न्यूयार्क से न्यूजर्सी लगभग डेढ़ घंटे का रास्ता था. सड़क मार्ग 6 लेन का था. भारत की साइबर सिटी बेंगलुरु के समान न्यूजर्सी भी एक तरह साइबर सिटी था. न्यूयार्क काफी महंगा शहर होने के साथसाथ घनी आबादी वाला भी हो गया था. मकानों का किराया काफी ज्यादा था. साथ ही मकान मिलना भी मुश्किल था. इसलिए ज्यादातर नौकरीपेशा आसपास स्थित उपनगरों में रहते थे. सुबह काम पर आते और शाम को वापस लौट जाते थे.

अमेरिका में 100-200 किलोमीटर का रोजाना सफर सामान्य समझा जाता था. मल्टीलेन सड़कों का जाल बिछा होने से कार, जीप और अन्य हलके वाहनों की अधिकतम गति 120 किलोमीटर तक चली जाती थी जिस से 100 किलोमीटर की दूरी 1 घंटे में तय हो जाती थी.

शैलेश और उस की पत्नी गीता काम तो न्यूयार्क में करते थे मगर रिहाइश न्यूजर्सी में थी. शैलेश एक डिपार्र्टमेंटल स्टोर में सेल्समैन था. गीता एक कंपनी में लेखाकार थी. दोनों शाम को अपनीअपनी ड्यूटी समाप्त होने पर कार द्वारा न्यूजर्सी लौट जाते थे.

अमेरिका आते समय दोनों ने आमदनी के बारे में ज्यादा सोचा था, खर्च के बारे में कम. कमाई अगर डौलर में होनी थी तो खर्च भी डौलर में होना था. डौलर कमाओगे तो डौलर ही खर्च करोगे.

भारत में छोटेमोटे कामों के लिए मजदूरी जहां काफी कम थी वहां अमेरिका में काफी ज्यादा थी.

ब्यूटी सैलून या हेयर ड्रेसर के पास जाने पर किसी की आधी तनख्वाह चली जाती थी. धोबी और मोची नहीं मिलते थे. कपड़े या तो खुद धोने पड़ते थे या फिर लांड्री से धुलवाने पड़ते थे. मगर धुलाई का खर्च इतना ज्यादा था कि ज्यादातर लोग कपड़ों को धुलवाने की जगह उन्हें फेंक कर नया खरीदने को तरजीह देते.

आम स्तर के लोगों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा किस्त चुकाने में निकल जाता था. इसलिए ज्यादातर एशियाई या भारतीय दोहरी शिफ्ट में काम कर अपना खर्च पूरा कर पाते थे.

मगर डबल या दोहरी शिफ्ट करने के बाद काम से लौटने पर शाम रात में बदल जाती थी और फिर लंबी दूरी का सफर कर न्यूजर्सी या अन्य उपनगरों में लौटना, वह भी रात के समय, खतरे से खाली नहीं था क्योंकि अमेरिका जहां सब से विकसित देश है वहीं लूटपाट, राहजनी में भी अव्वल है.

शैलेश व गीता की हरसंभव कोशिश यही रहती कि वे सूरज ढलने से पहले ही ड्यूटी से फारिग हो न्यूजर्सी के लिए चल दें मगर कभीकभी न चाहते हुए भी देर हो जाती थी.

कभी डिपार्टमेंटल स्टोर में ग्राहकों की भीड़ बढ़ जाती थी, कभी गीता को ज्यादा खाताबही का काम करना पड़ता था. कभी एक जल्दी फारिग हो जाता तो दूसरे का ओवरटाइम लगा होता था, इसलिए दोनों को ही देर हो जाती थी.

आधी रात को घर लौटने पर भला खाना कौन पकाए? इसलिए सभी डब्बा- बंद खाना ले कर चलते थे. बर्गर, हैमबर्गर, सैंडविच, अन्य सामान्य खानेपीने की चीजें सामान्य थीं. कार या वाहन में सफर में चलतेचलते ही खापी लेते थे.

हाइवे का सफर काफी लंबा होने की वजह से गति का काफी तेज होना आम था. इस से दुर्घटनाएं भी काफी होती थीं. किसी का एक्सीडेंट होने या वाहन खराब हो जाने पर आगेपीछे के वाहन चालकों से मदद की उम्मीद करना फुजूल था.

इतने विकसित देश में मानवीय स्तर पर निर्भयता हद से ज्यादा थी. ‘हमें क्या लेना’ की मानसिकता से भरे सभी एक नजर डाल आगे बढ़ जाते थे.

आज शाम आसमान पर बादल छाए थे. देश का मौसम पहले ही ठंडा था. उस पर बारिश ने ठंडक और बढ़ा दी थी. 2 घंटे का ओवरटाइम करने के बाद जब पतिपत्नी कार पर सवार हुए तो शाम का धुंधलका रात के गहरे अंधेरे में बदलने लगा था. समय कोई ज्यादा नहीं हुआ था. मगर भीगे मौसम और घने बादलों ने अंधेरा और बढ़ा दिया था.

एक शराब की दुकान से ह्विस्की की 4 बोतलें और एक स्नैक स्टोर से डब्बाबंद खाने के डब्बे और हैमबर्गर के पैकेट खरीदने के बाद कार न्यूजर्सी के लिए चल दी.

ठंडे देश में शराब के सेवन की नशे से ज्यादा जरूरत थी. इस को गलत भी नहीं समझा जाता.

न्यूजर्सी जाने के लिए लंबा चक्कर काट कर फिर फ्लाईओवर पार कर के हाइवे पर पहुंचने के लिए तकरीबन 4 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना पड़ता था.

कई उत्साही वाहन चालक लंबा चक्कर काटने से बचने के लिए इन कम ऊंचाई वाले स्थानों से अपना वाहन चढ़ा कर सड़क पार कर मुख्य सड़क पर आ मिलते थे.

रोजाना एक ही रास्ते से चलने वालों को इन छोटे शार्टकटों की और सड़क पर आने वाले स्पीड ब्रेकरों के बारे में जानकारी होती थी और इधरउधर नजर मार कर कि कहीं बीट पुलिस की जीप या मोटरसाइकिल तो आसपास नहीं, इन शार्टकटों को पार कर कभी मुख्य सड़क से छोटी सड़क पर, कभी छोटी सड़क से मुख्य सड़क पर आ मिलते थे.

शैलेश और गीता को भी छोटी सड़क से बड़ी सड़क को मिलाने वाले इन शार्टकट रास्तों की पहचान थी. वे अनेक बार आगेपीछे, दाएंबाएं नजर मार कर कि कोई बीट पुलिस आसपास नहीं, एक झटके में मुख्य सड़क पर पहुंच न्यूजर्सी का रास्ता पकड़ लेते थे.

आज तो वैसे भी घना अंधेरा था. अंधेरे और बरसात के ठंडे मौसम में भला कौन सा पुलिस वाला चौकसी से हाइवे की निगरानी कर रहा होगा? शैलेश ने एक नजर दाएंबाएं फिर आगेपीछे डाली, कहीं बीट पुलिस नजर नहीं आई तो उस ने अपने जानेपहचाने ‘शार्टकट’ से कार छोटी सड़क से मुख्य सड़क पर चढ़ा दी और फिर इत्मीनान से न्यूजर्सी की तरफ दौड़ा दी.

लगभग 7 किलोमीटर आगे आ कर कार की गति धीमी करते हुए शैलेश ने कहा, ‘‘आज ठंड है, थोड़ी थकावट भी है, एक पैग डाल दो.’’

सफर के दौरान खानापीना या सिर्फ पीना आम बात थी. एक डिस्पोजेबल गिलास में ह्विस्की में सोडा मिला कर गीता ने उसे थमा दिया. कार को धीमी गति से चलाता एक हाथ में स्टियरिंग थामे शैलेश ह्विस्की पीने लगा. शराब पीने के बाद उस ने कार की रफ्तार तेज कर दी.

तभी उसे अपने पीछे बीट पुलिस का सायरन सुनाई पड़ा. बैक मिरर में सफेदपीले रंग की मोटरसाइकिल पर गोल टोप पहने पुलिस वाले दिखाई पड़े.

वे दोनों घबरा गए. शैलेश ने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी, पीछा करने वालों ने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी. शैलेश और भी घबरा गया. उस ने रफ्तार और तेज कर दी. पीछे वालों ने भी अपनी स्पीड और बढ़ा दी. चंद मिनटों तक यह सब चलता रहा.

शैलेश समझ गया कि पुलिस से पीछा छुड़ाना उस के लिए आसान नहीं है. सो उस ने अपनी गाड़ी की रफ्तार कम कर दी.

‘‘अब क्या होगा? एक तो हम ने गलत तरीके से हाइवे पार किया, ऊपर से अब आप ने शराब भी पी ली है,’’ गीता ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘शांति रखो, शायद कोई और बात हो.’’

तभी मोटरसाइकिल गुजरती हुई कार को क्रास कर गई. थोड़ा आगे जा कर पुलिस वाले उतर पड़े. उन्होंने रुकने का इशारा किया.

‘‘मिस्टर, आप ने हमें देख कर कार की स्पीड क्यों बढ़ाई?’’ कार के समीप आ कर पुलिस वाले ने कहा.

‘‘मैं ने आप को देख कर नहीं, अपने तौर पर ही स्पीड बढ़ाई थी.’’

‘‘आप कहां जा रहे हो?’’

‘‘न्यूजर्सी.’’

‘‘गाड़ी में क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं, थोड़ा खानेपीने का सामान है.’’

‘‘दिखाओ,’’ पुलिसकर्मी ने कार की तलाशी ली. स्कौच की बोतलें देख उस की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मिस्टर, आप शराब पी कर गाड़ी चला रहे थे. ऐसा करना अपराध है. आप को अपना सांस टेस्ट देना होगा,’’ कहते हुए उस ने शैलेश को बाहर आने का इशारा किया.

सांस में अलकोहल जांचने से शैलेश के शराब पीने की पुष्टि हो गई.

‘‘मिस्टर, आप का चालान करना होगा. शराब पी कर गाड़ी चलाना और ‘रैश ड्राइव’ करना अपराध है. इस जुर्म में आप को 1 हजार डौलर तक जुर्माना और शायद सजा भी हो सकती है.’’

कहते हुए उस ने अपनी जेब से चालान बुक निकाल ली. शैलेश के साथसाथ गीता का चेहरा भी उतर गया. 3-4 किलोमीटर का रास्ता बचाने के चक्कर में वे गलत तरीके से हाइवे पर आए थे और गलतफहमी में कार दौड़ा इस चक्कर में खुद को फंसा लिया था.

‘1 हजार डौलर जुर्माना और शायद सजा भी. जुर्माने की भारी रकम जहां उन का सारा बजट बिगाड़ देगी वहीं सजा कैसे भुगतेंगे?’ यह सोच कर गीता कार से बाहर निकल आई. उस ने विनय भरे स्वर में कहा, ‘‘देखिए सर, सर्दी काफी ज्यादा है इसलिए मेरे पति ने थोड़ी पी ली थी, वैसे ये ड्राइव करते वक्त नहीं पीते.’’

भारत होता तो शायद शैलेश पुलिस वालों से लेदे कर मामला निबटा लेता. मगर यह अमेरिका था, यहां ‘रिश्वत’ और वह भी पुलिस को, कभी सुना भी नहीं था.

अब क्या करें? पुलिसकर्मी चालान बुक के फार्म में कार्बन चढ़ा रहा था. तभी दूसरा पुलिस वाला उस के समीप आया. दोनों एक तरफ जा खुसरपुसर करने लगे.

‘‘देखो मिस्टर, आज सर्दी ज्यादा है, रात भी गहरा रही है. आप का पहला अपराध है, हम वार्निंग दे कर छोड़ रहे हैं.’’

शैलेश और गीता के चेहरे खिल उठे. वे वापस जाने को हुए.

‘‘ठहरो, कार में रखी शराब की 2 बोतलें हमें दे दो, क्या पता आप फिर पीने लगो.’’

सुन कर शैलेश चौंक पड़ा. फिर वह मुसकरा पड़ा. उस ने चुपचाप 2 बोतल स्कौच और एक हैमबर्गर का पैकेट उन को थमा दिया. वे दोनों पुलिस वाले मोटरसाइकिल दौड़ाते वापस चल दिए.

कार में बैठ कर गीता ने कुछ समझते, कुछ न समझते हुए शैलेश की तरफ देखा. शैलेश ने कार स्टार्ट कर आगे बढ़ाई और एक बांह पत्नी के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, पुलिस वाला पुलिस वाला ही होता है, चाहे दिल्ली का हो या न्यूयार्क का.’’

इस पर पति के साथ गीता भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

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