Hindi Story : “अरे मनिता! यह मेरे सामने के फ्लैट में पिछले माह ही जो लड़की किराए पर आई है ना, किसी एमएनसी में काम करती है। निर्वी नाम है उसका। सुबह सवेरे आठ बजे तक घर से निकल जाती है, और फिर रात के आठ नौ बजे तक घर लौटती है। हर छुट्टी के दिन इसके फ़्लैट में कई लड़के और लड़कियां आए रहते हैं, जो देर रात घर वापस जाते हैं। जितने वक्त वे लोग रहते हैं, मरा कानफोड़ू म्यूजिक चला कर रखती है। धम्म धम्म नाचने की आवाज आती है। यह भला कोई शरीफ घरानों के बच्चों की निशानी है?”
“हाँ हाँ, अवनी! मैंने भी उसे कॉलोनी कैंपस में कई बार आते जाते देखा है। अरे आज कल के लड़के लड़कियों के यही ढंग हैं। अरे जो हंगामा करती है, अपने घर में करती है। तो तू अपने मस्त रह।” मनिता ने कहा।
“पता नहीं मां बाप कैसे अपनी जवान जहान लड़कियों को यूं दूसरे शहरों में अकेले रहने देते हैं। दूर रह कर उन्हें क्या पता चले कि उनकी बेटी किसके साथ उठ बैठ रही है।वैसे देखने भालने में तो शरीफ घराने की लगती है। एक छोटा सा, बड़ा प्यारा सा डौगी भी पाल रखा है उसने। रोज सुबह मेरे जागने से पहले और शाम को उसे घुमाने ले जाती है।आते जाते मुस्कुराकर हाय, हेलो, गुड मॉर्निंग तो करती ही है, लेकिन जितनी देर घर में रहती है दरवाजा बंद ही रखती है।
यह नहीं कि भली मानुष की तरह तनिक बाहर निकले… हम सब से मेलजोल बढ़ाए। तनिक अपनी कहे तनिक हमारी सुने!”“अरे अवनी! यह आजकल की नई पौध हम हाउस वाइव्स को आउटडेटेड और बेकार समझती है। मैं भी उसे एकआध बार कॉलोनी में आते जाते देख कर मुस्कुराई, लेकिन मुस्कुराना तो दूर उसने तो पलट कर मेरी तरफ देखा तक नहीं। खटखट हील चटकाते यह जा और वह जा, पल भर में ही आंखों से ओझल हो गई। उसके बाद से शाम को कभी कभार अपने ड़ौगी को चुम्माचाटी करती दिख जाती है, लेकिन भई मैं तो फिर उससे बोली नहीं।”
मनिता के जाने के बाद अवनी अपनी बाल्कनी में बैठी यूं ही अखबार पढ़ रही थी, कि उसने देखा उसके सामने आसमानी नीले रंग की फॉर्मल शर्ट और ब्लैक ट्राउजर्स में वह एक लंबे, खासे हैंडसम युवक के साथ आ रही थी। अवनी की ओर एक फ्लाइंग किस उछालकर वह अपने फ्लैट में बंद हो गई।दिन दहाड़े निर्वी को एक जवान जहान लड़के के साथ अकेले घर में बंद होते देख उसकी हैरानी का ठिकाना नहीं था। उसका शक पक्के यकीन में बदल गया कि निर्वी का चाल चलन ठीक नहीं।शाम के पाँच बजे थे। अवनी अपने घर से पार्क में शाम की वॉकिंग के लिए घर से निकली ही थी, कि उसके सामने निर्वी एक रद्दी वाले को बहुत सारी शराब की बोतलें थमाती दिखी। उसने उसे यह कहते सुना, “भैया, मुझे इन बोतलों के बदले कोई पैसा नहीं चाहिए। बस आप हर महीने किसी भी संडे की छुट्टी के दिन आकर ये बोतलें ले जाया करो।”
मध्यम वर्गीय मानसिकता वाली अवनी से उससे यह कहे बिना नहीं रहा गया, “निर्वी! ये तो तुम इन रद्दी वालों की आदत बिगाड़ दोगी। ये हमसे भी यही एक्स्पेक्ट करेंगे कि हम भी इन्हें मुफ्त में रद्दी और बोतलें दे दें।”अरे आंटी, बेचारा गरीब है। इससे क्या पैसे लूँगी? आंटी मेरी मम्मा भी इन गरीब रद्दी वालों से पैसे नहीं लेतीं। वह कहती हैं कि ये लोग हमारे घर से कचरा सामान ले जाते हैं। तो इनसे पैसे क्यों लेने?”
निर्वी के घर से इतनी शराब की बोतलें निकलती देख कर अवनी ने मन ही मन सोचा, “तो यह दारू भी पीती है! जरूर इस की पार्टियों में भी दारू चलती होगी।”
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में पली बढ़ी, कस्बाई मानसिकता वाली अवनी अभी कुछ ही माह पहले एक आईटी एंजीनियर सोहम से विवाह के बाद पुणे के उस अपार्टमेंट के फ्लैट में रहने आई थी। सो उसके हिसाब से लड़कियों का दारू पीना परले दर्जे की अजूबा भरी गलत हरकत थी।घर लौट कर उसके पेट में इस गरिष्ठ खबर से मरोड़ें उठने लगीं, और उसने पहले तो फोन करके अपनी कस्बे में रहने वाली मां और छोटी बहन को फोन पर यह हैरतअंगेज़ खबर सुनाई। उन्होंने मिलकर नशा करने वाली, मां बाप की छत्रछाया से दूर घर से बाहर रहने वाली आज कल की लड़कियों लड़कों को जी भर कर कोसा।
इस पर भी उसकी बेचैनी खत्म न हुई और उसने फोन कर अपनी दो तीन घनिष्ठ सहेलियों मनिता, कुशा और रावी को अपने घर बुला लिया, और बड़े ही रहस्यमय अंदाज़ में आँखें गोल गोल घुमा उससे कहा कि “यह निर्वी अच्छे चालचलन की नहीं है। मैंने उसे कबाड़ी को बहुत सारी दारू की बोतलें देते देखा। साथ ही अभी शाम को वह एक लड़के के साथ अकेली अपने घर में है।”इस पर मनिता, कुशा और रावी तीनों एक दूसरे की ओर देख कर ज़ोर से यूं हंस पड़ीं, जैसे अवनी ने कोई जोरदार जोक मारा हो।फिर कुशा ने उसे हँसते हँसते कहा, “ओ मेरी झल्ली रानी, आप किस ग्रह से आईं हैं कि आपको यह भी नहीं पता कि अब सोशल ड्रिंकिंग को बुरी नज़रों से नहीं देखा जाता। आज की हर मॉडर्न लड़की वाइन पीती है। वाइन में बस 5 या 6 प्रतिशत अल्कोहल होता है। अतः उससे बहुत कम नशा होता है।
हां, अकेले एक लड़के का घर आना थोड़ा ठीक नहीं लगता, लेकिन आज कल के खुले माहौल में यह भी कोई बड़ी बात नहीं।”फिर उसने उनसे एक ऐसा सीक्रेट शेयर किया जिसे सुनकर अवनी बेहोश होते होते बची।उसने उससे कहा, “हम तीनों भी वाइन पीती हैं। पर कभी कभी, पार्टीज़ में बस। वाइन पीकर इंसान अपने सारे गम भूल जाता है। दिलो दिमाग पर ऐसा सुरूर छाता है कि पूछो मत। दुनिया के जंजालों से परे वह एक ऐसी दुनिया में पहुँच जाता है जहां किसी तरह की चिंता, फिक्र और तनाव नहीं होता।”
उन्होंने उससे कहा कि अगली किसी पार्टी में वे उसे भी इस करामाती ड्रिंक को पिला कर रहेंगी।
आज अवनी का जी न जाने क्यूँ उसके बस में नहीं था। कल सुबह सुबह सोहम से उसका जबर्दस्त झगड़ा हुया था। कल शनिवार था और सोहम सुबह दस बजे जो निकला तो साँझ ढले घर आया। पिछले एक महीने से हर वीक एन्ड पर सोहम का यही रूटीन चल रहा था।अवनी का विवाह हुए मात्र एक वर्ष हुआ था और पूरे सप्ताह पूरे पूरे दिन घर में बस चंद सहेलियों, टीवी और मोबाइल के भरोसे जिंदा रह वीकेंड में उसे पति से अपेक्षा होती कि वह उसे घर के बाहर तनिक आउटिंग पर ले जाये, शौपिंग पर ले जाये, सिनेमा पिकनिक पर ले जाये, लेकिन सोहम के रंग ढंग तो कुछ और ही नज़र आ रहे थे। वह एक बेहद आत्मकेन्द्रित इंसान था। उसे बस अपने सुख, अपने आराम की परवाह थी।
बस इसी बात को लेकर वह उससे उस दिन खूब झगड़ी, लेकिन उसके चीखने, चिल्लाने का कोई असर उसपर नहीं हुआ और वह उसे रोता छोड़ उस दिन भी चला गया।बारह बजे तक अवनी रोती बिसुरती रही। फिर नहा धो कर वह अपना मूड बदलने मनिता के घर चली गई। उसने उसके सामने जो सोहम का दुखड़ा रोया, तो मनिता भी अपने मन का गुबार उसके सामने निकालने लगी, यह कहते हुए कि “ये मर्द सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे होते हैं। अधिकतर सब को अपनी ही पड़ी रहती है। शादी कर के बस अपनी ज़िंदगी को आरामदेह बनाने के लिए बीबी के रूप में एक अदद नौकरानी ले आते हैं और खुद अपनी मन मर्ज़ी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं। मेरे पति तो निहायत ही गैर जिम्मेदार हैं। मुझे घर की सारी जिम्मेदारियाँ उठाने के साथ साथ बाहर की सारी जिम्मेदारियाँ भी उठानी पड़ती हैं। मैं तो सुबह से शाम तक भागती दौड़ती रहती हूँ। इनकी आमदनी इतनी है नहीं कि कोई हेल्प लगा सकूँ। सो घर बाहर दोनों के काम करते करते हलकान हो जाती हूँ। शादी के बाद इसी वजह से इतनी चिड़चिड़ी हो गई हूँ कि पूछो मत। हर वक़्त हर बात पर गुस्सा आया हुआ रहता है।”
तभी मनिता के घर के सामने रहने वाली कुशा भी वहाँ आगई और सबका पति पुराण सुन कर
वह भी अपने पति का राग ले बैठी और कहने लगी, “मेरे हस्बैन्ड मुझे घुमाने फिराने तो ले जाते हैं, लेकिन वह इतने फिजूलखर्च हैं कि आधा महीना बीतते बीतते पूरी तन्ख़्वाह खर्च कर बैठते हैं। पंद्रह तारीख के बाद मुझे हर खर्चा अगले माह के लिए टालना पड़ता है। इस वजह से मैं महीने के आखिरी दिनों में इतनी परेशान रहती हूँ कि पूछो मत।”तभी मनिता का बेटा स्कूल से घर वापस आया। हाथ मुंह धोने के लिए जो उसने नल खोला तो पानी नदारद था।
पड़ौस में अन्य घरों से पता लगाया तो पता चला कि कहीं किसी के घर में पानी नहीं आरहा था।
सोसाइटी के रेजीडेंट्स वेल्फेयर असोशियेशन के प्रेसीडेंट ने सब को बताया कि सोसाइटी को पानी की आपूर्ति करने वाला पंप खराब हो गया है। उन्होंने सब को आश्वासन दिया कि एक घंटे में पंप ठीक हो जाएगा, लेकिन घड़ी की सुइयाँ निरंतर आगे बढ़ती रहीं, पर पंप ठीक करने वाला प्लम्बर नहीं आया।
शाम के सात बज गए। रात का खाना बनाने के लिए पानी की घर घर जरूरत थी। घर घर हाहाकार मच रहा था।रात के नौ बजे जो निर्वी अपने बॉयफ्रेंड के साथ घर लौटी, तो सोसायटी की सभी लेडीज़ घर के बाहर अलग अलग झुंडों में खड़ी सोसाइटी के रेजीडेंट्स वेल्फेयर असोशियेशन के प्रेसीडेंट को पानी पी पी कर कोस रही थीं, अलबत्ता पानी नलों से नदारद था।
अवनी ने निर्वी को पूरी बात बताई तो वह अवनी से बोली, “आप मुझे फ़ोन पर पूरी बात बता देतीं, तो मैं पंप ठीक करने वाली पूरी टीम को अपने साथ ही ले आती। खैर परेशान मत हों। मैं और विहान अभी देखते हैं, कहाँ क्या खराबी है।”सबके देखते देखते निर्वी और विहान ने एक डेढ़ घंटे के अंदर पंप पूरी तरह से ठीक कर दिया।घरों में पानी की सप्लाई बहाल होते देख कॉलोनी की महिलाओं ने राहत की सांस ली। उन्हें आश्चर्य इस बात का था, कि छुई मुई सी दिखने वाली निर्वी ने अपने दोस्त के साथ मिलकर उनकी इतनी बड़ी समस्या का समाधान देखते देखते कर दिया था।तभी अवनी ने निर्वी से अपने मन की बात कह डाली, “भई निर्वी और विहान, एक बात तो बताओ, यह तुम दोनों ने पंप पर कौन सी जादू की छड़ी घुमाकर उसे ठीक कर दिया? हम सबके मन में रह रह कर बस यही सवाल उठ रहा है।”
इसपर निर्वी उससे बोली, ‘अवनीजी! मैं इलेक्र्ट्रिकल एंजिनियर हूँ और यह मेरा मंगेतर विहान मेकेनिकल एंजिनियर है। ये बिगड़े सुगड़े पंप ठीक करवाना तो हमारा रोज़ का काम है।“ओह, तुम दोनों की सगाई हो चुकी है? दोनों ही एंजिनियर हो।”“अवनी! एंजिनियरिंग के साथ साथ हम दोनों ने इंडिया के टॉप मोस्ट बिजनेस स्कूल से एमबीए भी किया हुआ है।”“ओह तुम दोनों इतने हाईली क्वालिफाइड हो?”तभी कस्बाई मानसिकता से मजबूर अवनी, जो उनसब में सबसे ज्यादा मुंहफट थी, बोल पड़ी, “अरे भई निर्वी, तुमने तो हमें खासा सर्प्राइज़ दे डाला, लेकिन भई एक बात हमारी समझ में नहीं आई।”
“वह क्या अवनी?”
“तुम दोनों इतने हाइली क्वालिफाइड हो, अच्छे परिवारों से हो तो तुम दोनों यूं छड़े क्यूँ घूम रहे हो? अरे भई, मेरा मतलब है, तुम दोनों के पेरेंट्स तुम पर शादी करने का दवाब नहीं डालते? तुम दोनों भले मानसों की तरह घर गृहस्थी क्यूँ नहीं बसाते? क्या स्यापा है तुम दोनों के साथ?”यह बात सुन कर अवनी और विहान पल भर को मुस्कुराए। फिर निर्वी अवनी से बोली, “अवनी! यह आप घर गृहस्थी वाले नहीं समझोगे, यह एक बहुत बड़ा राज है!”यह कहते हुए दोनों ने दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए ही थे कि तभी अवनी निर्वी का हाथ थाम फिर से बोल पड़ी, “भई निर्वी, अब तुमने यह राज की बात करके मेरी तो रात की नींद ही चुरा ली। बता भी दो, अगर तुमने यह बात नहीं बताई तो पूरी रात मेरे पेट में दर्द होता रहेगा। फिर भई, आधी रात को मैं तुम्हें ही नींद से जगा कर पेट दर्द की दवाई मांगने आऊंगी।”
अवनी की इस बात पर खिलखिलाता विहान बोल पड़ा, “अवनी, मैं आपको वह राज बताता हूँ। यह तो आप मानोगी, हर शादी में कोई न कोई प्रोब्लेम होती है।”“इस बार मनिता मुस्कुरा कर बोल पड़ी, ठीक कह रहे हो बच्चे, अरे मैं तो कहती हूँ, प्रौब्लेम का दूसरा नाम ही शादी है।”“ऐक्ज़ेक्टली, मैं यही आपके मुंह से सुनना चाह रहा था। इसी शादी बनाम बर्बादी के चक्र व्यूह में फंस कर आपसबके और हमारे आदरणीय भाईजानों के मुखारविदों पर कितनी सलवटें आ गई हैं।
तो भई मेरी स्वीट दीदियों और भाभियों, आप लोग क्यूँ चाहते हैं कि हम इस तबाही के मकड़जाल में इतनी जल्दी फँसें? हम शादी के खिलाफ कतई नहीं हैं। लेकिन अपने हाथों में शादी की हथकड़ी लगने तक हम लाइफ को भरपूर एंजॉय करना चाहते हैं।”“विहान की यह बात सुन कर वहाँ मौजूद सभी महिलाओं के मुंह से एक लंबी उसाँस निकली ही थी, कि तभी विहान फिर से बोल पड़ा, “मैंने और निर्वी ने फैसला लिया है कि हम दोनों शादी के बंधन में 35 की उम्र में फंसेंगे। अभी मैं और निर्वी तीस बरस के हैं। अपनी लाइफ इतना एंजॉय कर रहे हैं कि पूछिये मत। हम दोनों बस वीक एंड पर मिलते हैं। पूरे हफ़्ते एक दूसरे से मिलने की बेकरारी रहती है। आप देख ही रहे होंगे, हम दोनों एक दूसरे की कंपनी कितना एंजॉय करते हैं। हमने साथ साथ देश के ऑल्मोस्ट अधिकतर हैपिनिंग शहरों की साथ साथ सैर कर ली। हम दोनों का तीसवाँ बर्थडे बस इसी साल है और 15 दिनों के अंतर पर है। आपको पता है, हम दोनों अपना अपना तीसवाँ जन्मदिन पैरिस और स्विट्जरलैंड में मनाएंगे।”
सब के मुंह से समवेत स्वरों में निकाला था, “वाओ।”तभी मनिता बोल पड़ी, “बच्चू! तुम दोनों की कहानी का यह पार्ट तो वाकई में बेहद इंट्रेस्टिंग है, लेकिन यह बताओ, 35 साल की पकी उम्र में शादी करोगे तो बच्चे कब करोगे? या बच्चों का कोई रोल ही नहीं है तुम दोनों की फिल्म में?”इस बार विहान बोला, “अरे मनिताजी हमने यह भी सोच लिया है। शादी के बाद हम बच्चे पैदा करने में एक दिन की देर भी नहीं लगाएंगे। हम दोनों को ही बच्चे बेहद पसंद हैं, और हम एक नहीं दो बच्चे चाहते हैं।”
चलिये अवनीजी! अब हम चलते हैं। थोड़ा रिलैक्स करते हैं।”
“काश… हमने भी शादी का लड्डू इतनी जल्दी नहीं खाया होता,” इस बार अवनी बोल पड़ी और उसके साथ सब ज़ोर का ठहाका मार कर हंस दिये।