महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक का जो खेल देश ने देखा है वह एक तरह से पिछले साल शिव सेना में हुए राजनीतिक खेले का सिर्फ दोहराव भर है. इस के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह सवालिया निशान लग गया है कि विपक्ष को खत्म करने के लिए वे हरहथकंडा अपनाने के लिए तैयार हैं, क्योंकि केंद्र की सत्ता के आशीर्वाद के बगैर अजित पवार उपमुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे.

सब से हैरानी की बात तो यह है कि देश के लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग, देश का सुप्रीम कोर्ट और देश की जनता यह सब नाटक देखते हुए चुप है. सच तो यह है कि महाराष्ट्र में शरद पवार के खिलाफ अजित पवार अगर भाजपा और शिव सेना की सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लिए बगैर बगावत करते और कहते कि चाचाजी, अब आप रिटायर हो जाएं और हमें प्रदेश की सेवा करने का आशीर्वाद दें तो इसे मर्दानगी कहा जा सकता था. मगर जिस तरह दिल्ली में बैठ कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के खेल खिला रहे हैं, उस से न तो भाजपा और खुद इन नेताओं की साफ इमेज बन रही है और न ही इन ‘खिलौनों’ की जो किसी की डोर से बंधे राजनीति के मैदान में डांस कर रहे हैं.

दरअसल, अजित पवार ने जोकुछ महाराष्ट्र में किया है और जिस भाषा में वे बयान दे रहे हैं, उन्हें आज राजनीति का औरंगजेब कहा जाए तो बड़ी बात नहीं होनी चाहिए, जिन्होंने सत्ता के लिए यही सब तो किया था. इतिहास जानने वाले आप को बता सकते हैं कि किस तरह औरंगजेब ने सत्ता पाने के लिए अपने बुजुर्ग पिता शाहजहां को जेल में बंद करवा दिया था. इस के बाद औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को देशद्रोह के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया. दूसरे भाई मुराद को भी जहर दे कर मरवा दिया. उस ने परिवार के कई लोगों की हत्या कर के राजगद्दी हासिल की. आज राजनीति में यह सब मुमकिन नहीं है, मगर उस का एक छोटा सा रूप यदाकदा दिखाई देता है, जो यह बताता है कि हम इनसानों का स्वभाव इतनी जल्दी नहीं बदलता और ‘सत्ता’ के लिए कोई भी कुछ भी कर सकता है.

आज महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की तुलना में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ज्यादा विधायकों का समर्थन होने से संख्या के इस खेल में उन से आगे नजर आ रहे हैं. दोनों गुटों ने अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए अलगअलग बैठकें की हैं.

अजित पवार गुट द्वारा बुलाई गई बैठक में राकांपा के 53 में से 32 विधायक शामिल हुए, जबकि राकांपा प्रमुख द्वारा आयोजित बैठक में 18 विधायक उपस्थित थे. इस तरह साफ है कि जो पटकथा केंद्र में बैठे भाजपा के बड़े नेता लिख रहे हैं, उस के मुताबिक आने वाले समय में शरद पवार को यह दिन भी देखने पड़ सकते हैं, जिस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.

दरअसल, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने निर्वाचन आयोग को सूचित किया है कि उन्हें पार्टी का ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ चुना गया है. अजित पवार ने बिना किसी गुरेज के कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं ने 5 बार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है. यह एक कीर्तिमान है, लेकिन गाड़ी यहीं ठहर गई है, आगे नहीं बढ़ रही. मुझे तहेदिल से ऐसा लगता है कि मुझे राज्य का प्रमुख (मुख्यमंत्री) बनना चाहिए. मेरे पास कुछ चीजें हैं, जिन्हें मैं कार्यान्वित करना चाहता हूं और उस के लिए प्रमुख (मुख्यमंत्री) बनना जरूरी है.’

इस तरह अजित पवार ने बिना किसी झिझक के दिखा दिया है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए सत्ता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं.

दरअसल, यह आज की भारतीय राजनीति का वह चेहरा है, जो हर कहीं मुफीद बैठता है. आज राजनीति में चरित्र, निष्ठा, ईमानदारी ढूंढ़े नहीं मिलते हैं.

मुख्यमंत्री पद की अपनी इच्छा नहीं छिपाने वाले अजित पवार 63 साल की टिप्पणी निश्चित तौर पर वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को भी परेशान करने वाली हो सकती है.

शिंदे की शिवसेनाभाजपा गठबंधन सरकार ने पिछले हफ्ते ही एक साल पूरा किया है, जिस में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस भी उपमुख्यमंत्री हैं. अब आने वाले समय में भाजपा अपना खेल दिखाएगी और मुमकिन है कि चुनाव आतेआते भाजपा का चेहरा मुख्यमंत्री हो और एकनाथ शिंदे हाशिए पर.

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