Film Review : द मेहता बौयज
रेटिंग – 2 स्टार
ब्रह्मांड के सब से अधिक महत्वपूर्ण और अति जटिल पितापुत्र के रिश्तों पर अतीत में कई पारिवारिक कमर्शियल फिल्में बन चुकी हैं, जहां व्यवसायिकता हावी रही है और उन सभी फिल्मों में मेलोड्रामा की बहुतायत रही है. दर्शक फिल्म देखते हुए रोए या न रोए, मगर फिल्म के परदे पर किरदारों की आंखों से आंसू जबरन टपकते रहे हैं. पर अब अभिनेता से निर्देशक, सह निर्माता व सहलेखक बने बोमन ईरानी पितापुत्र के रिश्ते पर एक सहज फिल्म ‘द मेहता ब्यौयज’ ले कर आए हैं.
शिकागो, टोरंटो, साउथ एशियन, जरमनी, बर्लिन, इफ्फी आदि इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवलों में धाक जमाने के बाद अब यह फिल्म सात फरवरी से अमेजान प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है. फिल्म शुरू होते ही इस बात का अहसास हो जाता है कि इस फिल्म का अंत क्या होगा, इस के बावजूद दर्शक फिल्म पर से अपनी निगाहें हटाना नहीं चाहता. यह है बोमन ईरानी के निर्देशन व अभिनय का जादू. यह फिल्म जटिल रिश्तों की ऐसी सूक्ष्म पड़ताल करती है कि आप अपने रिश्तों पर पुनर्विचार करने को प्रेरित हो जाते हैं.
फिल्म ‘‘द मेहता ब्यौयज’ की कहानी नवसारी गुजरात में लोगों को टाइपिंग सिखातेसिखाते शिव मेहता (बोमन ईरानी) ने अपने बेटे अमय मेहता ( अविनाश तिवारी) को आर्किटैक्ट बना दिया. आर्किटैक्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमय मेहता मुंबई में आ कर बस गया. फिल्म शुरु होती है एक आत्मविश्वासी वास्तुकार/आर्किटैक्ट अमय (अविनाश तिवारी) के साथ जो बिस्तर पर लेटा हुआ छत से देख रहा है. वह अपनी कंपनी के अति महत्वाकांक्षी परियोजना के साथ संघर्ष कर रहा है. वह अपनी मां की मृत्यु की खबर से टूट जाता है. क्योंकि वह सिर्फ अपनी मां से प्यार करता था.
इधर कंपनी के मालिक (सिद्धार्थ बसु) को अमय से बहुत कुछ अनूठा चाहिए. अमय मुंबई में रह रहा है, लेकिन अभी भी अपने पैरों पर नहीं खड़ा है, वह मुंबई में अपने टूटेफूटे फ्लैट में ही रह रहा है. जारा (श्रेया चौधरी) स्नेह और आक्रोश के मिश्रण के साथ अमय से कहती है कि उस के अंदर टैलेंट है, मगर जारा को नहीं पता कि उस का पाला एक ऐसे पुरुष से हुआ है जो वह काम नहीं करेगा या नहीं कर सकता है जो उसे करना है, जहां वह चाहता है.
जारा गोंसाल्विस (श्रेया चौधरी), अमय को समझाती है कि दुनिया में औसत लोगों की ही भरमार है, और अमेय में टैलेंट की कमी नहीं है. जिस औफिस में अमय कार्यरत है, वहां पर जहांगीर इंस्टीट्यूट के लिए भारतीयता की पहचान दिलाने वाले नक्शे की जरूरत है. जारा चाहती है कि अमय अपने टैलेंट को उजागर कर सभी की बोलती बंद कर दे. इसी बीच अमय की मां की मौत हो जाती है. अमय अपने घर नवसारी पहुंचता है, जहां उस की बहन अनु मेहता पटेल ( पूजा सरुप ) अमेरिका से पहले ही आ चुकी है. भाईबहन आपस में बात करते हैं, जिस से यह एहसास होता है कि पिता व बेटे के बीच बहुत ज्यादा मधुर संबंध नहीं है.
पिता व पुत्र दोनों ही दो विपरीत ध्रुवों की तरह हैं. दोनों एकदूसरे को दिल से बहुत चाहते हैं. पर लोगों के साथ ही अनु को भी ऐसा नहीं लगता. नवसारी से वापस मुंबई आने से पहले बहन अनु के कहने पर अपने पिता से मिलने उन के कमरे में जा कर बताता है कि वह मुंबई वापस जा रहा है. तब पिता शिव बिस्तर से उठ कर अमय के पास तक तो आते हैं, पर गले नहीं लगा पाते. अनु बता चुकी है कि अब शिव उन के साथ अमेरिका जा रहे हैं.
अनु व शिव सामान बांध कर मुंबई से अमेरिका के लिए प्लेन पकड़ने के लिए मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचते हैं. एयरपोर्ट पर अमय भी पहुंच जाता है. पर कुछ समस्या के चलते शिव की टिकट दो दिन बाद की है और अनु रुक नहीं सकती. क्योंकि अमेरिका में उस के बच्चे अकेले हैं. मजबूरन अमय अपनी बहन अनु से वादा करता है कि वह पिता शिव को अपने साथ अपने मकान पर ले जाएगा और दो दिन बाद उन्हें प्लेन में बैठा देगा.
अमय के घर में पहुंचते ही मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. इस बारिश के वक्त शिव के हाथ के बनाए गरमागरम नूडल्स खाते हुए बापबेटे टीवी पर चार्ली चैपलिन की फिल्म देखते हुए पहली बार हंसते हैं. यहीं से पितापुत्र के बीच की बर्फ पिघलनी शुरू होती है. इस के बाद क्या होता है यह जानने के लिए तो फिल्म देखनी ही पड़ेगी.
पीढ़ियों के बीच मतभेद आम बात है. हर पिता अपने बेटे को अपने हिसाब से कुछ बनाना चाहता है, अकसर बेटे भी अपने पिता की सोच के अनुरूप बनना चाहते हैं, पर समय के साथ कहीं न कहीं इसी बात पर पितापुत्र के बीच मतभेद/मनभेद अथवा पैसे को ले कर भेद भी हो जाते हैं, जिस के चलते रिश्ते कैसे बनतेबिगड़ते हैं, इसे बड़ी चतुराई व सहजता के साथ बिना उपदेशात्मक भाषणबाजी के बोमन ईरानी ने अपनी इस फिल्म में पिरोया है.
कहानी की भावनात्मक गहराई हर दर्शक को उस के आसपास के रिश्तों या घटनाओं की याद दिलाती है. पिता और बेटे का तनावपूर्ण रिश्ता हो या भाईबहन का सहज संबंध, आप को लगता है, ऐसे चरित्र आप के अपने जीवन में भी हैं. फिल्म जितनी मार्मिक है, उतनी ही मनोरंजक भी. फिल्म में शिव की पत्नी शिवानी को नहीं दिखाया गया है, मगर शिव की पत्नी शिवानी के व्यक्तित्व को शिवानी के न होने पर शिव, अमय व अनु की जिंदगी पर पड़ने वाले असर से समझा जा सकता है.
पिता अपने अनुभवों व उम्र के आधार पर सदैव इस अकड़ में रहता है कि वह सब कुछ जानता है. तो वहीं बेटे को अक्सर पिता का जब देखो तब ‘ज्ञान’ बांटते रहना अच्छा नहीं लगता. यह बात भी इस फिल्म से उजागर होती है. बोमन ईरानी ने अपनी फिल्म में सिर्फ पितापुत्र के रिश्ते की बात नहीं की है, बल्कि भाईबहन के रिश्ते की भी बात की है.
इस फिल्म में अनु व अमय के बीच का रिश्ता देख कर हर भारतीय रिलेट कर पाएगा, क्योंकि इसी तरह के रिश्ते हर भारतीय परिवार में भाईबहन के बीच नजर आते हैं. मगर लेखक व निर्देशक ने पिता व पुत्र के बीच की दूरियों पर बहुत कम कहा है. बोमन ईरानी ने फिल्म में बेवजह नाटकीयता परोसने से बचते नजर आए हैं. मगर फिल्म में एक आर्किटैक्ट की कारपोरेट कंपनी का जो माहौल दिखाया गया है, वैसा इन दिनों किसी भी कारपोरेट औफिस में नजर नहीं आता.
मुंबई शहर का परिदृश्य फिल्म में और पिता और पुत्र के बीच के रिश्ते में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ ही रूपक की तरह भी है. शिव का अपने बेटे अमय से गया वाक्य, ‘‘सभी शहर एक जैसे दिखते हैं. भारत, भारत जैसा नहीं दिखता’’ बहुत कुछ कह जाता है.
बोमन ईरानी ने फिल्म में कुछ कमाल के दृश्य रचे हैं. मसलन, पिता को घर में न पा कर उन की तलाश में अमय का निकलना और फिर कमर तक सड़क पर भरे पानी में पिता को सामान लाते देखने वाला सीन कमाल है. यह फिल्म आप को एक बेटी की बेबसी से रूबरू कराती है जो, अपने पिता को पूरी जिंदगी समेटते हुए देखती है, लेकिन उस के पास कोई विकल्प नहीं है. पर फिल्म का क्लाइमैक्स कमजोर होते हुए भी आंखों से आंसू टपका देता है.
शिव मेहता के किरदार में बोमन ईरानी छा गए हैं. पत्नी के निधन के बाद आत्मनिर्भर पति बनने का प्रयास हो, अपने घर की हर एक यादगार चीज छोड़ कर अमेरिका जाना हो या फिर मन में बेटे की चिंता के बावजूद चेहरे पर सख्ती बनाए रखने वाले दृश्य हों, उन्होंने उसे बेहतरीन ढंग से निभाया है.
इस फिल्म के असली हीरो वही है. उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि वह चाहे जितनी जिम्मेदारी एक साथ संभाल लें, पर अभिनय में उन का कोई सानी नहीं है. अनु के छोटे किरदार में भी पूजासरुप अपनी छाप छोड़ जाती है. एयरपोर्ट पर दो मिनट के दृश्य में तो वह दर्शक की आंखें गीली कर जाती हैं. अमय मेहता के किरदार में अविनाश तिवारी का काम अच्छा ही है. लेकिन कुछ दृश्यों में वे कमजोर पड़ गए हैं. जारा के किरदार में श्रेया चौधरी के हिस्से करने को कुछ खास आया नहीं, पर वह ठीकठाक व सुंदर लगी हैं.