देश के विकास और गुरु बनने के दावों के बीच एनडीए के एक पार्टनर तेलुगूदेशम पार्टी के सांसद का संसद में खुलेआम यह ऐलान कि वे अपना व्यवसाय और राजनीति दोनों एकसाथ नहीं चला सकते, हकीकत पेश करता है. सांसद ने शिकायत की है कि जिस तरह जांच एजेंसियों को ‘हथियार’ दिए गए हैं उसे राजनीतिक बदला लेना आज आसान हो गया है. सांसद महोदय को अपना पुश्तैनी व्यापार ज्यादा प्रिय है, इसलिए वे राजनीति का जोखिम नहीं लेना चाहते.
यह इसी व्यवसायी व राजनेता की मन की बात नहीं है, जनसेवाओं में लगे लगभग सभी लोगों की बात भी है. सरकार व्यवसायियों की बांह उन के राजनीतिक संबंधों के कारण कब मरोड़नी शुरू कर दे, यह पता नहीं. हमारे देश में हमेशा परंपरा रही है कि शक्तिशाली शासकों के आगे व्यापारी हमेशा मूंछें नीची कर के चलता है क्योंकि उसे मालूम है कि शासकों के हाथ बहुत लंबे होते हैं.
अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन पर अगर सभी बड़े घरानों के मालिक उपस्थित थे और अगर दूर बेरीकैडों के परे बैठने पर भी तालियां बजा रह थे तो इसलिए कि वे किसी भी तरह शासकों से बैर नहीं लेना चाहते. व्यापारियों ने हमेशा देशीविदेशी शासकों का साथ दिया है क्योंकि वे जानते हैं कि व्यापार चलाते हुए शासक के खिलाफ नहीं जा सकते.
व्यापार चलाने में जिस तरह की अनुमतियां आज सरकारी दफ्तरों से लेनी होती हैं वे, इस सांसद के अनुसार, जानलेवा सी हैं. 72 से भी ज्यादा अनुमतियों के बाद कोई काम शुरू किया जा सकता है और अगर व्यापारी विपक्षी दल का है तो उन अनुमतियों को कहीं भी अटकाया जा सकता है. जो आज सत्ता के साथ वाली पार्टी में है, कल विपक्ष में बैठने को मजबूर हो सकता है और उस के राजनीतिक कैरियर के साथसाथ उस का व्यावसायिक कैरियर भी दांव पर लग सकता है.