यूक्रेन में युद्ध खत्म नहीं हुआ है. हर रोज धमाके हो रहे हैं. यूक्रेनी तो अब इस के आदी होने लगे हैं. रूसियों की बमवर्षा की अब वे फिक्र नहीं करते पर अगर भारतीय स्टूडैंट मैडिकल की पढ़ाई करने के लिए मौत के मुंह में फिर जाने की तैयारी कर रहे हैं तो यह उन की हिम्मत नहीं, भारत देश की मिसमैनेज्ड पढ़ाई का नतीजा है.
जो भी लाखदोलाख भारतीय छात्र यूक्रेन, कजाकिस्तान, रूस, चीन, किर्गिस्तान जैसे देशों में पढऩे जा रहे हैं वे इसलिए जा रहे हैं क्योंकि हमारी सरकार मोटेमोटे वादों के बावजूद देश में पर्याप्त कालेज नहीं खोल पा रही है.
भारत में पढ़ाई, कालेज के आनेजाने का खर्च मिला कर भी, विदेश की पढ़ाई से महंगी है. अच्छी है या नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं है क्योंकि जिस तरह की रिश्वतखोरी और शिक्षा में जिस तरह का कर्मशियलिज्म दिख रहा है उस से नहीं लगता कि भारत के एजूकेशन इंस्टिट्यूशनों में लोहे को सोना बनाया जाता होगा.
असल में जवान होते बच्चे कहीं भी, किसी भी तरह का जोखिम ले कर पढऩे को इच्छुक हैं. इन युवाओं को अगर भारतीय संस्थानों में जगह नहीं मिली तो यह यहां सीटों की कमी के चलते है, स्टूडैंट्स की इच्छा में कमी नहीं. जो बम फूटते यूक्रेन में जा कर अपनी पढ़ाई पूरी करने को तैयार हैं उन्हें न तो निकम्मा कहा जा सकता है न बेवकूफ.
चीन ने भी अब 3 साल बाद वुहान में मैडिकल स्टूडैंट्स को लौटने की इजाजत देनी शुरू कर दी है. ये स्टूडैंट्स जानते हैं कि एकदो मामले होने पर भी पूरे शहर को लौकडाउन में डाल देने की चीनी नीति किसी भी शहर पर कभी भी लागू हो सकती है पर फिर भी चीती दूतावास के आगे लौटने की इच्छा के साथ स्टूडैंट्स की कतारें लगी हैं.
भारत में शिक्षा का जो हाल है वह क्यूईटी परीक्षा के भयंकर ???……??? एक्सपैरिमैंट से साफ है. जो 7-8 लाख स्टूडैंट्स इस एग्जाम में बैठे वे महीनों खो चुके हैं और कई तो बारबार एग्जाम की जेल में जाने को मजबूर हैं. हमारे पौलिसीमेकर्स को घंटोंघडिय़ालों की इतनी चिंता है कि स्टूडैंट्स में उन्हें या तो सैक्स दिखता है या फिर एकलव्य. स्टूडैंट्स आगे चल कर देश को बनाएंगे, इस की चिंता वे नहीं करते क्योंकि अभी तो हर स्टूडैंट के मांबाप नचिकेता के पिता की तरह अपना सबकुछ दान करने में लगे हैं और पौलिसीमेकर्स दान जमा करने में.
देश को एक्सपर्टों की जरूरत है पर देश ढीलेढालों को भी खपा सकता है. जो लोग, आमतौर पर, झाडफ़ूंक में भरोसा करते रहे हैं वे आज भी एक आरएमपी के आगे लाइन लगाए रहते हैं. नेपाल, रूस, चीन, यूक्रेन का मैडिकल ग्रेजुएट उस झाडफूंक वाले या आरएमपी से तो अच्छा ही होगा.