डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को डेरा मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या के मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पैशल सीबीआई अदालत के फैसले को पलट कर 28 मई की सुबह बरी कर दिया. राम रहीम के साथ 4 अन्य दोषियों को भी हाईकोर्ट ने रंजीत सिंह की हत्या मामले से बरी कर दिया है.

हाईकोर्ट का यह फैसला उस वक़्त आया है जब देश में लोकसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है. लोकसभा चुनाव के 7वें और अंतिम चरण में बिहार, चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की शेष सीटों पर चुनाव होगा.

पंजाब की 13 सीटों के लिए 328 उम्मीदवार अपना दावा ठोंक रहे हैं. पंजाब की जिन 13 सीटों पर आखिरी चरण में वोट डाले जाएंगे उन में गुरदासपुर, अमृतसर, खडूर साहिब, जालंधर, होशियारपुर, आनंदपुर साहिब, लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, फिरोजपुर, बठिंडा, संगरूर और पटियाला शामिल हैं. इन में से अधिकांश जगहों पर डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम का खासा प्रभाव है, जिस का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहती है.

गौरतलब है कि 2021 में पंचकूला में स्पैशल सीबीआई अदालत ने राम रहीम और उस के 4 सहयोगियों को हत्या जैसी संगीन आपराधिक घटना को अंजाम देने के 19 साल बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. 10 जुलाई, 2002 को डेरा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की कुरुक्षेत्र के खानपुर कोलियां में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. स्पैशल सीबीआई अदालत ने इस में गुरमीत राम रहीम और उस के 4 सहयोगियों को दोषी पाया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 28 मई, 2024 की सुबह जब कोर्ट बैठी तो चंद मिनटों में ही जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस ललित बत्रा की बैंच ने स्पैशल सीबीआई अदालत का फैसला पलट कर सब को बरी कर दिया.

सिरसा डेरा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की हत्या का मामला हाईप्रोफाइल था, जिस को पुलिस रफादफा करने में जुटी थी. पुलिस जांच से असंतुष्ट रणजीत सिंह के बेटे जगसीर सिंह ने जनवरी 2003 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी. उस के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया था और अक्तूबर 2021 में डेरा प्रमुख राम रहीम के साथ उस के 4 सहयोगियों को दोषी करार दिया गया था. शुरुआत में इस मामले में राम रहीम का नाम नहीं था, लेकिन 2006 में राम रहीम के ड्राइवर खट्टा सिंह के बयान पर डेरा प्रमुख को आरोपियों में शामिल किया गया.

22 साल पहले रणजीत सिंह की हत्या एक शक की वजह से की गई थी. दरअसल एक गुमनाम साध्वी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में उस ने राम रहीम पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और उस की जांच करवाने की मांग की थी. इस चिट्ठी को मीडिया में भी सर्कुलेट किया गया.

राम रहीम को शक था कि सिरसा के डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह ने ही साध्वी के यौन शोषण की गुमनाम चिट्ठी अपनी बहन से लिखवाई थी. इस पत्र में कहा गया था कि कैसे डेरा प्रमुख महिलाओं से यौन शोषण करते हैं. गुमनाम पत्र को सार्वजनिक करने में रणजीत सिंह की संदिग्ध भूमिका मानते हुए राम रहीम ने उस को तुरंत डेरा से हटा दिया था.

उस गुमनाम चिट्ठी को सिरसा के ही एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपने सांध्यकालीन समाचारपत्र ‘पूरा सच’ में छाप दिया था. स्थानीय मीडिया में मामला उछलने के बाद 10 जुलाई, 2002 को रणजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई और 3 माह बाद 24 अक्तूबर, 2002 को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति पर भी हमला कर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया. घायल अवस्था में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति को दिल्ली ला कर अपोलो अस्पताल में भरती किया गया मगर 21 नवंबर, 2002 को अपोलो अस्पताल में रामचंद्र की मौत हो गई.

घटना की लंबी सीबीआई जांच चली और 19 साल बाद 18 अक्टूबर, 2021 को पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम और 4 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. मामले में आरोपी बनाए गए राम रहीम के समर्थक अवतार सिंह, कृष्ण लाल, जसबीर सिंह और सबदिल सिंह को भी उम्रकैद की सजा मिली. सुनवाई के दौरान अवतार सिंह की मौत हो गई. सीबीआई जज ने बाकी सभी को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए राम रहीम पर 31 लाख रुपए, सबदिल पर 1.50 लाख रुपए, जसबीर और कृष्ण पर 1.25-1.25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था.

सजा सुनाते वक्त पंचकूला की सीबीआई अदालत ने कहा था कि इस तथ्य पर कोई संदेह नहीं है कि गुमनाम पत्र के प्रसार से गुरमीत राम रहीम काफी व्यथित था. उस पर डेरा की साध्वियों के यौन शोषण के गंभीर आरोप थे और उस के भक्तों की बीच उस की छवि को नुकसान पहुंचा था.

सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद हरियाणा से ले कर पंजाब तक राम रहीम के समर्थकों ने जिस अंदाज में हिंसा का नंगा नाच किया था और सरकारी संपत्तियों को तोड़ाफोड़ा, उस से कई सवाल खड़े हुए थे. सवाल यह कि क्या कोई आध्यात्मिक गुरु अपने अनुयायियों को तांडव मचाने की सीख देता है? क्या गुरमीत राम रहीम और उन के समर्थक विशुद्ध तौर पर गुंडे हैं? डेरा समर्थकों के उत्पात से एक बात साफ हो गई थी कि इहलोक से ज्यादा परलोक सुधारने की राह बताने वाला गुरमीत राम रहीम न केवल संत के चोले में गुंडा है, बल्कि समर्थकों के रूप में उस ने अनेक गुंडों, अपराधियों को प्रश्रय दे रखा है.

यह जानना भी दिलचस्प है कि आखिर वह कौन अधिकारी था जिस की अथक खोजबीन और जांच के बाद रौकस्टार बाबा राम रहीम सलाखों के पीछे गया था. राम रहीम के खिलाफ जांच की जिम्मेदारी सीबीआई के डीआईजी मुलिंजा नारायणन को 2007 में सौंपी गई थी. मुलिंजा नारायणन पर डेरा के समर्थकों के साथसाथ वरिष्ठ अधिकारियों और राजनीतिज्ञों की तरफ से केस को बंद करने का जबरदस्त दबाव था. लेकिन तमाम अवरोधों के बावजूद नारायणन ने जांच पूरी की और चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की.

उल्लेखनीय है कि गुरमीत राम रहीम के खिलाफ 2002 में एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन 5 वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. 5 वर्षों तक जब यह केस ऐसे ही लटका रहा तो पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मामले को सीबीआई के हवाले करने का आदेश दिया.

जिस दिन यह केस डीआईजी मुलिंजा नारायणन के पास पहुंचा, उसी दिन उन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन के कमरे में आ कर कहा कि यह केस आप को बंद करने के लिए दिया जा रहा है. इस पर नारायणन ने उन से कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर मामला उन के हवाले है, लिहाजा, वे जांच पूरी करेंगे. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी से साफतौर पर कह दिया कि वे जांच को बंद नहीं करेंगे और किसी का बेजा आदेश भी नहीं मानेंगे.

रणजीत सिंह की हत्या की तह में जाने के लिए जरूरी था उस गुमनाम पत्र को लिखने वाली महिला की तलाश करना. यौन शोषण के मामले में यह पहला ऐसा मामला था जिस में पीड़िता सामने नहीं आई थी, उस के पत्र के आधार पर एक मुश्किल जांच को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही थी.

पीड़ित के बारे में जानकारी हासिल कर पाना बेहद ही मुश्किल था. लगातार कोशिश के बाद चिट्ठी के बारे में यह जानकारी मिली कि वह पंजाब के होशियारपुर से लिखी गई थी. लेकिन चिट्ठी के पीछे कौन शख्स था, इस की जानकारी नहीं मिल रही थी. बहुत ही कठिनाई के बाद डीआईजी एम नारायणन पीड़ित तक पहुंच पाए. जब ऐसी कठिन हालात में पीड़ित तक पहुंचने में कामयाबी मिली तो पीड़ित और उस के परिवार को समझाना उन के लिए बहुत मुश्किल साबित हुआ. लेकिन लगातार कोशिश के बाद वे पीड़ित और उस के परिवार को मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने में कामयाब हो गए. जांच आगे बढ़ी और धीरेधीरे सारी परतें उधड़ती चली गईं.

जब 19 साल बाद सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आया तब खुशी जताते हुए अवकाशप्राप्त डीआइजी मुलिंजा नारायणन ने कहा था कि वे बहुत खुश हैं कि उन के द्वारा की गई जांच अंतिम फैसले पर पहुंची. लेकिन अब हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई के फैसले को पलट कर राम रहीम को रिहा करने की खबर ने उन्हें निश्चित तौर पर व्यथित किया होगा. उन के द्वारा की गई तफ्तीश और सबूतों व गवाहों को जुटाने के अथक श्रम पर इस फैसले ने पानी फेर दिया है.

हालांकि, मामले में हाईकोर्ट की तरफ से सजा रद्द करने के बाद भी डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम सिंह अभी जेल में ही रहेगा क्योंकि उस के खिलाफ अन्य संगीन मामले भी दर्ज हैं जिन की सजा वह भुगत रहा है. 2 साध्वियों के यौन शोषण मामले में उसे 20 साल और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में भी उसे उम्रकैद की सजा हुई है, जिसे वह काट रहा है.

राम रहीम को 25 अगस्त, 2017 को पंचकूला की सीबीआई की विशेष अदालत ने इन मामलों में दोषी करार दिया था. रेप और छत्रपति हत्याकांड पर अदालत के फैसले को भी राम रहीम ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है, फिलहाल रणजीत सिंह हत्या के केस में मिली बड़ी राहत के बाद अगर उस ने अपने प्रभाव से भाजपा को लोकसभा चुनाव में फायदा पहुंचाया तो हो सकता है बाकी के संगीन मामलों में भी उस को बाइज्जत बरी कर दिया जाए. फिलहाल तो राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है.

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