नोएडा में सुपरटेक बिल्डर्स ने गगनचुंबी इमारतों एपेक्स और सेयन की बालकनी में खड़े हो कर रोशनी में नहाए चमकते शहर का नजारा देखने का जो वादा किया था, वह अगर एक गुमान साबित हुआ तो उसे मुंह चिढ़ाता करप्शन भी कहा गया. आखिर ऐसी क्या वजह रही कि 30 मंजिली और 320 फीट से अधिक ऊंची इन इमारतों को ढहाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ी?

रविवार 28 अगस्त, 2022 की दोपहर 2 बज कर 31 मिनट के बाद नोएडा के 4 बुजुर्गों ने संतोष की सांस ली थी. उन्हें सालों तक चली लंबी अदालती लड़ाई के बाद एक बड़ी जीत जो मिली थी. वह अगर पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गई तो इस का एक सकारात्मक संदेश भी फैल गया कि एक न एक दिन करप्शन का धराशायी होना निश्चित है.

महज 8 सेकेंड में ही नोएडा की ट्विन टावर के नाम से चर्चित 2 बहुमंजिला इमारतें गिरा दी गई थीं. दोपहर को ठीक ढाई बजे इन्हें पलक झपकते ही करीब 3700 किलोग्राम बारूद ने ध्वस्त कर दिया. फिर इन की जगह था तो केवल मलबा और धुएं का गुबार. इस तरह से गिराई गई ये देश की सब से बड़ी बहुमंजिला इमारतें थीं.

एपेक्स (32 मंजिली) और सेयेन (30 मंजिला) नामक जुड़वां टावर को सुपरटेक बिल्डर्स के मालिक आर.के. अरोड़ा ने बनवाया था, जो भारतीय राजधानी में सब से ऊंचे कुतुब मीनार से भी ऊंची थी. बाद में पाया गया कि इन्हें बनाने में नियमों का उल्लंघन किया गया था, जिस में नोएडा अथौरिटी से ले कर उत्तर प्रदेश के 28 सरकारी अधिकारियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

नियमों को ताक पर रख कर बनाए गए ट्विन टावर के खिलाफ लड़ने वाले 4 बुजुर्गों की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है. उन्हें लालच के साथसाथ धमकियां भी मिलीं. एक बड़े बिल्डर के खिलाफ चंदा जुटा कर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी. उन के हौसले और मेहनत के आगे बिल्डर की एक न चली. अंतत: उन के पक्ष में न केवल अदालती फैसला आया, बल्कि उस पर अमल भी हुआ.

उन में पहल करने वाले प्रमुख शख्स एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष उदयभान तेवतिया हैं. वह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल से रिटायर अधिकारी हैं. सुपरटेक के खिलाफ इस लड़ाई में उदयभान के साथ आने वाले एस.के. शर्मा, रवि बजाज और एम.के. जैन सामान्य नागरिक हैं. इन में एम.के. जैन का कोरोना महामारी के वक्त निधन हो गया था.

उन्होंने दिसंबर, 2012 में पहली बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिस का नेतृत्व उदयभान सिंह तेवतिया ने किया था. उन के द्वारा आरोप लगाया गया था कि बिल्डर आर.के. अरोड़ा जिस जगह पर ट्विन टावर बना रहे हैं, वह जगह पार्क के लिए निर्धारित थी. याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन टावरों के निर्माण के दौरान उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है.

इस के मुताबिक केवल 16 मीटर की दूरी पर स्थित 2 टावरों ने कानून का उल्लंघन किया था. याचिकाकर्ताओं के आरोप के मुताबिक, इन दोनों टावरों को बगीचे के लिए आवंटित भूमि पर अवैध रूप से खड़ा किया गया था.

उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए मामला आने से पहले, नोएडा प्रशासन ने 2009 में दायर योजना (40 मंजिलों वाले 2 अपार्टमेंट टावर) को मंजूरी दे दी थी.

इस मामले में अप्रैल 2014 में फैसला रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के पक्ष में आया था. इसी के तहत इन टावरों को गिराने का आदेश भी जारी किया गया. साथ ही यह आदेश भी दिया गया कि सुपरटेक को टावर गिराने का खर्च वहन करना चाहिए और उन लोगों को 14 फीसदी ब्याज के साथ पैसा वापस करना चाहिए, जिन्होंने यहां पहले से ही घर खरीदा है.

उसी वर्ष मई में सुपरटेक ने फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि निर्माण कार्य उचित मानदंडों के मुताबिक ही किया गया है. इस पर अगस्त 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि नियमों का उल्लंघन किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सेक्टर-93ए स्थित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर को गिराने के लिए इस में 3700 किलोग्राम विस्फोटक लगाया गया था. इमारत से करीब 70 मीटर दूर रिमोट रखा गया था. दोपहर ठीक 2 बज कर 30 मिनट पर रिमोट का बटन दबाया गया और तेज धमाकों के साथ दोनों इमारतें मिट्टी में मिल गई थीं. इस के बाद कई मीटर तक धूल का गुबार छा गया.

300 करोड़ से ज्यादा की लागत से बने ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 20 करोड़ का खर्च आने की बात कही जा रही है. इन में से 5 करोड़ का भुगतान सुपरटेक कंपनी कर रही है और 15 करोड़ की राशि मलबा बेच कर जुटाई जाएगी.

नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रितु माहेश्वरी ने बताया कि करीब 60 हजार टन मलबा दोनों इमारतों से निकलेगा. इस में से करीब 7 हजार टन लोहा निकल सकता है. इन को बेच कर अच्छी रकम जुटाई जा सकती है. वैसे मौजूदा समय में इमारत की कीमत 800 करोड़ रुपए आंकी गई थी.

इस तरह से 79 वर्षीय उदयभान सिंह तेवतिया की यह बड़ी जीत थी. इस वक्त वह नोएडा के सेक्टर 93ए में ही रहते हैं. उन्होंने इस पूरी लड़ाई का मुस्तैदी के साथ नेतृत्व किया. सभी तरह के दस्तावेज जुटाने और पत्राचार करने से ले कर विरोधियों के खिलाफ डट कर साथ देने वालों को जोड़े रखने का भी काम किया. इन दिनों वह एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.

तेवतिया अपनी लड़ाई और जीत के बारे में बताते हैं, ‘‘शुरुआत में बिल्डर ने बिल्डिंग प्लान तक नहीं दिया. कोर्ट जाने से पहले सभी अथौरिटीज को लेटर लिखा गया, जिस में तत्कालीन हाउसिंग मिनिस्टर आजम खान भी शामिल थे. इस की सुनवाई के बाद पहला निर्णय ही रेजिडेंट्स के हक में सुनाया गया.’’

उन्होंने अपने जीत पर खुशी जताते हुए कहा कि आखिरकार सच जीता और भ्रष्टाचारी हार गए. इस के ढहाए जाने का लाभ 3 महीने बाद तब दिखाई देगा, जब पूरा मलबा पूरी धूल खत्म हो जाएगी. अब नोएडा अथौरिटी के उन लोगों पर भी काररवाई होनी चाहिए, जिन्होंने रुपए ले कर ये टावर खड़े कराए थे.

तेवतिया इस बात को भी स्वीकारते हैं कि इतने बड़े बिल्डर के खिलाफ लड़ना आसान नहीं था. जब हमारा केस हाईकोर्ट में पहुंचा और बिल्डर को मुश्किलें दिखने लगीं, तब वह हम पर केस वापस लेने का दबाव बनाने लगे.

कुछ लोगों ने यह तक कहा कि बिल्डर बड़े लोग हैं, हर कोई उन की मुट्ठी में है. तुम उन का कुछ नहीं कर पाओगे, इसलिए ले दे कर बैठ जाओ. वरना अंजाम बुरा भी हो सकता है. फिर भी हम ने रेजिडेंट्स के दम पर हिम्मत नहीं हारी. हर स्तर पर हमें चुनौतियां मिलती गईं और हम उन को पार करते चले गए. संघर्ष के दम पर ही हम जीत पाए.

इस बड़ी कानूनी जंग में दूसरे सहयोगी एस.के. शर्मा हैं. वह अभी 74 साल के हैं और तेवतिया के साथ रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन में काम कर रहे हैं. अवैध टावर के बनाए जाने की आवाज सब से पहले शर्मा और तेवतिया ने ही उठाई थी.

एस.के. शर्मा भी नोएडा के सेक्टर 93ए में ही रहते हैं. टेलिकौम डिपार्टमेंट से डिप्टी डीजी के पद से रिटायर हुए हैं. शर्मा कहते हैं, ‘‘उन के द्वारा ग्रीन एरिया गायब कर दिया गया था और वादे भी पूरे नहीं किए गए थे.’’

59 साल के एम.के. जैन सुपरटेक के खिलाफ लड़ने वालों में सब से कम उम्र के थे. पिछले साल कोरोना के चलते उन का निधन हो गया था. वह भी नोएडा के सेक्टर 93ए में ही रहते थे. नोएडा में उन की इलेक्ट्रिक पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री थी.

एम.के. जैन हाउसिंग सोसाइटी रेजिडेंट्स की कानूनी समिति का हिस्सा थे. उन्होंने इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री की हुई थी. इस कारण उन्हें उन्हें तकनीकी जानकारी काफी अच्छी थी.

सुपरटेक से लड़ाई जीतने वालों में शामिल चौथे सदस्य 65 साल के रवि बजाज हैं. वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से रिटायर हैं. रवि बजाज भी पहले आरडब्लूए के सदस्य थे, उन्होंने निजी कारणों से 2021 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.

इस जीत पर रवि बजाज कहते हैं, ‘‘हमें फ्लैट बुक करने के दौरान ब्रोशर में किड्स वाटर पार्क, ग्रीनरी सहित 4 वादे किए गए, लेकिन मिला कुछ नहीं. इस के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ने के कारण हम बहुत से घर के काम भी नहीं कर पाए. हम जैन को बहुत मिस करते हैं. वह सब से ज्यादा एनर्जी वाले थे और उन्हीं की वजह से इस लड़ाई की शुरुआत हुई थी.’’

बिल्डर के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए सोसाइटी में कानूनी समिति गठित की गई थी. इस समिति में करीब 40 लोग थे. सभी ने सोसाइटी से चंदा जुटा कर इस केस की कानूनी लड़ाई लड़ी और केस को अंजाम तक पहुंचाया. पहले 500-500 रुपए, फिर 3-3 हजार रुपए और सब से आखिर में 17-17 हजार रुपए का चंदा जुटाया गया था.

यानी कि ट्विन टावर का अवैध रूप से निर्माण करने में बिल्डर और नोएडा प्राधिकरण के कर्मचारियों द्वारा नियमों की जितनी अनदेखी की गई, उतनी ही बड़ी लड़ाई बिल्डर के खिलाफ आम नागरिकों को लड़नी पड़ी.

फ्लैट खरीददारों ने 2009 में आरडब्ल्यूए बनाया था और ट्विन टावर के अवैध निर्माण को ले कर आरडब्ल्यूए ने पहले नोएडा अथौरिटी मे गुहार लगाई थी. अथौरिटी में कोई सुनवाई नहीं होने पर आरडब्ल्यूए इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची.

सुपरटेक के निर्माण की कहानी 23 नंवबर, 2004 से शुरू होती है. तब नोएडा (न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने औद्योगिक शहर बनाने की योजना के तहत एक आवासीय क्षेत्र बनाने के लिए सुपरटेक नामक कंपनी को एक साइट आवंटित की थी. आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल के 14 टावर बनाने की अनुमति मिली.

जमीन आवंटन के 2 साल बाद 29 दिसंबर, 2006 को अनुमति में संशोधन कर दिया गया. नोएडा अथौरिटी ने संशोधन कर सुपरटेक को 9 की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी. इस के साथ ही टावरों की संख्या भी बढ़ा दी गई. पहले 15 और फिर इन की संख्या 16 कर दी गई.

साल 2009 में इस में फिर से एक बार फिर वृद्धि की गई. यही नहीं, 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथौरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया. इस के बाद भी अनुमति लगातार बढ़ती ही रही.

2 मार्च, 2012 को टावर नंबर 16 और 17 के लिए फिर से संशोधन किया गया. इन दोनों टावरों को 40 मंजिल तक करने की अनुमति दी गई. इन की ऊंचाई 121 मीटर तय कर दी गई, वहीं दोनों टावरों के बीच की दूरी भी 9 मीटर रखी गई, जबकि यह 16 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए. कई सवाल लोगों के जेहन में तब से उठने शुरू हो गए थे, जब इस के निर्माण के खिलाफ मामला अदालत में चला गया था.

बिल्डिंग निर्माण के लिए सुपरटेक को 13.5 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी. परियोजना का 90 फीसदी यानी करीब 12 एकड़ हिस्से पर 2009 में ही निर्माण पूरा कर  10 फीसदी हिस्से को ग्रीन जोन दिखा दिया गया था.

वर्ष 2011 आतेआते 2 नए टावरों के बनने की खबरें आने लगीं थी. 12 एकड़ में जितना निर्माण किया गया, उतना एफएआर का खेल खेल कर 2 गगनचुंबी इमारतों के जरिए 1.6 एकड़ में ही करने का काम तेजी से जारी था. अंदाजा लगाया जा सकता है कि 12 एकड़ में 900 परिवार रह रहे हैं, इतने ही परिवार 1.6 एकड़ में बसाने की तैयारी थी.

एमराल्ड कोर्ट परियोजना में बने ट्विन टावरों को बनाने वाली कंपनी सुपरटेक लिमिटेड है. यह एक गैरसरकारी कंपनी है. इस कंपनी को 7 दिसंबर, 1995 में निगमित किया गया था. सुपरटेक के फाउंडर आर.के. अरोड़ा हैं. उन्होंने अपनी 34 कंपनियां खड़ी की हैं. 1999 में आर.के. अरोड़ा की पत्नी संगीता अरोड़ा ने दूसरी कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी शुरू की.

सुपरटेक ने अब तक नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के 12 शहरों में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट लांच किए हैं. नैशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल ने इसी साल कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया. कंपनी पर अभी करीब 400 करोड़ का कर्ज बकाया है.

इस पूरे मामले में सुपरटेक का कहना है कि प्राधिकरण को पूरा भुगतान करने के बाद हम ने टावर का निर्माण किया था. जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तकनीकी आधार पर निर्माण को संतोषजनक नहीं पाया है और दोनों टावरों को ध्वस्त करने के आदेश जारी कर दिए थे. हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हैं.

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