सफेद दाग यानी विटिलिगो रोग एक आम बीमारी है, लेकिन इस के बारे में जानकारी बहुत कम है. यहां तक कि मैडिकल पेशे से जुड़े लोग भी इस बीमारी के बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाए हैं.
हम दसवीं कक्षा में थे. बाकी सहपाठी तो नवीं से प्रमोट हो कर दसवीं में पहुंचे थे, पर एक नया एडमिशन हुआ था. सायरा का. हमारे स्कूल की सभी छात्राएं नीली स्कर्ट, सफेद शर्ट पर नीली टाई और जूता मोजा पहनती थीं, मगर सायरा सफेद शलवार और नीले कुर्ते पर सफेद दुपट्टा ओढ़ती थी. जब पहले दिन वह क्लास में आई, तो क्लास टीचर ने उसे पहली बेंच पर बिठाया. साथ में एक और स्टूडेंट बैठी थी. पहला पीरियड ख़त्म हुआ और जैसे ही क्लास टीचर बाहर निकली, सायरा के साथ बैठी लड़की तुरंत उठ कर दूसरी सीट पर जा बैठी. सायरा चुपचाप अपनी किताब में नज़र गड़ाए रही.
दरअसल सायरा को सफेद दाग यानी विटिलिगो नामक रोग था. उस के लगभग पूरे शरीर की चमड़ी सफेद हो चुकी थी, कोहनी, गर्दन और चेहरे के कुछ भागों को छोड़ कर. कुछ जगहों पर सांवला रंग और बाकी जगह सफेद चमड़ी के कारण वह अजीब सी दिखती थी. सायरा पतलीदुबली और बालों की कस कर एक छोटी बनाने वाली लड़की थी. शलवार कुर्ता पहनने की परमिशन स्कूल प्रशासन ने इसलिए दी थी ताकि उस के हाथपैर की चमड़ी कपड़े से ढंकी रहे और सूरज की तेज किरणों से बची रहे. शुरू के दोतीन महीने तक उस की कोई सहेली नहीं बनी. कोई उस के साथ उस की सीट पर भी नहीं बैठना चाहती थी. टीचर की डांट पड़ती तब कोई उस के साथ अनमने मन से बैठ जाती थी.
3 महीने बाद जब क्वाटर्ली पेपर हुए और रिजल्ट आया तो सायरा क्लास में फर्स्ट आई. फिर दोतीन लड़कियां सायरा से बात करने और साथ खाना खाने लगीं. फिर धीरेधीरे पूरी क्लास उस की दोस्त बन गई. सायरा भी सब के साथ घुल मिल गई. वह पढ़ने में बहुत तेज थी. थ्रू आउट फर्स्ट डिवीजन. छमाही के एग्जाम के बाद तो हर लड़की उस के साथ बैठना चाहती थी. आज सायरा एक कामयाब डाक्टर है. उस ने शादी नहीं की. अपने मातापिता और भाईभाभी के साथ रहती है. उस की कमाई उस के भाई और पिता की कमाई से 3 गुना ज्यादा है. वैसे तो वह सुबह से शाम तक मरीजों में व्यस्त रहती है, पर कभीकभी अकेलेपन का अहसास भी होता है. खासतौर पर तब जब वह अपने भैया भाभी के बेडरूम से उन के हंसने खिलखिलाने की आवाजें सुनती है.
निर्मला खत्री चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. वह मुंबई में रहती हैं. 5 साल पहले उन की शादी हुई थी. दो साल का एक बेटा है उन का. एक दिन अचानक निर्मला के होंठों के आसपास सफेद चकत्ते से उभरे और फिर कोहनी और आंखों के चारों तरफ ये दाग बड़ी तेजी से फैलने लगे. कोई 6 महीने के भीतर ही निर्मला का चेहरा बदरंग हो गया. उन्होंने अनेक डाक्टरों को दिखाया. मगर कोई भी उन दागों को शरीर पर फैलने से रोक नहीं पाया.
निर्मला अवसादग्रस्त हो गईं. किसी से मिलती नहीं थी. नौकरी भी छोड़ दी. ज़्यादातर घर में बंद रहने लगीं. किसी जरूरी कार्यवश बाहर निकलने की मजबूरी हुई तो उन को लगता कि जैसे हर आदमी उन को घूर रहा है. पति से भी कटीकटी रहने लगी थी. लेकिन उन के पति ने उन का हौसला बढ़ाया. यह अहसास जगाया कि उन दोनों के बीच जो प्यार भरी बौन्डिंग है, उस के आगे निर्मला के शरीर के दाग कोई मायने नहीं रखते हैं. उन्होंने निर्मला को अवसाद से निकलने में मदद की. डाक्टर्स के पास ले कर गए. अब एक डाक्टर का इलाज चल रहा है. उस ने निर्मला की काउंसलिंग भी की है. निर्मला अब काफी हद तक नौर्मल हो चुकी हैं. दोनों अपने बच्चे के साथ बीच पर घूमने जाते हैं और पानी में मस्ती करते हैं. साथ मिल कर शौपिंग करते हैं. निर्मला ने दागों को स्वीकार कर लिया है. उन्होंने नौकरी भी ज्वाइन कर ली है.
सफेद दाग यानी विटिलिगो रोग एक आम बीमारी है, लेकिन इस के बारे में जानकारी बहुत कम है. यहां तक कि मैडिकल पेशे से जुड़े लोग भी इस बीमारी के बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाए हैं. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट औफ हैल्थ (एनआईएच) के अनुसार, इस बीमारी से दुनिया की 0.5 फीसदी से 1.0 फीसदी आबादी प्रभावित है. अनेक मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं. कुछ शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन की स्थिति 1.5 फीसदी आबादी में हो सकती है.
विटिलिगो नाम की इस बीमारी में त्वचा और कुछ मामलों में बालों का पिगमेंटेशन (गहरा रंग) चला जाता है और ये सफेद हो जाते हैं. यह काले लोगों में जल्दी नज़र आता है. विटिलिगो संक्रामक रोग नहीं है. यानी यह छूने, साथ रहने, साथ खाने या खेलने से नहीं फैलता है. हालांकि, ये ऐसा डिसऔर्डर है जो इस से पीड़ित लोगों के लिए काफी चिंता और परेशानी का कारण बनता है.
इस रोग का अमीरी गरीबी से भी कोई नाता नहीं है. इस के शिकार अमीर भी हैं और गरीब भी. विनी हार्लो, जो दुनिया की जानीमानी मौडल हैं, वे भी विटिलिगो से प्रभावित हैं. वे एक कनाडाई फैशन मौडल हैं और अपने इस रोग के बावजूद रैंप पर कैटवाक करते वक़्त उन के अंदर कभी कोई झिझक या परेशानी नहीं देखी गई.
2018 में, विनी हार्लो विक्टोरिया सीक्रेट फैशन शो में विटिलिगो वाली पहली मौडल बनीं. वह बियोंसे द्वारा निर्देशित एचबीओ विजुअल एल्बम बियोंसे : लेमोनेड (2016) में भी दिखाई दीं. उन्हें 2018 में ‘बीबीसी 100 प्रभावशाली महिलाएं’ में से एक के रूप में सम्मानित किया गया था. बाद में हार्लो ने अमेजन प्राइम वीडियो सीरीज – मेकिंग द कट के दूसरे सीजन में जज के रूप में काम किया.
कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या महिला, चाहे उस की त्वचा का रंग कुछ भी हो, विटिलिगो से पीड़ित हो सकता है. ये क्रौनिक बीमारी है जिस में त्वचा पर सफेद या पीले धब्बे दिखाई देते हैं, त्वचा के इस हिस्से में मेलेनिन खत्म हो जाता है. मेलेनिन त्वचा के पिगमेंटेशन के लिए जिम्मेदार होता है, जो मेलानोसाइट्स नाम की खास कोशिकाओं से बना होता है. त्वचा को रंग देने के अलावा मेलानोसाइट्स हमारी त्वचा को सूरज की तेज अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाते हैं. लेकिन जब मेलानोसाइट्स ख़त्म हो जाएं तो पिगमेंट चला जाता है और व्यक्ति को विटिलिगो नामक रोग हो जाता है.
ये बीमारी त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकती है, लेकिन आमतौर पर उस हिस्से में पहले शुरू होता है जो सूरज की किरणों के संपर्क में आता है. जैसे – चेहरा, गर्दन और हाथ. यह समस्या काली या सांवली त्वचा वाले लोगों में अधिक दिखती है और ये हर व्यक्ति में अलगअलग हो सकती है.
विटिलिगो के प्रकार
इसे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि कैसे और शरीर के किस हिस्से में डिपिगमेंटेशन होती है.
सेगमेंटल : इसे एकतरफा विटिलिगो भी कहा जाता है. यह आमतौर पर कम उम्र में ही दिखाई देता है, जिस में शरीर के केवल एक हिस्से में सफेद धब्बे होते हैं. यह एक पैर, चेहरे के एक तरफ या शरीर के सिर्फ एक तरफ हो सकता है. इस तरह के विटिलिगो से पीड़ितों में से लगभग आधे लोगों को जहां विटिलिगो हुआ है वहां पर बाल झड़ने की शिकायत होती है.
नौन-सेगमेंटल : ये विटिलिगो का सब से सामान्य प्रकार है जो ज्यादातर लोगों को होता है. इस में शरीर के किसी भी हिस्से में सफेद रंग पैच बनने लगते हैं.
एक्रोफेशियल : चेहरे, सिर, हाथ और पैरों को प्रभावित करता है.
म्यूकोसल : मुंह के पास और जननांग म्यूकोसा को प्रभावित करता है.
यूनिवर्सल : यह सब से गंभीर स्थिति है, लेकिन सब से दुर्लभ भी है. यह त्वचा के 80 से 90 फीसदी हिस्से तक फैल जाता है.
कौन होता है इस से पीड़ित
इस बीमारी से प्रभावित लोगों के लिए काम करने वाली संस्था ‘विटिलिगो सोसाइटी’ के अनुसार, दुनिया 7 करोड़ लोग इस रोग से पीड़ित हैं और 20 से 35 फीसदी मरीज बच्चे हैं. विटिलिगो आमतौर पर 20 साल की उम्र में दिखाई देना शुरू होता है, हालांकि यह किसी भी उम्र में हो सकता है. ये महिला पुरुष किसी को भी हो सकता है. यह एक औटो इम्यून डिसऔर्डर है केवल एक ‘कास्मेटिक’ समस्या नहीं है.
अब तक यह पता लगाना संभव नहीं हो पाया है कि विटिलिगो का कारण क्या है, लेकिन यह कोई संक्रमण रोग नहीं है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैल सकता. चूंकि इस बीमारी का कारण पता नहीं है इसलिए यह अनुमान लगाना असंभव है कि एक बार विटिलिगो का पहला धब्बा दिखाई देने पर त्वचा का कितना हिस्सा प्रभावित होगा. इस से जो सफेद धब्बे त्वचा पर होते हैं वो स्थाई होते हैं.
इस के लक्षण
विटिलिगो का कोई शारीरिक लक्षण नहीं होता है, अगर दाग को धूप से सुरक्षित न रखा जाए तो ये धूप में जल सकते हैं. इस की वजह से शरीर में दर्द या कोई अन्य परेशानी पैदा नहीं होती है, लेकिन यह प्रभावित व्यक्ति के लिए बहुत ज्यादा मनोवैज्ञानिक परेशानी का कारण बन सकते हैं, खासकर अगर सफेद दाग चेहरे, गर्दन, हाथ या जननांगों पर हो जाएं. डाक्टर्स के लिए अभी तक यह अनुमान लगाना कठिन ही है कि यह बीमारी कैसे डेवलप होती है, कुछ लोगों को सालों तक त्वचा के धब्बों में कोई बदलाव नजर नहीं आता, लेकिन कुछ ऐसे भी मामले हैं यहां धब्बे तेजी से फैल जाते हैं.
इस का इलाज क्या है
आमतौर पर स्पैशलिस्ट ट्रीटमेंट के काम्बिनेशन की सलाह देते हैं. जैसे फोटो थेरैपी (अल्ट्रावायलेट लाइट थेरेपी) के साथ दवा और त्वचा पर कार्टिकोस्टेरौइड्स लगाने की सलाह दी जाती है. लेकिन कार्टिकोस्टेरौइड्स सिर्फ 25 फीसदी से कम मरीजों में ही प्रभावी होते हैं और अल्ट्रावायलेट लाइट त्वचा के रंग में असामान्य बदलाव करता है और लंबे समय में ये स्किन कैंसर का खतरा पैदा सकता है.
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने नौन-सेगमेंटल विटिलिगो के इलाज के लिए ओपज़ेलुरा नाम की एक दवा को मंज़ूरी दी है, जिस का सक्रिय पदार्थ रुक्सोलिटिनिब है. ये दवा एक मरहम के रूप में आती है और इसे विटिलिगो से प्रभावित हिस्से में सीधे लगाया जाता है. दिन में दो बार इस का इस्तेमाल करने वाले लगभग आधे लोगों ने असरदार सुधार की बात कही है, 6 में से एक मरीज का कहना था कि इस के इस्तेमाल से सफेद धब्बों में पिगमेंटेशन लौट आई है.
हालांकि, इस फार्मूले में कई मतभेद हैं. इस से इम्यून सिस्टम प्रभावित हो सकता है और जहां इसे लगाया जाता है वहां मुंहासे और जलन की समस्या हो सकती है. इस के अलावा, ओपज़ेलुरा की एक ट्यूब की कीमत 2,000 अमेरिकी डौलर है.
इस के अलावा, जर्नल औफ डर्मेटलौजी में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि काली मिर्च के तीखे स्वाद के लिए जिम्मेदार पिपेरिन भी पिगमेंटेशन को बढ़ाता है. इस से त्वचा में मेलानोसाइट्स का उत्पादन तेज होता है.
हालांकि, जो भी चीज मेलानोसाइट्स में वृद्धि का कारण बनती है, उस से मेलेनोमा का खतरा भी बढ़ जाता है, जो त्वचा के कैंसर का सब से घातक रूप है. इसलिए, ये अभी तक साबित नहीं हुआ है कि क्या पिपेरिन का इस्तेमाल लोगों में विटिलिगो के इलाज के लिए इस ख़तरनाक असर के बिना किया जा सकता है.
कई बार सफेद दाग में पिगमेंट वापस भी आ जाता है, खासकर बच्चों के साथ ऐसा होता है.
इस का प्रभाव
विटिलिगो एक ऐसी बीमारी है, जो मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से बहुत अधिक प्रभावित कर सकती है. खासकर जब यह किसी लड़की या महिला को हो जाए, तो वह अवसाद में चली जाती हैं. उन्हें लगने लगता है कि अब उन का जीवन व्यर्थ है.
दुनिया में जहां त्वचा के कोमल, साफ, चमकदार और सफेद रंग को ख़ूबसूरती का पैमाना बना दिया गया है और हजारों क्रीम, लोशन, साबुन, फेसवाश, फेशियल, मसाज, प्लास्टिक सर्जरी आदि सिर्फ इसलिए हैं कि आपकी त्वचा पर कोई दागधब्बा न रहे, ऐसे में जब सफेद दाग पूरे चेहरे की त्वचा का रंग बदलने लगता है और पूरे चेहरे पर धब्बे ही धब्बे पैदा हो जाते हैं, तो लड़कियों का अवसादग्रस्त होना लाजिमी है. जब इंसान का पूरा व्यक्तित्व सिर्फ उस की त्वचा के रंग से नापा जाए तो जाहिर है, ऐसी सोच रखने वाले लोगों के बीच धब्बेदार चेहरा ले कर निकलना आसान नहीं है.
लेकिन इस सोच को अब बदलने की जरूरत है. प्रकृति में बहुत सारे जीव हैं जिन की त्वचा पर अनेक प्रकार के धब्बे और निशान हैं, मगर वे उन के साथ ही हमें क्यूट लगते हैं. अनेक धब्बों और निशानों वाली बिल्लियां, कालीसफेद पट्टियों वाले जेबरे, काले धब्बों वाले चीते, कई रंगो वाले कुत्ते या गायें, हम देखते हैं. उन्हें देख कर आश्चर्य नहीं होता. फिर काली, सांवली या बहुत सफेद या विटिलिगो वाली त्वचा को लेकर इतना आश्चर्य क्यों? सिर्फ त्वचा का रंग या उस की कोमलता हमारे पूरे व्यक्तित्व का पैमाना नहीं है.
इंसान की खूबियां, उस का ज्ञान, उस का कौशल, उस का व्यवहार, उस की भाषा, उस का रहनसहन सब मिल कर उस का व्यक्तित्व निर्धारित करते हैं. चमड़ी पर एक धब्बा पैदा हो गया, सिर्फ इतने भर से बाकी खूबियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है. विटिलिगो से पीड़ित व्यक्तियों को घूरना या उन से दूरी बनाना ठीक नहीं है. यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो हाथ मिलाने या साथ बैठने से आप को लग जाएगी. इस कमी को नजरअंदाज कर व्यक्ति की वास्तविक क्षमताओं पर फोकस करना चाहिए.
विटिलिगो से प्रभावित लोगों को भी हर वक्त यह सोच कर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है कि हाय उन की खूबसूरती को यह क्या हो गया? खूबसूरती की उम्र महज बीस-पच्चीस साल ही है. उस के बाद सब की त्वचा पर धब्बे, दाने, झुर्रियां पैदा हो जाती हैं. इसलिए जीवन का वह समय जब आप अपनी क्षमताओं, अपने कौशल और ज्ञान का सर्वाधिक प्रयोग कर अपने और समाज के भविष्य को बेहतर बना सकते हैं, अवसादग्रस्त हो कर दुनिया से अलगथलग पड़े रहना बेवकूफी ही है.