यह चमत्कार कोई रातोंरात नहीं हुआ है , बल्कि 4 जून के जनता के फैसले की देन है कि संसद में अब प्रवचन नहीं काम की बातें और बहसें होनी चाहिए . पिछले दो दिन जनता की यह इच्छा पूरी होती दिखाई भी दी . कल जब राहुल गांधी ने पहली बार व हैसियत नेता प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष की क्लास ली तो हर किसी ने दिलचस्पी से उन्हें सुना.
चुनाव प्रचार के दौरान धर्म और हिंदुत्व पर सीधे बोलने से बचते रहे राहुल गांधी ने अपने पहले ही भाषण में इन संवेदनशील मुद्दों को उठाते जनता के फैसले को विस्तार देते जो कहा वह हैरत में डाल देने वाला है . हिंदुत्व पर उन्होंने जो कहा पहले उस पर गौर करें –
– भाजपा नेता हिंदू नहीं हैं क्योंकि वे चौबीसों घंटे हिंसा और नफरत फैलाने में लगे हुए हैं . हिंदू कभी हिंसा नहीं कर सकता कभी नफरत डर नहीं फैला सकता .
– सत्तारूढ़ पार्टी पूरी तरह हिंदुत्व का प्रतिनिधितित्व नहीं करती है . मोदी जी सत्तारूढ़ दल या आरएसएस पूरे हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते .
राहुल गांधी ने दरअसल में भाजपा की दुखती रग पर हाथ रखा क्योंकि यह सच भी है कि सभी हिंदू उसे वोट करते तो कोई वजह नहीं है कि वह नारे के मुताबिक 370 और एनडीए 400 पार न होता . दलितों पिछड़ों और आदिवासियों ने भाजपा से दूरी बनाए रखी जबकि सवर्णों यानी भाजपा के कोर वोटर ने उसे वोट किया .ये बातें 4 जून के बाद से लगातार विश्लेषण में होती भी रहीं थीं कि अल्पसंख्यकों खासतौर से मुसलमानों ने तो भाजपा को वोट दिया ही नहीं लेकिन दूसरे हिंदू तबकों ने भी उस से परहेज किया जिस के चलते भाजपा एतिहासिक और उल्लेखनीय दुर्गति का शिकार हुई .
इस नतीजे और विश्लेषण को संसद में दोहरा कर राहुल ने भाजपा को उस की हैसियत याद दिला दी है . हालांकि हिन्दू हिंसक नहीं है इन शब्दों पर नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के तमाम छोटेबड़े नेताओं सहित भगवा गमछाधारियों ने भी बात का बतंगड बनाने की गरज से इसे हिंदू समाज का अपमान बताते उन से माफी की मांग करते रहे लेकिन चूंकि बात में दम नहीं था इसलिए हिंदूवादियों की यह मुहिम फुस्स हो कर रह गई .आम लोगों ने इस कथित संवेदनशील और बकौल मोदी जी गंभीर विषय पर कान नहीं दिए अब भला कौन हिंदू यह कहता कि नहीं हम तो हिंसक हैं . .
इस बयान की प्रतिक्रिया में गौर करने वाली और भी बातें दिलचस्प हैं जिन में से प्रमुख ये हैं कि किसी भाजपा नेता ने यह नहीं कहा कि हम नफरत डर और हिंसा नहीं फैलाते . दूसरे एनडीए के भी किसी घटक दल को यह हिंदू समाज का अपमान नहीं लगा.
हिंदू कौन और हिंदुत्व क्या की बहस कोई नई नहीं है जिस में आज तक कुछ तय नहीं हो पाया . हर बार हिंदू का मतलब ब्राह्मणत्व में सिमट कर रह जाता है . इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा पीछे जाने की जरूरत भी नहीं 4 जून के नतीजों के बाद कुछ हिंदुओं ने जम कर कुछ उन हिंदुओं को कोसा था जिन्होंने भाजपा के बजाय इंडिया गठबंधन को वोट किया था . अयोध्यावासियों का तो जीना मुहाल कर दिया गया था जहां से सपा के दलित अवधेश पासी ने भाजपा के ठाकुर लल्लू सिंह को शिकस्त दे दी थी.
मुट्ठी भर सवर्ण हिंदुओं को यह हक किस ने दिया कि वे 85 फीसदी उन हिंदुओं को गालियां दें गद्दार कहें जिन्होंने भाजपा के धर्म और मंदिर नीति को नकार दिया . यही बात संसद में राहुल गांधी ने भाजपा को याद दिला दी तो पूरे दक्षिणापंथी सिरे से तिलमिला उठे लेकिन अब राहुल को सुनना उन की मजबूरी है . इधर राहुल भी पूरी तयारी से हमलावर होते हैं .
एक जुलाई को जब वे हिंदुत्व और हिंदू के अहिंसक होने पर बोल रहे थे तब उन के हाथ में शिव, ईसा मसीह और गुरुनानक की भी तस्वीरें थीं . बकौल राहुल गांधी इन तीनों का भी संदेश यह है कि डरो मत और डराओ भी मत. सभी धर्म और हमारे महापुरुष अहिंसा और अभय मुद्रा बात करते हैं .लेकिन जो खुद को हिंदू कहते हैं वे चौबीसों घंटे हिंसाहिंसा नफरतनफरत करते हैं .
हिंदू धर्म में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता विष्णु को पालक और शंकर को संहारक माना गया है . इस लिहाज से तो राहुल के हाथ में तस्वीर विष्णु की होनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने अद्भुत तरीके से शिव को शांति का प्रतीक बताया तो अच्छे धर्माचार्यों को भी नहीं सूझ रहा कि इस बात को कैसे गलत साबित करें . असल में 22 जनवरी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के वक्त शैवों और वैष्णवों के जो मतभेद उजागर हुए थे वे अभी खत्म नहीं हुए हैं . क्योंकि वे पहले भी कभी खत्म नहीं हुए थे . फौरी तौर पर विष्णु को सवर्णों का और शिव को सभी को भगवान या आराध्य माना जाता है . दलित झुग्गी बस्तियों में राम या कृष्ण का मंदिर कहीं नहीं मिलता . लेकिन शंकर मंदिर हर कहीं मिल जाते हैं और अछूत कहे जाने वाले कल के शूद्र और आज के दलित शंकर मंदिरों में जाने से डरते सकुचाते नहीं लेकिन विष्णु अवतार राम और कृष्ण के मंदिरों में जाने से उन्हें हिचक होती है .
ये कुछ हिंदू जो नफरत और हिंसा के हिमायती राहुल की नजर में हैं वे बेचारे सकते में हैं कि अब क्या करें बंदा तो अष्टावक्र और नचिकेता की तरह कान काटे डाल रहा है . कुछ बोलो तो दिक्कत और न बोलो तो उस से भी बड़ी दिक्कत अगर राहुल गांधी ने खड़ी कर दी है वह भी संसद में तो अब क्या करें यह सवाल भगवा गेंग के सामने मुंह बाए खड़ा है . उन का धार्मिक ज्ञान कथाओं कीर्तनो और दान दक्षिणा तक ही सीमित रहा है .धार्मिक कार्यों के लिए चंदा जमा करना तो उनका सबसे प्रिय काम रहा है . हिंदुत्व का मतलब उन्हें ब्राह्मण और पंडित ही समझाया जाता रहा है .
राहुल सीधे इस धंधे पर बोलते तो जरूर बवाल खड़ा हो जाता लेकिन इस बार उन्होंने अक्ल और चतुराई से काम लिया तर्क भी किए और अपनी बात पूरे आत्मविश्वास से कही . उलट इसके नरेंद्र मोदी का कौन्फिडेंस साफसाफ लड़खड़ाया हुआ दिख रहा है . क्योंकि संसद अब पहले की तरह भगवा सांसदों से भरी नहीं पड़ी है . बल्कि उस में सफेद , नीला , हरा और लाल रंग भी शामिल है . और यही लोकतंत्र की खूबी और खूबसूरती भी है कि कोई एक न रहे और कोई एक ही न दिखे बल्कि सभी दिखे और सभी रहें . चूंकि यह फैसला जनता का है तो कोई क्या कर लेगा .