अपनी 3 बेटियों के साथ खुश थी लेकिन सास सुमित्रा को एक पोता चाहिए था, जिस के चलते उसे चौथी बार भी मां बनने के लिए मजबूर किया गया. क्या शिखा सास की उम्मीदों पर खरी उतर पाने में कामयाब हो सकी? ‘‘डाक्टर से 4 दिनों बाद का अपौइंटमैंट ले लेता हूं,’’ चाय का घूंट भरते हुए अरुण ने कहा तो शिखा का कलेजा धक्क से रह गया. ‘‘एक काम करो, जल्दी से नाश्ता तैयार कर दो.

औफिस जाते समय हो सकेगा तो डाक्टर से मिल कर कल या परसों का ही समय ले लूंगा, क्योंकि यह काम जितनी जल्दी निबट जाए, अच्छा है.’’ ‘‘हां, वह तो ठीक है, अरुण पर एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देख लेते कि कहीं हम…’’ ‘‘अब इस में सोचना क्या है?’’ शिखा की बात को बीच में ही काटते हुए अरुण बोला, ‘‘वैसे भी कितनी मुश्किल से तो एक डाक्टर मिला है और तुम्हें और वक्त चाहिए. यह काम तो उसी दिन हो जाता पर तुम्हें ही वक्त चाहिए था. पता है न, इन सब कामों में रिस्क कितना बढ़ गया है. नौकरी पर तो आफत आएगी ही, जेल भी हो सकती है. लेकिन जो भी हो, यह तो करवाना ही पड़ेगा. मां सही ही कह रही हैं कि जितनी जल्दी इस समस्या से छुटकारा पा लें, अच्छा है.’’ ‘‘पर, अरुण…’’ ‘‘क्या, पर? कहना क्या चाहती हो तुम? पता है न, सिर्फ तुम्हारी मूर्खता के कारण आज 3-3 बेटियां पैदा हो गईं.

लेकिन इस बार कोई मूर्खता नहीं करूंगा मैं क्योंकि मु?ा में अब और बो?ा उठाने की ताकत नहीं है,’’ भुनभुनाते हुए अरुण ने अखबार में आंखें गढ़ा दीं कि तभी ढाई साल की प्यारी सी जूही ‘पापापापा’ कर उस की गोद में चढ़ने की कोशिश करने लगी. लेकिन अरुण ने बड़ी निर्दयता से उसे परे धकेल दिया और उठ कर कमरे में चला गया. अरुण का व्यवहार देख शिखा की आंखों से दो बूंद आंसू टपके और रोती हुई बच्ची को गोद में उठा कर वह भी अरुण के पीछेपीछे कमरे में आ गई. ‘‘अरुण, एक बार सोच कर देखो न, अगर यह बेटा होता तो क्या उस की जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती तुम्हें?’’ यह बोलते शिखा की आवाज भर्रा गई, ‘‘अरुण, यह भी तुम्हारा ही खून है न. और क्या पता, कल को यही बेटी तुम्हारा नाम रोशन करे.

अरुण, एक बार फिर से सोच कर देखो,’’ शिखा गिड़गिड़ाई. लेकिन अरुण यह बोल कर बाथरूम में घुस गया कि ज्यादा भावना में बहने की जरूरत नहीं है और बच्चे को सिर्फ जन्म देने से ही सबकुछ नहीं हो जाता, पालने के लिए पैसे भी चाहिए होते हैं. इसलिए ज्यादा मत सोचो, वरना हम फैसला लेने में कमजोर पड़ जाएंगे. अरुण के तर्कवितर्क के आगे शिखा की एक न चली. सोनी और मोही को स्कूल भेज कर वह जल्दीजल्दी अरुण के लिए नाश्ता बनाने लगी. औफिस जाते समय रोज की तरह प्यारी सी जूही जब पापा का लंचबौक्स ले कर लड़खड़ाते कदमों से ‘पापापापा’ करने लगी तो अरुण को उसे गोद में उठाना ही पड़ा.

लेकिन जैसे ही मां सुमित्रा पर उस की नजर पड़ी, जूही को गोद से उतार कर फिर वही हिदायत दे कर घर से निकल पड़ा. हाथों में कुछ लिए जिस तरह से सुमित्रा ने शिखा को घूर कर देखा, वह सकपका कर रह गई. अरुण को औफिस भेज कर वह जूही को दूध पिला कर सुलाने की कोशिश करने लगी. वह जानती थी, सुमित्रा को मंदिर से आने में घंटाभर तो लगेगा ही. रोज ही ऐसा होता है. मंदिर में पूजा के बाद भजनकीर्तन कर के ही वे घर लौटती हैं. लेकिन यह कैसी पूजा है, जहां देवी की पूजा तो होती है लेकिन वहीं एक अजन्मी बच्ची को, जिसे देवी का रूप कहा गया है, मां के पेट में ही मारने का फरमान सुना दिया गया. हां, सुमित्रा ही नहीं चाहती कि यह बच्ची पैदा हो.

वह इस बच्ची को मां की कोख में ही मार देना चाहती है और अरुण भी अपनी मां का ही साथ दे रहे हैं. शिखा क्या करे? किस से जा कर कहे कि वह अपनी बच्ची को जन्म देना चाहती है. उसे इस दुनिया में लाना चाहती है. शिखा आज तनमन दोनों से कमजोर महसूस कर रही थी. दुख तो उसे इस बात का हो रहा था कि एक मां हो कर भी वह अपनी बच्ची को बचा नहीं पा रही है और सब से ज्यादा दुख उसे इस बात का हो रहा है कि एक बाप हो कर भी कैसे अरुण अपनी ही बेटी को मारने के लिए तत्पर है. क्या जरा भी मोह नहीं है उसे अपनी इस अजन्मी बच्ची से? यही अगर बेटा होता तो इस घर के लोगों की खुशियों का ठिकाना न होता. लेकिन बेटी जान कर कैसे इन सब के मुंह सूज गए.

जल्द से जल्द ये लोग इस बच्ची से छुटकारा पाना चाहते हैं. कैसा समाज है यह, जहां बेटे का स्वागत तो होता है पर बेटियों का नहीं. लेकिन अगर बेटी ही नहीं रहेगी, फिर बहू कहां से आएगी? यह क्यों नहीं सम?ाते लोग? अपने पेट पर हाथ फिराते हुए शिखा फफक कर रो पड़ी. वह अपनी अजन्मी बच्ची को मारना नहीं चाहती थी, बल्कि उसे जन्म देना चाहती थी. लेकिन सम?ा नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी अजन्मी बच्ची को इन हत्यारों से बचाए. शिखा का मन करता कभी यहां से कहीं दूर भाग जाए, ताकि उस की बच्ची को कोई मार न सके. जो बच्चा अभी इस दुनिया में आया भी नहीं है, उसे उस की मां की कोख में ही मारने की तैयारी करने वाला कोई और नहीं, बल्कि इस के पापा और दादी हैं. लेकिन एक मां हो कर कैसे शिखा अपनी ही बच्ची को मरते देख सकती थी? शिखा अपनी 3 बेटियों के साथ बहुत खुश थी.

लेकिन सुमित्रा को ही एक पोता चाहिए था, जिस के लिए उसे चौथी बार मां बनने के लिए मजबूर किया गया. शिखा तो सोनोग्राफी करवाना ही नहीं चाहती थी. लेकिन सुमित्रा के आगे उस की एक न चली. सुमित्रा चाहती थी कि जांच में अगर लड़की निकली तो उसे खराब करवा देंगे, क्योंकि और लड़की नहीं चाहिए थी उसे इस घर में. लड़कियों को पालना घाटे के सौदे की तरह देखती थी सुमित्रा. उस की नजर में तो बेटा ही वंश कहलाता है और बेटा ही अपने मातापिता को मोक्ष दिलाता है. हमेशा वह शिखा को कड़वी गोलियां पिलाती रहती यह कह कर कि बड़ी बहू ने बेटे के रूप में उसे 2-2 रत्न दिए. लेकिन इस करमजली ने सिर्फ बेटियां ही पैदा की हैं. उसे अपने बेटे अरुण के वंश की चिंता हो चली थी. कैसे भी कर के वह शिखा से एक बेटा चाहती थी. लेकिन सुमित्रा को नहीं पता कि बेटा या बेटी होना अपने हाथ की बात नहीं है और एक मां के लिए तो बेटा और बेटी दोनों अपनी ही संतान होती हैं.

लेकिन पता नहीं सुमित्रा को यह बात सम?ा क्यों नहीं आती थी. आएदिन सुमित्रा यह बोल कर शिखा को ताना मारती कि 3-3 बेटियां पैदा कर के नातेरिश्तेदारों में उस ने उस की नाक कटवा दी. जब कोई कहता कि छोटी बहू तो एक बेटा तक पैदा नहीं कर पाई तो सुमित्रा का कलेजा जल उठता था. पोते के लिए आएदिन वह कोई न कोई कर्मकांड कराती ही रहती थी जिस में उस के हजारों रुपए स्वाहा हो जाते थे मगर सुमित्रा को इस बात का कोई गम न था. उसे तो बस कैसे भी कर के एक पोता चाहिए था. इस के लिए वह कई पोतियों का बलिदान करने को भी तैयार थी. जूही के समय जांच कर डाक्टर ने बताया था कि शिखा के पेट में लड़का है. लेकिन पैदा हो गई लड़की तो डाक्टर पर से भी सुमित्रा का विश्वास उठ गया. इसलिए इस बार उस ने अच्छे डाक्टर से जांच करवाने की ठानी थी ताकि फिर कोई भूल न हो सके.

लेकिन शिखा को डर था कि जांच में अगर कहीं लड़की निकली तो ये लोग उस के बच्चे की कब्र उस की मां की कोख में ही बना देंगे. इसलिए वह जांच करवाने से टालमटोल कर रही थी मगर टालमटोल कर के भी क्या हो गया? जांच तो करवानी ही पड़ी और शिखा को जिस बात का डर था, वही हुआ. बेटी का नाम सुनते ही सुमित्रा के कलेजे पर सांप लोट गया. अरुण का भी एकदम से मुंह लटक गया. सुमित्रा तो उसी वक्त यह बच्चा गिरवा देना चाहती थी मगर डाक्टर ने मना कर दिया कि वह यह सब काम नहीं करता. अब रूल इतना कड़ा बन गया है कि पता चलने पर डाक्टर की डिग्री तो जब्त होती ही है, जेल की भी हवा खानी पड़ती है. लेकिन चोरीछिपे कहींकहीं अब भी लिंग परीक्षण तो होता ही है. इधर, अरुण ऐसे किसी डाक्टर की खोज में था जो इस मुसीबत से छुटकारा दिला सके और उधर शिखा यह सोच कर बस रोती रहती कि कैसे भी कर के अरुण और सुमित्रा इस बच्चे को न मारें, विचार बदल लें अपना.

दुख तो इस बात का हो रहा था कि एक मां हो कर भी वह अपने बच्चे को बचा नहीं पा रही थी. पेट पर हाथ रख वह अपने अजन्मे बच्चे से माफी मांगती और कहती कि इस में उस की कोई गलती नहीं है. वह तो चाहती है कि वह इस दुनिया में आए. लेकिन उस के पापा और दादी ऐसा नहीं चाहते. आधी रात में ही वह हड़बड़ा कर उठ बैठती और जोरजोर से हांफने लगती. फिर अपने पेट पर हाथ फिराते हुए कलप उठती. नींद में जैसे उस के पेट से आवाज आती, ‘मां, मु?ो मत मारो. मु?ो भी इस दुनिया में आने दो न, मां. बेटी हूं तो क्या हुआ, बो?ा नहीं बनूंगी, हाथ बंटाऊंगी. गर्व से आप का सिर ऊपर उठवाऊंगी. बेटी हूं इस धरा की. इस धरा पर तो आने दो मां,’ कभी आवाज आती, ‘तेरे प्यारदुलार की छाया मैं भी पाना चाहती हूं, मां. चहकचहक कर चिडि़या सी मैं भी उड़ना चाहती हूं, मां.

महकमहक कर फूलों सी मैं भी खिलना चाहती हूं, मां. मां, पता है, मु?ो पापा और दादी नहीं चाहते कि मैं इस दुनिया में आऊं. लेकिन तुम तो मेरी मां हो न, फिर क्यों नहीं बचा लेतीं मु?ो? मु?ो कहीं अपनी कोख में ही छिपा लो न, मां. बोलो न मां, क्या तुम भी नहीं चाहतीं कि मैं इस दुनिया में आऊं?’ शिखा अकबका कर नींद से उठ कर जाग बैठती और अपना पेट पकड़ कर सिसकती हुई कहती, ‘नहीं, मैं तुम्हें नहीं मारना चाहती. लेकिन तुम्हारी दादी और पापा तुम्हें इस दुनिया में नहीं आने देना चाहते हैं. सो मैं क्या करूं? प्लीज, मु?ो माफ कर दो, मेरी बच्ची,’ शिखा चीत्कार करती कि कोई उस के बच्चे को बचा ले. आखिर कोई तो कहे, शिखा यह बच्चा नहीं गिरवाएगी, जन्म देगी इसे, क्योंकि इस का भी अधिकार है इस दुनिया में आने का. लेकिन ऐसा कोई न था इस घर में जो इस अनहोनी को रोक सके. वह चाहती तो अपने पति और सास के खिलाफ भ्रूण हत्या के मामले में केस कर सकती थी पर फिर अपनी 3 मासूम बच्चियों का खयाल कर चुप रह जाती. औरत यहीं पर तो कमजोर पड़ जाती है और जिस का फायदा पुरुष उठाते हैं. लेकिन यहां तो एक औरत ही औरत की दुश्मन बनी बैठी थी.

एक औरत ही नहीं चाहती थी कि दूसरी औरत इस दुनिया में आए. भगवान और पूजापाठ में अटूट विश्वास रखने वाली सुमित्रा से किसी बाबा ने कहा था कि महापूजा करवाने से जरूर शिखा को इस बार लड़का होगा. उस बाबा की बात मान कर पूजा पर हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी जब शिखा के पेट में लड़की होने की बात पता चली तो बाबा बोले कि जरूर उस पूजा में कोई चूक रह गई होगी, जिस के चलते शिखा के पेट में फिर से लड़की आ गई. बेटे के लिए शिखा ने वह सब किया, जोजो सुमित्रा उस से करवाती गई. इस के बावजूद उस के पेट में लड़की आ गई तो क्या करे वह? अंधविश्वास का ऐसा चश्मा चढ़ा था सुमित्रा की आंखों पर कि एक भी काम वह बाबा से पूछे बिना न करती थी. अभी पिछले महीने ही ग्रहशांति की पूजा के नाम पर उस बाबा ने सुमित्रा से हजारों रुपए ऐंठ लिए. लेकिन यही सुमित्रा जरूरतमंदों या किसी गरीब, असहाय इंसान की एक पैसे से भी मदद कर दे, आज तक ऐसा नहीं हुआ कभी. दया नाम की चीज ही नहीं है सुमित्रा के दिल में. तीनों पोतियां तो उसे फूटी आंख नहीं सुहातीं.

जब देखो, उन्हें ?िड़कती रहती है. बातबात पर तानाउलाहना तो मामूली बात है. लेकिन जब नातेरिश्तेदारों के सामने भी सुमित्रा शिखा और उस की बेटियों का अपमान करती है तो उस का कलेजा दुख जाता है. औफिस से आते ही अरुण ने बताया कि डाक्टर ने कल का समय दिया है और इस के लिए उस ने छुट्टी भी ले ली है. शिखा ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया और किचन में चली गई. सम?ा नहीं आ रहा था उसे कि क्या करे. कैसे कहे अरुण से कि वह अपनी बच्ची को नहीं मारना चाहती, जन्म देना चाहती है इसे, क्योंकि इस का भी हक है इस दुनिया में आने का. लेकिन जानती है कि इस बात से घर में कुहराम मच जाएगा और अरुण तो वही करेगा जो उस की मां चाहती हैं. इसलिए वह आंसू पी कर रह गई. रात में जब अरुण अपने लैपटौप पर व्यस्त था तब बड़ी हिम्मत जुटा कर शिखा बोली, ‘‘अरुण, सुनो, मत करो न ऐसा. गलती क्या है इस की. यही न कि यह एक लड़की है. लेकिन आज लड़कियां किसी भी बात में कम हैं क्या? सानिया मिर्जा, ?ालन गोस्वामी, ये सब बेटियां ही तो हैं. क्या इन्होंने अपने मातापिता का नाम ऊंचा नहीं किया? और अपने ही घर में खुद नीता दीदी को देखो न.

आज वे इतने बड़े बैंक में मैनेजर हैं. बैंक की तरफ से वे विदेश भी जा चुकी हैं. गरीब परिवारों की बेटियों को भी देख लो न. जब परिवार पर जिम्मेदारियों का बो?ा पड़ा तो बेटियां औटोरिकशा और ट्रेन तक चलाने लगीं. आज की बेटियां तो चांद तक पहुंच चुकी हैं, हवाईजहाज उड़ाने लगी हैं.’’ शिखा की बात पर कोई ध्यान न दे कर अरुण वैसे ही लैपटौप चलाता रहा. ‘‘अरुण, देखना, हमारी बेटियां भी एक दिन हमारा नाम जरूर रोशन करेंगी, यह मेरा विश्वास है. अरुण, देखो, छुओ मेरे पेट को कि क्या तुम्हारे दिल में अपनी बच्ची के लिए दर्द नहीं हो रहा? फिर कैसे तुम इसे मरते देख सकते हो? प्लीज, अपना फैसला बदल दो. बेटियां तो आने वाला सुनहरा कल होती हैं. हमें ही देख लो न, हम 4 बहनें ही हैं तो क्या हम अपने मम्मीपापा का ध्यान नहीं रखते? रखते हैं न? बारीबारी से हम उन की जिम्मेदारी बड़ी शिद्दत से निभाते आए हैं. बेटियां बो?ा नहीं होती हैं. अरुण, एक बार मेरी बात पर विचार कर के देखो, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है.’’

अरुण लैपटौप शटडाउन करते हुए बोला कि वह अपनी मां की बात से बाहर नहीं जा सकता है, सो प्लीज, वही बातें बारबार दोहरा कर उस का मूड न खराब करो. यह बात तो तय थी कि यह सब सुमित्रा के कहने पर ही हो रहा था. वही नहीं चाहती थी कि शिखा बेटी पैदा करे. वही चाह रही थी कि जितनी जल्दी हो, इस बच्चे को गिरवा दिया जाए. हां, माना कि अरुण को भी बेटे की चाह है पर अपनी बच्ची को मारना उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था. अरुण ने आज तक अपनी मां की एक भी बात नहीं काटी. उन्होंने जो कहा, किया. यहां तक कि शिखा से शादी भी उस ने अपनी मां के कहने पर ही की थी, वरना तो उस की पसंद कोई और थी तो आज वह अपनी मां के फैसले से अलग कैसे जा सकता था. समाज और लोग यह क्यों नहीं सम?ाते कि प्रकृति ने बेटियों को भी बेटे के बराबर जीने का हक दिया है.

उसे भी इस हवा में सांस लेने का उतना ही अधिकार है जितना लड़कों को और मां के पेट में बेटों की तरह बेटियां भी तो 9 महीने रहती हैं. फिर वह इस दुनिया में क्यों नहीं आ सकती? कोई तो जवाब दे? अपने मन में ही सोच शिखा बिलख पड़ी पर कौन था उस का रोना सुनने वाला. कोई तो नहीं. वह पति जो उस के साथ सात वचनों में बंधा था, वह भी नहीं. कहते हैं, ‘प्रकृति और पुरुष मिल कर सृष्टि का संचालन करते हैं. लेकिन, जब प्रकृति ही नहीं बचेगी, फिर सृष्टि का संचालन क्या संभव है?’ अपने मन में ही सोच शिखा ने अरुण की तरफ देखा, जो चैन की नींद सो रहा था. लेकिन शिखा को नींद कैसे आ सकती थी भला. घड़ी में देखा तो सुबह के 4 बज रहे थे. शिखा वहां से उठ कर बेटियों के कमरे में जाने ही लगी कि देखा सुमित्रा अपने कमरे में ध्यान लगा कर बैठी थी.

वह रोज सुबहसवेरे उठ कर ध्यान लगा कर बैठ जाती है. फिर स्नान आदि से निवृत्त हो कर पूजापाठ, मंदिर आदि के बाद ही नाश्ता करती है. मन हुआ शिखा का कि वहां जा कर उन के पैर पकड़ ले और कहे, बख्श दे उन की बच्ची को. इस के लिए जीवनभर वह सुमित्रा की गुलाम बन कर रहेगी परंतु वह अपनी सास के स्वभाव को अच्छे से जानती थी. बहुत ही कड़क मिजाज की औरत है, जो कह दिया सो कह दिया. उन की बात पत्थर की लकीर होती है. कल को अगर सुमित्रा कह दे कि अरुण अपनी पत्नी शिखा को छोड़ दे तो वह भी करने को तैयार हो जाएगा अरुण. तभी तो सुमित्रा कहते नहीं थकती कि अरुण उस का श्रवण बेटा है. शिखा को लग रहा था कि समय बस यहीं ठहर जाए. अपने पेट पर हाथ रख वह रो पड़ती. सोच कर ही वह सिहर उठती कि आज उस का बच्चा हमेशा के लिए उस से बिछुड़ जाएगा. फोन की आवाज से शिखा चौंक उठी. अरुण का फोन बज रहा है. उसे जगा कर शिखा खुद किचन में चली गई. सुमित्रा को चाय दे कर वह अरुण के लिए चाय ले कर कमरे में पहुंची तो देखा कि वह बाथरूम में था. आश्चर्य हुआ कि बिना चाय पिए अरुण की तो नींद ही नहीं खुलती कभी तो आज कैसे?’ शायद बेटी के मरने की खुशी में नींद खुल गई होगी,’ सोच कर ही शिखा का मन कड़वा हो गया. वह कंबल समेट ही रही थी कि अरुण कहने लगा कि जल्दी से उस के कपड़े जमा दे. अभी आधे घंटे में निकलना है. ‘‘पर कहां?’’ शिखा ने अचकचा कर पूछा, ‘‘आज तो आप ने छुट्टी ले रखी है और हमें अस्पताल जाना था एबौर्शन के लिए?’’ ‘‘वह सब छोड़ो अभी,’’ शिखा की बात को बीच में ही काटते हुए अरुण बोला, ‘‘मु?ो अभी दिल्ली के लिए रवाना होना पड़ेगा. कल बहुत बड़े क्लाइंट के साथ अर्जैंट मीटिंग है.

जानती हो शिखा, अगर यह मीटिंग सक्सैस रही तो इस बार मेरा प्रमोशन होना तय है और सब से बड़ी बात कि बौस ने इस काम के लिए मु?ो चुना है, यह बहुत बड़ी बात है,’’ अरुण काफी खुश लग रहे थे. उन की खुशी उन के चेहरे से साफ ?ालक रही थी. लेकिन जातेजाते अस्पताल का काम सुमित्रा को थमा गए. शिखा यह सोच कर बस रोए जा रही थी कि जिस बच्ची को उस ने अपनी कोख में 3 महीने संभाल कर रखा, आज उसे उस के शरीर से नोच कर फेंक दिया जाएगा. जूही को गोद में लिए शिखा अस्पताल जाने के लिए घर से निकल ही रही थी कि सुमित्रा का फोन घनघना उठा. जाने उधर से किस ने क्या कहा कि फोन सुमित्रा के हाथ से छूट कर नीचे गिर पड़ा और वह खुद भी लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ी. ‘‘मम्मीजी, मम्मीजी… क्या हुआ आप को?’’ शिखा घबरा कर सुमित्रा को उठाने लगी. लेकिन सुमित्रा, ‘वो…निशा’ बोल कर बेहोश हो गई. शिखा ने जब फोन उठाया तो सुन कर वह भी सन्न रह गई. अस्पताल से फोन था. निशा का ऐक्सिडैंट हो गया, लेकिन अब शिखा क्या करेगी, क्योंकि अरुण तो मीटिंग में है और उस ने अपना फोन भी म्यूट कर के रखा हुआ था. तभी उसे पड़ोस के राहुल का खयाल आया, जो शिखा को अपनी बहन की तरह मानता है. सारी बातें जानने के बाद वह सुमित्रा के साथ मुंबई जाने को तैयार हो गया और जो सब से पहली फ्लाइट मिली, उस में टिकट करा कर वे तुरंत मुंबई के लिए रवाना हो गए.

शिखा इसलिए नहीं गई क्योंकि सोनी और मोही अभी स्कूल से आई नहीं थीं. अरुण को जब निशा के ऐक्सिडैंट का पता चला तो वह भी वहीं से फ्लाइट पकड़ कर मुंबई पहुंच गया. शिखा भी अपने भाई को बुला कर तीनों बच्चों को ले कर मुंबई पहुंच गई, क्योंकि यहां उस का जी घबरा रहा था. मन में अजीब बुरेबुरे खयाल आ रहे थे. दरअसल निशा अपनी गाड़ी से जब घर आ रही थी, तभी पीछे से एक ट्रक ने उसे जोर का धक्का दे दिया और गाड़ी दूर जा कर पलट गई. ट्रक वाला तो वहां से नौदो ग्यारह हो गया लेकिन आसपास के लोगों ने तुरंत पुलिस को फोन कर निशा को गाड़ी से बाहर निकालने की कोशिश की. खून से लथपथ निशा को जल्दी अस्पताल पहुंचाया गया, तब जा कर उस का इलाज शुरू हुआ. वरना तो शायद वह बच भी न पाती. पता चला कि ट्रक ड्राइवर शराब पी कर गाड़ी चला रहा था. अकसर हमें सुनने को मिलता रहता है कि शराब पी कर गाड़ी चालक ने 4 लोगों को कुचल डाला.

फूड स्टाल पर खाना खा रहे लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी. जाने क्यों लोग ऐसी हरकतें करते हैं? खुद की जान तो जोखिम में डालते ही हैं, दूसरों की जिंदगी भी तबाह कर देते हैं. खैर, शुक्र था कि निशा की जान बच गई. लेकिन अभी उसे एकडेढ़ महीना और अस्पताल में रहना होगा. डाक्टर का कहना था कि निशा की कमर और हाथपैरों की हड्डी के जुड़ने में वक्त लगेगा. अपनी बेटी की हालत देख अभी भी सुमित्रा के आंसू रुक नहीं रहे थे. बारबार उस के दिमाग में यही बात चल रही थी कि अगर निशा को कुछ हो जाता तो, तो वह भी मर जाती. ‘‘मां, अब दीदी ठीक हैं. आप चिंता मत करो और डाक्टर ने कहा है कि दीदी अब खतरे से बाहर हैं. फिर आप क्यों रो रही हो? मां, अब मु?ो निकलना होगा, क्योंकि शिखा को डाक्टर के पास भी तो ले कर जाना है न? अभी थोड़ी देर पहले डाक्टर का फोन आया था, कह रहे थे कि इस काम में जितनी ज्यादा देर होगी, रिस्क उतना ही ज्यादा बढ़ेगा. इसलिए जा कर यह काम निबटा ही लेता हूं,’’ अरुण बोला. आज सुमित्रा भली प्रकार से शिखा का दर्द महसूस कर पा रही थी.

अपने बच्चे के लिए मां की तड़प वह बहुत गहराई से महसूस कर रही थी. शिखा भले ही चुप थी, मगर उस के दिल में क्या चल रहा है, सुमित्रा से छिपा न रहा. यही कि आज जब अपनी बेटी की जान पर बन आई तो किस कदर सुमित्रा छटपटा उठी. फिर यही उस ने शिखा के लिए क्यों नहीं महसूस किया? मां और बच्चे का रिश्ता तो हर रिश्ते से बड़ा होता है, क्योंकि उन का रिश्ता 9 महीने ज्यादा होता है. एक मां अपने बच्चे को अपने खून से सींचती है, फिर कैसे एक मां उस के बहते खून को देख सकती है भला. अपनी करनी की सोच कर सुमित्रा का रोमरोम सिहर उठा कि कैसे वह एक मां की गोद उजाड़ने चली थी और होती कौन है वह ऐसा करने वाली? आज जब उस की बेटी पर मुसीबत आ पड़ी, तब उसे एहसास हुआ कि वह शिखा के साथ कितना बड़ा अन्याय करने जा रही थी. ‘यह मैं क्या करने जा रही थी? प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने जा रही थी. एक मां से उस के बच्चे को छीनने का पाप करने जा रही थी? ओह, कितनी बड़ी पापिन हूं मैं? नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.

मेरी पोती इस दुनिया में जरूर आएगी,’ अपने मन में ही सोच सुमित्रा उठ खड़ी हुई. ‘‘रुको अरुण, अब कोई एबौर्शन नहीं होगा, बल्कि मेरी पोती इस दुनिया में आएगी,’’ यह सुन अरुण हैरान हो गया कि मां सुमित्रा यह क्या बोल रही हैं? कल तक तो यही पीछे पड़ी थीं कि जितनी जल्दी हो इस मुसीबत से छुटकारा पाओ. ‘‘क्या सोच रहे हो, यही न कि कल तक मैं जिस बच्चे से नफरत करती थी, अचानक आज मु?ो क्या हो गया? तो आज मु?ो अपनी गलती का एहसास हो चुका है अरुण कि मैं जो करने जा रही थी, वह गलत ही नहीं, बल्कि महापाप था. अपनी बेटी को जिंदगी और मौत से जू?ाते देख मैं खुद कितनी मौतें मरी हूं, यह मैं ही जानती हूं. एकएक पल कैसे कटा मेरा, नहीं बता सकती तुम्हें, तो फिर उस मां का क्या हाल होगा जिस की आंखों के सामने ही उस की बेटी के टुकड़े कर दिए जाएंगे? ‘‘मैं ने तय कर लिया है कि मेरी धरा यानी इस धरती पर वह जरूर आएगी,’’ शिखा को अपने सीने से भींचते हुए सुमित्रा कलपते हुए बोली, ‘‘बहू, मु?ो माफ कर दो. मैं पुत्रमोह में अंधी हो गई थी, इसलिए तुम्हारा दर्द सम?ा नहीं पाई.’’

यह सुन शिखा भी सुमित्रा के गले लग कर फूटफूट कर रोने लगी. आज अरुण भी दिल से अपनी मां का शुक्रगुजार था कि उन्होंने उस की अजन्मी बेटी की जिंदगी बख्श दी. नहीं पता है शिखा को पर कितना दुख हो रहा था उसे अपनी ही बेटी को मारने का सोच कर भी. सुमित्रा के कारण वह चुप था, वरना तो वह कभी ऐसा सोच भी नहीं सकता था. कई बार अपने आंसुओं को अंदर ही रोके रखने के प्रयास में अरुण की आंखें लाल हो जाया करती थीं और फिर वही जमा आंसू को बाथरूम में जा कर बहाता था. लेकिन आज वह बहुत खुश है. अरुण और शिखा के साथसाथ सुमित्रा को भी धरा के आने का बेसब्री से इंतजार था.

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