* 4-5 साल सरकारी नौकरी पाने के लिए इंतजार करना पड़ता है.
* 2 से 3 लाख रुपए शिक्षा और पुलिस विभाग में भरती के लिए कोचिंग खर्च आता है.
* सिपाही को 21 हजार, शिक्षक को 40 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है.
* डाक्टरी और इंजीनियरिंग से ज्यादा कोचिंग संस्थान हैं सिपाही और शिक्षक के लिए.

उत्तर प्रदेश में पुलिस सिपाही की भरती के 60,244 पदों के लिए 48 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों ने आवदेन किया था. 43 लाख अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी. इस के बाद पेपर लीक हो गया और परीक्षा निरस्त कर दी गई. अब 6 माह के बाद परीक्षा होगी. सरकार चुनाव के पहले सिपाही की भरती कर के वाहवाही करवाना चाहती थी. विपक्षी पेपर लीक को चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं. चुनाव में इस का प्रभाव कम करने के लिए योगी सरकार अपनी तरफ से प्रयास कर रही है पाप और पुण्य का हिसाब रखने वाली सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘युवाओं के साथ अन्याय राष्ट्रीय पाप के समान है.’

पुलिस भरती परीक्षा को सही तरह से आयोजित कराने के लिए योगी सरकार ने बड़ेबड़े दावे किए थे. इस के बाद भी पेपर लीक हो गया. सरकार ने पहले तो पेपर लीक की बात मानी नहीं. पेपर लीक के प्रमाण सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे और प्रयागराज व लखनऊ में अभ्यर्थियों ने धरना देना शुरू किया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में पेपर लीक का सवाल उठा दिया.

गए थे सिपाही बनने, जाना पड़ा जेल

युवाओं को उन का समर्थन मिलते देख सरकार ने पूरे मामले की लीपापोती शुरू कर दी. सिपाही परीक्षा को रद्द कर दिया. जांच में अभ्यर्थी सत्य अमन कुमार ने पुलिस से पूछताछ में कबूला कि उस के दोस्त नीरज ने व्हाट्सऐप पर उसे परीक्षा से पहले ही पेपर भेज दिया था जिस की पर्ची उस ने तैयार की थी. पुलिस ने पूछताछ के बाद अभ्यर्थी को गिरफ्तार कर जेल भेजा दिया है.

लखनऊ में पकड़े गए एक अभ्यर्थी से बरामद नकल की पर्ची के आधार पर उत्तर प्रदेश पुलिस के इंस्पैक्टर रैंक के अधिकारी ने एफआईआर दर्ज करवाई. खास बात यह है कि दर्ज कराई गई तहरीर में लिखा गया कि सुनियोजित ढंग से पेपर लीक किया गया जो अपराध की श्रेणी में आता है.

भरती परीक्षा में 17 और 18 फरवरी की दूसरी शिफ्ट का पेपर लीक हुआ था. 18 फरवरी की शाम 3 से 5 की पाली में हुए प्रश्नपत्र तमाम अभ्यर्थियों के पास और कोचिंग टीचर्स के पास पहले ही पहुंच गए थे, जिसे ले कर शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर उसी समय पोस्ट भी लिखी कि पेपर लीक होने की बातें सामने आ रही हैं.

लखनऊ में सिटी मौडर्न एकेडमी अलीपुर में परीक्षा दे रहे अभ्यर्थी सत्य अमन कुमार के पास से हाथ से लिखी हुई नकल की पर्ची मिली थी. ड्यूटी के ल करदौरान नकते पकड़े गए अमन कुमार से हाथ से लिखे सवाल की पर्ची बरामद हुई तो ड्यूटी पर तैनात पुलिस टीम को बुलाया गया. उस के बाद मोहनलालगंज मे तैनात इंस्पैक्टर रामबाबू सिंह ने परीक्षा अधिनियम में केस दर्ज करवा दिया. इंस्पैक्टर ने अपनी तहरीर में अभ्यर्थी अमन कुमार से मिली हरेक पर्ची का जिक्र किया है. हाथ से लिखी पर्ची और उन पर लिखे सवालों के जवाब को तहरीर में बताया गया.

दर्ज कराई गई एफआईआर की तहरीर में यूपी पुलिस के इंस्पैक्टर ने लिखा कि हस्तलिखित प्रश्नपत्र, जो परीक्षार्थी के मोबाइल पर आया है, का मिलान परीक्षार्थी के ओरिजिनल क्वेश्चन पेपर से किया गया तो प्रश्न संख्या अलगअलग पाई गईं लेकिन प्रश्न सभी मैच कर रहे हैं. इस प्रकार सुनियोजित तरीके से प्रश्न लीक किया गया जो अपराध की श्रेणी में आता है. अब सैकड़ों लोग जांच व मुकदमे के दायरे में आएंगे. जो सिपाही बनने गए थे, वे अब जेल भेजे जा सकते हैं.

रोब और ऊपरी कमाई

आज भी गांव और कसबों के रहने वालों में पुलिस और सिपाही का बड़ा क्रेज है. भले ही ऊपरी कमाई हर सिपाही न कर पता हो पर रोब और दंबग छवि तो उस की रहती ही है. गांव और कसबे के रहने वाले युवा लड़केलड़कियां शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं. वे शिक्षक भरती में भले ही नियुक्त न हो पाएं पर सिपाही भरती में नौकरी पा जाते हैं. ऐसे में करीब 21 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन वाली इस नौकरी के लिए युवाओं का क्रेज देखने वाला होता है.

इस भरती में खुद को बेहतर साबित कर नौकरी हासिल करने लिए लिखित परीक्षा के बाद शारीरिक योग्यता को देखा जाता है. इस का मतलब यह है कि युवाओं को सिपाही में भरती के लिए 2 तरह की तैयारी करनी पड़ती है. पहले तो लिखित परीक्षा को पास करने की चुनौती, उस के बाद शारीरिक योग्यता के लिए फिटनैस की तैयारी. इन दोनों ही तरह की तैयारी के लिए कोचिग संस्थाएं खुली हुई हैं, जो सिपाही-दरोगा की भरती की तैयारी कराने का दावा करती हैं.

तमाम युवा लड़केलड़कियां अब पुलिस में भरती को प्राथमिकता देने लगे हैं. इस की वजह यह है कि सब से अधिक सरकारी नौकरियां 2 ही क्षेत्रों- शिक्षक और पुलिस- में हैं. आईएएस और पीसीएस के बाद सब से अधिक कोचिंग संस्थाएं पुलिस और शिक्षा विभाग की नौकरियों के लिए चल रही हैं. उत्तर प्रदेश में डेढ़ लाख से अधिक को पुलिस में नौकरी दी गई है. शिक्षा विभाग में 69 हजार शिक्षकों की भरती हो चुकी है. अभी 2 लाख भरती होने वाली है. यह बात और है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं. तैयारी से ले कर भरती तक 4 से 5 साल का इंतजार करना पड़ता है.

बढ़ती बेरोजगारी

युवा लड़केलड़कियां कम वेतन में भी काम करने को तैयार हैं. इस की सब से बड़ी वजह प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी है. योगी सरकार 2017 से लगातार उत्तर प्रदेश में निवेश की बात करती रही है. कई ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी हो चुकी हैं. इन के आयोजन पर करोड़ों रुपए करोड़ खर्च किए गए हैं. इन आयोजन के बाद प्रदेश में एक भी बड़ी कंपनी नहीं आई जिस ने युवाओं को नौकरी दी हो. यह बात और है कि प्रदेश में राममंदिर बन गया. सरकार को पता है कि वोट बेरोजगारी दूर करने से नहीं, राममंदिर बनवाने से मिलेंगे, इसलिए वह फैक्ट्री लगवाने की जगह मंदिर बनाने का काम कर रही है. ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी जैसे आयोजन जनता को भरमाने के लिए हैं कि सरकार उन को रोजगार देने के लिए काम कर रही है.

अगर युवाओं को रोजगार मिल रहा होता तो सिपाही जैसी परीक्षा में इतनी बड़ी संख्या में युवा हिस्सा न लेते. सिपाही ही नहीं, जब 10वीं पास चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन मांगे गए तो पीएचडी डिग्री वालों ने भी आवेदन किया था. सरकार ने चपरासी के 62 पदों के लिए आवेदन मांगे तो 50 हजार ग्रेजुएट, 28 हजार पोस्टग्रेजुएट, 37 सौ पीएचडीधारक युवकों ने आवेदन किए थे. कुल आवेदन करने वालों की संख्या 93 हजार थी. इन में चपरासी की योग्यता रखने वाले 5 वीं से 12 वीं पास करने वालों की संख्या केवल 7,400 थी.

अगर चपरासी के लिए इतनी योग्यता रखने वालों ने आवेदन किया तो मामला साफ है कि बेरोजगारी चरम पर है. सरकार केवल मंदिर बनवा कर वोट लेने के काम कर रही है. मंदिर में हर किसी को पुजारी की नौकरी नहीं मिलती. ऐसे में बेरोजगार मंदिर के बाहर भीख मांग कर ही अपनी बेरोजगारी दूर कर सकते हैं या रिकशा चला कर काम कर सकते हैं या फिर चायपकौड़ा बेच सकते हैं. चपरासी या सिपाही की सरकारी नौकरी का सपना युवा इसलिए देखते हैं क्योंकि इस से बेहतर उन के पास कुछ है नहीं.

न नौकरी न वेतन तो क्या करें युवा

पहले जिन युवाओं को सरकारी नौकरी नहीं मिलती थी, वे प्राइवेट नौकरी कर लेते थे. अब कुछ सालों में सरकारी और प्राइवेट नौकरी के वेतन में जमीनआसमान का फर्क आ गया है. सिपाही को जहां 21 हजार रुपए प्रतिमाह और समाज पर रोब गांठने को मिलता है वहीं नौर्मल सिक्योरिटी के रूप में काम करने वाले को 8 से 10 हजार रुपए ही मिलते हैं. इस में भी केवल 11 माह का मिलता है. दूसरों को सिक्योरिटी देने वाले की जौब सिक्योर नहीं होती है.

सरकारी टीचर को 40 हजार रुपए शुरुआत मे वेतन मिलता है. प्राइवेट स्कूलों में टीचर का वेतन 12 से 15 हजार रुपए ही होता है. जौब सिक्योरिटी, प्रमोशन और वेतन में वृद्धि सपना जैसा होता है. कोविड जैसी महामारी का प्रभाव सब से अधिक प्राइवेट जौब करने वालों पर पड़ा. प्राइवेट सैक्टर समाज से कमाता है लेकिन जब मुसीबत आई तो सब से पहले हाथ खड़े कर के लोगों को जौब से निकाल दिया. वेतन में कटौती की. कई हजार शिक्षक स्कूलों से बाहर हो गए थे.

वेतन असमानता बड़ा कारण

सरकारी नौकरी में वेतन कमज्यादा जो भी है, जौब सिक्योरिटी रहती है. प्रमोशन भी मिल जाता है. ऐसे में युवा छोटी से छोटी नौकरी करने को तैयार रहते हैं. भले ही इस के लिए उन को रिश्वत देनी पड़े या परीक्षा की तैयारी में लाखों खर्च करने पड़ें. बड़ी संख्या में युवा डिलीवरी बौय के रूप में काम करते हैं. उन की जिदंगी सड़क पर चाय बेचने वाले से बुरी है. सरकार केवल रामधुन गा कर वोट ले रही है उसे बेरोजगारों की चिंता नहीं है. किस तरह से महंगी शिक्षा दिला कर पेरैंट्स बच्चों को पढ़ाते हैं, उस के बाद भी जब उन को अपना भविष्य नहीं दिखता, तो डिप्रैशन में आ कर वे आत्महत्या कर लेते हैं.

सरकार और निजी क्षेत्र दोनों ही अपने मुनाफे की देखते हैं. नौकरी करने वाले के भविष्य की चिंता किसी को नहीं होती. नौकरियों के वेतन में असमानता के कारण ही सिपाही और चपरासी जैसी नौकरियों के लिए योग्यता से अधिक वाले उम्मीदवार लाइन में खड़े होते हैं. जैसे समाज में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है वैसे ही वेतन की असमानता भी है जो युवाओं के सपनों पर कुठाराघात करती है.

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