मोहब्बत की आखिरी मंजिल शादी होती है, अधिकतर प्यार करने वालों का यही मानना है. प्यार करने वाले साथसाथ जीना चाहते हैं, लेकिन कभीकभी उन की यह चाहत सपना बन कर रह जाती है. समाज अपने लोगों को अपने नियमकायदे के अनुसार ही चलाना चाहता है. लेकिन प्रेम करने वालों को समाज की कहां परवाह होती है.

आगरा को मोहब्बत की नगरी माना जाता है. इस की वजह यह है कि पूरी दुनिया को मोहब्बत का पैगाम देने वाला ताजमहल यहीं है. हजारों प्रेमी जोड़े हर साल इसे देखने आगरा आते हैं.

राजू और गौरी भी कई सौ किलोमीटर का सफर तय कर के प्रेम की इस इमारत को देखने आए थे. लेकिन उसे देखते ही उन्हें पता नहीं क्या हुआ कि वे आगरा से वापस नहीं जा सके?

कर्नाटक के जिला गदग के कोन्नूर में रहता था हनुमंत का परिवार. राजू हनुमंत का बेटा था. राजू के अलावा हनुमंत की 2 संतानें और थीं.

हनुमंत की टेलरिंग की दुकान थी. लोगों के कपड़े सिल कर वह परिवार को पालपोस रहा था. बेटा राजू जब हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ सका तो उस ने उसे भी अपने टेलरिंग के काम में लगा दिया. 2-3 सालों में काम सीख कर वह अच्छा टेलर बन गया. राजू खुद कमाने लगा तो बनठन कर रहने लगा.

राजू को गली की गौरी बचपन से ही बहुत अच्छी लगती थी. वह उस के घर से थोड़ा दूर रहती थी, इसलिए उस से कभी बातचीत का मौका नहीं मिला. वह उस की दुकान के सामने से ही स्कूल आतीजाती थी, इसलिए उस के स्कूल आतेजाते समय वह उसे देखने के लिए अपनी दुकान से बाहर आ कर खड़ा हो जाता था.

इसी तरह देखतेदेखते वह उसे मन ही मन चाहने लगा. लेकिन जब एक दिन गौरी उस की दुकान पर कपड़े सिलवाने आ गई तो उसे बात करने का भी मौका मिल गया. नाप लेने के बाद राजू ने पूछा, “क्या नाम लिखूं?”

“रघु, रघु लिख दो.” गौरी ने कहा.

“तुम्हारा नाम रघु है?” राजू ने हैरानी से पूछा तो वह खिलखिला कर हंसते हुए बोली, “मैं तुम्हें रघु दिखती हूं?”

“नहीं, यह तो लडक़ों का नाम है. लेकिन तुम्हीं ने तो कहा है कि रघु लिख दो.”

“हां, कहा तो है, रघु मेरे मामा हैं. मेरा नाम तो गौरी है.” उस ने कहा.

“यह तो बहुत अच्छा नाम है.” राजू तारीफ करते हुए बोला.

“मेरी तरह मेरा नाम भी है.” कह कर गौरी फिर खिलखिला कर हंसी.

उस की यह हंसी राजू के दिल में उतरती चली गई. उस ने उसे गौर से देखते हुए कहा, “गौरी, तुम सचमुच बहुत अच्छी हो.”

उस की इस बात पर गौरी मुसकराई और चली गई.

गौरी की निश्छल हंसी का राजू दीवाना सा हो गया. 4 दिनों बाद उस ने गौरी को सिले कपड़ों को ले जाने को कहा था, लेकिन वह अगले दिन से ही उस के आने का इंतजार करने लगा था. जिस अंदाज में राजू ने उस से बातें की थीं, उस से गौरी भी उस का मतलब समझ गई थी, लेकिन यह बात उस ने राजू को महसूस नहीं होने दी थी.

दूसरी तरफ राजू ने सोच लिया था कि जैसे ही गौरी कपड़े लेने आएगी, वह अपने मन की बात उस से कह देगा. चौथे दिन शाम को गौरी राजू की दुकान पर आई तो संयोग से उस समय वह अकेला था. आते ही गौरी ने पूछा, “हमारे कपड़े सिल गए?”

“हां…हां सिल गए,” कह कर राजू ने शोकेस से कपड़े निकाल कर गौरी के सामने रख दिए. गौरी कपड़ों को देखने लगी तो राजू ने मुसकराते हुए पूछा, “अच्छे सिले हैं?”

“हां.” कह कर गौरी ने राजू को सिलाई के पैसे दिए और मुसकराती हुई चली गई. राजू मन की बात उस से कह नहीं पाया.

यह मुलाकात कोई खास नहीं थी. फिर भी गौरी के दिल में राजू की तसवीर उतर गई थी. 15 साल की गौरी का भावुक मन राजू की ओर खिंचता चला जा रहा था. राजू ने जो कहा था, वे बातें उस के दिमाग में घूम रही थीं.

आतेजाते उन की नजरें टकराने लगीं. राजू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह उस से मिलना चाहता था, लेकिन समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मिले. उस के मन में इस बात का भी डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाए.

हिम्मत कर के एक दिन राजू छुट्टी के समय गौरी के कालेज के समाने जा कर खड़ा हो गया. गौरी सहेलियों के साथ कालेज से निकली तो राजू को देख कर उस का दिल तेजी से धडक़ उठा. राजू ने उसे एक तरफ आने का इशारा किया तो वह उस का इशारा समझ गई.

वह अपनी सहेलियों से अलग हो कर राजू के पास आ गई. जैसे ही वह उस के पास आई, राजू ने उसे मोटरसाइकिल पर बैठने का इशारा किया. गौरी बैठ गई तो वह तेजी से चल पड़ा. गौरी ने कहा, “कहां जा रहे हो, मुझे घर जाना है?”

“चली जाना, आज मुझे तुम से कुछ कहना है.” राजू ने कहा तो गौरी ने हंसते हुए कहा, “यही न कि तुम मुझ से प्यार करते हो.”

राजू ने बिना किसी संकोच के कहा, “गौरी, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.”

गौरी मुसकरा कर बोली, “मैं भी तो तुम से प्यार करती हूं.”

राजू ने उसे हैरानी से देखा तो गौरी ने नजरें झुका लीं. यह थी गौरी और राजू के प्यार की शुरुआत. अकसर प्रेम करने वालों के प्यार की शुरुआत कुछ इसी तरह से होती है. लेकिन इस के बाद कभीकभी यही प्यार जीवन के लिए ऐसा नासूर बन जाता है कि जीवन ही लील लेता है.

गौरी के पिता की मौत हो चुकी थी. वह अपनी मां शैला और बड़ी बहन रजनी के साथ अपने मामा रघु के घर रहती थी. पिता की मौत के बाद मामा उन्हें अपने साथ ले आए थे. रजनी बीएससी कर रही थी, जबकि गौरी दसवीं में पढ़ रही थी. इसी नादान उम्र में गौरी को राजू से प्यार हो गया था.

प्यार ऐसी चीज है, जिसे कितना छिपा कर रखा जाए, वह कभी न कभी समाज की नजरों में आ ही जाता है. राजू और गौरी की मुलाकातें मोबाइल के जरिए तय होने लगीं. दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. उन के प्यार को मंजिल मिल पाएगी, इस बात को ले कर उन्हें शक था.

दरअसल, उन के रास्ते में सब से बड़ा रोड़ा था उन की जाति. गौरी कन्नड़ थी और राजू मराठी. दोनों को ही पता था कि समाज की नजरों में जैसे ही उन का प्यार आएगा, तूफान आ जाएगा.

एक दिन गौरी ने राजू से कहा,

“राजू अगर समाज ने हमारे संबंधों को कबूल नहीं किया तो हम क्या करेंगे?”

राजू ने गौरी को भरोसा दिलाया कि दुनिया वाले कुछ भी कहें, वह उस का साथ हरगिज नहीं छोड़ेगा. दुनिया की कोई भी ताकत उसे जुदा नहीं कर सकेगी. दोनों साथ जिएंगे और साथ मरेंगे.

प्यार की दीवानगी राजू के दिलोदिमाग पर छाने लगी तो उस का मन काम से उचट गया. एक दिन उस के पिता ने टोका, “क्या बात है बेटा, आजकल तुम्हारा मन काम में नहीं लग रहा है. कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम दुकान से गायब हो जाते हो. कस्टमर भी परेशान होते हैं. बताओ क्या बात है?”

“कोई बात नहीं है पापा. बस ऐसे ही थोड़ा मन उचट गया था. लेकिन अब आप ङ्क्षचता न करें, मैं काम पर पूरा ध्यान दूंगा.” राजू ने कहा.

इस के बाद वह गौरी से उस समय मिलता, जब दुकानदारी पर कोई असर न पड़ता. उस के मन में एक ही बात घूमा करती थी कि वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के प्यार के बीच जाति न आए. उस का ध्यान फिल्म ‘एकदूजे के लिए’ की तरफ गया, जिस में नायक कमल हासन और नायिका रति अग्निहोत्री अलगअलग जाति के थे. फिल्म का ध्यान आते ही राजू ने सोच लिया कि वह भी उसी तरह अपने प्यार के लिए करेगा.

लेकिन एक दिन गौरी की मां शैला ने उसे फोन पर हंसहंस कर बातें करते देखा तो उसे शक ही नहीं हुआ, बल्कि उसे लगा कि उस की किशोर बेटी इश्क की खतरनाक राह पर चल पड़ी है. शैला परेशान हो उठी. उस ने गौरी से पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया.

कुछ दिनों बाद शैला के दूर के रिश्तेदार नीलकंठ ने उसे बताया कि उस ने गौरी को बाजार में राजू टेलर के साथ देखा है तो पूरी बात उस की समझ में आ गई. इस बार उस ने बेटी से सख्ती से पूछा तो उस ने कहा, “मम्मी, मैं राजू से प्यार करती हूं और वह भी मुझे बहुत चाहता है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.”

“शादी, प्यार यह सब क्या कह रही है तू. तू जानती है तेरी उम्र क्या है? फिर वह हमारी जाति का भी तो नहीं है. इसलिए यह बात तू मन से निकाल दे. तेरी शादी उस से किसी भी तरह नहीं हो सकती.”

“मम्मी, राजू बहुत अच्छा लडक़ा है. तुम भी उस से बात करोगी तो वह तुम्हें भी पसंद आ जाएगा.” गौरी बोली.

छोटी सी लडक़ी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर शैला हैरान रह गई. उस ने सख्ती से कहा, “गौरी, अब बहुत हो चुका. कल से तुम कालेज नहीं जाओगी.”

“क्यों मम्मी?” गौरी ने हैरानी से पूछा.

“कह दिया न, नहीं जाना है तो नहीं जाना है.” कह कर शैला अपने काम में लग गई. शाम को शैला का भाई घर लौटा तो उसे शैला ने सारी बात बता दी.

भांजी के प्यार और शादी की जिद के बारे में सुन कर रघु ङ्क्षचतित हो उठा. लेकिन उस ने बहन से कहा कि वह सब संभाल लेगा. अगले दिन रघु राजू की दुकान पर गया और उसे धमकाते हुए बोला, “तू गौरी का पीछा छोड़ दे, यही तेरे लिए अच्छा रहेगा.”

“मामा, मैं गौरी से प्यार करता हूं.”

“यह प्यारव्यार कुछ नहीं होता. अगर तू नहीं माना तो मुझे दूसरे तरीके से समझाना पड़ेगा.” रघु ने धमकाते हुए कहा.

जिस समय रघु राजू से बात कर रहा था, नीलकंठ ने उसे देख लिया. नीलकंठ ने तो पहले भी गौरी और राजू को बाजार में देखा था. वह भी रघु के पास आ गया. उस ने रघु से कहा, “तुम चिंता मत करो, इसे मैं सभाल लूंगा.”

इस के बाद नीलकंठ ने राजू को धमकाते हुए कहा, “तुम संभल जाओ, वरना तुम्हें जेल की हवा खिला दूंगा.”

जेल का नाम आते ही राजू डर गया. क्योंकि वह नीलकंठ की दबंगई को जानता था. लेकिन गौरी को छोडऩा उस के लिए नामुमकिन था. उस ने उस के साथ जीनेमरने की कसमें जो खाई थीं.

नीलकंठ की दबंगई के कारण अब मोहल्ले में राजू और गौरी के प्यार के चर्चे कुछ ज्यादा ही होने लगे. परिवार वालों को बदनामी का डर सताने लगा. गौरी पर पाबंदियां भी लगने लगीं. पाबंदियों की वजह से वह प्रेमी से नहीं मिल पा रही थी. इस से दोनों बेचैन हो रहे थे. राजू जल्द ही गौरी से कोर्टमैरिज करना चाहता था, लेकिन समस्या यह थी कि अभी गौरी 16 साल की थी.

राजू ने गौरी से शादी करने की बात अपने घर में कही तो एक दिन राजू की मां अन्नपूर्णा और पिता हनुमंत रघु के घर गए. उन्होंने रघु से कहा कि अगर बच्चे एकदूसरे से प्यार करते हैं तो वे क्यों उन का विरोध कर रहे हैं. गौरी को अपने घर की बहू बनाने में उन्हें कोई ऐतराज नहीं है.

“लेकिन मुझे है.” रघु ने कहा, “क्योंकि हम दोनों की जाति अलग है. इसलिए यह संबंध कभी नहीं हो सकता.”

राजू के मांबाप निराश हो कर वापस आ गए. अगले दिन गौरी ने राजू को फोन कर के कहा कि घर वाले उस के लिए रिश्ता तलाश रहे हैं और जल्दी ही उस की शादी कर देना चाहते हैं. जबकि वह उसी से शादी करना चाहती है, क्योंकि वह उस के बिना जी नहीं सकती.

राजू ने उसे विश्वास दिलाया कि कुछ भी हो, कोई उन दोनों को अलग नहीं कर सकता. वह ङ्क्षचता न करे. इस समाज से कहीं दूर जा कर वह उस के साथ अपनी दुनिया बसाएगा.

गौरी को राजू पर पूरा भरोसा था. वह अपने प्यार के साथ इस जालिम समाज से कहीं दूर चली जाना चाहती थी, जहां वह अपने सपनों की दुनिया बसा सके.

एक दिन राजू ने फोन कर के गौरी से कहा कि आगरा में ताजमहल है, जिसे बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की यादगार में बनवाया था. हम दोनों उसी ताज के साए में अपनी दुनिया बसाएंगे.

गौरी उस के साथ चलने को तैयार हो गई. राजू ने गौरी को तैयार रहने को कह कर कहा कि वह कभी भी फोन कर के उसे आगरा चलने को कह सकता है.

राजू जानता था कि जाति का यह अड़ंगा उसे कभी गौरी के साथ अपनी दुनिया बसाने नहीं देगा. गौरी के बालिग होने में अभी 2 साल बाकी थे. इस बीच कुछ भी हो सकता था. उसे सब से ज्यादा डर दबंग नीलकंठ का था, जो उसे किसी केस में फंसा कर जेल भिजवाने की धमकी दे रहा था.

ऐसे में राजू और गौरी योजना बना कर घर से निकले और दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. उस समय राजू की जेब में 50 हजार रुपए थे. वह देश की राजधानी में गौरी के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहता था, ताकि राजधानी की भीड़ में कोई उन्हें ढूंढ़ न पाए.

दिल्ली पहुंच कर दोनों 3 दिनों तक एक होटल में रुके. वे ताज के दीदार को बेताब थे. 10 अक्तूबर की सुबह 11 बजे आगरा के नजदीक ईदगाह रेलवे स्टेशन पर उतरे. वहां से औटो कर के वे होटल ताज पैलेस गए, जहां कमरा नंबर 304 बुक कराया. होटल के रिसैप्शन पर राजू ने गौरी को अपना दोस्त बताया.

आगरा पहुंच कर दोनों बहुत खुश थे. उन की बरसों की तमन्ना पूरी होने वाली थी. ताजमहल को या तो उन्होंने किताबों में पढ़ा था या फिर फिल्मों में देखा था. अब वे अपनी आंखों से उस का दीदार करने वाले थे.

होटल में फ्रैश होने के बाद दोनों एक औटो से ताजमहल देखने गए. ताजमहल परिसर में प्रवेश करने पर उन्हें लगा, जैसे सारा वातावरण प्यार की खुशबू से सराबोर है. ताज के सामने पार्क की हरीभरी मुलायम घास पर बैठ कर उन्होंने खाना खाया. उस के बाद राजू ने पूछा, “गौरी, अब आगे क्या करना है?”

गौरी की मन:स्थिति अजीब सी थी. वह पहली बार घर से बाहर निकली थी. उम्र नादान थी और जीवन का कोई तजुरबा नहीं था. घर से निकल कर पीछे लौटने के सारे दरवाजे वह बंद कर आई थी. उस ने ठंडी सांस ले कर कहा, “मैं क्या जानूं.”

25 साल के राजू की भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. उस के लिए अब एक ओर कुआं था तो दूसरी ओर खाई. घर वापसी का मतलब था जेल जाना. उसे लग रहा था कि नाबालिग लडक़ी को भगाने के जुर्म में उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है. वह जानता था कि समाज उसे कभी माफ नहीं करेगा. इन्हीं सब बातों ने उसे निराश कर दिया.

राजू गौरी का हाथ पकड़ कर बोला, “गौरी हम ने साथ जीनेमरने की कसमें खाई हैं, अगर हम साथ जी नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं?”

गौरी राजू की बात सुन कर हैरान रह गई. करीब एक साल से दोनों मोहब्बत कर रहे थे, गजब का जोश था राजू में. उस की जिंदादिली से प्रभावित हो कर ही वह उस के साथ दुनिया बसाने चली आई थी. लेकिन आज राजू उसे कुछ थका हुआ सा लग रहा था.

राजू ने आगे कहा, “शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत उन की मौत के बाद अमर हो गई थी. शाहजहां ने मुमताज की विरह में जीवन के आखिरी दिन गुजारे थे. लेकिन हम दोनों खुशनसीब हैं कि साथसाथ हैं. अगर साथसाथ मौत को गले लगा लें तो अगले जनम में हम एक साथ रहेंगे.”

गौरी को भी लगा कि इस दुनिया में जीने से अच्छा है कि एकदूसरे की बांहों में मर जाएं. समाज का डर जीने नहीं दे रहा है. दोनों घर से सैकड़ों मील दूर थे. कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उन्होंने एक भयानक फैसला ले लिया.

रात करीब 8 बजे दोनों होटल पहुंचे और औटो वाले से उन्होंने सुबह आने को कहा कि कल कहीं और घूमने चलेंगे. दोनों बाहर से खाना पैक करा कर लाए थे, साथ में एक कोल्डङ्क्षड्रक की बोतल भी थी. इस के बाद उन्होंने कमरा अंदर से बंद किया तो उस रात उस कमरे में क्या हुआ, कोई नहीं जानता.

सुबह औटो वाले ने कमरा नंबर 304 का दरवाजा खटखटाया. लेकिन काफी देर तक अंदर से कोई आवाज नहीं आई. तब उस ने होटल के मैनेजर आशीष को इस बात की जानकारी दी.

आशीष ने तुरंत थाना रकाबगंज पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही पुलिस आ गई और कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. पुलिस अंदर पहुंची तो हैरान रह गई. पलंग पर 2 लाशें पड़ी थीं. टेबल पर पुलिस को कफ सीरप की 2 शीशियां मिलीं, जिन्हें जांच के लिए भेज दिया गया.

दोनों ने कोल्डङ्क्षड्रक में शायद कोई जहरीला पदार्थ मिला कर पी लिया था. 2 गिलासों में कोल्डङ्क्षड्रक भी मिली थी. उन के सामान से एक सुसाइड नोट मिला. गौरी के हाथ पर लिखा था ‘लव यू राजू’.

पुलिस को उन के सामान में हुबली से हजरत निजामुद्दीन तक का ट्रेन टिकट मिला था.  सूचना पा कर सीओ असीम चौधरी और एसपी सिटी आर.के. सिंह भी आ गए थे.

पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला था, वह कन्नड़ भाषा में था. उस सुसाइड नोट में दोनों ने अपनी मौत का जिम्मेदार नीलकंठ को ठहराया था. उस में लिखा था कि उसी के कारण वे घर छोड़ कर आगरा आए थे. उन्होंने नीलकंठ को कड़ी सजा देने की गुजारिश की थी और अपने घर वालों को तंग न करने का अनुरोध किया था.

सुसाइड नोट पर गौरी और राजू के दस्तखत के अलावा 2 मोबाइल नंबर भी लिखे थे. पुलिस को अभी तक यह नहीं मालूम था कि प्रेमी युगल कहां से आया था. पुलिस ने दिए गए मोबाइल नंबरों पर बात की तो पता चला कि वे नंबर कर्नाटक में रहने वाले अमृत के थे. अमृत राजू का मामा था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया राजू पड़ोसी लडक़ी के साथ कहीं भाग गया है. पुलिस ने दोनों के आत्महत्या करने की सूचना अमृत को दे दी.

राजू और गौरी की मौत की सूचना पा कर राजू के घर हाहाकार मच गया. लेकिन गौरी का परिवार खामोश रहा. उस की मां शैला ने कहा कि उन के लिए तो गौरी उसी दिन मर गई थी, जिस दिन घर से भागी थी. गौरी के मामा ने शव लेने से भी इनकार कर दिया.

हनुमंत अपने दूसरे बेटे परशु के साथ आगरा आए. उन्होंने दोनों शवों की शिनाख्त की और उन का दाहसंस्कार आगरा के ताजगंज श्मशान घाट पर कर दिया.

राजू और गौरी साथसाथ जी तो नहीं पाए, पर उन की चिताएं जरूर आसपास लगी थीं. हनुमंत को अपने जवान बेटे के खोने का गम था. वह तो बेटे को खुशियां देना चाहता था, पर जाति की दीवार ने उसे ऐसा गम दिया, जिसे वह पूरी जिंदगी नहीं भुला पाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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