1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड संहिता का नाम भारतीय न्याय संहिता के साथ साथ तीन ऐसे कानून लागू हो रहे हैं जो नरेंद्र मोदी सरकार की ऐसी बड़ी गलतियां है जिसका खमियाजा आने वाले समय में भारत के जन-जन को उठाना पड़ेगा.

जैसा कि हम जानते हैं नरेंद्र मोदी के विगत कार्यकाल (2019-2024) में आनन फानन में अनेक कानूनों को संसद में पास कर दिया गया जिस पर संसद में कोई चर्चा नहीं कराई गई उनमें तीन ऐसे कानून है जो सीधे-सीधे आम जनमानस से जुड़े हुए हैं जो 1 जुलाई 2024 से देश में लागू हो गए हैं.मगर इन कानूनों की त्रासदी यह है कि लोगों का गिरेबान पुलिस के हाथ में आ गया है. आने वाले समय में नैसर्गिक न्याय की जगह “पुलिस राज” कायम हो जाएगा और सत्ता के इशारे पर राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाल दिया जाएगा. अर्थात जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था वह काम नरेंद्र मोदी की सरकार ने बिना किसी विरोध, पिछली गली से कर दिया है.

जहां तक विपक्षी पार्टी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का सवाल है, संसद में तो कोई कमाल नहीं दिखा पाए, अब जब लोकसभा चुनाव 24 के बाद इंडिया गठबंधन मजबूत होकर के सामने आ गया है तो भी 1 जुलाई से पहले इसे रोकने के लिए जो कदम उठाए जाने थे नहीं उठाए गए. इस आलेख में हम बताने का प्रयास करेंगे कि किस तरह इन तीन कानून की मार से आम जनमानस त्राहि-त्राहि कर उठेगा. इन कानून की मंशा यह है कि वर्दी धारी अपनी जगह राज करें और हम अपनी जगह अर्थात दिल्ली में राज करते रहे.

तीन कानून और वाह वाह वाह

जो तीन नए कानून बनाए गए हैं, देश भर में उसके समर्थन के लिए सरकार के अघोषित निर्देश पर गोष्ठियों का दौर चल रहा है, इसमें बताया जा रहा है कि इन कानूनों से लाभ ही लाभ है. वरिष्ठ अधिवक्ता विजेंद्र सोनी से हमारे संवाददाता ने बात की तो उन्होंने दो टूक कहा- तीन नए कानून हमारे लोकतंत्र को पुलिस राज की तरफ धकेल देगा!

आगामी 1 जुलाई से विगत संसद में जल्दी बाजी में बिना बहस के पारित किए गए तीन कानून जो भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता ,एवं साक्ष्य अधिनियम के जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ,भारतीय न्याय दंड प्रक्रिया संहिता ,और साक्ष्य अधिनियम पारित किया गया वह लागू हो गए हैं, सवाल है – नए कानून की आवश्यकता क्यों थी?? जबकि संसद को कानून में संशोधन करने की संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और लगातार दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन होते रहे हैं. सिविल प्रक्रिया संहिता में देश के बहुचर्चित वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी जब कानून मंत्री थे तब व्यापक संशोधन कर दिए गए थे.

मगर, नरेंद्र मोदी सरकार ने आनन-फानन में तीन नए कानून बिना सिलेक्शन कमिटी को भेजें बिना राज्य सरकारों से चर्चा किये संसद में बिना बहस, और विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति में इस कानून को पास कर दिया. मंशा यह थी कि नरेंद्र मोदी सरकार किसी भी किस्म का प्रतिरोध को बर्दाश्त नहीं करती वह जांच एजेंसियों को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देकर के हमारे देश में जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत नागरिक अधिकार प्राप्त है जिसमें आंदोलन, प्रतिरोध और सत्ता के खिलाफ संघर्ष शामिल है उस पर अंकुश लगाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के नए प्रावधानों के तहत पुलिसिया राज कायम में सफल हो गई है.

अधिवक्ता विजेंद्र सोनी बताते हैं – पूर्व में दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुलिस हिरासत में किसी आरोपी को रखने के लिए 15 दिन की रिमांड स्टेज हो सकती थी जिसे बढ़ाकर 60 से 90 दिन कर दिया गया है. यह सिर्फ जनता के बीच में डर का वातावरण बना रहे इसके लिए पुलिस को अधिकार दिए जा रहे हैं इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस ग्राह्य करने संबंधी प्रावधान साक्ष्यअधिनियम में है.जबकि अभी तक इंफ्रास्ट्रक्चर इस तरीके से क्रिएट नहीं हुआ है कि तमाम इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस की फोरेंसिक जांच लैब में किया जा सके ना तो लैब की संख्या बढ़ी है और ना ही उसमें कार्यरत तकनीकी ज्ञान रखने वाले अधिकारी और कर्मचारी . यह सिर्फ अपने राजनीतिक एजेंडा को पूरा करने के लिए आनन-फानन में बनाए गए तीनों कानून देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलने का काम करेंगे.

इसके लिए एक उदाहरण काफी है कि – पूर्व के दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस के समक्ष आरोपी के द्वारा किसी भी किस्म की स्वीकृति न्यायालय में मान्य नहीं है लेकिन वर्तमान व्यवस्था में पुलिस के सामने आरोपी की स्वीकारोक्ति से अगर कोई अन्य तथ्य स्थापित होते हैं तो वह स्वीकारोक्ति न्यायालय में मान्य होगी. जैसे आरोपी रामलाल पुलिस के समक्ष यह स्वीकार करता है कि हां उसने दस हजार रूपये लिए थे और उसके घर से दस हजार रुपए पुलिस बरामद कर लेती है तो यह न्यायालय में स्वीकारोक्ति की श्रेणी में आएगा और सीधे-सीधे सजा हो जाएगी. इन प्रक्रियाओं से नागरिकों के संवैधानिक अधिकार और पुलिस अभिरक्षा में जोर जबरदस्ती के साथ स्वीकारोक्ति के लिए विवश किया जाना शामिल है जो पूर्णतया मानव अधिकारों के विरुद्ध है.

 

इस कानून में दंड संहिता की 511 धाराओं की जगह 358 धाराएं दंड प्रक्रिया संहिता की 484 धाराओं को बढ़ाकर 521 धाराएं और साक्ष्य अधिनियम के 167 धाराओं को बढ़ाकर 170 धाराएं रखी गई अगर पूर्ववर्ती कानून में कुछ खामियां थी तो उसे संशोधित किया जा सकता था कुछ नई धाराएं जोड़ी जा सकती थी लेकिन पूरे कानून को उसके मूल स्वरूप को बदलकर एक नई किस्म का नाम देकर के सिर्फ अपने राजनीतिक मकसद को पूरा किया गया है जो अलोकतांत्रिक है. दरअसल यह सच है कि यह “तीनों कानून” नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी भूल है और अव्यावहारिक, अप्रासंगिक और गैर जरूरी हैं.

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