अभी तक पत्नी के काला रंग से पति को शिकायत होती थी. मध्य प्रदेश के जबलपुर में पति के काला रंग से परेशान पत्नी ने अलग रहने का फैसला किया है.
समाज में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि ‘घी का लड्डू टेढ़ा भला’ यानि लड़का कैसा भी हो अच्छा ही माना जाता है. खासकर घर परिवार शादी विवाह में ऐसे उदाहरण बहुत दिए जाते हैं. लड़का अगर काला है तो भी घर वाले परेशान नहीं होते हैं. वहीं जब लड़की काली हो तो उस की शादी की चिंता उस के पैदा होते ही होने लगती है. कई बार शादी टूटने का बड़ा कारण लड़की की रंगरूप होता है. अब हालात बदल रहे हैं. लड़कियों की संख्या तो कम हो ही रही है वह आत्मनिर्भर भी हो कर अपने फैसले खुद कर रही हैं. ऐसे में वह काले रंग के लड़के के साथ भी शादी कर के नहीं रहना चाहती.
यह बात और है कि कई जोड़े ऐसे भी हैं जो काले गोरे के रंग को छोड़ कर खुशीखुशी रह रहे हैं. कई गोरी पत्नियों को अपने काले रंग वाले पति में आकर्षण नजर आता है. वह उन के साथ खुश रहती हैं. मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले रमेश कुमार नामक युवक ने पुलिस मे शिकायत दर्ज कराई कि पत्नी उस के काले रंग को ले कर ताने मारती है और अब उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया है. वह उसे छोड़ कर चली गई है. रमेश की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले पत्नी के साथ परामर्श करना सही समझा है. उसे बुला कर मामला समझेगी.
यह मामला खुल कर सामने आ गया है. इसलिए उदाहरण के लिए इस को सामने रखा जा रहा है. समाज में कई पतिपत्नी ऐेसे हैं जिन के बीच रंग एक बड़ी परेशानी बन रही है. लड़के के तो तमाम मामले हैं जहां सांवली पत्नी से उस को शिकायत होती है. वह तलाक भी मांग लेता है. लड़की को बिना तलाक के छोड़ देता है. दूसरी पत्नी रख लेता है. बहुत सारे उदाहरण समाज में मौजूद हैं. पति के सांवले होने पर पत्नी उसे छोड़ दे ऐसे मामले भी अब आने लगे हैं.
लड़कियों की चाहत बढ़ रही हैं
लड़कियां पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही है. नौकरी कर रही है. उन का भी अपना सोशल सर्किल हो रहा है. उन को भी अपनी चाहते पूरी करने का मन होता है. ऐसे में वह अपनी पंसद का लड़का ही चुनना चाहती है. आज के दौर में शादी के लिए लड़के और लड़की की खोज सोशल मीडिया पर बनी साइड्स पर होती है. जहां पर रूप, रंग, नौकरी, आदतें सबकुछ देखने समझने का प्रयास होता है. दूसरी चीजें तो छिपाई भी जा सकती है पर रंग और रूप छिपाया नहीं जा सकता है. कई बार ऐसा होता है कि बढ़ती उम्र का दबाव, अच्छी नौकरी और घर परिवार के दबाव में आकर लड़कियां समझौता कर लेती हैं.
जब शादी के बाद यह साथ चलती है. सोशल मीडिया पर साथसाथ फोटो आते हैं तो देखने के एकदम विपरीत होते हैं. ऐसे में थोड़ी दिक्कत आती है. समाज का एक बड़ा हिस्सा दिखावा पंसद करता है. उन के लिए लड़कालड़की का रंग भी दिखावे में आता है. शादी के लिए लड़कालड़का चुनाव करते समय उन के समान गुणों स्वभाव को देखना चाहिए. जहां तक हो सके समान सोच वाले का चुनाव ही हों. इस में रूपरंग को भी सामने रखना चाहिए. कहते है 19-20 का फर्क तो चल सकता है लेकिन 18 और 24 का फर्क हो तो साथसाथ चलना मुश्किल हो जाता है. शादी के लिए चुनाव करते समय इस का ख्याल रखें.
कई बार रंग में बहुत अधिक फर्क होने का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है. एक बच्चा गोरा तो एक काला हो जाता है. आपस में उन के बीच भी परेशानी होती है. यह बात और है कि कैरियर और सफलता में रंग रूप का प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन देखने में फर्क पड़ता है और समाज उस को अलग नजर से देखता है. कानून भी इस को ले कर अलग नजरिया रखता है.
क्या कहती है अदालत
बेंगलुरु कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अपने पति की त्वचा का रंग ‘काला’ होने के कारण उस का अपमान करना क्रूरता है और यह उस व्यक्ति को तलाक की मंजूरी दिए जाने की ठोस वजह है. उच्च न्यायालय ने 44 वर्षीय व्यक्ति को अपनी 41 वर्षीय पत्नी से तलाक दिए जाने की मंजूरी देते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों की बारीकी से जांच करने पर निष्कर्ष निकलता है कि पत्नी काला रंग होने की वजह से अपने पति का अपमान करती थी और वह इसी वजह से पति को छोड़ कर चली गई थी.
उच्च न्यायायल ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ए) के तहत तलाक की याचिका मंजूर करते हुए कहा, ‘इस पहलू को छिपाने के लिए उस ने (पत्नी ने) पति के खिलाफ अवैध संबंधों के झूठे आरोप लगाए. ये तथ्य निश्चित तौर पर क्रूरता के समान हैं.’ बैंगलुरु के रहने वाले इस दंपति ने 2007 में शादी की थी और उन की एक बेटी भी है. पति ने 2012 में बैंगलुरु की एक पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी.
महिला ने भी भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (विवाहित महिला से क्रूरता) के तहत अपने पति तथा ससुराल वालों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया था. उस ने घरेलू हिंसा कानून के तहत भी एक मामला दर्ज कराया और बच्ची को छोड़ कर अपने मातापिता के साथ रहने लगी. उस ने पारिवारिक अदालत में आरोपों से इनकार कर दिया और पति तथा ससुराल वालों पर उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया. पारिवारिक अदालत ने 2017 में तलाक के लिए पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिस के बाद उस ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.
न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा, ‘पति का कहना है कि पत्नी उस का काला रंग होने की वजह से उसे अपमानित करती थी. पति ने यह भी कहा कि वह बच्ची की खातिर इस अपमान को सहता था.’ उच्च न्यायालय ने कहा कि पति को ‘काला’ कहना क्रूरता के समान है. उस ने पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘पत्नी ने पति के पास लौटने की कोई कोशिश नहीं की और रिकौर्ड में उपलब्ध साक्ष्य यह साबित करते हैं कि उसे पति का रंग काला होने की वजह से इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इन दलीलों के संदर्भ में यह अनुरोध किया जाता है कि पारिवारिक अदालत विवाह भंग करने का आदेश दें.’
काला रंग होने से लड़की को व्यवहारिक दिक्कतें हो सकती हैं. इन बातों को शादी से पहले समझना चाहिए. जिस से कोर्ट और पुलिस तक मामले न पहुंचे. जिस तरह से लड़कियों की संख्या घट रही है और जन्मदर में गिरावट आ रही है ऐसे मसले आम होंगे. लड़कियां अपनी पसंद के लड़कों को खोजेंगी, ऐसे में केवल लड़का होने से काम नहीं चलने वाला. उसे भी अपने रूपरंग और स्मार्टनेस और कैरियर की तरफ ध्यान देना होगा. पत्नी ज्यादा सुदंर हो तो पति खुद भी कुंठा का शिकार होता रहता है. उसे भी साथ चलने में दिक्कत होती है. ऐसे में जरूरी है कि जोड़ा मेल का हो. बेमेल जोड़े में परेशानी ज्यादा होती है