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पिछले कुछ समय से गिरिजा रोज सुबह इस पार्क में दौड़ने आती थी और दूर से रुद्रदत्त को कसरत करते हुए देखती थी. उस दिन उस से रहा नहीं गया और गिरिजा ने रुद्रदत्त से परिचय बढ़ा लिया था.

“अभी आप कहां रहती हैं टीचरजी?” रुद्रदत्त ने प्रश्न किया और विशेष भाव से मुसकरा दिए.

“अरे सर, हमारा नाम है, आप हमें टीचरजी की जगह गिरिजा कहेंगे तो हमें ज्यादा अच्छा लगेगा. आप को नहीं लगता कि यह टीचरजी, यह लालाजी बहुत पराए से लगते हैं. वैसे अभी तो मैं एक होटल में ही रहती हूं, कोई अच्छा सा रूम मिल जाए तो वहां शिफ्ट हो कर सैटल हो जाऊं. आप की नजर में है कोई अच्छा कमरा?” गिरिजा ने रुद्रदत्त की आंखों में देखते हुए प्रश्न किया. इस समय गिरिजा के चेहरे पर बहुत भोली मुसकान थी.

“आप ठीक समझो तो मेरे घर… इतना बड़ा घर है और रहने वाला मैं अकेला. आप कोई किराया भी मत देना बस भोजन…आप को रहने का सहारा हो जाएगा और मुझे भोजन का,” रुद्रदत्त ने धीरे से कहा.

“सहारा…ठीक है, तो मैं कल ही अपना सामान ले कर आ जाती हूं। कल संडे है, आराम से रूम सैट हो जाएगा,” गिरिजा ने कुछ सोच कर कहा और दोनों मुसकराते हुए चले गए.

गिरिजा अब रुद्रदत्त के बड़े से घर में आ गई थी. रविवार का दिन था तो आराम से वह अपना सामान जमा सकती थी. ऐसे भी गिरिजा के पास ज्यादा सामान नहीं था. बस कुछ कपड़े थोड़े से बरतन और कुछ किताबें.

“आप यह न समझना कि बस यह एक कमरा ही आप का है, मेरी ओर से यह पूरा घर आप का है। आप जहां चाहें रह सकती हैं, जहां चाहें जो चाहे कर सकती हैं,” रुद्रदत्त ने गिरिजा की किताबें जमाते हुए कहा.

आज रुद्रदत्त भी दुकान नहीं गए थे. पत्नी के जाने के बाद यह पहली बार था जब उन्होंने दुकान समय पर नहीं खोली थी. हालांकि पहले तो यह अकसर हुआ करता था. खासकर उन की शादी के शुरुआती दिनों में. आज न जाने क्यों रुद्रदत्त को वे दिन बहुत याद आ रहे थे.

“आप का कमरा कौन सा है, चलो मुझे दिखाओ,” अचानक किताब रख कर गिरिजा रुद्रदत्त की ओर घूमी और उन की आंखों में देखते हुए गंभीर हो कर बोली.

“वह… उधर, वहां है मेरा कमरा,” रुद्रदत्त ने हकलाते हुए उंगली से इशारा कर के बताया.

“अच्छा…चलो मुझे देखना है,” गिरिजा ने कहा और उस रूम की ओर बढ़ गई.

रुद्रदत्त भी उस के पीछे आने लगे.

कमरे में आ कर कुछ देर इधरउधर देखने के बाद गिरिजा नजर एक तसवीर पर जा कर अटक गई. कमरे में दीवार पर एक बड़े से फ्रेम में किसी महिला की तसवीर लगी थी.

“यह मेरी पत्नी गंगा की तसवीर है. बीच राह में ही मुझे छोङ कर चली गई,” रुद्रदत्त गिरिजा की आंखों का मतलब समझ कर उसे बताते हुए बोले.

“अच्छा, फिर आप ने इन की तसवीर यहां क्यों लगा रखी है? अरे, यदि आप ऐसे इन्हें तसवीर में कैद कर के रखोगे तो किस तरह आप इन्हें अपनी यादों से आजाद कर पाएंगे?” गिरिजा ने गंभीर हो कर कहा और रुद्रदत्त की आंखों में देखने लगी.

रुद्रदत्त ने कुछ नहीं कहा और बस गिरिजा की आंखों में देखने लगे. अचानक गिरिजा ने उन का हाथ पकड़ लिया. यह स्पर्श रुद्रदत्त को डूबते को तिनके का सहारा सा लगा और उन का ध्यान टूट गया.

“अच्छा, अब आप दुकान पर जाइए, यहां मैं सब ठीक कर दूंगी,” गिरिजा ने कहा और रुद्रदत्त बिना कुछ कहे दुकान के लिए निकल गए.

शाम को गिरिजा ने भोजन में कई तरह के पकवान बनाए थे। पत्नी के देहांत के बाद रुद्रदत्त ने पहली बार मन और पेट दोनों की तृप्ति की थी.

“वाह, क्या स्वाद है। जादू है आप के हाथों में गिरिजा. आप को बायोलौजी का नहीं कुकिंग का टीचर होना चाहिए था,” भोजन के बाद रुद्रदत्त ने गिरिजा की तारीफ करते हुए कहा.

“अच्छाजी, चलो कोई बात नहीं, यहां मैं आप को कुकिंग सिखाने का जौब कर लेती हूं लेकिन केवल आप को ही सिखाएंगे,” गिरिजा ने मुसकराते हुए कहा.

“केवल मुझे ही क्यों?” रुद्रदत्त ने गिरिजा की आंखों में देखते हुए पूछा.

“सहारे के लिए लालाजी, अब कभी अगर मैं बीमार पड़ी तो मुझे भी तो 2 रोटी का सहारा चाहिए होगा न, तब आप मेरे लिए खाना बनाना,” गिरिजा ने हंसते हुए कहा लेकिन तभी रुद्रदत्त ने गिरिजा के मुंह पर हाथ रख दिया और धीरे से बोले, “बीमार पड़ें आप के दुश्मन.”

तभी गिरिजा ने रुद्रदत्त के हाथ को चूम लिया और मुसकराते हुए उन की आंखों में देखने लगी.

“क्या देख रही हो ऐसे?” रुद्रदत्त ने उस से नजरें चुरा कर अपने हाथ को देखते हुए कहा.

“क…कुछ नहीं…बस ऐसे ही,” गिरिजा ने कहा और बरतन समेटने लगी.

“अरे गिरिजा, यह हमारे कमरे का हुलिया किस ने बदल दिया? और गंगा की तसवीर कहां है?”कुछ ही देर बाद कमरे से रुद्रदत्त की आवाज आई.

“हम ने किया है और गंगाजी को हम ने उन की तस्वीर की कैद से मुक्त कर दिया। अब आप भी उन्हें अपनी यादों से मुक्त कर दो और इस काम के लिए जो सहारा चाहिए आप को मैं देने के लिए तैयार हूं,” गिरिजा ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा और मुसकराते हुए वापस जाने लगी.

“कैसा सहारा गिरिजा?” रुद्रदत्त ने उस की आंखों की चमक देखते हुए पूछा.

“आती हूं अभी, थोड़ा इंतजार कीजिए,” गिरिजा ने हंस कर कहा और रसोई की ओर बढ़ गई.

रुद्रदत्त सोच रहे थे कि गिरिजा आज न जाने क्या करने वाली है। कुछ देर बाद जब गिरिजा उन के सामने आई तो वे हक्केबक्के से उसे देखते रह गए.

गिरिजा ने बहुत सुंदर लहंगा और चोली पहनी हुई थी. उस ने एक जड़ाऊ चुनरी से अपने सिर को भी ढंका हुआ था. वह आगे आई और रुद्रदत्त के सामने आ कर खड़ी हो गई. रुद्रदत्त तो समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या करें. इन कपड़ों में गिरिजा बिलकुल अप्सरा लग रही थी. उस का रूप, उस का यौवन किसी नवविवाहित नवयौवना को भी फेल कर रहा था. रुद्रदत्त तो पलकें तक झपकाना भूल गए थे.

“ऐसे क्या देख रहे हैं रुद्र, क्या मैं अच्छी नहीं लग रही?” गिरिजा ने धीरे से मुसकराते हुए पूछा.

“बहुत अच्छी लग रही हो गिरिजा मगर यह सब…?” रुद्रदत्त ने फिर उस की ओर देखते हुए पूछा.

“यह सब आप को सहारा देने के लिए ताकि आप गंगाजी को भुला सको और भुला सको उन कुपुत्रों को जिन्हें अपने सुख के आगे अपने पिता की पलकों में रोज सूखते आंसू कभी दिखाई नहीं दिए,” गिरिजा ने कहा और रुद्रदत्त के पास बिस्तर पर बैठ गई.

गिरिजा की सुंदरता रुद्रदत्त को मोहित कर रही थी. उस के शरीर की मादक गंध उन्हें मदहोश कर रही थी. वे सोच नहीं पा रहे थे कि क्या करें, तभी गिरिजा ने उन का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बोली, “जब इस दुनिया में सभी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं, सभी को बस अपनेआप से मतलब है तो हम इस मतलबी दुनिया की परवाह क्यों करें. क्यों नाम आज से हम एकदूसरे का भावनात्मक सहारा बनें? क्यों न हम एकदूसरे की कमी पूरी करें? क्यों न हम सबकुछ भूल कर बस अपने सुख के लिए जीना शुरू करें,” गिरिजा रुद्रदत्त के हाथों को दबा रही थी.

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