लेखिकानमिता शर्मा

मेरे पापा अनुशासनप्रिय थे. पापा ने बचपन से हमें मातृविहीन होने के कारण मांपापा दोनों का प्यार दिया. बीमारी की अवस्था में मां का निधन मात्र 30 वर्ष में हो गया था. उन की अंतिम इच्छा थी कि उन के बच्चे खूब पढ़ें. लोगों की बहुत इच्छा थी कि पापा दूसरा विवाह कर लें, परंतु पापा ने हम बहनों की वजह से विवाह नहीं किया. उन्होंने हम लोगों के लालनपालन व हम लोगों की शिक्षादीक्षा में ही अपने को समर्पित कर दिया मेरी नानीमां भी हमारे साथ ही रहतीं थीं. उन की सेवा, अपनी नौकरी, सबकुछ उन्होंने बहुत व्यवस्थित ढंग से किया. आज हम भाईबहन सभी उच्च पदस्थ हैं. आज वे हमारे बीच नहीं है परंतु उन की स्मृतियां आज भी हमारा संबल हैं.

ये भी पढ़ें-दिल तो बच्चा है जी

मनोरमा अग्रवाल

*मेरी स्मृतियों में कैद है पापा के विविध रूप. उम्र तो याद नहीं, पर याद है सीढ़ी चढ़ना सिखाया पापा ने, बहुत छोटी थी तब. एक बार शायद मैं 7वीं में पढ़ती थी. पढ़ाई से जी चुराती थी. अगले दिन गणित का पेपर था. पापा सब्जी लाने बाजार चले गए. मैं जल्दी ही सो गई. पापा आए, उन्होंने मुझे गुस्से में नींद से उठाया. पढ़ने को बैठाया. उस समय बहुत बुरा लगा. लेकिन आज मैं 2 बढ़ती बेटियों की मां हूं. आज मैं समझ सकती हूं उस गुस्से में कितना प्यार, कितनी भविष्य की चिंता, मेरा कितना हित समाहित था. मैं एमए कर रही थी. मुझे पीलिया हुआ था. अपने हाथ से खिचड़ी खिलाते, दवा खिलाते पापा मुझे याद हैं.

ये भी पढ़ें-पर्यावरण के लिए भी अच्छी हैं ज्वाइंट फैमिली, जानें कैसे?

हम पति-पत्नी अपनी बेटियों के साथ खुश और संतुष्ट हैं. लेकिन आज भी कभीकभी लोगों की नजरों में मैं अपने लिए दया और बेचारगी का भाव देखती हूं. कभीकभी व्यंग्य और हिकारत भी. अब सोचती हूं तो आश्चर्य होता है कि कैसे उस समय 3 बेटियों पर परिवार को सीमित कर लेने के निर्णय पर पापा अडिग रह पाए होंगे. कैसे वे लोगों की दया, बेचारगी व व्यंग्यभरी नजरों का सामना करते होंगे. लेकिन शायद उन के लिए यह मुश्किल न रहा हो क्योंकि सत्य के प्रति उन का अत्यधिक आग्रह था. वे एक ईमानदार सरकारी कर्मचारी रहे हैं. अब रिटायरमैंट के बाद पैंशन पा रहे हैं. अपनी सीमित आय में उन्होंने हम बहनों की अच्छी परवरिश की. पापा को ले कर स्मृतियां अनंत हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...