”सुमित की मम्मी ने तो अपने फ्रिज को कचरापेटी बना रखा है. कल मैं सुमित के साथ कंबाइन स्टडी के लिए उस के घर पर रुकी थी. शाम को मैं ने पानी लेने के लिए उस का फ्रिज खोला तो उस में पेप्सी और कोक की पुरानी बोतलों में उन्होंने पीने का पानी भर कर रखा हुआ है. मुझे तो देख कर उबकाई आ गई. गंदी और पीली बोतलें. आंटी को ये भी नहीं पता कि ये बोतलें भी एक्सपायरी हो जाती हैं और इन में पानी रख कर पीना खतरनाक है. मैं तो फिर बाहर जा कर अपने लिए पानी खरीद कर लाई.” राधिका अपनी दोस्त साक्षी को सुमित की मां की अज्ञानता के बारे में बता रही थी.
”सुमित के दादाजी के पास दवाइयों का बड़ा सा डिब्बा है. उस में ऊपर तक दवाइयां भरी हैं. मगर जब वो अपनी कोई दवाई ढूंढते हैं तो वह उन्हें कभी नहीं मिलती. एक दिन मैं उन की एक दवा ढूंढने में उन की मदद कर रही थी तो मैं ने देखा कि उन के डिब्बे में बहुत सी दवाएं एक्सपायरी हो चुकी हैं फिर भी उन्होंने रखी हुई हैं. फ्रिज में भी दवा और टौनिक की बोतलें भरी पड़ी हैं. पता नहीं आंटी उन्हें फेंकती क्यों नहीं हैं? मैं ने सुमित से भी कहा मगर उस ने तो खुद अपनी अलमारी को कचरापेटी बना रखा है. पुरानी किताबें, पुरानेपुराने कौमिक्स और टूटेफूटे खिलौनों से उस की पूरी अलमारी भरी पड़ी है.” राधिका ने आगे बताया.
राधिका की बातें सिर्फ सुमित की मां या उस के परिवार के बारे में ही नहीं बल्कि अनेकों भारतीय गृहणियों और परिवारों के बारे में बिलकुल सही है. हम भारतीय चूंकि गरीबी के कठिन दौर से उभरे हैं लिहाजा छोटीछोटी चीजों को बटोरे रखने की आदत हमारे जींस में है. हम काम की चीजों के साथ बेकार और पुरानी चीजों का भी भंडार अपने घरों में इकट्ठा कर लेते हैं. हमें लगता है कि आज नहीं तो कल ये हमारे काम ही आएंगी. हम अपने घरों में रखी चीजों पर नजर डालें तो पाएंगे कि अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जिन का हम ने सालों से इस्तेमाल नहीं किया है, मगर उन चीजों से हमारी अलमारियां और बक्से भरे हुए हैं. हर भारतीय घर में पुराने कपड़ों के बौक्स भरे मिलेंगे. अखबारों और किताबों के बंडल मिल जाएंगे. पुराने जूतों के ढेर और पुराने बर्तन जो कभी इस्तेमाल नहीं होते, बोतलें, तालेकुंजियां, पुरानी रजाइयां-कंबल, चादरें, परदे तक लोग इस आशा में सहेज कर रख लेते हैं कि यह पुराने हुए तो क्या इन से कुछ और काम लिया जा सकता है, हालांकि वे सालोंसाल पड़े ही रहते हैं. इन चीजों में गंदगी जमा होती है. फफूंद या दीमक लग जाती है. या वे खुद पुरानी हो कर सड़ने लगती हैं मगर हम फिर भी उन्हें सहेजे रखते हैं.
कृष्णाजी की उम्र 60 वर्ष से ऊपर हो चुकी है. उन्होंने आज भी अपने बेटे के बचपन के कपड़े, किताबें, क्रेओन्स, उस की पहली यूनिफार्म, उस का पहला स्वेटर-टोपा, उस की छोटी से रजाई और तकिए, गद्दा और खिलौने संभाल कर रखे हुए हैं. उन के घर में एक कमरा उन के बेटे के बचपन की चीजों से भरा पड़ा है, जबकि उन का बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में सेटल हो चुका है. कृष्णाजी को पैसों की तंगी रहती है. वे चाहें तो अपने घर के कुछ कमरे किराए पर दे सकती हैं. इस से उन्हें अच्छी आमदनी हो जाएगी और उन का अकेलापन भी दूर हो जाएगा, मगर वो अपना पुराना और बेकार सामान, पुराना फर्नीचर और बेटे की चीजों को घर से हटाना ही नहीं चाहतीं हैं. उन का घर लोगों को किसी छोटेमोटे म्यूजियम जैसा नज़र आता है.
कृष्णाजी जैसी अनेक माएं हैं जो अपने बच्चों की बचपन की यादों को मरते दम तक सीने से चिपकाए रखती हैं. यह ममता और भावनात्मक लगाव दुनिया के दूसरे देशों की माओं में देखने को नहीं मिलता, मगर यह समझना भी बहुत जरूरी है कि कोई भी वस्तु अपनी उम्र पूरी करने के बाद स्वयं ही नष्ट होने लगती है अथवा उस में कीड़ा लग जाता है. ऐसी हालत में भी उन को घर में रखना बीमारियों को न्योता देना ही है. एक समय के बाद पुरानी किताबों के पन्ने पीले पड़ कर टूटने लगते हैं. कपड़े गर्द और सीलन से भर कर बदबू मारने लगते हैं. चीजों पर जमी गंदगी और धूल सांस संबंधी बीमारियां पैदा करती है. अलमारियों से पुरानी चीजें न हटाई जाएं तो दीमक लग जाती है जो अच्छी चीजों को भी नष्ट कर देती है. लकड़ी की वस्तुएं एक समय के बाद सूख कर खुद भुरभुराने लगती हैं. इसलिए जो चीजें काम की न हों उन्हें घर से निकाल देना ही बेहतर है. क्योंकि यह चीजें घर में नकारात्मक ऊर्जा भी पैदा करती हैं.
बच्चों को अपनी पुरानी किताबें, खिलौने और कपड़े स्वयं निकाल कर जरूरतमंद बच्चों को दे देने चाहिए. वहीं बड़ों को भी पुरानी वस्तुएं गोदाम में रखने और सड़ाने की बजाए समय से कबाड़ीवाले को बेच देनी चाहिए. इस से कुछ पैसे भी आ जाएंगे और घर भी साफसुथरा हो जाएगा.
बुजुर्गों को भी चाहिए कि उम्र के आखिरी पड़ाव में वह जीवन भर बटोर के रखी गई अनेकानेक चीजों को खुद ही बेच कर वह पैसा अपने लिए उपयोग में ले आएं. वरना उन के मरने के बाद उन की अधिकांश वस्तुएं कूड़े में ही फेंकी जाएंगी.
घर को साफसुथरा रखने का दायित्व सिर्फ गृहणियों का ही नहीं है, बल्कि घर के हर सदस्य का है. घर में पुराना सामान सिर्फ गृहणियां ही इकट्ठा नहीं करतीं बल्कि घर के बुजुर्ग, बच्चे और जवान भी खूब इकट्ठा करते हैं और उन की साफसफाई का सारा जिम्मा बेचारी गृहणियों के सिर आ जाता है. अनुज के पिताजी ने अपने दादाजी की खटारा कार आज भी गैरेज में रखी हुई है. अब वो न तो चलती है और न बिकती है. कबाड़ी वाला उसे अब लोहे के भाव खरीदेगा मगर अनुज के पिताजी अब भी उसे बेचने को तैयार नहीं हैं. कहते हैं मेरे दादाजी की निशानी है. खटारा कार गैरेज में रख कर अपनी नई कार वे बाहर सड़क पर पार्क करते हैं और रात में कई बार निकल कर देखते हैं कि कहीं कोई चोर गाड़ी का कोई पार्ट निकाल कर तो नहीं ले गया.
घर जितना साफसुथरा, कम सामान वाला और खुलाखुला होगा, उस को मेंटेन रखना उतना ही आसान होगा. उस की साफसफाई भी ठीक तरीके से हो सकेगी और वह देखने में भी सुंदर लगेगा. आपने गौर किया होगा कि उच्च वर्गीय घरों में खाली स्पेस ज़्यादा दिखता है. उन की जरूरत भर का सामान अलमारियों में एडजस्ट हो जाता है क्योंकि वे फालतू सामान से अपनी अलमारियां नहीं भरते हैं. जबकि मध्यमवर्गीय लोग ज्यादा से ज्यादा सामान से अपना घर भरते रहते हैं. उच्च वर्गीय लोग ब्रांडेड चीजें खरीदते हैं मगर कम संख्या में, जो ज्यादा दिन तक चलती हैं, परन्तु मध्यमवर्गीय लोग उतने ही पैसे में ज्यादा चीजें खरीद लेते हैं जो लोकल होती हैं और कम समय में ही खराब हो जाती हैं.
इसके अलावा यह जगह भी घेरती हैं. खराब हो जाने पर गृहणियां उन्हें यह सोच कर जल्दी फेंकती भी नहीं हैं, कि अभी कुछ दिन पहले ही तो खरीदी थी. ऐसे में अगर घर को सुंदर और सुव्यवस्थित रखना है तो चीजों को इकट्ठा करने की ऐसी मानसिकता को छोड़ना होगा. कम सामान खरीदें, मजबूत सामान खरीदें और बेकार चीजों को तुरंत घर से बाहर निकाल दें. घर को रहने योग्य बनाएं, कचड़ा घर नहीं.