किसी सरकारी कार्यालय में कार्यालय अध्यक्ष का आदेश हो और कोई न माने यह तो हो ही नहीं सकता. कार्यालय अध्यक्ष के ई-मेल पर ऊपर से निर्देश मिला कि कार्यालय में गांधी जयंती के दिन स्वच्छता अभियान के चरण को शुरू करते हुए सुबह 10 बजे स्वच्छता शपथ ली जाए और साथ ही कार्यालय में सफाई व श्रमदान का आयोजन भी किया जाए.
कार्यालय अध्यक्ष महोदय जिन्हें कार्यालय का प्रत्येक कर्मचारी बड़े प्यार से ’बड़े साहब‘ कह कर संबोधित करते थे, उन्होंने अपने कार्यालय में तत्काल आदेश जारी किया-
’’कार्यालय के समस्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सूचित किया जाता है कि स्वच्छता अभियान के चरण को आरंभ करते हुए गांधी जयंती के दिन सुबह 10 बजे स्वच्छता शपथ और सफाई व श्रमदान का आयोजन किया जाएगा. इस अवसर पर कार्यालय के समस्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों से अनुरोध किया जाता है कि वे सभी इस आयोजन में शामिल हो कर अपने अंदर स्वच्छता के प्रति स्वच्छ भावना का स्वस्थ समावेश करें.
"स्वच्छता के नव संकल्प को जीवनभर अपने जीवन में उतारें. मैं खुद अपने उच्चाधिकारीपन को छोड़ कर, अपने दिलोदिमाग में स्वच्छता को बैठा कर, कार्यालय के इस सफाई अभियान में आप के साथ सफाई करूंगा. -धन्यवाद"
वैसे उक्त आदेश को देख कर सभी कर्मचारियों ने मन में भारी भाव रखते हुए मन को अधिक दुखी होने से बचाया और चुप रहे. कुछ ने मन ही मन दुखी होते हुए कहा, ’’यार, यह सरकार भी न जब देखो तब हमारी छुट्टियों का सत्यानाश कर देती है. वैसे भी साल में पूरे 12 माह काम लेती है और तनख्वाह देती है 8 माह की. 4 महीने की तनख्वाह तो हम सरकारी लोग यों ही इनकम टैक्स के रूप में सरकार को वापस दे देते हैं.‘’
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