दिल्ली सरकार की बिजली सब्सिडी योजना, जिस के तहत उपभोक्ताओं को इस योजना को चुनना था, एक तरह से विफल हो गई है क्योंकि बजट में 100 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वृद्धि करनी पड़ी है. सरकार ने 2023-24 में बिजली सब्सिडी के लिए 3,250 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं जिन में संशोधित बजट में 100 करोड़ रुपए अतिरिक्त हैं. दिल्ली सरकार की योजना केवल उन लोगों को बिजली सब्सिडी देने की थी जिन्हें वास्तव में इस की आवश्यकता है. जबकि नवंबर में 51 लाख उपभोक्ताओं ने 400 यूनिट तक की खपत के लिए सब्सिडी का लाभ उठाया. ‘औप्ट-इन’ योजना के बावजूद सरकार ने शून्य और आधे बिलों के लिए 3,162 करोड़ रुपए खर्च किए.

दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार राजधानी में करीब 58 लाख घरेलू बिजली उपभोक्ता हैं. नवंबर में 51 लाख लोगों ने 400 यूनिट तक बिजली की खपत पर सब्सिडी का लाभ उठाया. नवंबर में करीब 38 लाख उपभोक्ताओं को 200 यूनिट तक की खपत के लिए कोई राशि नहीं देनी पड़ी जबकि 13 लाख उपभोक्ताओं को 201 से 400 यूनिट तक की खपत के लिए 50 फीसदी की छूट मिली.

दिल्ली सरकार ने 2019-20 में बिजली सब्सिडी पर 2,405.6 करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि 2020-21 में यह राशि बढ़ कर लगभग 2,940 करोड़ रुपए और 2021-22 में 3,090 करोड़ रुपए हो गई. सरकार द्वारा ‘औप्ट-इन’ योजना शुरू करने के कारण कुछ लोग कुछ महीनों तक सब्सिडी का लाभ नहीं उठा पाए. इस के बावजूद सरकार ने शून्य और आधे बिलों के लिए 3,162 करोड़ रुपए खर्च किए. हालांकि शुरुआत में कम लोगों ने सब्सिडी का विकल्प चुना और पहले कुछ महीनों में सब्सिडी वाले बिल पाने वाले लोगों की संख्या कम थी. लेकिन ऐसा लगता है कि अब उन में से अधिकांश लोग इस का दावा करने लगे हैं. इस की वजह कहीं न कहीं लोगों का निम्न जीवन स्तर ही है. लोग बमुश्किल अपना जीवनयापन कर रहे हैं.

बिजली की खपत के मामले में भारत दुनिया के कई देशों के मुकाबले काफी पिछड़ा है. मिसाल के तौर पर देश में प्रतिव्यक्ति बिजली की खपत 917 किलोवाट घंटे है, जबकि चीन, जरमनी और अमेरिका में यह दर क्रमशः 3,298, 7081 और 13,246 किलोवाट घंटे है. इस मामले में वैश्विक औसत 2,600 किलोवाट घंटे है. यानी, यहां यह खपत वैश्विक औसत की एकतिहाई है.

महिलाएं ही सहती हैं ज्यादा तकलीफ

सामान्यतया महिलाएं ही इस ‘कटौती’ का शिकार बनती हैं. ज्यादातर घरों में दिन के समय महिलाएं रह जाती हैं. बच्चे स्कूल चले जाते हैं और पुरुष अपने औफिस. तब महिलाएं कम से कम बिजली का उपयोग करती हैं ताकि बिल ज्यादा न आए. उस दौरान जरूरत होते हुए भी वे एक पंखे से काम चलाती हैं और कोशिश करती हैं कि बिना बिजली की बरबादी किए वे अपने काम निबटाएं. वैसे भी, ज्यादातर घरों में किचन में पंखे होते नहीं हैं, जबकि महिलाओं का ज्यादा समय किचन में ही बीतता है. इसी तरह अगर 2 बल्ब जलाने की जरूरत है तो वे एक जलाएंगी या नहीं भी जलाएंगी. अकसर महिलाएं कोशिश करती हैं कि वे हाथ से कपड़े धो लें ताकि वाशिंग मशीन में बिजली लगने से बच जाए. रेफ्रिजरेटर जरूरी चीज है, सो वह चलता रहता है. बाकी हर संभव जगह महिलाएं कटौती करने की कोशिश करती हैं ताकि बिल ज्यादा न खर्च हो और उन का परिवार सब्सिडी वाले दायरे में रहे. इस तरह कहीं न कहीं इस सब्सिडी के चक्कर में महिलाएं ही तकलीफ सहती हैं.

पोल भी खुली है

हम यह कह सकते हैं कि भले ही 10 साल से बीजेपी यह डंका पीट रही है कि भारत के लोगों की स्थिति निरंतर अच्छी हो रही है, देश प्रगति कर रहा है, गरीबी दूर हो रही है मगर 51 लाख लोगों का सब्सिडी लेना यह स्पष्ट करता है कि भारत में लोग कितनी गरीबी में हैं. लोग किस कदर रुपए बचा रहे हैं ताकि उन का घर चल सके. भले ही तीसरी बड़ी शक्ति के रूप में देश को विकसित करने की गारंटी दी जाती रही है पर धरातल में रह कर देखें तो आज भी सामान्य जनता उसी हालत में या उस से कहीं बदतर हालत में जीने को विवश है. भारत सकल घरेलू उत्पाद के मामले में 5वें स्थान पर है लेकिन प्रतिव्यक्ति आय के मामले में 128वें स्थान पर है.

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