प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कितने ही मंत्री रोब मारते रहते हैं कि भारत भारतीय जनता पार्टी की सरकार के अंतर्गत दुनिया का सब से तेजी से बढ़ता यानी ग्रो करता देश है. यह आंकड़ा बहुत भ्रामक है क्योंकि भारत दुनिया का हर वर्ष सब से ज्यादा जनसंख्या बढ़ाने वाला देश है इसलिए जो आंकड़े देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ यानी वृद्धि के दिए जाते हैं वे प्रति व्यक्ति आय तक आ कर लुढ़क जाते हैं.

वैसे भी जो वृद्धि हो रही है, बहुत भ्रामक सी है. 2014 से 2022 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, नंबर एक पर जमे देश अमेरिका की अर्थव्यवस्था 2014 से 2022 के बीच 7.9 ट्रिलियन डौलर बढ़ गई. जबकि, भारत 5 ट्रिलियन डौलर अर्थव्यवस्था बनने की घोषणा को आज खोज ही रहा है कि वह किस मंदिर की नींव में दफन हो गई. इस बात को आसानी से सम झने के लिए नीचे की तालिका देखें.

इन आंकड़ों से साफ है कि 8 सालों यानी 2014 से 2022 तक भारत की कुल जीडीपी अगर 1,346 ट्रिलियन डौलर बढ़ी है तो अमेरिका की 6 गुना 7.915 ट्रिलियन डौलर बढ़ी है जबकि इस दौरान जरमनी की सिर्फ 183 मिलियन डौलर पर चीन की 7.485 ट्रिलियन डौलर बढ़ गई. अमेरिका और चीन की फिलहाल कुल जीडीपी 8 सालों में भारत से 6 गुना ज्यादा बढ़ी है हमारी सब से तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के दावे के बावजूद.

यही प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सरकारी दावे की पोल खोलती है. अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय इन 10 सालों के दौरान एक औसत भारतीय की आय से 10 गुना ज्यादा बढ़ गई, चीन में 7 गुना और पिछड़ रहे जरमनी में भी 5 गुना बढ़ गई. हम कौन सी फिगर पर ढोल पीट रहे हैं, सम झ नहीं आता.

हम अपने जैसे 3 गरीब देशों की तुलना करें तो भी हम कोई गाल थपथपाने वाले नहीं हैं. प्रति व्यक्ति आय हमारी अगर 595 डौलर 8 सालों में बढ़ी है तो बंगलादेश की 611 डौलर और इंडोनेशिया की 871 डौलर.

हम भ्रम में न रहें कि देश बहुत शानदार ढंग से चल रहा है. हां, पाकिस्तान से तुलना करें तो संतोष होगा जो हर भारतीय हिंदू को बेहद सुकून देता है. पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय 2014 में 1,240 डौलर थी जो 2022 में रोपीट कर 1,536 डौलर पर पहुंची. यह हमारे लिए दीवाली मनाने के लिए काफी है, राममंदिर की दीवाली से भी ज्यादा. हालांकि, 1960 के आसपास पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत के प्रति व्यक्ति आय से कुछ ज्यादा ही थी.

अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्था 2019 से 2022 के बीच उतनी बढ़ गई जितनी हमारी कुल अर्थव्यवस्था वर्ष 2022 में थी. मतलब यह है कि हम कितने ही मंदिर बना लें, हमारी अर्थव्यवस्था पूजापाठ से नहीं, परिश्रम से बढ़ेगी. हमें शोर मचाने से ज्यादा काम पर, विज्ञान पर, तर्क पर, व्यवस्था पर ध्यान देना होगा, निरर्थक विवादों पर नहीं.

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