हाल ही में हुए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में भाजपा की स्टूडैंट्स शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ से 3 पदाधिकारी चुने गए. उन्होंने गणेश चतुर्थी को हवनपूजन किया. आधुनिक शिक्षा के इस तार्किक और वैज्ञानिक पाठयक्रमों वाले विश्वविद्यालय के छात्रसंघ की इस पाखंडबाजी को देख कर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि अब तो यह परपंरा बन गई है कि साइंस अधिवेशन की शुरुआत भी पूजन या अग्नि से की जाती है और सारे वैज्ञानिक नतमस्तक हो कर किसी देवी या देवता का आशीर्वाद मांगते हैं.

कुछ वर्षों पहले भाजपा की केंद्र में सरकार बनने से पहले मेरठ विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा विभाग की तरफ से व्यास समारोह किया गया था. इस की शुरुआत में मंदिर से शोभायात्रा निकाली गई थी. मंत्रों के साथ व्यास बने भगवा वेशधारी का तिलक किया गया था.

बाद में सती विवाह, पार्वती के तप की परीक्षा आदि शिवपुराण की कथाएं बांची गईं. कोटद्वार के सिद्धबली मंदिर में जा कर पूर्जाअर्चना की गई. ओम नम: शिवाय और नवधा भक्ति आदि के बारे में प्रवचन हुए और इस तरह से यह आयोजन पूरी तरह से धार्मिक रंग में रंगा रहा. आयोजक खुश हो कर अपनी पीठ खूब थपथपाते रहे. इस तरह का जलसा हर साल किया जाता है.

यह घटना किसी मदरसे की नहीं,  नामी यूनिवर्सिटी की थी. यदि अनपढ़, गंवार लोग पिछड़ेपन की हिमायत करें तो कोई हैरत नहीं होती क्योंकि उन का जेहन, उन की अक्ल व सोच ही पीछे होती है. अफसोस तो तब होता है जब पढ़ेलिखे, तरक्कीयाफ्ता भी रूढि़यों के शिकार होते दिखाई देते हैं और अनापशनाप सलाहमशवरे देने लगते हैं.

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