Hindi Kahani : चाय पर असली चर्चा तो इसी घर में होती है. अखबार का पहला पन्ना तो शायद ही पढ़ा जाता हो लेकिन तीसरे पन्ने का हर पात्र उस घर का पात्र बन जाता है. चाय का तीसरा घूंट अभी अंदर नहीं गया था और मंजुला यानी श्रीमती समझदार के मुंह से चच्च की ध्वनि निकलने लगी, ‘‘अरे यह भी कोई बात हुई, कोई बचाने नहीं आया, कैसेकैसे लोग हैं.’’
‘‘क्या हो गया, कौन बचाने नहीं आया?” उत्सुकता दिखाना मजबूरी है ज्ञानेंद्र यानी श्रीमान महान की.
‘‘अरे, शंकरगढ़ में लडक़ी को सरेआम गुंडा चाकू मार रहा था और लोग चुपचाप देख रहे थे.’’
‘‘हां, आजकल कोई किसी के मामले में नहीं बोलता. वैसे भी, कोई चाकू मार रहा है तो आदमी डरता है, पता चला झगड़ा छुड़ाने गए और उलटा फंस गए,’’ इतना बोल कर ज्ञानेंद्र फंस गए.
‘‘हां, आदमी डरता है, तुम्हारे जैसा आदमी डरता है. जब हम लोग बाजार गए थे, लडक़े लड़ाई कर रहे थे तब भी तुम ने कुछ नहीं किया. तुम्हारे जैसे लोग ही डरते हैं.’’
‘‘यार, कब की बात कर रही हो.’’
‘‘क्यों, अब याद भी नहीं. मुश्किल से 15 दिनों पहले की ही बात है. मैं ने बोला भी कि जा कर छुड़ाओ.’’
‘‘अरे यार, इतने दिनों की बात ले कर बैठी हो. वैसे तो तुम भी मत पड़ा करो इन चक्करों में, आजकल कोई भरोसा नहीं. पता चला आप छुड़ाने चले हैं और लेने के देने पड़ जाएं.’’
यह हिदायत कलह में बदल गई. दरअसल, कुछ दिनों पहले बाजार में बाइक छू जाने पर 2 लडक़ों में लड़ाई हो गई थी. दूसरे वाले ने अपने दोस्त बुला लिए. लोगबाग छुड़ा रहे थे. लेकिन लड़ाई इतनी जमी नहीं थी कि इस दुकान को छोड़ कर वहां जाना पड़े. उस लड़ाई को देख कर लौट रहे लोगों ने ही मुंह बना कर किस्सा बता दिया था. लेकिन मंजुला बोले जा रही थी.
‘‘खुद भी डरपोक बने रहो और दूसरों को भी वैसे ही बना दो, तुम्हारे जैसे ही लोग थे जो उस दिन वहां खड़े रहे और चुपचाप देखते रहे.’’
मंजुला थोड़ी वीरबाला मिजाज की थीं. जान नहीं थी लेकिन लड़ाईझगड़ा छुड़ाने में हमेशा आगे रहती थीं और उन की दिली ख्वाहिश थी कि उन के पति इस के चैंपियन बन जाएं. लेकिन ज्ञानेंद्र को अपनी हड्डीपसली पर तरस आता. वैसे भी, मंजुला के झगड़ों का भी निबटारा उन्हें करना पड़ता था. लेकिन मजाल क्या कि मंजुला हथियार डाल दें. मंजुला के पास पूरी लिस्ट थी- कबकब, किसकिस मौके पर ज्ञानेंद्र डर के मारे चुप रहे. बहस शुरू हुई नहीं कि कितने गड़े मुर्दे उखड़ जाते. वक्त के साथ हर मुरदा डरावना हो जाता था. और फिर तो श्रीमान महान और श्रीमती समझदार की दुनिया खबर से बहस पर और बहस से तूतूमैंमैं पर उतर आती.
श्रीमान महान हार कर दुनियावी सुकून के लिए हर बात पर हामी भर देते. नतीजतन, होता यह कि दुनिया के हर पुरुष द्वारा किए गए अपराध के बदले उसे थोड़ीबहुत सजा मिल ही जाती. वे भी दिल के हाथों मजबूर थे. आखिरकार पुरुष होने की कुछ न कुछ तो सजा बनती ही थी. मंजुला जी उन के उतरे बीपी को चढ़ा देती थीं और उन के बढ़े बीपी को उतार देती हैं.
मजे की बात, बहुत ही गरममिजाज मंजुला को ब्लडप्रैशर लो रहता था और बहुत ही शांतमिजाज ज्ञानेंद्र का ब्लडप्रैशर हाई रहता था. जिंदगी की डोज वो एकदूसरे को ऐसे ही देते थे. पिछले 18 बरसों से चाहे अच्छा लगे या बुरा, अखबार का वह पन्ना एक दिन भी उन से नहीं छूटता था. दुनिया की सभी खबरें उन के लिए उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थीं जितनी उन के आसपास घटी कोई घटना. श्रीमान महान कितनी भी कोशिश कर लें कि बातचीत को माइक्रो लैवल से मैक्रो लैवल तक ले आएं लेकिन यहां दुनिया विस्तृत से सूक्ष्म तक आती थी और सूक्ष्म तक आतेआते उन तक आ जाती थी. फिर क्या वह सुपरबग मिल जाता जिस के इलाज करने से जहान की बीमारियां व तकलीफें दूर हो सकती थीं. जैसे कि अगर वे चाह लें तो जगत समस्या का समाधान हो जाए.
ज्ञानेंद्र जी अकेले में कभीकभी सोचते थे कि भला हो कि मैडम कोई महान वैज्ञानिक नहीं हुईं वरना लाल रंग का कच्छा पहना के महाशय को हवा में फेंक देतीं और बड़े ही शहीदाना अंदाज में कहतीं- जाओ, दुनिया की मुसीबतें हल करो. लेकिन इस में भी वे रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखतीं ठीक वैसे ही जैसे हौलीवुड की फिल्म का वैज्ञानिक रखता है.
कितनी कम उम्र में वह लडक़ा चला गया. बामुश्किल सत्रहअट्ठारह साल का रहा होगा. पता नहीं उस के परिवार पर क्या बीत रही होगी. आदमी इतनी मुश्किल से बच्चा पालता है. अखबार में एक नौजवान लडक़े की एक ऐक्सिडैंट में मौत हो जाने की खबर छपी थी.
“हां, आजकल लडक़े तेज बाइक चलाते हैं.”
“मांबाप भी तो दिला देते हैं,” मंजुला ने थोड़ा उदास हो कर कहा.
“मांबाप भी क्या करें, कभीकभी बच्चे इतनी जिद करने लग जाते हैं कि उन को दिलाना ही पड़ता है. हाईस्कूल के बाद तो मैं भी स्कूटर चलाता था.” बस, ज्ञानेंद्र की इसी बात में पेंच था.
“तुम्हारे जैसे लोग ही ऐसा करते हैं. जैसे तुम चलाते थे वैसे ही बच्चों के लिए भी सोचते हो. तुम्हारे जैसे लोग ही अपने बच्चों को बाइकस्कूटर दिलाते हैं,” मंजुला का पारा चढ़ रहा था.
“अरे, इस में क्या खराबी है, स्कूटर से अपनी मां को बाजार तक छोडऩे जाता था.” चूंकि ज्ञानेंद्र जी का ध्यान कहीं और था, इसलिए गलती से यह जवाब दे दिया.
“यही असली बात है. तुम्हारे अंदर कम उम्र के लडक़ों के गाड़ी चलाने को ले कर चिढ़ नहीं है. उलटा, तुम ग्लोरिफाई कर रहे हो. ऐसे ही लोग बाद में रोते हैं. वैसे, बाद में रोने से कुछ भी हासिल नहीं होता,” मंजुला जी का धैर्य अब समाप्त हो चुका था. उन्होंने साथ में धमकी भी दे डाली, “याद रखना अपना यह सोचना अपने पास रखना. बच्चे के आगे कभी मत कहना कि मैं 10वीं में स्कूटर चलाता था. गलती से मेरे बच्चे को यह पता न चले. वैसे भी, 2दो महीने बाद वह 9वीं में आ जाएगा.”
“अरे, इस से क्या होगा. इतना मत घबराया करो. आजकल तो बच्चे स्मार्ट हैं.”
“क्या होगा?” मंजुला की आंख भर आई थी, “पढ़ो यह मैसेज: ‘रोहित, आज तुम को गए हुए 10 साल हो गए. तुम हमें रोज उतना ही याद आते हो.’
जानते हो इस लडक़े की मौत सडक़ दुर्घटना में हुई थी. आज अगर यह परिवार बाइक न देता तो उसे यों रोना न पड़ता.
“अरे, जीनामरना किसी के हाथ में है क्या. वैसे भी तुम्हें क्या पता कि वह बाइक चला रहा था या नहीं. साइकिल को भी तो कोई गाड़ी टक्कर मार देती है.”
बस, अब तो सुबह की चाय ही आखिरी चाय होगी यहां. फिर क्या लड़ाइयों की संख्या पानीपत का युद्ध जितनी बार लड़ा गया उस से भी ज्यादा एकदिन में होनी तय हो गई. 10 वर्षों पहले सडक़ दुर्घटना में दुनिया छोड़ गए रोहित का शोकसंदेश किसी के घर में इतना शोक भर देगा, इतना तो रोहित के लिए विज्ञापन देते समय उस के परिवार के लोगों ने भी न सोचा होगा. सारे तीर, खंजर, तलवार वहां उपस्थित हो गए. खानदान की बखिया उधडऩे लगी.
2 दिनों बाद मामला सुलझा था जब ज्ञानेंद्र जी खुद और अपने बेटे से भी कबूलवाया कि 18 साल की उम्र होने से पहले घर में बाइक की बात नहीं होगी.
लेकिन आज तो कुछ अलग ही माहौल था. खबर थी कि एक लडक़ी शराब के नशे में धुत थी. उसे ले कर एक लडक़ा अपने घर गया क्योंकि लडक़ी का घर दूर था और उस ने कहा कि ऐसी हालत में वह अपने घर नहीं जाना चाहती. सुबह घर वाले जब ढूंढ़़ते हुए आए तो उस ने कह दिया कि लडक़ा उसे जबरदस्ती ले कर आया है. लडक़ी ने यह भी कहा कि लडक़े ने उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए हैं. घरवालों ने पुलिस बुला ली और लडक़ा जेल में डाल दिया गया. चूकि बात पड़ोस की थी, इसलिए अखबार की गरमी से भी ज्यादा गरम हो कर उन के घर तक आ गई थी.
मंजुला का पारा चढ़ा हुआ था, “तुम्हारी दोस्ती लड़कियों से बहुत है. देख लो, क्या हुआ.”
ज्ञानेंद्र जी को कुछ समझ न आया.
“अरे, मतलब यह है कि तुम उन के साथ पीनेपिलाने का सिस्टम मत रखना.”
“अरे, मैं कौन सा पीता पिलाता हूं.” यहां तक तो जवाब ठीक था लेकिन लंबा जवाब ज्ञानेंद्र जी पर भारी पडऩे वाला था. उन्होंने अपनी महानता का प्रदर्शन करते हुए कहा, “वैसे भी, हर लडक़ी वैसी नहीं होती.”
अब तो बहस ने जोर पकड़ लिया. सारे गड़े मुरदे फिर एक बार आ खड़े हो गए. हर बात इतनी ताजी कि अब जैसे अभीअभी बीती हो. एक सैकंड का चित्रात्मक वर्णन होने लगा.
ज्ञानेंद्र जी भी थोड़ा नाराज से हो गए थे. उन्होंने कहा, “यह बात तो तुम्हारे ऊपर भी लागू होती है. अपने बारे में सोचो.”
“मैं अपने बारे में क्या सोचूं, मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं. मुझे आदमी की परख है. हर बार मेरी बात सही निकली है.”
“जा कर भविष्यवाणी की दुकान क्यों नहीं खोल लेती हो, खूब चलेगी,” ज्ञानेंद्र जी ने तल्खी से कहा.
“हां, भविष्वाणी ही कर रही हूं. अगर तुम नहीं संभले तो तुम्हारा भी हश्र वही होगा जो उस लडक़े का हुआ,” फिर कुछ सोचसमझ कर उन को समझाने लगीं, “अरे, कभी ऐसा हो, मान लो, कोई सडक़ पर मिल जाए.
“हां, सडक़ पर लड़कियां पी कर लडख़ड़ाते मिल ही जाती हैं, तुम को जरूर मिलती होंगी,” ज्ञानेंद्र जी आज सुनने को तैयार नहीं थे.
“अरे, मान लो मिल जाए, तो कभी यह मत करना कि छोडऩे चले जाओ. अरे, पुलिस को फोन करो तुरंत. लेकिन तुम्हारे जैसे आदमी बहादुर बनने लगते हैं. वैसे भी, आदमी को क्या चाहिए, मदद करने का बहाना. लेकिन गलती न करना. अब अलग तरह की दुनिया है. पता चला कि तुम मदद करने चले हो और लडक़ी कुछ का कुछ बता दे. वैसे भी, पीनापिलाना कोई अच्छी बात नहीं है.”
“अरे, तुम तो ऐसे बात कर रही हो जैसे कोई मैं महफिल सजा कर बैठता हूं. प्लीज, बेवकूफों की तरह बात न करो.”
“तुम मेरा मुंह मत खुलवाओ. क्या तुम ने अमिता के साथ एक बार ड्रिंक नहीं किया था,” मंजुला ने 5 वर्षों पहले वाली बात पिटारे से निकाली.
“अरे, यह क्या बात हुई. हम लोग इतने पागल नहीं हैं. वैसे भी, वह बहुत मैच्योर है और एक पैग से कुछ नहीं होता.”
यह वाली बात तो आग में घी बन गई. मंजुला जी को वैसे भी औफिस ट्रिप का यह किस्सा शुरू से नापसंद रहा था. आज तो खैर नहीं.
“तुम्हारे जैसे एक पैग और दो पैग की थ्योरी वाले लोग ही मुसीबत की जड़ हैं.”
“अरे, तुम दवा खा कर अपना इलाज करती हो, मैं दारू, क्या दिक्कत है? श्रीमान महान ने मजाक का एक गुब्बारा फेंका, सोचा कि मंजुला बच्ची कि तरह है, थाम कर खुश हो जाएगी.
“मैं ने पहले ही कह दिया कि बेवजह मजाक मत किया करो. तुम्हारे जैसे आदमी ही फंसते हैं. तुम को सैंस नहीं कि किस के साथ बैठो किस के साथ नहीं.”
अब आगे का किस्सा यहीं समाप्त होता है. नहीं आगे कुछ हुआ है सुनिए.
ज्ञानेंद्र जी डर के मारे कुछ नहीं बोले. जी में रोज आ रहा था कि वे पूछें- वैसे. वह पी कर कर बहकने वाली औरत किस जगह पर मिलेगी. देख तो आऊं, पक्का पुलिस को फोन करूंगा, घर ले कर नहीं आऊंगा, न ही छोडऩे जाऊंगा. लेकिन, कभी मंजुला से जिक्र करने की हिम्मत नहीं पड़ी.
शनिवार की बात थी, ज्ञानेंद्र जी ने पक्का इरादा कर लिया था. बार के बाहर अंधेरे वाली जगह पर जा कर खड़े हो गए. दिल भीतर से घबरा रहा था लेकिन बहुत ही रोमांचित महसूस कर रहे थे. लग रहा था कि अभी कोई सुंदरी सुरापान से लडख़ड़ाते हुए निकलेगी और वे उसे बांहों में थाम लेंगे. लेकिन इतना साहस नहीं था कि रैस्तरां कम बार के बाहर खड़े हो जाएं. वे थोड़ा दूर नाली के पास अंधेरे वाले कोने में आ कर खड़े हो गए. उसी समय जादू हुआ, उन का ध्यान नाली के पास उलटी करती एक महिला पर गया.
लग रहा है कि महिला को सुरा हजम नहीं हुई, ज्ञानेंद्र जी यह सोच कर बहुत प्रसन्न हुए. महिला के घुंघराले बाल पीठ पर फैले थे और झुकने के कारण जंपर थोड़ी ऊपर उठ गई थी. कमर का हिस्सा दिख रहा था. उस जगह पर अंधेरा इतना था कि ठीक से पहचाना नहीं जा रहा था. ज्ञानेंद्र जी को थोड़ी राहत भी लग रही थी कि अच्छा है कोई औफिस का आदमी नहीं देख पाएगा.
वे नजदीक जा कर बोले, ‘आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही. कोई मदद चाहिए.’ तब तक वह महिला पानी की बोतल निकाल कर अपना मुंह धो रही थी, वह पलटी नहीं. ‘अगर आप को ठीक लगे तो घर छोड़ सकता हूं आप को.’ आज भी ज्ञानेंद्र जी को जब वह मनहूस वाक्य याद आता है तो सारे ग्रहनक्षत्रों को कोसने लगते हैं वे.
महिला ने पर्स गोदी में से उठाया और अपने बाल समेटे व पलट कर बोली, “कैब बुक कर दिया, ज्ञानेंद्र जी?” श्रीमती मंजुला अपने पति की आंखों का एक्सरे करते हुए बोलीं. मजे की बात यह रही कि अगले दिन के अखबार में इस घटना का जिक्र नहीं था.