वैसे तो मानसून के आने पर गरमी थोड़ा कम हो जाती है. लेकिन मौसम चाहे मानसून का हो, गरमी हो या सर्दी, उस का सीधा असर व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है. इस भीषण गरमी और गरमी के साथसाथ मानसून के कारण थकान-चिड़चिड़ाहट भी बढ़ती जा रही है जो मानसून डिप्रेशन की एक बड़ी वजह बन रहा है. आइए जानें, क्या है मानसून डिप्रैशन और इस से कैसे बचें.
यह मशहूर गीत तो आप ने सुना ही होगा, ‘धूप में निकला न करो रूप की रानी, गोरा रंग कला न पड़ जाए…’ लेकिन इस साल जिस हिसाब से बारिश और गरमी पड़ रही है, उस से बात सिर्फ रूपरंग की नहीं है बल्कि उस से कहीं आगे बढ़ कर बात मानसिक स्वास्थ्य तक जा पहुंची है. बारिश की वजह से घर से बाहर निकलना तक मुश्किल हो जाता है. इस का शरीर पर ही नहीं, मन पर भी असर पड़ता है.
मन में एक भय पैदा हो गया है
कुछ सालों से मौसम का पैटर्न लगातार बदल रहा है. इस से लोग काफी परेशान हैं. हालांकि साइंटिस्टों ने इस की चेतावनी 1900 में ही देनी शुरू कर दी थी कि पेड़ काट कर कंक्रीट के जंगल बनाने का खमियाजा भुगतना ही पड़ेगा. इस की वजह से मौसम में बदलाव होगा ही होगा. अब यह मौसमी बदलाव किसी से संभल ही नहीं सकता. न सरकार संभाल सकती है न व्यक्तिगत स्तर पर कुछ किया जा सकता है. अब मन में यही भाव हो गया है के ये गरमीबरसात तो ले कर डूबेगी. जितनी खबरें एन्वायरमैंट के बारे में आ रही हैं वे सब बड़ी डिप्रैसिंग हैं.
वेदर चेंज किस तरह लोगों के मन में पर प्रभाव डाल रहा
बहुत से लोग बच्चों को ले कर चिंता में हैं. डर यह सता रहा है कि अगर मौसम इसी प्रकार बदलता रहा तो भविष्य कैसा होगा. खासतौर पर उन को ज्यादा परेशानी है जिन्होंने मौसम के बदलाव की वजह से सूखे और बाढ़ का संकट झेला है. मौसम में बदलाव से जिन की जिंदगी पर असर पड़ा है उन की मैंटल हैल्थ ज्यादा खराब हो रही है.
वेदर चेंज के कारण फसलों को नुकसान हो रहा है. कई फसलों की सप्लाई पर असर पड़ता है. फल और सब्जियों के रेट बढ़ने से महंगाई आसमान छूने लगती है. कई लोग चाह कर भी इन को खरीद नहीं पाते हैं. फिश, पशुपक्षी खत्म हो जाएंगे, पानी का स्तर कम हो जाएगा आदि.
ऐसे में वो सोचते हैं कि अगर अभी यह हो रहा है तो आगे क्या होगा. लोगों को भविष्य का डर सताने लगता है. यही डर एंग्जायटी में बदल जाता है. मौसम में बदलाव से जिन की जिंदगी पर असर पड़ा है उन की मैंटल हैल्थ ज्यादा खराब हो रही है. लेकिन इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह तो अब आप को सहना पड़ेगा. हमारे मांबाप और पिछली पीढ़ी ने जो गलती की थी, अब उस से बचने का पूरी तरह तो कोई तरीका नहीं है. लेकिन कुछ हद तक सावधानी बरत कर इसे काम किया जा सकता है.
क्या है मानसून डिप्रैशन
मौसम में होने वाले बदलाव का सीधा असर व्यक्ति की मैंटल हैल्थ पर पड़ता है. गरमी, बरसात की वजह से उस का कुछ करने, यहां तक कि खानेपीने तक, का मन नहीं करता. एक बार की बारिश से ही हालत इतनी खराब हो जाती है कि चारों तरफ पानी ही पानी हो जाता है. लोग औफिस जाने में भी कतराने लगते है क्योंकि उन्हें 1 घंटे के रस्ते में 4-4 घंटे जाम में लग जाते हैं. ऐसे में लगता है बाहर जा कर क्या करना है. इसलिए व्यक्ति खुद को एक कमरे में बंद कर लेता है. व्यक्ति अकेला रहने लगता है और एंग्ज़ाइटी का शिकार हो जाता है. इस के अलावा, एकाग्रता की कमी और एनर्जी का स्तर भी लो हो जाता है.
आइए जानें मानसून और गरमी ब्रेन पर किस तरह से असर डालती है
मानसून ब्लूज चूंकि कोई क्लीनिकल डिसऔर्डर नहीं है बल्कि मानसून में चूंकि सूर्य का प्रकाश कम हो जाता है और सर्केडियन रिदम की समस्या के कारण यह दिक्कत ट्रिगर हो सकती है. मानसून के दिनों में यूवी एक्सपोजर कम हो जाता है. इस से शरीर में मेलाटोनिनन, सेरोटोनिनन और विटामिन-डी की कमी हो जाती है. सेरोटोनिन की कमी से मूड और भूख प्रभावित होती है. बरसात में कई दिनों तक धूप नहीं दिखती, इस के कारण भी आप की उदासी बढ़ सकती है. असल में जब हमारी आंखें सूर्य के प्रकाश को देखती हैं, तो यह मस्तिष्क को संदेश भेजती हैं जो नींद, भूख, तापमान, मनोदशा और गतिविधि को नियंत्रित करता है. बरसात में यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिस के कारण आप अधिक उदासी का अनुभव कर सकते हैं.
इस के आलावा, कुछ लोग ज्यादा गरमी सहन नहीं कर पाते. ऐसे में उन्हें सूरज की रोशनी से परेशानी होने लगती है. ज्यादा तेज धूप लोगों में निराशा की भावना लाती है. दरअसल, ज्यादा गरमी से पसीना आता है. ऐसी स्थिति में शरीर रक्तवाहिकाओं को चौड़ा कर के स्वयं को ठंडा करने की कोशिश करता है. लेकिन गरमी की वजह से ब्रेन में सेराटोनिन और डोपामाइन कैमिकल की मात्रा बढ़ जाती है. इस से हमारे मूड में चेंज आता है. ज्यादा सेराटोनिन होने से लोगों में एंग्जाइटी डिसऔर्डर होने लगता है. ऐसे में चिड़चिड़ापन, गुस्सा आने, चिंतातनाव जैसे विकारों के मामले काफी बढ़ जाते हैं.
मानसून डिप्रैशन के लक्षण
-थोड़ा काम करने पर भी थकान का काफी ज्यादा महसूस होना.
-किसी भी काम में मन न लगना
-घर से बाहर न जाने के बहाने खोजना
-व्यवहार में चिड़चिड़ापन आना
-अकेले रहने का मन करना
-बातबात पर मूड ख़राब होना और गुस्सा आना
-खुदकुशी करने के खयाल आना
-एनर्जी लैवल का कम हो जाना
कैसे बचें
-बरसात के समय बाहर निकलना अवौयड करें. कहीं जाना है, तो थोड़ा पहले चले जाएं.
-बाहर जाएं तो सिर को कवर करें. किसी कैप का इस्तेमाल करें
-छाता ले कर जाएं
-अपनी नींद के पैटर्न को समझें और रोज एक ही समय पर सोएं. नींद का पूरा होना बहुत जरूरी है.
-इस मौसम में वौक पर जाना मुश्किल लग रहा हो, तो कोई बात नहीं, आप घर में ही ऐक्सरसाइज कर लें. इसे अपने डेली रूटीन में शामिल करें
-कम से कम 10 से 12 गिलास पानी जरूर पिएं ताकि बौडी का तापमान सही रहे.
-अच्छे वैंटिलेशन में रहें.
-कपड़ों का चुनाव भी सोचसमझ कर करें. बारिश के हिसाब से ही कपड़ों का चुनाव करें.
-अपनी डाइट का भी धयान रखें. बाहर ज्यादा खाने से बचें. तलाभुना काम खाएं और हरी सब्जियां व फल ज्यादा खाएं. आप की डाइट में फाइबर खूब होना चाहिए.
-डिप्रैशन कम न हो तो डाक्टर की सलाह लें.
पर्यावरण की रक्षा के लिए सभी को कदम उठाने होंगे. इस वैदर चेंज को कम तो नहीं किया जा सकता लेकिन इस के और ज्यादा बढ़ने से रोका तो जा ही सकता है. पुरानी पीढ़ी वाली गलती आप न दोहराएं. अगर आप को अपने बच्चों के भविष्य का डर सता रहा है तो डिप्रैशन में जाना उस का कोई इलाज नहीं है बल्कि आप अपने स्तर पर उसे रोकने के लिए जो कुछ कर सकते हैं वह करें, जैसे कि खूब पेड़ लगाए और लगा कर छोड़ न दें बल्कि उन्हें बड़ा करें, उन की देखभाल करें. गरमी और बरसात में पानी भरने से रोकने के उपाय करें और हल्ला मचाने व डिप्रैशन में जाने से अच्छा है, उस के लिए हर संभव प्रयास करें.
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