जहां भारत के समृद्ध होने और विश्वगुरु बन जाने के गुणगान रोज टीवी और इंटरनैट पर गाए जा रहे हैं वहीं भारत से भाग जाने वालों की गिनती बढ़ भी रही है. अमेरिका अपने देश में काम करने वाले इच्छुकों के एच-1वी वीजा देता है जिसे पाने वाला अमेरिका में नौकरी कर सकता है. जब अपने देश में अंधकार हो और बेरोजगारी बढ़ रही हो तो ही लोग अपने देश से दूसरे देश में चाकरी के लिए भागते हैं जैसे बिहारी या उडिय़ा अपने राज्यों से भाग कर दिल्ली, मुंबई आते हैं.

अमेरिका केवल पढ़ेलिखे, योग्य युवाओं को अपने देश में आने का नयोता देता है जो आम अमेरिकी से कम वेतन पर काम कर सकें. अमेरिकी जानते हैं कि चाहे कल को ये लोग अमेरिकी नागरिक बन जाएं पर तब तक इन की दूसरी पीढ़ी पैदा हो चुकी होगी और ये अपने मूल जन्मस्थली को भूल चुके होंगे. विविधता में विश्वास रखने वाला अमेरिका भारतीयों को पूरा अवसर भी देता है और धर्म व व्यवहार की आजादी भी देता है.

वर्ष 2022 में अमेरिका में आने के इच्छुक आवेदकों को छांट कर जब एप्रूव किया गया तो पता चला कि 72.6 फीसदी आवेदक भारत के हैं. चीनी, जो पहले कभी नंबर-1 पर हुआ करते थे, केवल 17.5 फीसदी रह गए हैं.

भारत का मीडिया इसे अपनी सफलता मान रहा है पर यह भारत की राजनीति की पोलपट्टी खोलता है. हमारे 3,20,791 उच्चशिक्षित मेधावी युवा भारत छोड़ कर जा रहे हैं और हम खुशी के गीत गा रहे हैं! हर उस घर में जहां से एक युवा एच-1 वी वीजा पा चुका है, उल्लास का वातावरण है, अपने घर की मेधावी संतान की सफलता का गुणगान किया जा रहा है. आईएएस में सफलता से भी ज्यादा खुशी एच-1 वी पाने की देखी जा रही है, आखिर ऐसा क्यों?

दरअसल, ये युवा भारत में न कोई वर्तमान देख रहे है, न भविष्य. इन्हें मालूम है कि यह देश फिलहाल रसातल में जाने वाला है, पौराणिक युग में लौट रहा है. युवाओं की छठी इंद्रिय कह रही है कि भारत में वे चाहे कितना परिश्रम कर लें, सफल होंगे, इस में संदेह है. उन्हें अमेरिका पर विश्वास है.

चीनी जो पहले भरभर कर जाते थे, अब कम होते जा रहे है क्योंकि उन्हें चीन पर ज्यादा विश्वास है. लेकिन अमेरिका से आने वाले मजदूरी करने वाले अधिक हैं क्योंकि वहां भारत से भी बुरा हाल है और कितने ही देशों में तानाशाही व धार्मिक अंधविश्वासों ने समाज को खोखला बना डाला है. वहां के निवासी मैक्सिको-अमेरिका बौर्डर पार कर के किसी तरह अमेरिका पहुंच जाते हैं और अनडौक्यूमैंटेड मजदूरों की शक्ल में छोटेमोटे काम करते हैं. फिर भी, अपने देश में रह कर वे जितना कमा लेते, उस से ज्यादा कमा लेते हैं.
लैटिनो अगर अनपढ़, मजदूर हैं तो ये भारतीय युवा 2-3 दशक तक पढ़ेलिखे मजदूर बने रहेंगे. इन में से कुछ ही चमकेंगे जो पोस्टर बौय बन कर बाकी भारतीयों को उकसाएंगे कि गोबर और गाय का देश छोड़ो.
एच-1 वी का आंकड़ा भाजपा सरकार की सफलता पर बड़ा सा काला निशान है, उस की कही जानी वाली ममता सिल्क की कमीज के कितने ही हिस्से फट कर जा चुके हैं. यह विनाशकाल का संकेत हैं. सरकार और समाज ऐसे ही चलते रहे तो कल क्या होगा, इस का अनुमान लगाना कठिन है.

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