जनसंख्या नियंत्रण के मामले एक ?ाठ नरेंद्र मोदी से ले कर नुक्कड़ वाले मंदिर के पुजारी तक बहुत जोर से फैलाते हैं कि मुसलिमों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और निकट भविष्य में वे बहुमत में आ जाएंगे. हकीकत यह है कि राष्ट्रीय प्रजनन दर यानी फर्टिलिटी दर, जो 2 है, के मुकाबले में मुसलिम फर्टिलिटी दर 2.36 अवश्य है और हिंदू फर्टिलिटी दर 1.94, लेकिन यह अंतर ऐसा नहीं है कि मुसलिम जनसंख्या जल्दी ही बहुमत में आ जाए. सालदरसाल हिंदू और मुसलिम प्रजनन दर दोनों तेजी से गिर रही हैं. वहीं, परिवार नियोजन धर्म से ज्यादा औरतों का निजी मुद्दा है.
चिंता की बात तो यह है कि अनुसूचित जातियों और अनूसूचित जनजातियों में यह बहुत ज्यादा है. 2015-16 के सर्वे में यह बात सामने आई है कि विवाहित औरतों, जो बच्चे पैदा करने की आयुवर्ग में हैं, में 3 बच्चे वाली 21 फीसदी अनुसूचित जातियों की हैं जबकि 4 से ज्यादा बच्चों वाली 22 फीसदी. जो लोग मुसलमानों के
5 के 25 की बात करते हैं उन्हें इन
22 फीसदी शैड्यूल्ड कास्ट युवतियों की चिंता करनी चाहिए जो 1 से 4-5 हो रही हैं.
उत्तर प्रदेश में जहां जनसंख्या नियंत्रण कानून की बहुत बात होती है,
2015-2020 के आंकड़े बताते हैं कि मुसलिम औरतों की प्रजनन दर 3.1 प्रति महिला है तो शैड्यूल्ड कास्ट हिंदू महिला की भी 3.1 है जबकि शैड्यूल्ड कास्ट की 3.6. पिछड़ी जातियों में यह दर 2.8 और केवल ऊंची जातियों में 2.3 है. यह दर सभी धर्मों व जातियों में तेजी से गिर रही है बिना किसी कानून के.
जैसेजैसे औरतों में शिक्षा का संचार हो रहा है और उन के कमाने के अवसर बढ़ रहे हैं, उन की प्रजनन दर यानी फर्टिलिटी रेट घट रहा है. 2022 के आकंड़े तो यह आश्वस्त करते दिखते हैं कि हम किसी जनसंख्या ज्वालामुखी पर नहीं बैठे हैं, असल में जल्द ही हमें चीन और जापान की तरह बच्चों की कमी दिखने लगेगी और सारी आबादी सफेद होने लगेगी यानी बूढ़े ज्यादा होने लगेंगे.
धार्मिक विवाद खड़ा कर के जो वैमनस्य का माहौल बनाए रखा जा रहा है, वह एक धंधे के लिए लाभदायक है- धर्म का धंधा. इसी के कारण देशभर में नए मंदिर तेजी से बन रहे हैं और पुरानों में पूजापाठ बढ़ रहा है, दानदक्षिणा बढ़ रही है, जहां कम बच्चे व युवा मातापिता को और उत्पादक बना रहे हैं वहीं इस जनसंख्या के विषय को ले कर फैलाया जा रहा धार्मिक जहर उन्हें धर्म की भक्ति करने पर मजबूर कर रहा है.