उम्मीद की जानी चाहिए कि 22 जनवरी के सूर्योदय के साथ ही आम लोगों की जिंदगी में कोई समस्या, कमी या अभाव नहीं रह जाएगा. चारों तरफ खुशहाली होगी, कोई बेरोजगार नहीं रहेगा, कोई बीमार नहीं पड़ेगा, किसी को कोई दैहिक या दैविक कष्ट नहीं होगा, सभी बराबर होंगे, शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीने लगेंगे, सामाजिक तौर पर देखेंगे तो एक समतामूलक समाज की स्थापना हो जाएगी, देवालयों में यज्ञभजनकीर्तन हो रहे होंगे, सभी लोग विष्णु की आराधना कर रहे होंगे, धरती बिना मेहनत किए अनाज उगल रही होगी, पेड़ फूलों और फलों से लदे होंगे. रामराज की महिमा के बखान का संक्षिप्त उपसंहार इस बात से किया जा सकता है कि गायें तक बिना गाभिन हुए ही दूध दे रही होंगी.

भारत राममय हो रहा है. राम ज्योति जलाने की अपील हो रही है. लोगों से आह्वान किया जा रहा है कि वे 22 जनवरी को जितना ज्यादा हो सके, पूजापाठ करें, मंदिरों में जाएं, रामधुन पर नाचेंगाएं. देश के 5 लाख मंदिरों में उत्सव होगा. अयोध्या की झांकी सीधे प्रसारित की जाएगी. आखिर, 500 साल बाद देश में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना जो हो रही है . रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी जिस के गवाह बनने के लिए लाखों लोग अयोध्या पहुंच रहे हैं. यही लोग  सद्कर्मी और राम के प्रिय हैं. अधर्मी, विधर्मी और नास्तिक, वामपंथी तो न्योता दिए जाने के बाद भी राममहिमा समझ नहीं पा रहे. विधाता ने उन की बुद्धि हर रखी है. अभी उन के उद्धार और मुक्ति का समय नहीं आया है

एक तीर से कई निशाने

साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने जो कहा था उसे उन्होंने कर दिखाया है. राममंदिर निर्माण भाजपा का वादा था, जो अब पूरा हो गया है. सो, जनता से अब कहा जा रहा है कि जो भी मांगना है, मंदिरों में जा कर मांगो. रोजगार अब भगवानजी देंगे, महंगाई भी वही कम करेंगे. अस्पताल, सड़कें और स्कूल जितना हो सकता है, हम बनवा ही रहे हैं और ज्यादा चाहिए तो इस के लिए भजनकीर्तन करो, पूजापाठ से प्रभु को प्रसन्न करो.

यह ठीक है कि मौजूदा भगवा सरकार पूजापाठी है. देश के अधिकतर लोग भी पूजापाठी हैं और अब 22 जनवरी के बहाने उन्हें और उकसाया जा रहा है, जिस का मकसद यही है कि लोग सरकार से उस के किए का हिसाबकिताब न मांगें. जो मांगना है, भगवान से मांगें और इस के लिए मंदिर जाएं. वहां भी कुछ मुफ्त में नहीं मिलता है बल्कि पंडेपुजारियों को दक्षिणा चढ़ानी पड़ती है. इस से पैसा ब्राह्मणों को मिलता है. असल सत्ता तो वही चलाते हैं.

यही लोग भाजपा को वोट दिलाते हैं कि देखो, बड़ी धार्मिक सरकार है, यही कल्याण कर सकती है और लोग वोट दे देते हैं. 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर भाजपा के पास एयरस्ट्राइक सरीखा कोई वोटकमाऊ मुद्दा है नहीं, सो उस ने राममंदिर को मुद्दा बना लिया है. अब वह मंदिर निर्माण की दक्षिणा मांग रही है तो कोई गुनाह नहीं कर रही क्योंकि जनता ने उसे चुना भी इसी मुद्दे पर था.

किसे क्या मिल रहा है

22 जनवरी को देशभर के मंदिरों में पूजापाठ के एवज में लोग जेब और दिल खोल कर दानपत्रों में पैसा डालेंगे, यही सरकार का मकसद भी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग पूजापाठ की मानसिकता के शिकार हों. इसे ही मानसिक गुलामी कहते हैं कि जनता खुद से जुड़े मुद्दे भूल कर सरकार की मंशा के मुताबिक नाचे. पूजापाठ से कुछ मिलता होता तो अब तक मिल चुका होता. यह दुनिया का सब से बड़ा कारोबार है जिस में लोगों को मिलता कुछ नहीं है, उलटे, वे जिंदगीभर कि अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा धर्म के दुकानदारों को बतौर धर्म टैक्स देते रहते हैं.

जो माहौल अभी अयोध्यामय दिख रहा है वह तात्कालिक या 22 जनवरी को ही खत्म हो जाने वाला नहीं है. वह अब सालोंसाल चलेगा. लोग भव्य अयोध्या और राममंदिर देखने सालोंसाल वहा जाएंगे. सरकार अभी लोगों को अयोध्या जाने को जो प्रोत्साहित कर रही है वह किसी प्रोडक्ट के प्रचार जैसा है. इस के बाद उसे कुछ नहीं करना. अयोध्या भी काशी, मथुरा, उज्जैन और तिरुपति जैसा हो जाएगा. तब तक मुमकिन है भाजपा फिर केंद्रीय सत्ता में हो. और फिर वह कोई नया शिगूफा ढूंढ लेगी.

आमलोग धर्म के जनून में डूबे सोच ही नहीं पा रहे हैं कि इस से उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है. जो जेब से जा रहा है वह साफ दिख रहा है. यही नहीं, उसे एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार से जो मिलना चाहिए था, उस से भी वह वंचित हो रहे हैं.

मीडिया बिक चुका है, विपक्ष हताश है, आम लोग अफीम के नशे में झूम रहे हैं और यह माहौल बनाने वाले कह रहे हैं, तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करे.

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