जीवन की तुलना हमेशा बहने वाली नदी से की जाती है. एक नदी अविरल बहती है, समुद्र में लहरें लगातार गतिशील रहती हैं, हवा एक पल के लिए भी नहीं रुकती. मौसम एक निश्चित अवधि पर बदलता है. शीत, ग्रीष्म, शरद, शिशिर, बसंत आदि ऋतुएं एक निश्चित प्रारूप के अनुसार बदलती रहती हैं. सूर्य, चंद्रमा, तारे अपनेअपने निश्चित समय पर उदय और अस्त होते हैं. उसी प्रकार जीवन भी निरंतर आगे बढ़ने का नाम है.

जीवन की निर्बाध गति के मार्ग को समस्याएं अवरुद्ध करती हैं लेकिन यही समस्याएं जीवनरूपी मार्ग को और भी सुदृढ़ करती हैं और आगे चलने को प्रेरित भी करती हैं. कठिनाइयों के पर्वतों से टकरा कर कहीं मनुष्य टूट न जाए, निराशा की अंधकारमय खाई में कहीं वह खो न जाए, समस्याओं के समुद्र में डूब न जाए बल्कि सफलताओं की चोटी पर सदैव चढ़ता रहे, इसी का नाम जीवन है.

जीवनरूपी पथ पर फूल मिले या कांटे, दुख या सुख, आशा या निराशा, जीवन सदैव चलता रहता है. दुविधा के चौराहे पर रुकना या किसी लक्ष्य के अभाव में पीछे मुड़ जाना जीवन का उद्देश्य नहीं है क्योंकि जीवन का एकमात्र उद्देश्य है निरंतर चलना.

मनुष्य के जीवन में कई मोड़ ऐसे भी आते हैं जब वह परेशानियों के सामने टूट जाता है. वह सोचने लगता है कि वह थक चुका है और परेशानियों के सामने घुटने टेक देने चाहिए. लेकिन ऐसे कठिन समय पर मनुष्य को धैर्य के साथ मुश्किलों का डट कर सामना करना चाहिए. जीवन कहता है कि रुकना नहीं है, निरंतर चलते रहना है.

जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है. यह संघर्ष तब तक चलता रहता है जब तक सांसें चलती रहती हैं. संघर्ष से बच कर कहीं भी भागा नहीं जा सकता. आदिम अवस्था में गुफा में निवास करने वाला मनुष्य संघर्ष से ही सभ्यता के ऊंचे दुर्ग पर पहुंच सका. संघर्ष के मार्ग से ही हमें जीत की चोटियां मिलीं तो कहीं पराजय की अथाह गहराइयों में भी आशा का इंद्रधनुष मिला, तो कहीं निराशा के गहरे बादल भी मिले. प्रकृति और प्रतिकूल परिस्थितियों के विरुद्ध युद्ध करते हुए मनुष्य ने समाज और परिवार की नींव डाली, पृथ्वी के आंचल पर अन्न के दाने उगाए, भाषा और अग्नि का आविष्कार किया और आखिरकार मनुष्य सभ्य कहलाया.

मनुष्य अज्ञान और अंधकार में लिपटा हुआ है. वह समस्याओं के जंजाल में जकड़ा हुआ है. वह मोह, भ्रम, आशानिराशा के जाल में फंसा हुआ है. जीवन मनुष्य को सदैव इस से आगे निकलने की प्रेरणा देता है. इसी प्रेरणा के कारण ही वह आगे बढ़े, ऊपर उठे यही जीवन का मूल मंत्र है.

जीवन का सब से महान आदर्श रहा है अंधकार से प्रकाश की ओर चलना, मृत्यु के भय से अमरता की ओर चलना, बुराइयों और असत्य के चक्रव्यूह से निकल कर अच्छाई और सत्य की ओर चलना. इस प्रकार जीवन सदैव आगे बढ़ने का नाम है.

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