जब से संविधान बना उसी समय से धर्म उस पर हावी होने की कोशिश करता रहा. भारत में धर्म का मतलब मनुस्मृति और कानून का मतलब मंत्र होते हैं. संविधान के अनुसार लोगों को चलाने के लिए कानून बना है. धर्म को मानने वाले ब्राहमण के बताए मंत्रों से देश को चलाना चाहते हैं. जिस में मंदिर में बैठा ब्राहमण समाज के लिए रीतिरिवाज बना सके. मनुस्मृति पर आधारित धर्म अपने अनुसार देश को चलाने के लिए उसे ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाना चाहते हैं. संविधान को मानने वाले देश को कानून के हिसाब से चलाना चाहते हैं. इस बात को ले कर संविधान और धर्म में टकराव होता रहता है.

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पिछले 10 सालों में देश की सरकार धर्म से सरकार चलाने वालों के हाथ में थी. जिस से इस बात का खतरा पैदा हो गया था कि धर्म चलाने वाली सरकार संविधान को खत्म न कर दे. ऐसे में 2024 का लोकसभा चुनाव इसी मुद्दे पर सिमट गया. इस की सब से बड़ी वजह थी कि धर्म को चलाने वाली सरकार ने 400 से अधिक लोकसभा सीटों का अपना लक्ष्य रखा था. 400 से अधिक लक्ष्य का मतलब था कि वह सरकार बनाने के बाद संविधान में बड़ा बदलाव करना चाहती थी. देश को इस बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.

400 से अधिक सीटें ला कर संविधान बदल कर आरक्षण को खत्म करने की तैयारी सी लग रही थी. इस की वजह यह थी कि धर्म आधारित यह सरकार आरक्षण की समीक्षा और इस के उद्देश्य पर सवालिया निशान पहले ही लगा चुकी थी. ऐसे में जनता को यह समझ आ गया कि 400 सीटों का कारण आरक्षण खत्म करना है. देश को भारत माता की जय और जयश्रीराम के नारे से चलाना है.

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