मौजूदा दौर में लोग पर्यटन के लिए धार्मिक स्थानों की सैर पर जाते हैं पर धार्मिक स्थलों पर अपनी दुकान लगाए बैठे मठाधीश और धर्म के ठेकेदार भक्तों को लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ते. इन धर्मस्थलों पर वैसे भी भीड़भाड़, गंदगी और धक्कामुक्की के चलते पर्यटन का मजा ही किरकिरा हो जाता है. ऐसे में पर्यटन के लिए धार्मिक स्थलों पर जाने के बजाय किसी प्राकृतिक स्थल या ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्त्व के स्थलों पर जा कर पर्यटन का सही आनंद लिया जा सकता है.

पिछले दोतीन सालों में कोविड की वजह से लोगों को पर्यटन स्थलों पर जाने का मौका कम ही मिला है. ऐसे में आने वाले सीजन में बच्चों के साथ गरमी की छुट्टियां बिताने का प्लान आप बना रहे हों तो मध्य प्रदेश के 2 डैस्टीनेशन ऐसे हैं जो खुशियां दोगुनी कर देंगे. मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में भेड़ाघाट और पचमढ़ी इस लिहाज से घूमनेफिरने के लिए बढ़िया स्थल हैं.

मध्य प्रदेश में इटारसी-कटनी रेलखंड पर जबलपुर स्टेशन से महज 15 किलोमीटर दूर एक छोटा सा खूबसूरत नगर है भेड़ाघाट, जिसे मारवल सिटी के नाम से भी जाना जाता है. यहां के सफेद संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियां और उन पर की जाने वाली नक्काशी बरबस ही सब का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है. यह जगह तब और खूबसूरत लगती है जब इन संगमरमर की सफेद चट्टानों पर सूर्य की किरणें और पानी पर छाया पड़ती है. तब, काले और गहरे रंग के ज्वालामुखीय समुद्रों के साथ इन सफेद चट्टानों को देखना सुखद अनुभव होता है.

इतना ही नहीं, चांदनी रात में यह और भी ज्यादा जादुई प्रभाव पैदा करती हैं. चांदनी रात में संगमरमर के रौक पहाड़ों के बीच होने वाली नाव की यात्रा पर्यटकों को आकर्षित करती है. अगर आप मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता और झरनों का आनंद लेना चाहते हैं तो छुट्टियों में भेड़ाघाट जरूर जाएं.

भेड़ाघाट की खूबसूरती फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को अपनी ओर खींचती रही है. यही कारण है कि बौलीबुड की कई हिट फिल्मों की शूटिंग यहां पर हुई है. फिल्म ‘अशोका’ में शाहरूख खान और करीना कपूर पर लोकप्रय गीत ‘रात का नशा अभी…’ नर्मदा नदी की संगमरमर की चट्टानों के बीच फिल्माया गया था.

2016 में हिंदी फिल्म ‘मोहन जोदारो’ में रितिक रोशन के मगरमच्छ से लड़ने के दृश्य भेड़ाघाट में फिल्माए गए हैं. इस से पहले वर्ष 1961 में राजकूपर और पद्मिनी द्वारा प्रदर्शित फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ का सब से हिट गाना भी यहीं शूट किया गया था. हिंदी फिल्म ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ की शूटिंग भी भेड़ाघाट में हुई थी.

 

आंखों को सुकून देता ‘धुआंधार जलप्रपात’

गरमी की तपन में आंखों पर पड़ते पानी के छींटे अंतर्मन को भी शीतल कर देते हैं. कुछ ऐसा ही नजारा भेड़ाघाट के धुआंधार जलप्रपात को देखने पर महसूस होता है. 30-40 फुट की ऊंचाई से नर्मदा नदी जब पूरे वेग से चट्टानों से टकरा कर नीचे गिरती है तो जल की महीन बूंदों की धुंध पूरे वातावरण को नमी से भर देती है. प्रकृति के इस अनुपम दृश्य को सैलानी देखते रह जाते हैं.

भेड़ाघाट पर्यटन के प्रमुख आकर्षण संगममर की चट्टानें, धुआंधार जलप्रपात वाटर पार्क, एलेजर शो, एबोट राइडिंग, बैलेंसिंग रौक और चौंसठ योगिनी मंदिर हैं. धुआंधार जलप्रपात का सुंदर दृश्य भेड़ाघाट के सब से अच्छे पर्यटक आकर्षणों में से एक है. धुएं की तरह प्रतीत होता यह जलप्रपात, इंद्रधनुष के साथ भेड़ाघाट में एक अद्भुत नजारे के रूप में विख्यात है.

पूरे साल देशभर से पर्यटक यहां की खूबसूरती देखने आते रहते हैं. भेड़ाघाट की सैर के साथ जबलपुर का सी वर्ल्ड वाटर पार्क दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताने के लिए अच्छा स्थल है. यहां बड़ों के अलावा बच्चों के लिए अलग से एक पूल है. यहां एडवैंचर वाटर राइड और रोलर कोस्टर की सवारी आप की ट्रिप में जान डाल देगी. यह वाटर पार्क सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है. यहां एंट्री फीस दे कर वाटर पार्क में मौजमस्ती कर पूरा दिन बिताया जा सकता है.

बैलेंसिंग रौक जबलपुर सिटी से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां एक दीर्घगोलाकार शिला आश्चर्यजनक ढंग से एक विशाल चट्टान पर अपने गुरुत्व केंद्र पर टिका हुआ है. यह भूतात्विक कारणों से अस्तित्व में आया. इस में मानव का कोई योगदान नहीं है. इस शिला की खासीयत यह है कि इस की विशालता, भार, कठोरता और सटीक गुरुत्व केंद्र होने के कारण आज भी यह अपनी मूल अवस्था में बना हुआ है. प्रकृतिप्रेमियों के लिए यह अच्छी जगह है. यहां आप 15-20 मिनट का समय बिता कर फोटो भी क्लिक कर सकते हैं.

भेड़ाघाट को विश्व के नक्शे में लाने की पहल के चलते यहां भेड़ाघाट के पंचवटी में लेजर शो शुरू किया गया है. इस लेजर शो के जरिए नर्मदा की गौरव गाथा से दुनिया का परिचय कराया जाता है. विश्व पटल पर संगमरमर की खूबसूरत वादियों की नई खूबियों से लोग परिचित होते हैं. भेड़ाघाट का चैासठ योगिनी मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. कलचूरी और गोंडवाना काल में बने इस प्राचीन मंदिर के कालम और ऊपर की छत विशालकाय पत्थरों से बनाई गई है.

 

बंदर कूदनी और रोपवे का मजा

शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की दूधिया रोशनी में नर्मदा नदी में नौका विहार कर यहां की खूबसूरती को निहारने का आनंद पर्यटन के मजे को दोगुना कर देता है. शांत और शीतल रात में चंद्रमा की शीतलता के नीचे नौका की सवारी करना बहुत सुकून देता है. नदी में नाव की सवारी के मजे लेते हुए इन चट्टानों के अद्भुत गठन को निहारने का मजा ही कुछ अलग है. दिलचस्प बात यह है कि ये चट्टानें हमें अलगअलग आकार में विभिन्न कलाकृतियों के रूप में नजर आती हैं.

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफैसर के के सेठ बताते हैं कि भेड़ाघाट में बंदर कूदनी नर्मदा की सब से गहरी घाटी है. लगभग 600 फुट गहराई वाले जलस्तर के बीच दोनों ओर चट्टानों की उंचाई 48 फुट है. दोनों तरफ की चट्टानों की आपस की दूरी 29 फुट है.

बंदर कूदनी के बारे में तो कहा जाता है कि बरसों पहले ये दोनों पहाड़ियां इतनी पास थीं कि एक ओर से दूसरी ओर बंदर कूद जाते थे, इसीलिए इसे बंदर कूदनी नाम दिया गया था, पर बाद में पानी के कटाव ने इन दोनों पहाड़ियों में काफी फासला कर दिया. बंदर कूदनी के ऊपर से रोप-वे के माध्यम से सैरसपाटे का सही आनंद मिलता है.

नीली, गुलाबी और सफेद संगमरमर की चट्टानों के बीच से बहने वाली नर्मदा घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है. सैकड़ों फुट ऊंची संगमरमरी पहाड़ियों के बीच बहने वाली नर्मदा की गहराई 100 फुट तक है. नौका विहार में लगने वाले एक घंटे के अंतराल में भूलभुलैया, बंदर कूदनी जैसे दर्शनीय स्थल हैं. भेड़ाघाट में पंचवटी घाट से नगर पंचायत द्वारा नौका विहार की व्यवस्था की गई है.

भेड़ाघाट पहुंचने के लिए आप को जबलपुर रेलवे स्टेशन से टैंपो, बस, औटोरिकशा तथा टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं. भेड़ाघाट में ठहरने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के होटल के साथ जबलपुर थ्रीस्टार होटल उपलब्ध है. यात्रा का आनंद लेने मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के नंबरों (0761) 2830424, 2903854 या वैबसाइट mptourism.com पर संपर्क कर होटल में कमरे बुक किए जा सकते हैं.

 

सतपुड़ा की रानी है पचमढ़ी

गरमी की छुट्टियां घूमने के लिए सही समय होता है. कुछ लोग धार्मिक स्थलों की यात्रा कर अपना संचित धन पंडापुजारियों को लुटाते हैं तो कुछ लोग भीषण गरमी से नजात पाने के लिए प्रकृति की गोद में बसे हिल स्टेशनों पर जाने की प्लानिंग करते हैं.

मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले के प्रसिद्ध हिल स्टेशन पचमढ़ी जाते समय इटारसी से रेलमार्ग द्वारा पिपरिया तक का सफर यात्रियों के रोमांच को दोगुना कर देता है. जब नर्मदा की सहायक तवा नदी की अथाह जलराशि पर बने पुल और सतपुड़ा पर्वतमाला के पहाड़ों की सुरंग से रेल गुजरती है तो एक अद्भुत रोमांच से मन प्रफुल्लित हो जाता है.

पिपरिया स्टेशन से सटे हुए बसअड्ढे पर पचमढ़ी जाने वाले यात्रियों को देखते ही बसों और टैक्सियों के एजेंट टूट सा पड़ते हैं. लक्जरी टू बाय टू की बस में सवार हो कर पिपरिया से पचमढ़ी की सड़कों पर बस के दौड़ने के साथ ऊंचेऊंचे अमलतास के पेड़ पीछे दौड़ते नजर आते हैं. पचमढ़ी तक की घुमावदार सड़कों और हरेभरे वनों से आच्छादित 55 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगे डेढ घंटे का वक्त प्रकृति का सौंदर्य निहारते ही गुजर जाता है.

पचमढ़ी में रहने के लिए विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अलावा अन्य होटल भी हैं, जहां रुकने व खाने की उत्तम व्यवस्था है. यहां घूमने के लिए प्रतिदिन जिप्सी सफारी मिलती है. सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान के स्थलों के भ्रमण के लिए फौरेस्ट विभाग द्वारा गाइड की सुविधा भी उपलब्ध रहती है. 3 दिन यहां ठहर कर सभी दर्शनीय स्थलों को आसानी से देखा जा सकता है. यहां के दर्शनीय स्थल देखने के लिए पर्याप्त संख्या में जीप व टैक्सियां तो उपलब्ध होती ही हैं, पर्यटक चाहें तो स्कूटर या मोटरसाइकिल किराए पर ले कर भी सैरसपाटे का मजा ले सकते हैं.

पचमढ़ी दर्शन की शुरुआत उन स्थानों से करें जहां घूमने के लिए फौरेस्ट विभाग की एंट्री नहीं लगती. पचमढ़ी कसबे से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर जटाशंकर गुफा है. यहां तक पहुंचने के लिए कुछ दूर तक पैदल चलना पड़ता है. विशालकाय चट्टानें और उन का अजब का संतुलन यहां देखने मिलता है. जटाशंकर से लौटने पर सीढ़ियां चढ़ते थकान हो जाती है. ऐसे में रास्ते में नीबू पानी की छोटीछोटी दुकानें हमारे गले को तर करती हैं जो इन लोगों की रोजीरोटी का साधन जुटाती हैं.

पचमढ़ी के घुमावदार रास्तों से गुजरते सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों से घिरे सुरम्य और घने जंगलों के बीच कलकल करते झरनों और ऊंचीऊंची पहाड़ियों ने पचमढ़ी का अलौलिक श्रंगार किया है, जिस के कारण ही इसे सतपुड़ा की रानी कहा जाता है.

समुद्र तल से 1,067 मीटर की उंचाई पर सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान की गोद में होने के कारण  यहां के जंगलों में सदाबहार हरियाली घास और हर्रा, जामुन, साज, साल, चीड़, देवदार, सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर, जेकेरेंडा और अन्य छोटेबड़े सघन वृक्षों से आच्छादित वन नजर आते हैं. गलियारों तथा घाटियों के कारण इस की प्राकृतिक सुंदरता को देखने पर स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ी कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता सतपुड़ा के घने जंगल जेहन में उतर आती है-

झाड़ ऊंचे और नीचे

चुप खड़े हैं आंख मींचे

घास चुप है, काश चुप है

मूक साल, पलाश चुप है

बन सके तो धंसों इन में

धंस न पाती हवा जिन में

सतपुड़ा के घने जंगल

नींद में डूबे हुए से

डूबते अनमने जंगल

प्रकृति के अलगअलग अजूबे.

 

पचमढ़ी में प्रकृति का ही बनाया हुआ एक ऐसा अजूबा भी है जिसे देख पर्यटकों को अचरज होता है. इस का नाम है हांडी खोह अर्थात अंधी खोह. यह लगभग 300 फुट गहरी कगार है जिस के दोनों ओर की चट्टानें किसी दीवार के समान सीधी खड़ी हैं. इन दीवारों पर हरीतिमा का साम्राज्य है. रेलिंग के सहारे खड़े सैलानी अपनी आंखों से तो खोह की गहराई का अनुमान नहीं लगा पाते लेकिन यदि वे उस में कोई पत्थर आदि फेंकते हैं तो उस के तलहटी तक पहुंचने की आवाज काफी देर बाद सुनाई पड़ती है.

हांड़ी खोह से आगे बढ़ो तो महादेव गुफा पहुंचते हैं. गुफा में एक लंबा सा कुंड है, गुफा के ऊपरी भाग की चट्टानों से गिरने वाला शीतल खनिज जल गरमी के मौसम में सैलानियों को शांति प्रदान करता है. यहां जाते समय सैलानियों को सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि यहां रहने वाले लंगूर सैलानियों के हाथ से खानेपीने की वस्तुओं के साथ बैग, पर्स, स्कार्फ भी छीन कर ले जाते हैं. इस से कुछ दूर गगुप्त महादेव नाम से संकरी गुफा है जो लगभग 40 फुट लंबी है. इस गुफा में एक बार में एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है. अंदर कुछ खुला सा स्थान है जहां शिवलिंग व गणेश प्रतिमा स्थित हैं. वहां सूर्य का प्रकाश तनिक भी नहीं पहुंचता. अंदर बैटरी इनवर्टर द्वारा लाइट की व्यवस्था की गई है.

 

पचमढ़ी की 5 मढ़ियां

पचमढ़ी में 5 गुफाएं एक ऊंची पहाड़ी पर बनी हुई हैं, जिन्हें महाभारतकालीन माना जाता है. उन में द्रौपदी कोठरी और भीम कोठरी में पत्थरों पर की गई नक्काशी देखते ही बनती है. महाभारत काल में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के लिए बनाई गई 5 गुफाओं के कारण ही इस का नाम पचमढ़ी पड़ा है. कहा जाता है कि पांडवों ने इन्हीं गुफाओं में अपना बसेरा बनाया था. ऊंचाई पर स्थित इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं.

प्राचीन काल में रेतीली चट्टान में अपनेआप बन गईं इन गुफाओं को आज बाहर से ही देखा जा सकता है. आम पर्यटकों द्वारा ऐतिहासिक स्थलों पर नाम लिखने या दीवारों का सौंदर्य बिगाड़ने की प्रवृत्ति के चलते और इन्हें गंदगी से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा इन गुफाओं को संरक्षित स्मारक मान कर लोहे की जालियों से बंद कर दिया गया है.

गुफाओं के सामने एक पार्क है. पांडव गुफाओं के ऊपर से नीचे देखने पर पचमढ़ी के प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी रूप देखने को मिलता है. गुफाओं के ऊपर पाए गए स्तूप के अवशेषों से पता चलता है कि चौथीपांचवीं शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं ने इन का प्रयोग बौद्ध मठ के रूप में भी किया था.

 

क्रीड़ाएं जल की

पचमढ़ी में सतपुड़ा पर्वत की पहाड़ियों से निकले झरने और तालाब भी खूबसूरत लगते हैं. यहां के अप्सरा विहार का नजारा देखने लायक रहता है. पक्की सड़क से करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल कच्चे मार्ग पर चल कर अप्सरा विहार तक पहुंचना पड़ता है. हरेभरे जंगल के पेड़ों के मध्य से सरसराती शीतल हवा पूरे वातावरण में एक अजीब सी सनसनाहट उत्पन्न कर देती है.

यह एक आदर्श पिकनिक स्पौट लगता है जहां पर एक आकर्षक झरना है जिस के आगे छोटा सा तालाब भी है. यह झरना लगभग 15 फुट ऊंचाई से गिरता है. अप्सरा विहार से करीब 15 मिनट का मार्ग तय कर सैलानी रजत प्रपात तक पहुंचते हैं. वही धारा आगे पहुंच कर रजत प्रपात का रूप ले कर 350 फुट नीचे गिरती है. चांदी सी चमकती जलधारा के कारण इसे सिल्वर फौल भी कहते हैं. इस जलप्रपात के नीचे नहाने और फोटोग्राफी का आनंद पर्यटक उठाते हैं.

नगर से 3 किलोमीटर दूरी पर अन्य जलप्रपात भी है जिसे बी फौल कहते हैं. यहां जाने के लिए कुछ पैदल और सीढ़ियां चढ़नीउतरनी पड़ती हैं. बी फौल में 200 फुट ऊंचाई से गिरते जल की ध्वनि कानों को सुकून देती है. पिकनिक आदि के लिए यह सुरक्षित जगह है. यहां झरने में घंटों नहाना गरमी से राहत दिलाने के साथ सफर की थकान भी भगा देता है.

पचमढ़ी के डचेस फौल की खूबसूरती का भी एक अलग ही आलम है. इस प्रपात के सौंदर्य को निहारने के बाद सैलानी जलधारा को पार कर दक्षिणपश्चिम दिशा में बढ़ते हैं, जहां एक पानी का कुंड है जिसे सुंदर कुंड कहते हैं. यह जम्बुद्वीप धारा से बना एक छोटा तालाब है जहां तैराकी का लुत्फ उठाया जा सकता है.

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