महाराष्ट्र के पुणे शहर में इस 21 जनवरी को एक सिरफिरे आशिक ने प्यार का विरोध करने पर अपनी प्रेमिका की मां की गला घोंट कर हत्या कर दी. कत्ल के लिए उस ने कुत्ते की बेल्ट का इस्तेमाल किया. प्रेमिका की शिकायत के आधार पर पुलिस ने केस दर्ज कर के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है.

यह वारदात पुणे के पाषाण सुस रोड पर स्थित एक सोसायटी में हुई. वहां 58 साल की वर्षा अपनी 22 साल की बेटी मृण्मयी के साथ रहती थी. इसी महीने की पहली तारीख को वर्षा के पति की मौत हो गई थी. उस की बेटी एक कंप्यूटर इंजीनियर है लेकिन 1 जनवरी को पिता की मौत के बाद उस ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी. करीब 7 महीने पहले एक डेटिंग ऐप पर उस की मुलाकात शिवांशु के साथ हुई. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. लेकिन कुछ महीने बाद लड़की को पता चला कि उस का प्रेमी डिलीवरी बौय का काम करता है.

मृण्मयी की मां उन के रिश्ते के खिलाफ थी. वह लड़के की नौकरी और आर्थिक स्थिति को अपनी हैसियत के बराबर नहीं समझती थी. इसलिए उस ने अपनी बेटी से इस रिश्ते से बाहर निकलने के लिए कहा था. पिता को खो चुकी मृण्मयी ने अपनी मां की बात मान ली और उस ने शिवांशु से ब्रेकअप कर लिया और उस से मिलना बंद कर दिया. इस बात से नाराज शिवांशु गुप्ता एक रात मृण्मयी के घर पहुंच गया.

उस की मां उसे पहले से जानती थी इसलिए उन्होंने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया. घर में घुसने के बाद शिवांशु ने पहले तो मां को शादी के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन जब वो नहीं मानी तो कुसे की बेल्ट से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी.

इसी तरह दिल्ली में रोहिणी इलाके में एक 24 साल के लड़के ने अपनी 19 साल की प्रेमिका की गला रेत कर हत्या करने की कोशिश की. बाद में खुद की भी जान ले ली.

दरअसल अमित नाम का यह सिरफिरा आशिक उसी कार्यालय में काम करता था, जिस में लड़की काम करती थी. उसे लड़की से एकतरफा प्यार हो गया. परेशान हो कर लड़की ने अमित से बात करना बंद कर दिया. अमित यह बेरुखी सह नहीं सका. उस ने चाकू से लड़की पर हमला किया और उस का गला रेतने की कोशिश की. लेकिन औफिस के अन्य लोगों ने उसे बचा लिया. फिर अमित ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

दरअसल आजकल हमारे पास तर्कपूर्ण सोच विकसित करने के लिए कोई जरिया नहीं है. न हमारे पास वैसे राइटर हैं जो तार्किक बातें कहते हों या जिन के लेखन में तर्क झलकता हो. न हमारे पास पढ़ने के लिए वैसी किताबें है जो हमें तर्कशील बनाएं. हम बस विश्वास यानी फेथ के सहारे चल रहे हैं. तभी हम कहते हैं कि धर्म ने ऐसा कहा इसलिए यही सही है या प्यार ऐसे ही होता है और हम ऐसे ही प्यार करेंगे. इसी पर हमारा विश्वास है.

आज हमारे पास देखने के लिए जो फिल्मी या सीरियल की कहानियां हैं. उन में आक्रामकता, स्वार्थ और जबरदस्ती दिखाई जाती है. कुछ गिनीचुनी किताबें जो हम पढ़ते हैं. उन की कहानियों में भी आज इसी तरह के किरदार दिखाई देते हैं. एक समय था जब डेसकार्टेस, नीत्शे, रसेल, इम्मानुएल कैंट, विलियम जेम्स जैसे लेखक थे जिन की कहानियों के किरदारों में या वर्णित घटनाओं और उदाहरणों में तर्कशीलता होती थी. वह हमें एक दिशा देते थे. हमारी सोच और हमारे चिंतन को एक तार्किक दृष्टिकोण देते थे.

आज हमारे पास पढ़ने को बचा क्या है ? ले दे कर एक मोबाइल है जो सब के हाथों में होता है. हम उस में आंखें गड़ाए रखते हैं. उस में जो भी बेसिरपैर की बातें पढ़ने को मिलती हैं वही हमारे अवचेतन में बैठता जाता है.

मोबाइल में ऐसी तर्कहीन चीजें होती हैं जिन का हमारी जिंदगी पर नेगेटिव असर पड़ता है. मगर हम उसे ही फौरवर्ड किए जाते हैं. इस में केवल फेथ को बढ़ावा दिया जाता है. बस इसी फेथ यानी विश्वास के आधार पर हमारी सोच विकसित होती है. हम वैसा ही करने लग जाते हैं जैसा हमें समझाया जा रहा है.

गलती हमारी नहीं बल्कि गलती है हमारे माहौल की. गलती है समाज के बदलते हुए नजरिए की जिस ने हमें आक्रामकता, स्वार्थ, बेईमानी जैसे गुण सिखाए हैं. हमारी सच्चाई, हमारा प्यार, हमारा नजरिया, हमारे तर्क और हमारी सोच बदल गई है. हमारी सोच में तर्क तो रह ही नहीं गया है. इसी वजह से आज इस तरह की घटनाएं अकसर देखने को मिलती हैं. हम परिणाम दिए बिना डालते हैं. जब तक हम इस पर काम नहीं करेंगे हम सही दिशा की ओर नहीं बढ़ पाएंगे.

आज कुछ पत्रिकाएं हैं जो तर्कशीलता को आधार मानती हैं. दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं ऐसी ही हैं मगर समस्या है कि हम पढ़ने के लिए समय नहीं निकालते. हम मोबाइल में लगे रहते हैं. जब तक हम मोबाइल के जंजाल से पीछा नहीं छुड़ाएंगे तब तक कुछ सही होने की आशा कैसे कर सकते हैं?

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