जिन लाखों लोगों के पास रहने लायक छत नहीं है और तिरपाल या पौलिथिन की छत के नीचे दिल्ली की सॢदयां, गॢमयां और बरसात गुजार देते हैं उन के कुछ मील या बस दूर पर एक भव्य 65000 मीटर में 7 लाख वर्गफुट का नया संसद भवन बन गया है. नरेंद्र मोदी को उस नए भवन से इतना लगाव है कि उन्होंने इस का शिलान्यास का पत्थर भी खुद रखा और अब 28 मई को उद्घाटन भी खुद किया. न राष्ट्रपति की दोनों मामलों में जरूरत थी न अध्यक्ष की.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म को शायद इसलिए नहीं बुलाया जा रहा कि वे दलित अछूत हैं. रामनाथ कोंविद को भी शिलान्यास के समय नहीं बुलाया गया था क्योंकि वास्तु के पंडितों के हिसाब से यह भवन बना है. किस के दिमाग में क्या है, यह कौन जाने या जो दिख रहा है वह यह है कि इस संसद भवन में दलितों की पहचान केवल इतनी है कि सारा 20,045 मीट्रिक टर्न लोहा 63,807 मीट्रिक टन सीमेंट और 9,689 मीट्रिक टन दलित मजदूरों ने ही सिर पर ढोह होगी.
देश का संसद भवन आरामदेय हो पर जब देश भर में पंचायत घर सीधेसादे मकानों से चल सकते है तो संसद भवन और उस के आसपास के भवनों पर 2,000 करोड़ तो सीधेसीधे और दूसरे कई हजार करोड़ दूसरे विभागों से खर्च कराना एक महज फिजूलखर्ची है. प्रधानमंत्री गारंटी से कह नहीं सकते कि इस संसद भवन के 10 किलोमीटर कोई गरीब पटरी पर नहीं सो रहा, कोई दुकान तिरपाल के नीचे नहीं है, कोई सडक़ टूटी नहीं, कोई पटरी टेढ़ीमेढ़ी नहीं है. किसी महल्ले में गंदगी का ढेर नहीं है.
देश में अमीरीगरीबी के बीच की बढ़ती लाइन का एक सरकारी अमूल है यह संसद भवन. ऐसा ही नमूना वे 2 बड़े 8000-8000 करोड़ के हवाई जहाज हैं जो प्रधानमंत्री केवल विदेशी दौरों में अब साल में 8-10 बार करते हैं.
1921 में जब पुराना संसद भवन बना था तब देश अंगरेजों का गुलाम था. तब गरीब तो क्या अमीर भी सरकार के रहमोकरम पर जिदा रहते थे. चुङ्क्षनदा कश्मीरों के अलावा नई दिल्ली के इलाकों में इक्कादुक्का भारतीय सेठों के मकान थे. हां तब भी झोंपडिय़ां थीं पर इतनी नहीं क्योंकि अंगरेजों ने नौकरों को भी पक्के मकान बना कर दिए थे जो आज भी संसद भवन के आसपास देखे जा सकते हैं.
आज यह हाल बदल चुका है. अब भाग्य का मामला है. पिछले जन्म के कर्मों के फल का हवाला देकर मुंह बंद कर दिया जाता है. नरेंद्र मोदी के भाग्य में है कि वे गरीब जनता से इक्_ïी की गई टैक्स की रकम पर मौज कर सकें. मंदिर, भाजपा कार्यालय, संघ के दफ्तर बनबा सकें. उन्हें गरीबों की कोई ङ्क्षचता नहीं है, प्रधानमंत्री का बुलडोजर 2 जगह चलता है, एक संसद भवन जैसे विशाल चमचम करते मकान बनाने में ओर दूसरे झुग्गियां तोडऩे में, जिस दिन संसद का उद्घाटन हुआ उसी दिन दिल्ली में ही तुगलकाबाद में बुलडोजरों से गिराए गए मकानों के मामलों से लोग अपनी कीमती चीजें ढूंढ रहे थे.
देश का तीनचौथाई गरीब गरीब रहेगा, यह पक्की गारंटी है पर देश का अमीर कितना अमीर हो जाएगा इस की कोई गारंटी कहीं दे सकता.