प्रभात कक्षा 8 में पढ़ता था. घर में उस की मां रीना और पिता राकेश थे. राकेश बिजनैसमैन थे. मां घर में ही रह कर परिवार की देखभाल करती थी. वैसे, रीना ने ग्रेजुएट तक की पढ़ाई की थी. शादी के पहले दो साल तक उस के प्राइवेट स्कूल में छात्रों को पढ़ाने का काम भी किया था. शादी के बाद ससुराल वालों को रीना का नौकरी करना पसंद नहीं था. ऐेसे में उस ने नौकरी छोड़ दी. शादी के बाद के 7-8 साल तो बच्चे को बड़ा करने में लग गए. अब बेटा प्रभात बड़ा हो गया था तो अपने काम कर लेता था. अब वह यह भी नहीं चाहता था कि मां उस के काम करे.

मां जब भी उस का कमरा साफ करती या उस के फेंके सामान सही जगह रखती तो वह कुछ न कुछ बोलती रहती थी. प्रभात को मां का बोलना पंसद नहीं था. ऐसे में वह सोचता था कि मां उस के कमरे में साफसफाई करती ही क्यों है. उस के काम न किया करे. न वो काम करेगी न नसीहत देगी. इस बात को ले कर दोनों के ही मन में एकदूसरे से नाराजगी बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे से खुश नहीं रहते थे. रीना भी गुस्से में कई बार सोचती थी कि वह भी यह बेकार के काम नहीं करेगी. नौकरानी ही करेगी. गुस्सा खत्म होने पर फिर वही काम करती थी. मजेदार बात यह कि वह प्रभात से नाराज भी रहती और नातेरिश्तेदारों व दोस्तों के सामने उस की तारीफ भी करती थी.

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