रेबीज या जलान्तक (हाइड्रोफोबिया) दुनिया की सब से खतरनाक लाइलाज बीमारियों में से एक है. यह रोग मनुष्य को यदि एक बार हो जाए तो उस का बचना मुश्किल होता है. रेबीज लाइसो वायरस यानी विषाणु द्वारा होती है और अधिकतर कुत्तों के काटने से ही होती है परंतु यह अन्य दांत वाले प्राणियों, जैसे बिल्ली, बंदर, सियार, भेडि़या, सूअर इत्यादि के काटने से भी हो सकती है. इन जानवरों या प्राणियों को नियततापी (वार्म ब्लडेड) कहते हैं. यह रोग यदि किसी मनुष्य को हो जाए तो उस की मृत्यु निश्चित होती है. शायद ही विश्व में रेबीज ग्रसित कोई व्यक्ति इलाज से बचा हो.

एसोसिएशन औफ प्रिवैंशन औफ रेबीज के अनुसार, हर साल 1.7 करोड़ लोग जानवरों के काटने के शिकार होते हैं. नैशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 व 2022 में 6,644 मौतें रेबीज के कारण हुईं. आवारा कुत्तों पर कंट्रोल हर शहरगांव में न के बराबर है. लोग आवारा कुत्तों को खाना खिलाना पुण्य का काम सम?ाते हैं और इसलिए इन की संख्या बढ़ती जा रही है.

नवंबर 2022 में रेबीज के 6,000 मामले अस्पतालों में लाए गए. जहां से मरीजों के बचने की कोई सूचना नहीं मिली. अकसर लोग रेबीज का इलाज किसी ?ालाछाप डाक्टर से या कैमिस्ट से दवा ले कर करा लेते हैं पर कई बार इस के लक्षण खत्म नहीं होते और माहदोमाह में यह मौत का कारण बन जाता है.

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में 6 माह में कुत्तों के काटने से 30 हजार मरीजों के मामले आए थे, वहीं राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 18 हजार. यह रोग लगभग पूरे भारत वर्ष में होता है. लक्षद्वीप और अंडमान द्वीपों में अवश्य यह कम है. बहुत से रोगी तो अस्पतालों में आने के पहले ही मर जाते हैं. सो, यह संख्या 5 से 10 गुना तक हो सकती है.

रोग का कारक : जैसा कि बताया गया है कि यह विषाणुजन्य रोग है, लाइसा विषाणु के प्रकार-1 (लाइसा वायरस टाइप-1) के शरीर में प्रवेश के पश्चात यह होता है. इस विषाणु को नष्ट करने का टीका तो उपलब्ध है परंतु इसे पूर्ण नष्ट करने वाली दवा विकसित नहीं हुई है. सो, बचाव की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है.

संक्रमण के स्रोत : भारत में लगभग 90 प्रतिशत रेबीज का संक्रमण (इन्फैक्शन) कुत्तों के काटने से होता है. शेष अन्य प्राणी जैसे बंदर, सियार, भेडि़या इत्यादि के काटने से होता है. रोग के विषाणु पागल (रेबीज ग्रस्त) कुत्ते इत्यादि की लार में मौजूद होते हैं जो काटने पर मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.

रोग के प्रकार

रेबीज रोग का प्रसार यानी ट्रांसमिशन 2 तरह से होता है-

  • जब रोगग्रस्त (पागल) कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य को काटता है तो लार द्वारा विषाणु मनुष्य की तंत्रिकाओं में पहुंच जाते हैं.
  • यदि प्रभावित कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य की त्वचा के कटे या छिले भाग को चाटे तो भी संक्रमण हो सकता है. संभावना तो यह भी होती है कि त्वचा छिली या उस पर खरोंच भी न हो तब भी यदि कुत्ता त्वचा को जोर से बारबार चाटे तो भी रेबीज का संक्रमण हो सकता है. विषाणु तंत्रिका से होते हुए धीरेधीरे मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं.
  • रोग की अवधि (इन्क्यूबेशन पीरियड) : संक्रमण के पश्चात रोग के लक्षण आने या रोग होने में 1 से 3 माह तक लगते हैं.

रेबीज के प्रमुख लक्षण

शुरू में सिरदर्द होता है और बेचैनी भी होती है. काटे गए स्थान पर खिंचाव और दर्द भी होता है.

इस के बाद जल्दी ही रोगी में इस रोग के अन्य बड़े या प्रमुख लक्षण, जैसे शोर और तीव्र प्रकाश से असह्यता (इंटौलरैंस) कोई भी खाद्य या पेय निगलने में कठिनाई और पानी से डर तथा खाद्य या द्रव पदार्थ लेने पर पेशियों में ?तीव्र संकुचन (स्पस्म) होना इत्यादि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं.

इस रोग में मृत्यु अकसर श्वसन क्रिया के लकवाग्रस्त (रेस्पिट्री पैरालिसिस) होने से होती है और जैसा कि पूर्व में भी उल्लेखित किया गया है, रोग का अंत मृत्यु में ही होता है.

कुत्तों में रेबीज का पता करना

निम्न लक्षणों द्वारा जाना जा सकता है-

  • जब कुत्ते में छेड़खानी के बिना अपनेआप झपटने और काटने की आदत आ जाए.
  • जब कुत्ता लकड़ी, घास या अन्य वस्तुओं को भी काटने लगता है.
  • कुत्ते का अधिक हिंसक होना, घर से भागना, यहांवहां घूमना और जो भी रास्ते में सामने आए उसे काटना.
  • कुत्ता फटी सी आवाज में भूंकता है यानी उस की पहले वाली आवाज बदल जाती है.
  • सांस लेने के लिए कुत्ते का तेज हांफना. यह लक्षण अंतिम अवस्था में मिलता है. कुत्ता या पशु इन लक्षण के मिलने के 10 दिनों के भीतर मर जाता है.

रेबीज की रोकथाम

घाव का उपचार : काटा हुआ घाव या छिले के निशान को अतिशीघ्र साबुन से रगड़ कर धोना चाहिए. संभव हो तो घाव पर साबुन लगा कर नल की तेज धार से धोएं. फिर स्प्रिट, अलकोहल या टिंक्चर आयोडीन घाव पर लगाना चाहिए जिस से उस में मौजूद विषाणु मर जाएं. इस के बाद घाव पर पट्टी बांध दें.

टिटनैस टौक्साइड का इंजैक्शन तथा जीवाणु रोधी दवाएं (एंटीबायोटिक्स) भी लें, जिस से घाव द्वारा अन्य तरह के संक्रमणों से रक्षा हो सके.

कुत्ते या पशु की निगरानी : जिस कुत्ते या पशु ने काटा है उसे मारना नहीं चाहिए बल्कि उसे 10 दिनों तक रोज देखें. यदि काटने के पश्चात 10 दिनों के अंदर वह मर जाता है या उस में रेबीज के लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत ही शिकारग्रस्त व्यक्ति को रेबीज रोधक उपचार शुरू कर देना चाहिए.

वैसे आजकल पशु की निगरानी न कर रोग से बचाव के इंजैक्शन लगवाने की सलाह भी कुछ विशेषज्ञ देते हैं.

टीके कब लगवाएं

  • काटने वाले पशु में जब रेबीज के लक्षण दिखते हैं या वह 10 दिनों के भीतर मर जाता है.
  • जब काटने वाले कुत्ते या पशु की पहचान नहीं हो पाती तब भी खतरा मोल न लेते हुए रेबीज विरोधी टीके लगवाने की सलाह दी जाती है.
  • सभी जंगली पशुओं, जैसे सियार, रीछ इत्यादि के काटने पर रेबीज विरोधी इलाज और टीके लें.

टीके या उपचार कैसे लें ?

पूर्व में जो टीका बनाया जाता था वह संक्रमित पशु के मस्तिष्क की कोशिकाओं से तैयार होता था. वह टीका पेट की त्वचा में लगाया जाता है. घाव की गंभीरता के अनुसार इस की मात्रा 2 मिलि से 5 मिलि तक 7 से 14 दिन तक के लिए होती है. इस टीके का मनुष्य के शरीर पर कुप्रभाव तंत्रिकाघात के रूप में होता है. 10 हजार उपचारित व्यक्तियों में 1 व्यक्ति तंत्रिकाघात या लकवा से ग्रस्त हो जाता है.

अब बाजार में कोशिका संवर्धित (सैल कल्चर) टीका आने लगा है. इसे एचडीसी (ह्यूमन डिप्लैड सैल) टीका कहते हैं. ये टीके शक्तिशाली होने के साथ पूर्व टीकों से सुरक्षित भी हैं.

नए टीके की 1 मिलि मात्रा 5 बार अंत:पेशीय (इंट्रा मस्कुलर) 0, 3, 7, 14 और 30वें दिन लगाते हैं. 90 दिन बाद वर्धक या ऐच्छिक मात्रा (डोज) लगाने की भी सलाह दी जाती है. सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से ये टीके ज्यादा ठीक हैं. लेकिन ये महंगे भी होते हैं. सो, एक गरीब आदमी कई बार इन्हें खरीद कर लगवाने में असमर्थ होता है.

अमेरिका में यूनिवर्सिटी औफ हैल्थ साइंस के उन ब्रायन शैफर और डा. क्रिस्टोफर ब्रोडर ने एफ-11 मोनोक्लोनल एंटीबौडी ट्रीटमैंट ईजाद किया है जो शायद दुनियाभर में डौग बाइट की 60 हजार मौतों को कम कर सके. इस ट्रीटमैंट में भी अभी कुछ कमियां हैं क्योंकि ये दवाएं ब्रेन सैल्स में पहुंच चुके वायरस को नष्ट नहीं कर पातीं. ये दवाएं महंगी भी हैं और दूरदराज के इलाकों में नहीं मिलतीं.

कुत्तों पर नियंत्रण कैसे करें ?

रेबीज पर एक सीमा तक नियंत्रण आवारा, अवांछित कुत्तों की संख्या में कमी ला कर ही हो सकता है. असल में मनुष्य को कुत्तों का मोह छोड़ना होगा, चाहे इस का कुछ भी असर हो. पशुओं के प्रति क्रूरता के नाम पर आवारा कुत्तों को जिंदा रखा जाना किसी भी हद तक ठीक नहीं है.

चूंकि रेबीज दुनिया का खतरनाक और लाइलाज रोग है सो इस रोग से बचाव की सावधानियां रखने में लापरवाह नहीं रहना चाहिए. कुत्तों के काटने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए पर अब ऐसे मामले बढ़ गए जब कुत्तों के ?ांड बच्चों ही नहीं, बड़ों को भी काटकाट कर खा जाते हैं.

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