29 मार्च, 2022 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक कानून पर हस्ताक्षर किए जिस में पब्लिक लिंचिंग को केंद्रीय अपराध बना डाला गया और कोई राज्य सरकार अब विशेष बहाने बना कर दमदार लोगों को सडक़ों पर न्याय करने का कानून नहीं बना सकती. इस लिंचिंग में हेट क्राइम यानी किसी वर्ग विशेष के खिलाफ कुछ कमैंट करना, तंग करना और हिंसा करना शामिल हैं. अब ऐसे मामले राज्य की अदालत में नहीं, केंद्र की अदालतों में चलेंगे और राज्य में राजनीति करने वालों की नहीं चलेगी.

भारत में तो उलटा हुआ है. यहां लिंचिंग का अघोषित कानून बना डाला गया है और यदि दलित, मुसलिम, पिछड़ा या औरत पब्लिक लिंचिंग की शिकार हो तो लोग दर्शकों की तरह देखते रहते हैं, वीडियो बनाते हैं जबकि दर्शकों को मैनेज करने के लिए पुलिस खड़ी रहती है, लिंचिंग को रोकने के लिए नहीं. यहां सरेआम पिटाई को अब सामान्य काम मान लिया गया है जो शहरों की गलियों से निकल कर बड़ी सडक़ों तक निकल आई है. पुलिस वाले खुद भी लिंचिंग कर रहे हैं भगवा दुपट्टे डालने वालों के साथ. और, कई राज्य सरकारें तो बुलडोजरों से लिंचिंग कर रही हैं.

अदालतें वैसे तो इस लिंचिंग को गलत मानती हैं पर उन की हिम्मत नहीं होती कि किसी पुलिस वाले को बरखास्त करा कर जेल भेज दें. अदालतें लिंचिंग और जबरन बुलडोजर से …???तुरंत न्याय की मनमानी…??? करेंगी और मामलों की सुनवाई तब तक टालती रहेंगी जब तक जनता उसे भूल न जाए और उस के बाद 10-20 और मामले सामने न आ जाएं.

अमेरिका में इस कानून का नाम एमेट लुइस टिल कानून दिया गया है जो एमेट लुइस टिल को एक तरह की श्रद्धांजलि है जिसे 1955 में मिसिपिसी में एक गोरी औरत की शिकायत पर पीटपीट कर मार दिया गया था. शिकागो से घूमने आए 14 साल के अश्वेत किशोर के खिलाफ गोरी औरत ने सीटी बजाने का आरोप लगाया था. मारने वाले 2 गोरों पर मुकदमा चला लेकिन वहां की आम जनता से चुनी गर्ई जूरी, जिस में सिर्फ गोरे पुरुष थे, ने दोनों युवाओं को बरी कर दिया जिन्होंने एमिट टिल को पीट कर, जंजीर से बांध कर नदी में फेंक दिया था.

भारत में ऐसे लोगों के लिए अघोषित कानून बन गया है जिस में उन्हें हार पहनाए जाते हैं, लड्डू खिलाए जाते हैं. हिंदूमुसलिम, हिंदूदलित, हिंदू मर्दऔरत का मामला हो तो पुलिस अब एफआईआर भी दर्ज करने में महीनों लगाती है और फिर गवाहों के अभाव में केस खारिज हो जाता है.जहां कुछ देश अपनी गलतियों को सुधारने में लगे हैं, हम खोदखोद कर अपने इतिहास से बहाने ढूंढ़ रहे हैं कि बुलडोजरी लिंचिंग और मानवीय लिंचिंग को कैसे पुनर्स्थापित किया जाए.

हमारे यहां काल्पनिक कहानियों का सहारा लिया जाता है जिन में तुरंत न्याय देना सामाजिक, धार्मिक परंपरा मानी गई है. हमारे यहां ऋषिमुनियों के जो श्राप होते हैं वे एक तरह की लिंचिंग हैं जिसे सच माना जाता है और अनैतिक को नैतिक बनाने के काम में लाया जाता है. देश में इतनी सारी लिंचिंग की घटनाएं घटने लगी हैं कि उन्हें आज गिनाया जाना भी मुश्किल है.

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