदा स्पीकर ओम बिरला के हाथों में सौंप ही दिया. कहा जा रहा है कि संशोधनों पर 16 सदस्यों ने पक्ष में वोट डाला तो 11 ने विरोध किया. विपक्षी सांसदों के विरोध के बावजूद समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल और सदस्य संजय जायसवाल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को रिपोर्ट सौंप दी. जिस में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के 14 प्रस्ताव पारित कर दिए गए जबकि विपक्ष की तरफ से रखे सभी 44 प्रस्ताव खारिज कर दिए गए हैं. इस में वक्फ बोर्ड से प्रस्तावित 2 गैरमुसलिम सदस्यों को हटाने के सुझाव प्रमुख थे, जिन्हें नामित करने को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव है. विपक्ष ने इस प्रक्रिया को वक्फ बोर्डों को नष्ट करने का प्रयास करार दिया है.
संशोधित एक्ट को जल्दी से जल्दी टेबल पर लाने की जरूरत भाजपा को इसलिए थी क्योंकि 5 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव होने थे. भाजपा यह सोच कर वक्फ संशोधन विधेयक पर रिपोर्ट को शीघ्र स्वीकार करने पर जोर दे रही थी कि एक बार फिर ध्रुवीकरण के जरिए चुनाव में बाजी मार ली जाए. 3 फरवरी को यह रिपोर्ट संसद में रखना तय भी हो गया था पर फिलहाल किन्हीं कारणों से इस को टालना पड़ गया. अब इसे 13 फरवरी को संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है.
भारत में लगभग 30 वक्फ बोर्ड हैं. ये 30 वक्फ बोर्ड 9 लाख एकड़ से अधिक भूमि पर फैली संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं. इस का अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपए है. भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश में सब से ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है. विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अगस्त में पहली बैठक हुई थी जिस में कई विपक्षी सदस्यों ने दावा किया था कि विधेयक के प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के कानूनों का उल्लंघन करते हैं. विपक्षी सदस्यों ने विधेयक में उल्लिखित विभिन्न धाराओं पर सवाल उठाए थे, जिन में विशेष रूप से जिला कलैक्टरों को विवादित संपत्ति के स्वामित्व पर निर्णय लेने का अधिकार देने के प्रस्ताव के साथसाथ गैरमुसलिमों को वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव पर सवाल उठाया गया था.
कमेटी पर आरोप
कांग्रेस सांसद और जेपीसी सदस्य सैयद नसीर हुसैन ने कमेटी पर गंभीर आरोप लगाए थे. नसीर हुसैन ने कहा कि, ‘मैं ने रिपोर्ट में जिन बातों पर असहमति जताई थी, उन्हें बिना अनुमति एडिट कर दिया गया. आखिर हमें चुप कराने की कोशिश क्यों हो रही है? यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक है.’
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि, ‘वक्फ एक्ट में संशोधन वक्फ संपत्तियों को छीनने के इरादे से किया जा रहा है. यह संविधान में दिए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रहार है. आरएसएस की शुरू से ही वक्फ संपत्तियों को छीनने की मंशा रही है.’
औल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का कहना है कि, ‘हमारे पूर्वजों ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया इसे इसलामी कानून के तहत वक्फ कहा गया. जहां तक वक्फ कानून का सवाल है, यह जरूरी है कि संपत्तियों का उपयोग सिर्फ उन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए जिन के लिए इन्हें हमारे पूर्वजों ने दान किया था.
‘यह कानून है कि एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ बन जाती है तो उसे न तो बेचा जा सकता है और न ही ट्रांसफर किया जा सकता है. जहां तक संपत्तियों के प्रबंधन का सवाल है, हमारे पास पहले से ही वक्फ अधिनियम 1995 है और फिर 2013 में कुछ संशोधन किए गए थे और वर्तमान में हमें नहीं लगता कि इस वक्फ अधिनियम में किसी भी प्रकार के संशोधन की जरूरत है.
‘यदि सरकार को लगता है कि संशोधन की कोई जरूरत है तो पहले हितधारकों से सलाहमशविरा करना चाहिए और उन की राय लेनी चाहिए. सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि वक्फ संपत्तियों का लगभग 60 से 70 फीसदी हिस्सा मसजिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों के रूप में है.’
इतिहासकार और मुसलिम विद्वान एस इरफान हबीब कहते हैं कि ‘सवाल सरकार की नीयत पर है कि कहीं वह वक्फ की जमीनों को हड़पना तो नहीं चाहती. अगर कोई कानून आ रहा है तो अच्छे के लिए आना चाहिए.’
कश्मीर के धार्मिक प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक का भी कहना है कि ‘वक्फ का मुद्दा बहुत गंभीर मामला है, खासकर जम्मूकश्मीर के लोगों के लिए क्योंकि यह एक मुसलिम बहुल राज्य है. कई लोगों को इस बारे में चिंताएं हैं और हम इन चिंताओं के बिंदुवार समाधान के लिए एक विस्तृत ज्ञापन तैयार कर बातचीत करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सरकार वक्फ मामलों में हस्तक्षेप करने से बचे. ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिस से जम्मूकश्मीर में माहौल खराब हो.’
बिल में अहम बदलाव
1. जेपीसी ने सलाह दी है कि संशोधित वक्फ एक्ट के क्लौज 3(9) में एक नया क्लौज और जोड़ा जाए कि अगर कोई प्रौपर्टी वक्फ संशोधन एक्ट के लागू होने से पहले वक्फ संपत्ति घोषित है तो वह वक्फ बाय यूजर वक्फ संपत्ति ही रहेगी सिवा ऐसी संपत्तियां, जिन पर या तो पहले से ही विवाद है या फिर सरकारी संपत्तियां हैं. वक्फ पर बनी जेपीसी को एएसआई, डीडीए, एल एंड डीओ जैसी सरकारी संस्थाओं ने बताया था कि उन की कई संपत्तियों पर वक्फ का दावा है, जिस से उन्हें समस्याएं आ रही हैं.
2. संशोधित वक्फ एक्ट में जहां कलैक्टर के पास किसी भी सरकारी संपत्ति को गलत तरीके से वक्फ घोषित करने की जांच करने का अधिकार था तो जेपीसी ने सलाह दी है कि एक्ट के सैक्शन 3सी (1),(2),(3) और (4) में संशोधन करने के लिए जांच का अधिकार कलैक्टर रैंक से ऊपर के किसी अधिकारी को दिया जाए, जिसे राज्य सरकार नामित करे.
3. जहां वक्फ संशोधन एक्ट में वक्फ संपत्तियों को एक्ट के लागू होने के बाद 6 महीने में पोर्टल पर दर्ज करवाने की समय सीमा लागू की गई थी तो जेपीसी ने सलाह दी है कि इस 6 महीने की समय सीमा में छूट मिलनी चाहिए और संशोधित सलाह के मुताबिक एक्ट में प्रावधान करना चाहिए कि मुतवल्ली के आवेदन पर वक्फ ट्रिब्यूनल इस 6 महीने की समय सीमा की मियाद को वाजिब कारण होने पर अपने अनुसार बढ़ा सकता है.
4. जहां केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन बिल में सैक्शन 5 के सब सैक्शन 2 में नियम बनाया गया था कि राज्य सरकार की ओर से औकाफ की सूची नोटिफाई करने के 15 दिनों के भीतर इस सूची को पोर्टल पर अपलोड करना होगा, इस पर जेपीसी ने सलाह दी है कि सैक्शन 5 के सब सैक्शन 2(ए) जोड़ा जाए और इस समय सीमा को बढ़ा कर 15 दिन की जगह 90 दिन किया जाए.
5. केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन एक्ट में कानून रखा था कि संशोधित एक्ट के लागू होने के बाद और औकाफ संपत्तियों की सूची नोटिफिकेशन द्वारा जारी होने के 2 साल के भीतर ही कोई व्यक्ति इसे ट्रिब्यूनल में चैलेंज कर सकता था, लेकिन जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि क्लौज 7(ए) (आईवी) में संशोधन कर के इस समय सीमा को बढ़ाने का अधिकार ट्रिब्यूनल को दिया जाए. यानी कोई व्यक्ति अगर 2 साल के बाद भी ट्रिब्यूनल जाता है चैलेंज करने और ट्रिब्यूनल को अगर संतुष्ट करता है कि वह 2 साल तक इस वजह से नहीं आया तो ट्रिब्यूनल उसे स्वीकार कर सकता है.
6. केंद्र सरकार की ओर से संशोधित वक्फ एक्ट में नियम रखा गया था कि सैंट्रल वक्फ काउंसिल में कुल 8 से 11 सदस्य होंगे और इस का प्रमुख अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री एक्स औफिशियो होगा. साथ ही, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय या फिर विभाग का एक जौइंट सेक्रेटरी या फिर एडिशनल सेक्रेटरी लैवल का अधिकारी भी एक्स औफिशियो सदस्य होगा, लेकिन जेपीसी ने इस वक्फ संशोधित एक्ट के क्लौज 9 में संशोधन की सलाह दी है कि सैंट्रल वक्फ काउंसिल में एक्स औफिशियो सदस्यों के अलावा 2 गैरमुसलिम सदस्य होने चाहिए.
उदाहरण: सरकार के संशोधित बिल में अगर सैंट्रल वक्फ काउंसिल में अध्यक्ष यानी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय या विभाग का अधिकारी गैरमुसलिम होंगे तो 2 गैरमुसलिमों की नियमतया गिनती पूरी हो जाएगी, लेकिन जेपीसी ने सलाह दी है कि एक्स औफिशियो के अलावा 2 गैरमुसलिम होने चाहिए, यानी अगर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय या विभाग का अधिकारी गैरमुसलिम है तो भी 2 और गैरमुसलिम सदस्य हो सकते हैं.
7. जेपीसी ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वक्फ एक्ट से ख्वाजा चिश्ती को बाहर रखा गया था. ऐसे में दाऊदी बोहरा समाज भी अलग तरह से अल दाई अल मुतलक सिस्टम से चलता है. ऐसे में मूल एक्ट में संशोधन किया जाए कि यह कानून किसी भी ऐसे ट्रस्ट पर लागू नहीं होगा जिसे किसी मुसलिम व्यक्ति द्वारा वक्फ जैसे उद्देश्यों के लिए बनाया गया हो चाहे वह ट्रस्ट इस कानून के लागू होने से पहले या बाद में बनाया गया हो या पहले से ही किसी अन्य कानून के तहत नियंत्रित हो. उस पर इस कानून का कोई असर नहीं पड़ेगा भले ही किसी अदालत ने कोई फैसला दिया हो.
8. केंद्र सरकार के संशोधित एक्ट में प्रावधान था कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के वक्फ बोर्ड में कुल 2 ही गैरमुसलिम सदस्य हो सकते हैं तो यहां भी जेपीसी ने सलाह दी कि संशोधित एक्ट में बदलाव किया जाए कि राज्य या यूटी का जौइंट सेक्रेटरी या उस के ऊपर का अधिकारी एक्स औफिशियो सदस्य होगा और उस के अलावा राज्य के वक्फ बोर्ड में 2 गैरमुसलिम सदस्य हो सकते हैं.
9. वक्फ एक्ट के क्लौज 16 (ए) में प्रावधान था कि किसी व्यक्ति को वक्फ बोर्ड से हटाया जा सकता है, अगर वह मुसलिम न हो और 21 साल से कम उम्र का हो. जेपीसी ने सुझाव दिया है कि यह क्लौज संशोधित एक्ट के नियमों के खिलाफ है. ऐसे में मुसलिम न होने पर बोर्ड से हटाने वाले नियम को हटाया जाए और सिर्फ 21 साल की उम्र की ही सीमा रखी जाए.
10. केंद्र सरकार ने प्रावधान रखा था कि वक्फ संशोधन एक्ट के लागू होने के 6 महीने के भीतर ही कोई व्यक्ति वक्फ की ओर से किसी ऐसी संपत्ति पर वक्फ से जुड़े अधिकार लागू करने के लिए लिए कानूनी कार्यवाही कर सकता है. अगर वह संपत्ति वक्फ के रूप में दर्ज नहीं है. जेपीसी ने अपने सुझाव में इस समयसीमा को कोर्ट पर छोड़ने का सुझाव दिया है और संशोधित सुझाव दिया है कि यदि कोई व्यक्ति कोर्ट में यह साबित कर सके कि वह उचित कारणों से 6 महीने की समयसीमा के भीतर आवेदन दाखिल नहीं कर सका तो न्यायालय इस समयसीमा के बाद भी उस का आवेदन स्वीकार कर सकता है.
11. जहां पुराने वक्फ एक्ट में प्रावधान था कि वक्फ संपत्ति की देखभाल को ले कर वक्फ बोर्ड का आदेश आखिरी होगा और कोई व्यक्ति 60 दिन में ट्रिब्यूनल जा कर अपील कर सकता है, लेकिन ट्रिब्यूनल सुनवाई के दौरान बोर्ड के आदेश पर रोक नहीं लगा सकता है. नए वक्फ संशोधन एक्ट में बोर्ड का आदेश से आखिरी शब्द हटाया गया और 60 दिन तक अपील की समयसीमा ही रखी थी, साथ ही, आदेश पर रोक का नियम भी हटा दिया गया था. जेपीसी ने सुझाव दिया है कि अपील की समयसीमा 60 से 90 दिन की जाए.
12. जहां पुराने एक्ट में प्रावधान था कि वक्फ की संपत्ति, जिसे कम से कम 5 हजार रुपए सालाना किराए या अन्य कदम से आ रहे हैं, वहां का मुतवल्ली कम से कम 5 प्रतिशत रकम वक्फ को कार्य के लिए वापस दान देगा. केंद्र सरकार ने इसे संशोधित एक्ट में 7 प्रतिशत किया था, जिसे जेपीसी ने फिर से 5 प्रतिशत करने का सुझाव दिया है.
13. जहां पुराने वक्फ कानून के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल के 3 सदस्य होंगे, जिन में एक जिला जज या उस से ऊपर का अधिकारी, एक एडीएम या उस से ऊपर का अधिकारी और तीसरा मुसलिम कानून का जानकार. केंद्र सरकार ने संशोधित कानून में मुसलिम कानून के जानकार को हटा कर सिर्फ 2 सदस्यी ट्रिब्यूनल को रखा था, लेकिन जेपीसी ने देशभर में 19 हजार से ज्यादा मामले वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित होने के कारण सलाह दी है कि वक्फ संशोधित एक्ट में पहले के जैसे 3 सदस्य ट्रिब्यूनल में रहें जिन में तीसरा सदस्य इसलामिक कानून का जानकार हो.
14. जहां पुराने वक्फ कानून में ट्रिब्यूनल की ओर से किसी केस पर फैसला देने की समयसीमा नहीं निर्धारित थी तो नए वक्फ संशोधन एक्ट में केंद्र सरकार ने प्रावधान किया था कि 6 महीने में वक्फ ट्रिब्यूनल को केस पर फैसला देना है और अगर नहीं दिया तो समय 6 महीने और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन ट्रिब्यूनल को पक्षों को लिखित में देना होगा कि क्यों 6 महीने में वह फैसला नहीं दे पाया. यानी, संशोधित कानून में सरकार ने कुल 12 महीने की अधिकतम सीमा रखी थी, जिस में ट्रिब्यूनल को फैसला देना ही था, लेकिन जेपीसी ने अपने सुझाव में इस समयसीमा को हटाने की सिफारिश की है.
15. जहां पुराने वक्फ एक्ट में नियम था कि अगर वक्फ की कोई जमीन भूमि अधिग्रहण नियम के तहत ली जाएगी तो कलैक्टर को वक्फ बोर्ड को सूचना देनी होगी और बोर्ड के पास कलैक्टर के सामने पेश हो कर अपना पक्ष रखने के लिए 3 महीने का अधिकतम समय होगा, लेकिन नए कानून में केंद्र ने यह समयसीमा घटा कर 1 महीने कर दी थी, जिसे जेपीसी ने बढ़ा कर 3 महीने करने की सिफारिश की है.
16. पुराने वक्फ कानून के तहत वक्फ की संपत्ति लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत नहीं आती थी, यानी वक्फ बोर्ड जब चाहे तब अपनी किसी भी संपत्ति को हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता था और उसे यह अधिकार पुराने वक्फ कानून की धारा 107,108,108ए के तहत मिला था, जिसे केंद्र सरकार ने संशोधित वक्फ एक्ट से हटा दिया था. जेपीसी ने सलाह दी है कि संशोधित वक्फ एक्ट में सैक्शन 40 (ए) जोड़ा जाए और नियम बनाया जाए कि जिस दिन से वक्फ संशोधन एक्ट 2025 लागू होगा उस दिन से इस पर लिमिटेशन एक्ट भी लागू होगा.
उदाहरण: एएसआई, रेलवे समेत कई संपत्तियों पर वक्फ का दावा है, जो कई वर्षों से वक्फ के पास नहीं हैं. तमिलनाडु के जिस गांव पर वक्फ ने दावा किया था वो भी इस का उदाहरण है, लेकिन क्योंकि वक्फ संपत्ति पर लिमिटेशन एक्ट 1963 नहीं लागू था तो वह वक्फ जब चाहे तब कब्जा वापस लेने की मांग और कानूनी दावपेंच शुरू कर सकता था, 100 साल, हजारों साल बाद भी. लेकिन लिमिटेशन एक्ट 1963 लागू होने के बाद वक्फ दूसरे के कब्जे में अपनी कथित संपत्ति पर दावा सिर्फ कब्जे के 30 साल के अंतराल में ही कर सकता है.
आगे का अंश बौक्स के बाद
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वक्फ क्या है
वक्फ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘कारावास और निषेध’ या किसी चीज को रोकना या स्थिर रखना. इसलामी कानून के अनुसार, एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ के रूप में दान कर दी जाती है तो उसे बेचा, हस्तांतरित या उपहार के रूप में नहीं दिया जा सकता है. वक्फ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा किसी चल या अचल संपत्ति को मुसलिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से समर्पित करना.
संबंधित व्यक्ति की मौत के बाद वक्फ की गई संपत्ति का इस्तेमाल उस का परिवार नहीं कर सकता. उस संपत्ति को वक्फ का संचालन करने वाली संस्था सामाजिक काम में इस्तेमाल करेगी. वक्फ की संपत्ति का कोई मालिक नहीं होता. वक्फ की संपत्ति का मालिक खुदा को माना जाता है.
वक्फ पर विवाद क्यों
वक्फ अधिनियम के सैक्शन 40 पर बहस छिड़ी है. बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वह खुद से जांच कर सकता है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है. अगर उस संपत्ति में कोई रह रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है. ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. मगर यह प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है.
दरअसल, अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा ही वक्फ रहती है. इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं. सरकार का कहना है कि ऐसे विवादों से बचने की खातिर संशोधन विधेयक ले कर आई है. इस से मुसलिम महिलाओं को भी बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा.
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क्या है वक्फ एक्ट 1954
वक्फ एक्ट मुसलिम समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन और नियमन के लिए बनाया गया कानून है. इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का उचित संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करना है ताकि धार्मिक और चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए इन संपत्तियों का उपयोग हो सके. देश में सब से पहली बार 1954 में वक्फ एक्ट बना. इसी के तहत वक्फ बोर्ड का जन्म हुआ.
इस कानून का मकसद वक्फ से जुड़े कामकाज को आसान बनाना था. एक्ट में वक्फ की संपत्ति पर दावे और रखरखाव तक के प्रावधान हैं. 1955 में पहला संशोधन किया गया. 1995 में एक नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना. इस के तहत हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई. बाद में साल 2013 में इस में संशोधन किया गया था.
सरकार और विपक्ष का तर्क
सरकार का तर्क है कि 1995 में वक्फ अधिनियम से जुड़ा मौजूदा विधेयक है. इस में वक्फ बोर्ड को अधिक अधिकार मिले. 2013 में संशोधन कर के बोर्ड को असीमित स्वायत्तता प्रदान की गई. सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफियाओं का कब्जा है. सरकार का कहना है कि संशोधन से संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है. इस से मुसलिम महिलाओं और बच्चों का कल्याण होगा.
इसलामिक देशों में वक्फ संपत्ति
सभी इसलामिक देशों में वक्फ संपत्तियां नहीं हैं. तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जौर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे इसलामिक देशों में वक्फ नहीं है. हालांकि भारत में न केवल वक्फ बोर्ड सब से बड़ा शहरी भूस्वामी है, बल्कि उस के पास कानूनी रूप से उन की सुरक्षा करने वाला एक अधिनियम भी है.
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लूट सको तो लूट लो
हिंदू धर्म के इतिहास की नींव ही जमीनों की लड़ाई पर पड़ी है. वर्तमान में देशभर की छोटीबड़ी अदालतों में कोई 68 फीसदी मुकदमे जमीनी विवाद के चल रहे हैं. महाभारत की लड़ाई जिस में लाखों बेगुनाह मारे गए और खरबों की बरबादी हुई, सिर्फ जमीन के लिए हुई थी. कौरव कहते थे एक बीता भी नहीं देंगे.
कहानी के मुताबिक, पांडव तो इस के लिए तैयार थे लेकिन शांतिदूत बन कर कृष्ण ने धर्म और कर्म के नाम पर जो संहार करवाया वह सनातनियों की रगों में रक्त संस्कार बन कर दौड़ रहा है. एक पुरानी कहावत है, ‘झगड़े की जड़ तीन, जर जोरू और जमीन’. इन में से जोरू को अब ले कर झगड़े कम होते हैं क्योंकि वह अब हजारपांच सौ रुपए में किसी भी बदनाम इलाके में, टैम्परेरी ही सही, मिल जाती है. वैसे भी, कोई गले में ढोल लटका कर कानूनी, सामाजिक और पारिवारिक झंझंट मोल नहीं लेना चाहता.
कीमती होने के चलते जमीनें सब को प्रिय होती हैं और दूसरों की तो कुछ ज्यादा ही भाती हैं. अपनों की जमीन दबाने और कब्जाने का तो मजा ही कुछ और है. भाईभाई लड़ रहे हैं, पड़ोसीपड़ोसी लड़ रहे हैं, चाचाभतीजा एकदूसरे का सिर फोड़ रहे हैं और अब तो पतिपत्नी और भाईबहन भी लड़ने लगे हैं. यह सब महज इसलिए कि हिंदू धर्म सिखाता है कि जैसे भी हो, हड़प लो, छीन लो और सामने वाला कमजोर हो तो लाठी के दम पर कब्जा लो. यानी, वीर भोग्या वसुंधरा की तर्ज पर चलो.
मुसलमान अब हिंदू राज के चलते बेहद कमजोर हो चले हैं, इसलिए वक्फ कानून लाया जा रहा है जिस से उन की जमीनजायदाद कानूनी तौर पर हथियाई जा सकें. सरकार की मंशा वक्फ की आड़ में हिंदुओं का दिल खुश करने की है कि देखो, हम भी इन की कमर आर्थिक तौर पर तोड़ रहे हैं, तुम लोग उन का आर्थिक बहिष्कार करते रहो. अब्दुल से पंचर मत जुड़वाओ, सलीम से सब्जी मत खरीदो तो यह कौम खुदबखुद खत्म हो जाएगी और दलित-आदिवासियों जैसी असहाय हो जाएगी. फिर तुम सहूलियत और इत्मीनान से इन्हें खदेड़ कर जमीनें अपने कब्जे में लेते रहना और वक्त आने पर हम वक्फ की जमीनों को अपने हिसाब से इस्तेमाल करते रहेंगे.
दलितोंपिछड़ों और आदिवासियों की अधिकतर जमीनें दबंगों ने कब्जा रखी हैं. ये लोग अपनी ही जमीनों पर दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं. एवज में पेट भरने के लिए मेहनताना मिल जाता है. यही हाल अब मुसलमानों का हो तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, फिर वे तो विधर्मी हैं, उन्हें कोई हक नहीं कि वे जमीनों के मालिक बनें. जमीनें हिंदुओं की हैं जो मुसलमानों के पास मुगल हुकूमत के दौरान आई हों या उन्होंने खरीदी हों इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. देश सवर्ण हिंदुओं का है. दौर उन्हीं का है. हुकुमत उन्हीं की है. इसलिए संविधान का छद्म लिहाज करते उन्हें भूमिधारी बनाना सरकार का फर्ज है, इसलिए वह वक्फ कानून ला रही है.
वक्फ की जमीनें राष्ट्रहित में नहीं बल्कि धर्म की रक्षा के लिए छीनी जाएंगी. वैसे भी राष्ट्र और धर्म में फर्क कर पाना अब मुश्किल काम नहीं रह गया है. धर्म ही राष्ट्र है जिस में मुसलमान भी दलित-आदिवासियों की तरह गुलाम बन कर रहें, यही उन के लिए बेहतर है. मुगलों की कथित लूट का बदला मोदी सरकार ले रही है. इस से लोकतंत्र हो न हो, धर्मतंत्र जरूर मजबूत हो रहा है जिस के लिए सरकार को चुना गया है. ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….