हाथ में बंदूक हो, नाक पर गुस्सा हो, दिल में घृणा हो और समाज व परिवार की अवहेलना हो तो कुछ लोग इस तरह पागल हो जाते हैं कि वे निर्दोष, अनजानों को बिना बात के, बिना किसी एजेंडे के मार डालते हैं. पहले यह बीमारी अमेरिका में ही दिख रही थी जहां टूटे घरों से आए युवा हथियारों का भंडार जमा कर के किसी स्कूल, सुपरमार्केट, थिएटर में घुस कर मौजूद लोगों पर बेबात गोलियों की बौछारें कर देते थे और फिर खुद को गोली मार लेते.

अब यह बीमारी एशिया में आ गई है. थाईलैंड की राजधानी बैंकौक से 500 किलोमीटर दूर एक शहर में एक शख्स पान्या खामराप ने बच्चों के एक डे-केयर सैंटर पर अकेले हमला कर दिया और 34 जानें ले लीं जिन में 23 छोटेछोटे बच्चे थे. उस के बाद वह आराम से टहलता हुआ घर पहुंचा और वहां पत्नी व पुत्र को मार कर खुद को भी मार डाला.

ड्रग्स, जुए, नौकरी की कुंठा उस में इतनी भर गई थी कि उस ने अपना गुस्सा इन निहत्थे निर्दोषों पर उतार दिया. ऐसी घटनाएं अमेरिका में होती हैं तो समझा जाता है कि वहां परिवार संस्था टूट चुकी है और टूटे घरों के अकसर बच्चे युवा होने पर अपना गुस्सा कहीं भी निकाल देते हैं, खासतौर पर, इसलिए कि वहां बाजार में हथियार मोबाइलों की तरह मिलते हैं.

थाईलैंड के लोग आमतौर पर घरपरिवार की इज्जत करते हैं और व्यवहार में भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अफ्रीकी देशों के लोगों से वे कम उग्र होते हैं. यह बौद्ध धर्म की संस्कृति का असर है या कुछ और, लेकिन आम थाई व्यक्ति सभ्य और सौम्य होता है. अपवाद होते हैं पर ऐसा अपवाद जिस में छोटे बच्चों के डे-केयर सैंटर में छुरे से बच्चों के गले काट दिए जाएं और बड़ों को गोलियां मार दी जाएं, बहुत कम मिलता है.

अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में हुई इस घटना का सदमा पूरे देश को है पर यह एक ऐसी बीमारी है जिस का कोई इलाज नहीं. कौन व्यक्ति कब व कहां फट पड़े, पता नहीं. भारत में यह धार्मिक झुंड में कभीकभार दिखता है जैसे 2002 के गुजरात के दंगों में दिखा जब सभ्य हिंदू भीड़ों ने मुसलिम घरों को जलाया, औरतों का बलात्कार किया, लोगों को जिंदा जलाया. पर तब कम से कम, गलत ही सही, धार्मिक कारण तो था.

पान्या खामराप के इस हत्याकांड का कोई कारण अभी तक साफ नहीं है. वह कर्ज में डूबा हुआ जरूर था पर इस के लिए लोग आत्महत्या करते हैं, सामूहिक हत्याएं नहीं. धर्म के नाम पर इसलामी आतंकवादी अकसर अपने देशों में या दूसरे देशों में निहत्थों को मारते रहते हैं. पर अमेरिका वाली मानसिक दौरे पडऩे की बीमारी अब एशिया में भी आ गई है जो चिंता की बात है.

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