हाथ में संविधान की कौपी ले कर लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेने वाले राहुल गांधी देश की 18वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं. अपने 20 साल के राजनीतिक सफर में राहुल गांधी पहली बार किसी संवैधानिक पद पर आसीन हुए हैं. बीते दस सालों में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा अपने लिए अपशब्दों के खूब थपेड़े झेले. प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने खुले मंच से, सोशल मीडिया और टीवी चैनलों की डिबेट में उनका खूब मजाक उड़ाया. लेकिन 18वीं लोकसभा में प्रधानमंत्री ने जब सदन का अभिवादन किया तो उन्होंने राहुल गांधी की तरफ भी हाथ जोड़ कर ना सिर्फ ‘नमस्ते राहुल जी’ कह कर उन का अभिवादन किया, बल्कि स्पीकर ओम बिरला से मिलते वक़्त बाकायदा राहुल गांधी से हाथ मिलाया.
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया है. ये वही राहुल गांधी हैं जिन्हें अब तक भाजपा पप्पू, कांग्रेस के शहजादे और न जाने किन किन उपनामों से नवाजती रही है. आज जब उसी पप्पू को प्रधानमंत्री नमस्कार कर रहे हैं तो लोकतंत्र की इस ताकत और ख़ूबसूरती को देख कर लोगों के होंठों पर मुस्कान दौड़ जाती है. सदन के भीतर पूरे दस सालों बाद विपक्ष को राहुल गांधी के रूप में अपना ताकतवर और आक्रामक सेनापति मिला है, जिस के नेतृत्व में सदन के अंदर विपक्ष की सहमतिअसहमति पर सत्ता पक्ष को पूरा संज्ञान लेना होगा.
नेता प्रतिपक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद राहुल गांधी ने अपनी कठोर मेहनत से पाया है. इस से पहले उन की मां सोनिया गांधी भी अक्टूबर 1999 से फरवरी 2004 तक नेता प्रतिपक्ष रह चुकी हैं. लेकिन उन को तब वह स्थान एक पकी पकाई खीर के रूप में मिला था, जबकि राहुल को यह पद जमीनी संघर्ष और जनता से जुड़ाव के नतीजे के तौर पर हासिल हुआ है.
उन के पिता स्व. राजीव गांधी भी नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं. राजीव गांधी 18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक नेता विपक्ष थे. राहुल गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं जो इस पद को सुशोभित करेंगे. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से काफी पहले से ही राहुल काफी सक्रिय हो गए थे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा और चुनाव प्रचार के दौरान संविधान बचाओ अभियान के साथ पार्टी को एक नेतृत्व दिया. इस बीच कई पुराने धुरंधर जैसे गुलाम नबी आजाद सरीखे कांग्रेसी नेता बगावती सुर दिखाते हुए अलग भी हो गए, जिन्हें मनाने या वापस लाने की कोशिश नहीं की गई.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने देश भर में घूमघूम कर दरिद्र और लाचार महिलाओं, अशिक्षित, कुपोषित और धूल में लोटते बच्चों, हाथ जोड़ कर रोजगार की भीख मांगते युवाओं और सस्ती दवाओं की आस में बीमारी से जूझते बुजुर्गों के भारत को बहुत नजदीक से देखा, समझा और जज़्ब किया. इस असली भारत को देखने की जहमत कभी प्रधानमंत्री या उन के नेताओं ने बीते 10 सालों में नहीं उठाई. बकौल प्रधानमंत्री भारत तो विश्वगुरु बनने की राह पर है.
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी से सचमुच लोग जुड़े और खुद राहुल ने देश के मिजाज को समझा. लोगों की जरूरतों और उम्मीदों को जानने के बाद उन में एक परिपक्वता भी आई है. उन्हें समझ में आ चुका है कि देश की गरीब जनता को उस का हक़ दिलाने के लिए सत्ता से किस किस तरह मोर्चा लेना होगा. अब लोकसभा के भीतर राहुल की सक्रियता बढ़ेगी और वे महत्वपूर्ण विषयों पर उसी तेवर के साथ बोलते दिखाई देंगे, जैसे पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान उन के तेवर नजर आते रहे हैं. राहुल का यह बदला रूप निश्चित रूप में सत्ता पक्ष के लिए परेशानी भी पैदा करेगा और उन की मनमानियों पर भी रोक लगाएगा.
नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी सरकार के आर्थिक फैसलों की लगातार समीक्षा और सरकार के फैसलों पर कड़ी टिपण्णी भी करेंगे. Leaders Of Opposition In Parliament Act 1977 के अनुसार नेता प्रतिपक्ष के अधिकार और सुविधाएं ठीक वैसी ही होती हैं, जो एक कैबिनेट मंत्री की होती हैं. नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल को पद भी मिला है और उन का कद भी बढ़ गया है. लिहाजा अब राहुल गांधी को कैबिनेट मंत्री की तरह सरकारी सचिवालय में एक दफ्तर मिलेगा. कैबिनेट मंत्री की रैंक के अनुसार उच्च स्तर की सुरक्षा मिलेगी और मासिक वेतन और दूसरे भत्तों के लिए 3 लाख 30 हज़ार रुपये मिलेंगे, जो एक सांसद के वेतन से कहीं ज्यादा है. एक सांसद को वेतन और दूसरे भत्ते मिला कर हर महीने लगभग सवा दो लाख रुपये मिलते हैं. राहुल गांधी को एक ऐसा सरकारी बंगला मिलेगा, जो कैबिनेट मंत्रियों को मिलता है और उन्हें मुफ्त हवाई यात्रा, रेल यात्रा, सरकारी गाड़ी और दूसरी सुविधाएं भी मिलेंगी.
राहुल गांधी के पास क्या शक्तियां होंगी?
नेता प्रतिपक्ष कई जरूरी नियुक्तियों में प्रधानमंत्री के साथ बैठता है. मतलब कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी एक टेबल पर आमनेसामने होंगे और साथ मिलकर कई फैसले लेंगे. दोनों की राय से ही कई फैसले लिए जाएंगे.
चुनाव आयुक्त, केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जैसे पदों पर अधिकारियों का चयन एक पैनल के जरिए किया जाता है, जिस में प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष शामिल रहते हैं. अब तक राहुल गांधी कभी भी मोदी के साथ किसी पैनल में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन अब विपक्ष के नेता के रूप में उनकी सहमति आवश्यक होगी.
राहुल गांधी भारत सरकार के खर्चों की जांच करने वाली लोक लेखा समिति के अध्यक्ष होंगे. राहुल सरकार के कामकाज की लगातार समीक्षा करेंगे. वह ये जानने की कोशिश करेंगे कि सरकार कहां पर कितना पैसा खर्च कर रही है.
राहुल गांधी दूसरे देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण देने के लिए भारत बुला सकते हैं. अगर वह किसी मुद्दे पर विदेशी मेहमानों से चर्चा करना चाहें तो वह ऐसा कर पाएंगे.
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के प्रमुखों के चयन में भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं. वह पिछले 10 साल से इन एजेंसियों पर काफी आरोप लगाते आए हैं और इन एजेंसियों ने उनके जीजा रौबर्ट वाड्रा को परेशान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी, जिसका असर प्रियंका गांधी पर उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान काफी पड़ा.
राहुल का नेता प्रतिपक्ष बनना बेहद खास है क्योंकि वह जब से चुनावी राजनीति में आए कोई पद लेने से बचते रहे हैं. यहां तक कि पार्टी प्रमुख के पद से भी उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. 2004 से 2014 तक देश में कांग्रेस की सत्ता रही लेकिन उस समय भी राहुल ने कोई मंत्री पद नहीं लिया. उन पर कैबिनेट पद के लिए दबाव भी था, लेकिन फिर भी उन्होंने मना कर दिया था. 2014 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो नेता प्रतिपक्ष बनाने लायक सीटें हासिल नहीं कर पाई थी. शायद राहुल को लगता था कि अभी उन्होंने देश को पूरी तरह जाना नहीं है. देश को समझने के लिए ही उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की. भाजपा ने उनका खूब मजाक उड़ाया. कहा अभी तक इटली घूमते थे अब देश में थोड़ा घूमफिर लेने दो. भाजपा को अंदाजा ही नहीं था कि इस यात्रा में देश की जनता से उनका किसकदर आत्मीय सम्बन्ध बन जाएगा. भाजपा की आँखें तो तब खुली जब उसने राहुल की यात्राओं में उमड़ता हुआ जनसैलाब देखा. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.