शीर्षक पढ़ कर ही किसी का भी चिंतित हो जाना स्वभाविक बात है क्योंकि नए टैलीकौम एक्ट में लोगों की प्राइवेसी पर पहरा बैठाने के तमाम प्रावधान है. खासतौर से व्हाट्सऐप पर जिस के मैसेज तो लोग घर के मेम्बर्स को भी पढ़ाने से बचते हैं. युवाओं की तो कई प्राइवेट चैट व्हाट्सऐप पर ही होती है फिर चाहे वह दोस्तों से की गई हो या बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड से की गई हो.
नरेंद्र मोदी की सरकार 4 जून को कमजोर भले ही हुई हो लेकिन इस से उस की मनमानी पर कोई खास फर्क पड़ता हालफ़िलहाल तो दिखाई नहीं दे रहा है. हां उस का तरीका जरुर बदलता नजर आ रहा है. यह भी समझ आ रहा है कि अब उस ने हिंदुत्व का अपना एजेंडा दानपेटी में बंद कर लिया है. क्योंकि उस पर दबाब मजबूत विपक्ष के साथ साथ सहयोगी सैक्यूलर दलों का भी है.
यानी सरकार अब कहने और बताने को आम लोगों के भले के काम करेगी और उन की जिंदगी आसान बनाने वाले फैसले लेगी. ये फैसले और काम कैसे होंगे इस का अंदाजा 25 जून को वजूद में आ गए टेलीकाम एक्ट से लगाया जा सकता है जिस में सहूलियत तो कोई नहीं है लेकिन बंदिशें दर्जनों हैं. इन में से एक जिस का हल्ला ज्यादा है वह यह है कि अब कोई भी जना एक पहचानपत्र पर 9 से ज्यादा सिम कार्ड इस्तेमाल नहीं कर सकता और अगर करता पाया जाएगा तो उस पर पहली दफा पकड़े जाने पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा. दूसरी बार भी पकड़ा गया तो जुर्माने की यह राशि 2 लाख रुपए हो जाएगी. फर्जी तरीके से सिम कार्ड लेने पर 50 लाख रुपए का जुर्माना और 3 साल तक की कैद का प्रावधान है. यानी सरकार ने एडवांस में मान लिया है कि वह सिम खरीदी में फर्जीवाड़ा रोकने में नाकाम है.
इस प्रावधान या फरमान के कोई माने नहीं हैं. क्योंकि हजार में से एक ही बन्दा मुश्किल से मिलेगा जिस ने एक आईकार्ड पर 2 – 4 से ज्यादा सिम कार्ड रजिस्टर्ड करवाए होंगे. किसी के पास इतना पैसा नहीं है कि वह थोक में 9 सिम कार्ड यानी 9 नंबर रखे और इन के इस्तेमाल के लिए 9 मोबाइल फोन भी ख़रीदे. यह एक बेतुकी बात है क्योंकि आम लोग 2 – 3 से ज्यादा सिम कार्ड इस्तेमाल नहीं करते हैं. हां संगठित रूप से अपराध करने वाले जरुर ऐसा करते होंगे लेकिन इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि जब इस देश में हजार 500 रुपए में फर्जी आईडी आसानी से बन जाती हैं तो अपराधी उन पर ही सिम कार्ड लेंगे और अकसर वे कानून से बचने करते भी यही हैं.
इस पहले प्रावधान से ही समझ आता है कि नए कानून बनाने के पीछे सरकार की मंशा यह दिखाने भर की है वह धर्म, हिंदुत्व, जाति और पोंगापंथ से भी इतर कुछ करना जानती है.
9 सिम वाले हल्ले से आम लोगों को कोई सरोकार नहीं लेकिन जिस प्रावधान से होना चाहिए उस पर चर्चा न के बराबर हो रही है वह यह है कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में या युद्ध की स्थिति में किसी एक या सभी दूर संचार सेवाओं का नियंत्रण और प्रबंधन अपने हाथ में ले सकती है. सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अपराध की रोकथाम के लिए भी सरकार ऐसा कर सकती है. यह कैसे सरकार का डर और आप की हमारी प्राइवेसी पर पहरा है इसे हालिया दो अहम घटनाओं से समझें तो लगता है कि दरअसल में यह तानाशाही ही है.
पहली घटना नई संसद के होहल्ले से ताल्लुक रखती हुई है जब संसद में इंदिरा गांधी वाली इमरजेंसी को ले कर जम कर बवाल मचा. इस बवाल के अपने अलग सियासी माने थे लेकिन आपातकाल में हुआ यही था कि आम लोगों की प्राइवेसी खत्म हो गई थी. डाकघरों में उन की चिट्ठियां खोल कर पढ़ी जा रही थीं, अख़बारों के दफ्तरों में सरकार का अदृश्य कब्जा था. वे वही छाप रहे थे जो सरकार चाह रही थी. और यह सब राष्ट्रीय सुरक्षा वगैरह की आड़ में ही किया जा रहा था.
यानी इमरजेंसी और जंग वगैरह की स्थिति में टेलीकाम कंपनियों को सरकारी अफसर और सत्तारूढ़ दल भाजपा चलाएगी, ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी के आपातकाल में डाकघर, रेडियां और अखबार कांग्रेस चला रही थी. लोगों के टेलीफोन भी टेप किए जा रहे थे कि कौन क्या बात कर रहा है. कांग्रेसियों को डर इस बात का सताने लगा था कि कहीं कोई इंदिरा सरकार की बुराई तो नहीं कर रहा और कहीं सरकार गिराने की साजिश तो कोई नहीं रच रहा.
दूसरी घटना कुख्यात आस्ट्रेलियन हेकर जूलियन असांजे से जुड़ी है जो बीती 26 जून को 14 साल की कैद भुगतने के बाद ब्रिटेन से अपने देश पहुंचा है. जूलियन ने साल 2006 में अपनी वेबसाइट विकीलीक्स के जरिये अमेरिका के कई गोपनीय दस्तावेज लीक कर दिए थे. इस के पीछे उस की अपनी दलीलें थीं. मसलन यह कि हर किसी को बोलने की आजादी होनी चाहिए और जिस तरह सरकारें आम लोगों के बारे में सारी जानकारियां हासिल कर लेती हैं वैसे ही सरकार के बारे में भी आम लोगों को सब कुछ पता होना चाहिए कि आखिर बंद इमारतों में उस के नुमाइंदे और अफसर क्याक्या घालमेल करते रहते हैं. वह हर लेबिल पर ट्रांसपेरेंसी का हिमायती था.
हैकिंग के बाद न केवल अमेरिकी बल्कि दुनिया भर की सरकारें चौकन्नी हो गईं थीं. जूलियन असांजे को अमेरिकी सरकार ने इतना हैरान परेशान कर दिया था कि वह समझौते वाली क़ानूनी डील के लिए भी वहां की अदालत जाने से डर रहा था. मामला अब सुलझ गया है और जूलियन अपने देश आस्ट्रेलिया वापस चला गया है. ( यह लेख आप इसी वेबसाइट पे पढ़ सकते हैं शीर्षक है – जूलियन असांजे – क्या गारंटी कि अब कोई नई खुराफात नहीं करेंगे)
जूलियन असांजे को ले कर अमेरिकी सरकार की परेशानी की तरफ इशारा करते ब्रिटेन के एक प्रमुख अख़बार द गार्डियन के पूर्व सम्पादक एलन रूसब्रिजर ने एक्स पर सटीक ट्वीट किया था कि उन के साथ जो व्यव्हार हुआ वह पत्रकारों और मुखबिरों के लिए भविष्य में चुप रहने की चेतावनी थी और मुझे लगता है कि यह कारगर साबित होगी.
अब यही काम नए टेलीकाम एक्ट भारत में और बड़े पैमाने पर हो रहा है. जहां आम लोगों को खामोश करने सरकार टैलीकौम कम्पनियों का नियंत्रण और प्रबंधन उपर बताए कारण बता कर अपने हाथ में हर कभी ले सकती है. यह इमरजेंसी नहीं तो और क्या है. अब होगा यह कि जब भी जहां से भी लोग सरकार के फैसलों और नीतियों रीतियों के विरोध में अपने हक में आवाज उठाएंगे सरकार टैलीकौम कंपनियों को अपने हाथ में ले लेगी. पंजाब, कश्मीर, मणिपुर और किसान आंदोलन के मामलों में उस का जोर कम चला था इस के बाद भी वह इंटरनैट शट डाउन करने से चूकी नहीं थी.
जानकर हैरत होती है कि दुनिया भर में सब से ज्यादा इंटरनैट शट डाउन भारत में होता है. एक एजेंसी एक्सिस नाउ द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक साल 2023 में कुल 116 बार शट डाउन किया गया जबकि दुनिया भर के 38 देशों में ऐसा 283 बार हुआ. ऐसा भी पहली बार नहीं है बल्कि भारत लगातार 6 सालों से इंटरनेट बंद करने के मामले में अव्वल है एक चिंतनीय मिसाल मणिपुर की है जहां पिछले साल 5 दिन या उस से ज्यादा वक्त तक चलने वाले शट डाउन की तादाद में 2022 के मुकाबले कोई 30 फीसदी ज्यादा शट डाउन हुआ.
मणिपुर के हालातों से डरी सरकार नहीं चाहती थी कि वहां का सच लोगों तक पहुंचे. यही कई बार पंजाब और जम्मू कश्मीर में हुआ. सच छिपा कर विश्व गुरु बनने का सपना देखने वाली सरकार की हकीकत का ही नतीजा इसे कहा जाएगा कि मोदी सरकार कमजोर हुई और भाजपा उम्मीद से ज्यादा दुर्गति का शिकार हुई. मोदी सरकार पर से आम लोगों का भरोसा उठा है क्योंकि खुद सरकार अपने ही देश के नागरिकों पर भरोसा नहीं करती.
अब टैलिकौम एक्ट की धारा 1, 2 और 10 से 30 सहित 42 से 44 और 46, 47 से 50 से 58, 61 और 62 के प्रावधान प्रभावी हो गए हैं. इन में सब से ज्यादा घातक धारा वह है जिस के तहत एक्ट में वर्णित वजहों के चलते सरकार किसी भी नागरिक के मैसेज इंटरसेप्ट कर सकती है और तो और धारा 20 ( 2 ) के तहत सरकार किसी के भी मैसेज रिसीवर तक पहुंचने के पहले रोक भी सकेगी. इतना ही नहीं सरकार किसी के भी मैसेज देख भी सकती है.
कुछ और छोटे मोटे प्रावधान भी है जिन से कोई ख़ास फर्क लोगों को नहीं पड़ना लगता ऐसा है कि वे सिर्फ मसौदा बढ़ाने के लिए हैं जिस से एक्ट एक्ट जैसा दिखे नहीं तो सरकार की मंशा सिर्फ यह जानने में है कि लोग क्या और कैसे मेसेज एकदूसरे को कर रहे हैं.
अभी इस अधिनियम को लागू हुए चंद दिन ही हुए हैं इसलिए लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि सरकार कैसे उन से उन के मौलिक अधिकार राष्ट्रीय सुरक्षा और अपराध नियंत्रण वगैरह के नाम पर छीन रही है. सच तो यह भी है कि सरकार लोगों के बारे में सब कुछ जानती है मसलन यह कि उन्होंने कब, कितना, कहां पैसा खर्च किया या लिया या दिया. आधार कार्ड जहांजहां लिंक है वहां की जानकारी भी सरकार को रहती है. ऐसे में नागरिक स्वतंत्रता कहां है यह पूछा और सोचा जाना बेमानी है. हैरानी तो इस बात की है कि इस अहम मसले पर विपक्ष भी खामोश है जबकि इस एक्ट की एक बड़ी गाज उस पर भी गिरना है.