Emotional Story : बहुत मुश्किल था हमारे लिए अपनी लाड़ली को तिलतिल कर मरते देखना. मैं रातदिन उस की सेवा कर रही थी, हर संभव प्रयास कर रही थी लेकिन उसे ठीक नहीं होना था, उस की पथराई आंखों में हर रोज कुछ सवाल तैरते थे जैसे कह रही हो...

मैं खुद को इस पल से दूर, बहुत दूर, ले जाना चाहती हूं. दिमाग की नसें खिंच रही हैं. मुझे किसी अंधेरे कोने में छिप कर बैठना है लेकिन उसे छोड़ कर कैसे चली जाऊं. अभी तो उसे विदा करने की जिम्मेदारी बाकी है. रहरह कर अम्मा के शब्द मेरे कानों में गूंज रहे हैं, ‘मंजू, अब तू ही संभाल इसे, आज से विदाई तक की जिम्मेदारी तेरी.’

उन की बात सुन मेरे आंचल से खेल रही 4 साल की दम्मो ने मेरी तरफ देखा, ‘तुम मुझे विदा करोगी, भाभी?’

उस की बड़ीबड़ी बोलती आंखों में चमक आ गई थी. मैं ने मुसकरा कर हां कहा तो खुश हो गई.

‘ऐसी ही लाल साड़ी लाना मेरे लिए और सुंदर सी मेहंदी लगाना.’

अचानक करंट सा लगा, मैं दम्मो से किए अपने वादे को भूल कैसे गई? जल्दी से उठ अपनी अलमारी से उस की विदाई के लिए सहेज कर रखी लाल साड़ी ढूंढने लगी. निचले हिस्से में सब से पीछे रखी साड़ी को निकाल हाथ में लिया तो फिर रुका नहीं गया, कलेजे से लगा फफक पड़ी.

बहुत चाव से खरीदी थी अम्मा ने यह साड़ी दम्मो की शादी के लिए. कितना हंसी थी मैं कि अम्मा ने तो 4 साल की दम्मो की शादी की तैयारी भी शुरू कर दी है. तब कौन जानता था कि भविष्य की मुट्ठी में दम्मो के लिए क्या कैद है.

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