बाल गंगाधर तिलक की गर्जना थी कि, ‘स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा.’ महाराणा प्रताप ने कहा था, ‘गुलामी की हलवापूरी से स्वतंत्रता की घास बेहतर है.’ हमारे संविधान ने हमें कुछ मूलभूत अधिकार दिए हैं- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार आदि.
सरकारी नौकर नौकर नहीं, ‘साहब’ या ‘बाबू साहब’ हो जाता है, मतलब कि उस के पर निकल आते हैं. उस के कुछ ‘नौकरी सिद्ध अधिकार’ पैदा हो जाते हैं. जैसे कि कार्यालय देर से आने परंतु जल्दी छोड़ देने का अधिकार, काम करने के स्थान पर मक्कारी करने का अधिकार, चाय, समोसे, आलूबड़े हेतु कई बार अपनी सीट छोड़ देने का अधिकार आदि.
कुछ लोग भ्रष्टाचार को भी एक अधिकार मान लेते हैं और बिना इस के कोई काम करना हेठी मानते हैं. सरकारी पद पर कब्जा हो जाने के बाद आदमी इतना गिर जाता है कि हर मामले में ऊपर का स्कोप देख कर काम करता है. ऐन काम के मौके पर गायब हो जाने का सिद्ध अधिकार होता है. हां, कर्मचारियों को एक और अधिकार होता है- हड़ताल का, भले ही काम ढेले भर का न हो लेकिन हड़ताल का काम वे कभी भी कर सकते हैं.
पहले ही दिन से काम का नहीं लेकिन हड़ताल का काम वे कभी भी कर सकते हैं. पहले ही दिन से काम का नहीं, हड़ताल का जन्मसिद्ध अधिकार हो जाता है. इस के बिना तो सूनासूना सा लगता है. वैसे वे हड़ताल कर के माहौल की नीरसता को दूर करने का एक जरूरी काम करते हैं.
मूलभूत अधिकार और नौकरीसिद्ध अधिकारों के अलावा कई अन्य जमातों के भी सिद्ध अधिकार होते हैं जो कि उन्हें जन्म से या कि पेशेगत अर्जित हो जाते हैं. जैसे, दूध वाले को दूध में पानी मिलाने का जन्मसिद्ध अधिकार होता है. दूध का कितना अधिक रेट आप देने को तैयार हों या दे रहे हों, उस के पानी मिलाने के रेट में कोई कमी नहीं आने की है.
सुप्रीम कोर्ट जन्मसिद्ध अधिकारों की बातें तो करती है पर इन वास्तविक जन्मसिद्ध अधिकारों की नहीं जो नेताओं, ईडी, पुलिस, सरकारी नौकरों, कौरपोरेटों के पास हैं. आप ने घर में किसी प्लंबर को या कारपैंटर को या मेसन या इसी तरह के अन्य किसी शख्स को काम पर लगाया है तो दोतीन दिन तो वह बहुत अच्छे से काम करता है, फिर चौथे दिन वह आप का काम अधूरा छोड़ कर अचानक गायब हो जाता है. 4 दिनों बाद कारपैंटर मेसन या प्लंबर आएगा हेंहें करते हुए और ऐसा नायाब बहाना मारेगा कि आप 4 दिनों से भरे रहने के बावजूद अपने को उस के सामने खाली नहीं कर पाते हैं.
बात, दरअसल इतनी सी है कि एक जगह का काम एक बार में पूरा न करना उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और इसी अधिकार में ही बीच में ही कहीं दूसरी जगह का काम भी हाथ में ले लेना निहित है फुल बेशर्मी से. वैसे, कोई बहस का बिंदु नहीं है, यह भी उस का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह यहां भी काम समय पर पूरा नहीं करता है और जल्दी ही कोई तीसरा काम हाथ में ले लेता है. यदि कोई चौथा काम भी मिल जाए तो वह फटाक से बीमार हो सकता है या किसी नजदीकी रिश्तेदार की मौत की घोषणा कर, जहां काम बंद कर दिया गया है उन को बहला सकता है.
अब हम और आप इत्ती सी बात ही सम?ा पाए कि वह काम तो आप का करना चाहता है लेकिन उस का यह जन्मसिद्ध अधिकार आड़े आ जाता है. गंगू को तो लगता है कि जन्मसिद्ध अधिकारों का एक डीएनए विकसित हो गया है, ऐसे संस्कारी लोगों में जो उन्हें मजबूर कर देता है काम बीच में छोड़ कर नए काम हाथ में ले लेने हेतु. वह एकसाथ कई लोगों को रुलाता और बहलाता रहता है. इतना तो प्याज के दाम बढ़ने पर वह भी नहीं रुलाती होगी या इतना बहलाव तो अच्छे दिनों की उम्मीद ने भी नहीं किया होगा.
शिक्षक का जन्मसिद्ध अधिकार है ट्यूशन पढ़ाना और इस के लिए वह सारे पापड़ बेलता है. प्रायोगिक परीक्षाओं में अच्छे नंबरों का आश्वासन विद्यार्थी को मिल जाता है, बच्चे के पढ़ाई में कमजोर होने, होमवर्क न करने की बात पेरैंट्स को नमकमिर्च मिला कर बताई जाती है और इस सब का उपचार होता है उस का जन्मसिद्ध अधिकार कि 40 छात्रों की संख्या वाली क्लास से कम से कम 20 बच्चे तो उस के यहां के ट्यूशन के सैशन में आएं ही आएं.
सरकारी डाक्टर का जन्मसिद्ध अधिकार है अस्पताल की व्यवस्था बिगाड़ने में अपना अधिकतम आवश्यक योगदान देना. यहां वह कुछ कर के नहीं, न कर के योगदान देता है, जैसे यदि दांत का डाक्टर है तो वह कहेगा कि डैंटलचेयर नहीं है वह क्या करे. सर्जन है तो कहेगा कि ओटी के औजार पुराने जंग लगे हैं और अपनी निजी प्रैक्टिस को अस्पताल की चरमराई व्यवस्था के सपोर्ट से फलनेफूलने देना.
पत्नी जमात को जन्मसिद्ध अधिकार है, वैसे, उस का जन्म पति के घर से दूसरे घर में होता है. लेकिन उसे यह अधिकार ब्याह के बाद मिल जाता है कि पति को टाइट रखे, उस की खैरखबर ले, उस के व्हाट्सऐप व अन्य ऐपों पर नजर रखे, उस के बैंकबैलेंस की टोह लेती रहे. पत्नी दांपत्य जीवनरूपी विशाल क्षेत्र में पति की हरकतों की निगरानी करने वाली एक तरह की टोही विमान है.
अब डाक्टर की बात आई है तो वकील की तो आएगी ही. कहा भी गया है कि डाक्टर व वकील में केवल इतना सा अंतर है कि एक की गलती जमीन के छह फुट ऊपर लटका देती है और दूसरे की जमीन के 6 फुट नीचे सुला देती है. वकील का जन्मसिद्ध अधिकार होता है मुकदमे को दोतीन पीढि़यों तक खींच कर ले जाना. वे बहुत सामाजिक व्यक्ति होते हैं. पारिवारिक तानेबाने को काफी तवज्जुह देते हैं. हां, वकीलों का नया सिद्ध अधिकार विकसित हो रहा है किसी चर्चित दोषी की पिटाई करने के केस के फैसले के पहले ही अपना फैसला कर लेना.
सुनार को जन्मसिद्ध अधिकार है आप के गहनों, जोकि आप उस के पास सुधरवाने या उजलवाने ले गए हों, में हाथ की सफाई दिखाने का. उस में से कुछ सोना चुरा लेने का. सुनार भाई बुरा नहीं मानेंगे. दीवाली आने वाली है और इतना तो चलता है दाल में नमक के बराबर और यहां तो हर आदमी चोरी में लगा है, नहीं तो, यह कविता कहां से बनती. ‘रोटी के चोर गुनाहगार हो गए और सोने के चोर साहूकार हो गए…’
यदि कोई कवि आप के साथ रेल या बस में यात्रा कर रहा हो तो उस का जन्मसिद्ध अधिकार है कि आप को आप के न चाहने पर भी अपनी कविता की चंद लाइनें तो आप के सामने पेश कर ही दे. सामने क्या, यदि आप पिछवाड़ा कर के भी खड़े हो जाएं तो भी वह कविता तो सुना कर ही मानेगा और बाद में दाद भी आप से ले लेगा. नेताजी का जन्मसिद्ध अधिकार आप भूले जा रहे हैं. यदि भीड़ हो जाए थोड़ी सी भी तो वे देश व जनता की चिंता पर लंबा भाषण देने से चूकते नहीं हैं. जब तक दस बार इशारा न किया जाए, बैठने को तैयार नहीं होते हैं. वे कहते हैं कि हम जनता की सेवा करने आए हैं, बैठ कर सेवा नहीं होती.
भारतीय जनता पार्टी का जन्मसिद्ध अधिकार है- ‘भारत माता की जय’ बुलवाना चाहे उसे यह मालूम हो न हो कि यह माता पैदा कब और कैसे हुई और ‘भारत पिता’ कहां है. उसे यह भी अधिकार है कि 4 राज्यों में शून्य से 4 सीटें सफलता से प्राप्त कर के अपने को तमिलनाडु, केरल, पुद्दुचेरी और पश्चिम बंगाल में छा जाना कह सके.