विश्वकप में भारत की पराजय हो गई है इसी बानगी पर हम दृष्टिपात करते हुए बता रहे हैं कि भारत की आम जनता हो या फिर विशेष वर्ग और साथ ही देश का मीडिया एक बार इन्होंने यह दिखा दिया है कि भारत जैसे महान देश की आज दृष्टि कितनी संकुचित हो गई है कि भारत के लोगों को अपने सिवा कुछ दिख ही नहीं देता.

विश्वकप के खुमार पर अभी हम जब पीछे पलट कर अवलोकन करते हैं तो देखते हैं कि किस तरह विश्वकप क्रिकेट के संपूर्ण माहौल को एक तरफ कर दिया गया. कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां क्रिकेट पर चर्चा न हो रही हो और कोई यह मानने को तैयार ही नहीं था कि भारत यह मैच फाइनल में हार जाएगा. यही राज मीडिया फैला रहा था और लोग इस में नाच कर झूम रहे थे यहां तक कि देश की सत्ता भी क्रिकेट को भुनाने में लग गई.

आननफानन में अंतिम मैच को अहमदाबाद के स्टेडियम में शिफ्ट किया गया जो कि सभी जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अपने नाम पर रखवाया है. शायद सत्ता भी यही समझ रही थी कि क्रिकेट का यह फाइनल भारत जीत जाएगा और उस का सारा श्रेय हम लूट ले जाएंगे.

दरअसल, जब हम अपनी सोच को संकुचित कर लेते हैं तो सब से पहले हमारी स्वयं से हार हो जाती है. भारत को विश्व गुरु मानने वाले कितने लोग अपनी पीठ थपथपाते हैं अगर हमें सच्चे अर्थों में विश्व गुरु बनना है और कभी भी छोटी सोच दृष्टि नहीं रखनी चाहिए.

दरअसल, विश्वकप को ले कर के भारत में जैसा माहौल दिखाई दिया मानो भारत ही विजयी होगा. यह सभी कह रहे थे कि खेल भावना की कमी है हमारे देश में. हमें खेलों को खेल की तरह लेना चाहिए. यह सूत्र वाक्य भारत का आम से आम आदमी, खेल प्रेमी, राजनीतिज्ञ और पत्रकार भूल जाते हैं और अंधभक्त बन जाते हैं.

यही आज विश्वकप क्रिकेट के फाइनल मैच में दिखाई दिया जब भारत और आस्ट्रेलिया आमनेसामने आए. यह खेद का विषय है कि यही आजकल राजनीति में होता है. यही धर्म में हो रहा है और यही समाज में है. अगर हम निष्पक्ष भावना के साथ विवेचना करें तो पाते हैं कि यह दृष्टिकोण देश को पीछे ले जाएगा और समाज को पीछे ले जा रहा है.

राजनीति, समाज में भी अंधभक्त

विश्वकप क्रिकेट के परिपेक्ष्य में अगर हम आज देश की सोच दृष्टि और कार्य पद्धति पर विचार करें तो पाते हैं कि विगत कुछ वर्षों से भारत की राजनीति और समाज में एक बड़ा परिवर्तन आया है कि एक बड़ा तबका अंधभक्त की तरह व्यवहार करने लगा है.

दरअसल, यह समझ होनी चाहिए कि अगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं तो उन्हें देश की सेवा करने का मौका मिला है. देश को ऊंचाइयों पर ले जाने का अवसर प्राप्त हुआ है. यह कोई लड़ाई, युद्ध से सत्ता प्राप्ति नहीं है. हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिस के तहत चुनाव होते हैं और देश का बहुमत जिस पार्टी के साथ होता है, उसे सत्ता प्राप्त होती है.

यह एक सामान्य सी प्रक्रिया है जो लगभग 75 वर्षों से चली आ रही है. मगर आज देखा जा रहा है कि देश में नरेंद्र मोदी के हर एक काम को चाहे वह कितना ही गलत क्यों न हो बहुत सारे लोग आंख बंद कर के समर्थन करते हैं. हम ने नीर क्षीर विवेचना की शक्ति होनी चाहिए.

अगर ऐसा नहीं है तो फिर हम गदह पचीसी की उम्र में जी रहे हैं. नरेंद्र मोदी की अंधभक्ति का सब से बड़ा उदाहरण अगर हम यहां बताएं तो वह था करोना कल में ‘थाली और घंटी’ बजवाना. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने जाने किस सोच में देश की जनता से आह्वान कर दिया की थाली और घंटी बजाने से करोना भाग जाएगा और सारे देश ने आंख बंद कर के उन का कहना मानना शुरू कर दिया और घंटियां और तालियां बजने लगीं. लोग फोटो शेयर करने लगे.

आज समय है जब हम यह विवेचना करें कि देश का बड़ा सा बड़ा आदमी भी अगर कोई बात कर रहा है तो हमें उस वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आकलन करना चाहिए सिर्फ कोई हमारा अपना या जिसे हम पसंद करते हैं वह कुछ कह दे तो आंख बंद कर के उस पर चलना अपने साथसाथ देश को भी कमजोर बनाने जैसा है.

आज राजनीति में यह अपने चरम सीमाओं को छू रहा है और देश को पतन की ओर ले जाने का काम कर रहा है जिसे हमें रोकना चाहिए. राजनीति के साथसाथ अगर हम धर्म और समाज को भी देखें तो यहां भी अंधभक्तों की कमी नहीं है. धर्मगुरु अगर कुछ कह देते हैं तो हमें आंख बंद कर के उस का अनुसरण नहीं करना चाहिए बल्कि अपनी आंख कान खुले रख कर के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उसे पर विचार कर के उस का समर्थन करना चाहिए या फिर खुल कर विरोध करना चाहिए ताकि समाज में जागृति पैदा हो.

यही हालत समाज में है. समाज के मुखिया अगर किसी गलत चीज को बढ़ावा दे रहे हैं तो उसे रोकने का दायित्व आप का है भले ही आप अकेले क्यों न हों, अकेली आवाज क्यों न हो और इस के लिए चाहे आप को कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े.

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