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कभी राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अब परिवारवाद का विरोध छोड़ कर वंशवाद का विरोध करना शुरू कर दिया है. भाजपा का गठन 80 के दशक में हुआ था. 1980 का लोकसभा चुनाव जनवरी माह में हुआ था. भाजपा का गठन अप्रैल में हुआ था. भाजपा ने गठन के बाद पहला चुनाव 1984 का लड़ा था. उस समय पार्टी में कोई प्रमुख नेता नहीं था. अटल बिहारी वाजपेयी का ही नाम चर्चा में रहता था. जब भाजपा में पहचान वाले नेता ही नहीं थे तो उन के परिवार के लोग होने का सवाल ही नहीं था. ऐसे में भाजपा के लिए परिवारवाद का विरोध करने में दिक्कत नहीं थी.

जब भाजपा नेताओं की एक पीढ़ी तैयार हुई, उन के बेटाबेटी राजनीति करने लायक हुए तो उन को पार्टी संगठन से ले कर सांसद, विधायक का चुनाव लड़ने के मौके मिले. आज के समय में ऐसे भाजपा नेताओं की लंबी लिस्ट है जिन के बेटाबेटी चुनाव मैदान में हैं. इस कारण अब भाजपा ने परिवारवाद का विरोध छोड़ कर वंशवाद की बात करनी शुरू कर दी है. जैसे ही भाजपा में दूसरी पीढ़ी के नेताओं के बेटेबेटी चुनाव लड़ने लायक होंगे, वे भी चुनाव लड़ेंगे. तब शायद भाजपा वंशवाद की जगह कोई नया शब्द ले कर आएगी.

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मीनाक्षी लेखी की जगह आई बांसुरी

दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें चांदनी चौक, उत्तरपूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तरपश्चिमी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली हैं. भाजपा ने दिल्ली के उम्मीदवारों में एक चर्चित चेहरा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को चुनाव मैदान में उतारा है. भाजपा ने मीनाक्षी लेखी का टिकट काट कर बांसुरी को नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है. 40 साल की बांसुरी स्वराज भी वकील हैं. इस से पहले यहां से सांसद रही मीनाक्षी लेखी भी वकील थीं.

नई दिल्ली देश की सब से पुरानी लोकसभा सीटों में से एक है. सुप्रीम कोर्ट, संसद भवन समेत विभिन्न क्षेत्र और इमारतें इसी लोकसभा सीट के अंतर्गत आती हैं. यहां करीब 16 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं. अधिकतर शहरी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय माकन ने नई दिल्ली सीट से चुनाव जीता था.
2014 के लोकसभा चुनाव से यह सीट भाजपा के पास है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मीनाक्षी लेखी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आप नेता आशीष खेतान को 2 लाख 90 हजार 642 वोटों से हराया था. साल 2019 में भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस के प्रत्याशी अजय माकन को 2 लाख 56 हजार 504 वोटों के अंतर से हराया था.

क्या है नई दिल्ली लोकसभा सीट ?

नई दिल्ली लोकसभा सीट के दायरे में 10 विधानसभा सीटें- करोल बाग, मालवीय नगर, आरके पुरम, ग्रेटर कैलाश, पटेल नगर, मोती नगर, दिल्ली कैंट, राजिंदर नगर, नई दिल्ली और कस्तूरबा नगर विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इन सभी विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है. पिछले विधानसभा चुनाव में आप को यहां 55 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे.

पिछले 2 लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि यहां के अधिकतर वोटर सांसद के चुनाव में बीजेपी को वोट कर रहे हैं और विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की बांसुरी स्वराज का मुकाबला इंडिया ब्लौक के आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सोमनाथ भारती से है.

नई दिल्ली लोकसभा सीट के जातीय समीकरण को देखें तो यहां करीब 90 फीसदी हिंदू वोटर हैं. इस के बाद 6.1 प्रतिशत के साथ मुसलिम वोटर हैं. वहीं, 3.08 फीसदी आबादी के साथ तीसरे नंबर सिख हैं. ईसाई धर्म के वोटर करीब 0.9 फीसदी हैं. यहां जैन 0.7 प्रतिशत और बौद्ध 0.18 फीसदी हैं. नई दिल्ली लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या 21 प्रतिशत से ज्यादा है.

कौन है भाजपा उम्मीदवार बांसुरी स्वराज ?

सुषमा स्वराज और स्वराज कौशल की बेटी बांसुरी स्वराज को भाजपा ने लोकसभा चुनाव में पहली बार नई दिल्ली से उम्मीदवार बनाया है. 3 जनवरी, 1984 को हिंदू ब्राहमण परिवार में जन्मी बांसुरी स्वराज भाजपा की दिल्ली प्रदेश में सचिव के रूप में काम कर चुकी हैं. इन के पिता स्वराज कौशल भी वकील थे. वे मिजोरम के राज्यपाल भी रहे थे.

बांसुरी अपने मातापिता की अकेली संतान हैं. बांसुरी का जन्म नई दिल्ली में हुआ. बांसुरी बचपन में बेहद शर्मीली लड़की थीं. कुकिंग और ट्रैवलिंग बांसुरी की प्रमुख हौबीज हैं. बांसुरी स्वराज ने अभी तक शादी नहीं की है. उन की संपत्ति के बारे में जानकारी के अनुसार वे 9 करोड़ की संपत्ति की मालकिन हैं.

5 फुट 5 इंच लंबी बांसुरी स्वराज की स्कूली पढ़ाई दिल्ली में हुई. बांसुरी ने स्नातक की पढ़ाई औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लंदन में की थी. बांसुरी स्वराज ने लंदन के बीपीपी लौ स्कूल से लौ की पढ़ाई की. बांसुरी ने वारविक विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य से स्नातक की डिग्री ली है. औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लंदन के सेंट कैथरीन कालेज से मास्टर औफ स्टडीज की पढ़ाई की. बांसुरी स्वराज सुप्रीम कोर्ट में 15 साल से वकील हैं. 2007 में वे बार काउंसिल औफ दिल्ली की सदस्य बनी थीं.

बांसुरी स्वराज ने कांट्रैक्टला, रियल एस्टेट, टैक्स के साथसाथ कई आपराधिक मुकदमों से जुड़े विवादों को हल किया है. इस के साथ ही साथ बांसुरी स्वराज को हरियाणा अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया जा चुका है. वे वकालत में अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस भी करती हैं. बांसुरी स्वराज को 2023 में भाजपा दिल्ली के कानूनी प्रकोष्ठ का सहसंयोजक नियुक्त किया गया था.

मां की ही तरह प्रखर वक्ता हैं बांसुरी स्वराज

बांसुरी स्वराज दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ बोल कर राजनीतिक चर्चा में आई थीं. दिल्ली की केजरीवाल सरकार की आलोचना करते हुए इसे ‘झगड़ालू’ और ‘बेकार’ बताया था. बांसुरी स्वराज के जीवन पर उन की मां सुषमा स्वराज का प्रभाव साफ दिखता है.

वे कहती हैं, “मेरा बचपन बहुत खुशहाल, सहज और सरल था. मेरी मां मेरी दोस्त की तरह थीं. बहुत सारी व्यस्तता के बाद भी हर शुक्रवार की शाम हम साथ होते थे चाहे कुछ भी हो जाए. शुक्रवार की शाम पापा भी होते थे. हम अच्छाबुरा, रहस्य सब खोलते थे और मां बेटी की खूब गपें होती थीं.”

परिवारवाद के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि ‘परिवारवाद तब हावी होता है जब आप हर मामले में नंबर एक के दावेदार बन जाते हैं. अगर आप के मातापिता जनप्रतिनिधि हैं तो आप भी जनप्रतिनिधि हों, यह ठीक नहीं लेकिन क्योंकि मेरी मां राजनीति में थीं तो इस का मतलब यह नहीं है कि राजनीति मेरे लिए निषेध है. मुझे भी स्ट्रगल करने का उतना ही अधिकार है जितना दूसरों को मिला हुआ है. पार्टी ने मुझे कोई ईनाम नहीं दिया है, यह तो दायित्व है.”

कौन थीं सुषमा स्वराज

बांसुरी की मां सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं. उन का जन्म हरियाणा में हुआ था. सुषमा स्वराज भी वकील थीं और आपातकाल के बाद जनता पार्टी में शामिल हुई थीं. 1977 में पहली बार हरियाणा में विधानसभा चुनाव जीता और 80 के दशक में बीजेपी में शामिल हो गईं. वे केंद्रीय सूचना प्रसारण और विदेश मंत्री भी रहीं. वे एक अच्छी वक्ता मानी जाती थीं. सुषमा स्वराज को लालकृष्ण आडवाणी का करीबी माना जाता था. वे 7 बार सांसद, 3 बार विधायक रहीं और दिल्ली की 5वीं मुख्यमंत्री बनीं.

बांसुरी की उम्मीदवारी पर आतिशी के सवाल

बांसुरी स्वराज के बारे में आम आदमी पार्टी की मंत्री आतिशी ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के कहा, “नई दिल्ली से मीनाक्षी लेखी का टिकट काट कर बीजेपी ने ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया है जो बारबार कोर्ट में देशहित के खिलाफ खड़ी रही हैं. देश के विरोधियों का बचाव करती रही हैं. एक वकील जनता के हित की लड़ाई के लिए होता है. लेकिन वे देश के विरोधियों के लिए लड़ती हैं.”

आतिशी ने बांसुरी स्वराज के कानूनी केसों की सूची गिनाई. उन में एक मसला ललित मोदी का भी रहा है. जो व्यक्ति देश के लाखोंकरोड़ रुपए गबन करने के मामले में फरार है और बांसुरी स्वराज उस मामले में उन का बचाव कर रही थीं. इस मामले में ललित मोदी ने ट्वीट कर धन्यवाद भी किया था.
आतिशी ने कहा कि मणिपुर में हुई हिंसा में जब 2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर के परेड कराया गया, तो इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से बांसुरी स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा. ऐसे में वे किस मुंह से नई दिल्ली लोकसभा सीट से महिलाओं से वोट मांगने जाएंगी. वहीं चंडीगढ़ मेयर चुनाव में बीजेपी के झूठे मेयर की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में खड़ी थीं और इन सभी केसों के लिए बांसुरी को देश से माफी मांगनी चाहिए.

ललित मोदी की मदद को ले कर बांसुरी स्वराज की मां सुषमा स्वराज पर भी आरोप लोकसभा में चर्चा के दौरान लगे थे. राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि ललित मोदी से लाभ लिया गया है. उस समय सदन में भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने सुषमा स्वराज का बचाव किया था. आतिशी ने भी बांसुरी स्वराज पर ललित मोदी की मदद को ले कर सवाल खड़े किए हैं. जनता को तय करना है कि कौन उन का प्रतिनिधि होगा.

युवा बांसुरी महिलाओें की नहीं, अपनी पार्टी की नीतियों पर चलेंगी. ऐसे में महिला होने के नाते इस को महिला सशक्तीकरण से जोड़ कर देखना नाइंसाफी होगी. बांसुरी को टिकट उन की योग्यता के कारण नहीं, उन की मां सुषमा स्वराज के कारण दिया गया है. भाजपा कुछ भी कह ले, अब वह भी परिवारवाद की राह पर है. उस के परिवारवाद या वंशवाद का मुखौटा उतर चुका है. वंशवाद की बात करना बेमानी है.

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