23 साल की क्षितिजा को कई दिनों से यूरिन में जलन जैसा अनुभव हो रहा था. कमर के निचले हिस्से में भी काफी दर्द रहने लगा तो उसे लगा, हो सकता है ज्यादा देर तक बैठे रहने के कारण ऐसा हो रहा हो. सोचा, दवाई खाएगी तो ठीक हो जाएगी. मगर दवाई खाने से भी कोई फायदा न हुआ. बल्कि, दर्द और बढ़ता चला गया. अपनी मां को फोन कर बताया, उन्होंने उसे एक बार जा कर डाक्टर से दिखा आने को कहा. लेकिन वह बेकार में डाक्टर के चक्करों में नहीं पड़ना चाहती थी. जब बुखार और उलटियां शुरू हो गईं तो वह अपने एक दोस्त के साथ डाक्टर को दिखाने चली गई.

जहां जांचने के बाद डाक्टर ने उसे कई तरह के टैस्ट बताए. टैस्ट करा कर घर तो आ गई लेकिन एक अनजाने डर को ले कर उस के हाथपांव फूलने लगे कि आखिर डाक्टर ने इतने सारे टैस्ट क्यों बता दिए.

इस से पहले वह कभी डाक्टर के पास नहीं गई थी क्योंकि जरूरत ही नहीं पड़ी. थोड़ीबहुत सर्दीखांसी या सिरदर्द होता तो दवाई खा कर ठीक हो जाती थी. इस बार भी उसे ऐसा ही लगा कि दवाई खा कर ठीक हो जाएगी. मगर जब तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो उसे डाक्टर के पास जाना ही पड़ा.

रिपोर्ट देख कर डाक्टर ने बताया कि उसे (यूटीआई) यूरिन इन्फैक्शन हुआ है और मर्ज को टालते रहने के कारण इन्फैक्शन किडनी तक पहुंच चुका है. इसलिए उसे पानी चढ़ाना पड़ेगा. अस्पताल में कम से कम उसे 7 दिन भरती रहना पड़ेगा. यह सुन कर क्षितिजा के पेरैंट्स भी परेशान हो गए क्योंकि यहां वह अकेली रहती है. कौन देखभाल करेगा उस की. क्षितिजा भी बस रोए जा रही थी कि अब क्या होगा उस का. यहां तो कोई देखभाल भी नहीं करने वाला और खुद से उठ कर वह एक गिलास पानी पीने की भी स्थिति में नहीं है. उस के पेरैंट्स करीब 400 किलोमीटर दूर रहते हैं. ऐसे में उन का यहां तुरंत आना संभव न था.

क्षितिजा अहमदाबाद में रह कर प्राइवेट जौब के साथसाथ सरकारी नौकरी की तैयारी भी कर रही है. उस के पेरैंट्स भुज में रहते हैं. क्षितिजा के पापा बैंक अधिकारी हैं. हर दोतीन साल में उन का तबादला एक शहर से दूसरे शहर होता रहता है. ऐसे में पढ़ाई और कैरियर के कारण उसे अपने पेरैंट्स से दूर रहना पड़ता है. लेकिन ऐसे समय में उसे नहीं पता कि कब क्या करना चाहिए या खुद का सही से ध्यान कैसे रखा जाए.

खैर, उस के पेरैंट्स गाड़ी से आ कर उसे घर ले आए, जहां उस का इलाज चला. तीनचार दिन अस्पताल में भरती रहने के बाद उस की तबीयत में धीरेधीरे सुधार होने लगा. क्षितिजा के इलाज में करीब 10 से 12 हजार रुपए का खर्च आया. डाक्टर आनंद चौधरी, जिन्होंने क्षितिजा का इलाज किया, का कहना है कि वैसे तो यूरिन इन्फैक्शन किसी को भी हो सकता है लेकिन टीनएज के बाद से ही लड़कियों में यूरिन इन्फैक्शन का खतरा अधिक बढ़ जाता है.

यूरिन इन्फैक्शन होने के कई कारण हैं जैसे-

सैक्स के दौरान जब कीटाणु युरेथ्रा में चला जाए.

पब्लिक या गंदा टौयलेट इस्तेमाल करने से भी इस इन्फैक्शन का खतरा हो सकता है.

जेनिटल्स को गंदे हाथों से छूने या फिर ज्यादा देर तक यूरिन को रोके रखने पर भी यूरिन इन्फैक्शन होने का खतरा हो सकता है.

मासिकधर्म के दौरान पैड को जल्दी न बदलना या उस का गीलापन भी यूरिन इन्फैक्शन बढ़ा सकता है.

32 साल की शिखा चौथे स्टेज के ‘एंडोमिट्रियोसिस’ से जू?ा रही है. यह ऐसी बीमारी है जिस के बारे में महिलाओं को बहुत कम जानकारी है और इस बारे में बात भी बहुत कम होती है. टीवी के पौपुलर फेसेस में से एक सुमोना चक्रवर्ती के एक खुलासे से लोगों को इस बीमारी के बारे में पता चला तो इस की चर्चा होने लगी. इस से पहले पुरुषप्रधान भारत देश में महिलाओं की समस्याओं के बारे में कम ही खुल कर बात की जाती थी.

एंडोमिट्रियोसिस सोसायटी औफ इंडिया के मुताबिक, देश में 3 करोड़ से अधिक महिलाएं एंडोमिट्रियोसिस से पीडि़त हैं. पीरियड के दौरान महिलाएं भयंकर दर्द से पीडि़त होती हैं. लेकिन वे चुपचाप यह दर्द सह रही होती हैं. अमेरिका में भी हर 10वीं महिला एंडोमिट्रियोसिस से पीडि़त है.

देशदुनिया में इन दिनों पीरियड्स लीव का मुद्दा जोर पकड़ रहा है. देशभर में माहवारी छुट्टी लागू करने को ले कर यह बहस छिड़ी हुई है कि क्या ऐसी छुट्टी देना सभी संस्थानों, प्रतिष्ठानों, कंपनियों को मंजूर होगा. देश में महिला सशक्तीकरण की बातें करने वालों का बड़ा तबका भी ऐसी छुट्टी का विरोध कर रहा है.

बता दें कि दुनियाभर में अकेले एशिया महाद्वीप के करीब 60 फीसदी देशों में कामकाजी महिलाओं को एक से तीन दिन की सवैतनिक पीरियड्स लीव दी जाती है. यूरोप में इटली पहला ऐसा देश है जहां माहवारी में पेड लीव का नियम है. आस्ट्रेलिया की कुछ कंपनियां भी पेड लीव दे रही हैं.

क्या है एंडोमिट्रियोसिस बीमारी

एंडोमिट्रियोसिस गर्भाशय में होने वाली ऐसी बीमारी है जो महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है. इस बीमारी में गर्भाशय के आसपास की कोशिकाएं और ऊत्तक (टिशू) शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल जाते हैं, जो सामान्य नहीं है. यह बीमारी आमतौर पर किशोर और युवा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है.

शिखा 25 की उम्र में अपनी बीमारी को ले कर डाक्टर के पास पहुंची तो डाक्टर ने उसे पहले स्टेज का एंडोमिट्रियोसिस बताते हुए कहा कि उसे शादी और बच्चे में देर नहीं करनी चाहिए.

दरअसल, एंडोमिट्रियोसिस के मरीज को जब पीरियड्स होते हैं तो खून गर्भाशय के बाहर गिर कर इकट्ठा होने लगता है. इस खून की वजह से सिस्ट या गांठें बढ़ने लगती हैं. साथ ही, तकलीफें भी बढ़ने लगती है. चूंकि गर्भावस्था के दौरान 9 महीने तक महिला को मासिकधर्म नहीं आता, इसलिए खून न मिलने की वजह से गांठें बढ़नी बंद हो जाती हैं. इस स्थिति में औपरेशन कर के इन्हें निकाला जा सकता है.

यह जरूरी नहीं है कि मां बनने के बाद इस तकलीफ से नजात मिल जाए बल्कि कई बार परेशानी जस की तस बनी रहती है या बढ़ भी जाती है. शिखा का हार्मोनल ट्रीटमैंट चल रहा है. लेकिन भारतीय डाक्टर को भी औरतों के मां बनने की चिंता पहले होती है और उन की तकलीफों की बाद में.

भारतीय समाज में औरतों के स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लिया जाता. उन से उम्मीद की जाती है कि वे दर्द को बरदाश्त करें. लड़की पीरियड्स के दर्द से कराह रही होती है तो कहा जाता है कि यह दर्द तो कुछ भी नहीं, अभी तो उसे मां बनना है. लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि खुद महिलाएं भी अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देतीं और अपनी बीमारी को टालती रहती हैं.

52 साल की सुमन एक स्कूल टीचर हैं. उन का मीनोपोज हुए 2 साल से ऊपर हो चुका है. लेकिन इधर कई दिनों से उन के यूरिन से ब्लड आने लगा तो वे सम?ा नहीं पाईं कि ऐसा क्यों हो रहा है क्योंकि मासिकधर्म छूटे तो सालों हो गए. ?ि?ाकते हुए उन्होंने यह बात अपनी एक दोस्त, जोकि उसी स्कूल में टीचर हैं, को बताई. वह हैरान रह गई. उस ने तुरंत उसे डाक्टर के पास जा कर दिखाने की सलाह दी और कहा कि सेहत के प्रति इतनी लापरवाही ठीक नहीं. घरबाहर की जिम्मेदारियों के चलते उसे डाक्टर से दिखाने का समय ही नहीं मिला.

यूरिन से ब्लड आना रुक गया तो लगा अब सब ठीक है. यह भी लगा कि शायद ज्यादा गरमी की वजह से या तलाभुना खाने के कारण ऐसा हुआ होगा. इसलिए डाक्टर को दिखाने की कोई जरूरत नहीं है. बेकार में 10 तरह के टैस्ट बता कर और परेशान कर देंगे वे. घरपरिवार और नौकरी में अपनी सेहत को सब से पीछे रखने वाली सुमन की समस्या तब बढ़ गई जब फिर से उसे यूरिन से ब्लड आने लगा.

डाक्टरी जांच से पता चला कि सुमन के यूरिनरी पैसेज के रास्ते में पथरी हो गई है. शुक्र था कि सुमन को कोई बड़ी समस्या नहीं निकली और इलाज के बाद वह ठीक हो गई. इलाज में यही कोई 6-7 हजार रुपए लगे. लेकिन डाक्टर का कहना था कि यूरिन से ब्लड आना खतरे का संकेत भी हो सकता है.

जब कभी ऐसे लक्षण दिखाई पड़ें तो डाक्टर से जांच करवाना जरूरी इसलिए है ताकि आगे चल कर कोई बड़ी समस्या न खड़ी हो जाए. पढ़ीलिखी एजुकेटेड होने के बाद भी उसे यह सम?ा में नहीं आया कि पहले सेहत, बाद में काम आता है. जब सेहत ही ठीक नहीं रहेगी फिर कैसे घरपरिवार और नौकरी देख पाएगी.

आमतौर पर महिलाएं अपनी पर्सनल प्रौब्लम के बारे में बताने से ?ि?ाकती हैं. कई बार वे इन बीमारियों का सामना लंबे समय तक करती हैं. लेकिन फिर भी सब से छिपा कर रखती हैं और इलाज नहीं कराती हैं. इस के कारण हैल्थ प्रौब्लम की समस्या और बढ़ती चली जाती है.

आज के दौर में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है. वे आत्मनिर्भर हो रही हैं. लेकिन कहीं न कहीं कुछ छूट भी रहा है. इन सब में महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो रही हैं या कह सकते हैं कि परिवार, बच्चे, नौकरी के बीच उन्हें खुद पर ध्यान रखने का वक्त ही नहीं मिल पाता है.

समय के साथ युवाओं की सोच बदली. उन के विचारों में खुलापन आया, साथ ही मानसिकता भी बदली. अब भारतीय युवाओं को नैतिक या सामाजिक बंधन से बांधना आसान नहीं क्योंकि वे अपने अच्छेबुरे की सम?ा रखते हैं.

विवाहपूर्व सैक्स संबंध को ले कर युवाओं को अधिक सोचविचार की आवश्यकता नहीं है. एक समय था जब विवाहपूर्व सैक्स पाप सम?ा जाता था. लेकिन आज तमाम सर्वे पर नजर डालें

तो न सिर्फ युवा, बल्कि किशोर लड़केलड़कियों को भी कम उम्र में सैक्स करने से कोई परहेज नहीं है. लेकिन विवाहपूर्व सैक्स के कुछ फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं हैं. विवाहपूर्व सैक्स संबंध कई यौन संबंधी बीमारियों, जैसे एचआईवी एड्स या किसी प्रकार के संक्रमण को न्योता दे सकता है. ऐसे संबंधों में सावधानी न बरती जाए तो गर्भ ठहरने का खतरा भी बराबर बना रहता है. इस से मानसिक तनाव बढ़ सकता है. ब्रिटेन में कच्ची उम्र में लापरवाही से सैक्स करने के कारण महिलाओं में सर्विकल कैंसर के मामले बढ़े.

84 फीसदी कामकाजी महिलाओं ने बताया कि पीरियड्स में पूजा स्थलों, रसोई व पवित्र स्थानों पर जाने से मना किया जाता है. 66 फीसदी महिलाओं ने कहा कि गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं के कारण महिलाओं को शादी के योग्य नहीं माना जाता.

आज बड़ा परिवार न्यूक्लियर फैमिली में सिमट कर रह गया है. विवाहेतर संबंधों के कारण अब यह भी टूटबिखर रहा है. महिलाएं भी अब सैक्स को ले कर मुखर होने लगी हैं. सैक्स को ले कर वे ज्यादा प्रयोग करने लगी हैं. जैसे,

युवा लड़कों के प्रति आकर्षित होना, बाइसैक्सुअलिटी और अन्य प्रयोगों को आजमाना आदि.

आर्थिकतौर पर स्वतंत्र होने की स्थिति में वे बैडरूम और किचन की शोपीस बन कर नहीं रह गईं, बल्कि खुलेतौर पर अंतरंग पलों की मांग कर रही हैं और पुरुषों के समान अपने कामुक व्यवहार का प्रदर्शन कर रही हैं. अब उन में पहले जैसा संकोच या अपराधबोध नहीं रहा. अब आप किसे चाहते हैं, कब चाहते हैं, और किस के साथ चाहते हैं, वाली स्वतंत्रता पर बातें हो रही हैं.

किंतु मौजमस्ती के लिए बना यह संबंध अकसर अपराध, शर्म और डरा देने वाली भावनाओं को जन्म देता है. एक दोहरी जिंदगी जीने से मानसिक असंतोष, थकावट और जलन पैदा हो सकती है. इसलिए उत्तेजना के कुछ क्षणों के लिए अपनी शादी और सेहत को खतरे में डालना बुद्धिमानीभरा निर्णय नहीं है.

दिल्ली, मुंबई समेत 7 शहरों में स्टडी के अनुसार, देश में कामकाजी महिलाओं की सेहत ठीक नहीं है. आधे से अधिक महिलाओं को काम के साथ स्वयं को स्वस्थ रखना चुनौती साबित हो रहा है. 67 फीसदी महिलाएं अपनी सेहत से जुड़ी समस्याओं के बारे में बात करने से हिचकती हैं. घुटघुट कर अपना दर्द अपने अंदर ही समेटे रहती हैं क्योंकि उन का कहना है कि हमारे स्वास्थ्य के बारे में बात करना समाज में वर्जित माना जाता है.

एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में महिलाएं कार्यस्थल पर सेहत से जुड़ी समस्याओं पीरियड्स, ब्रैस्ट कैंसर, गर्भाशय समेत तमाम समस्याओं पर बात करने से हिचकती हैं. महिलाओं का कहना है कि जब हमारी सेहत की बात आती है तो 80 फीसदी पुरुष सहयोगी संवेदनशील नहीं होते हैं.

59 फीसदी महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण नौकरी छोड़ देती हैं. 22 से 55 वर्ष की उम्र की कामकाजी 59 फीसदी महिलाएं सेहत संबंधी समस्याओं से नौकरी छोड़ देती हैं. दूसरा कारण बौस का अच्छा व्यवहार न होना. 90 फीसदी महिलाओं को पारिवारिक दायित्वों के कारण दिक्कतें होती हैं. 52 फीसदी महिलाओं के पास नौकरी पारिवारिक दायित्वों के साथ स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए समय नहीं है.

हाउसवाइफ की स्थिति तो और भी खराब है. उन्हें अपने घर में ही बुरे बरतावों का सामना करना पड़ता है. उन की सेहत के बारे में भी देश, समाज, परिवार ज्यादा नहीं सोचते और न ही वे खुद अपने ऊपर ध्यान रख पाती हैं.

कहने वाले कहते हैं कि ‘उन्हें काम ही क्या होता है, बस घर में आराम से खाना, सोना और टीवी देखना ही तो होता है. गधा मजूरी तो बस हम पुरुषों के ही खाते में है.’ जबकि घर संभालने वाली महिला सब से ज्यादा मेहनत करती है. घर के कामों से ले कर पूरे परिवार का ध्यान रखती है. लेकिन फिर भी उस के कामों को महत्त्व नहीं दिया जाता है. महिला की पहचान तो चिंटूपिंकी की मम्मी या फलाने की पत्नी के रूप में ही होती है. सब को लगता है यह कौन सा बड़ा पापड़ बेल रही है जो इस की तबीयत खराब होगी. आराम से घर में रहती है.

महिलाएं सेहत को ले कर लापरवाह

एक सशक्त परिवार के लिए जरूरी है एक सशक्त और स्वस्थ महिला का होना. महिला घर की चीजों के साथ हर किसी का पूरा ध्यान रखती है. लेकिन बात जब खुद का खयाल रखने, खुद को निखारने और बेहतर बनाने की आती है तो उन के बहानों की ?ाड़ी लग जाती है कि टाइम ही नहीं मिलता क्या करें. इन्हें हम डिफैंस मेकैनिजम या आम भाषा में सुरक्षात्मक युक्ति कहते हैं. लेकिन इस से सुरक्षा तो नहीं मिलती, उलटे लंबे समय में नुकसान ही होता है.

हमारे पड़ोस की ही एक महिला को बुखार के साथ असहनीय सिरदर्द होने लगा. उसे लगा, थकावट की वजह से ऐसा हुआ हो या बदलते मौसम का असर होगा, दवाई खा लेगी तो ठीक हो जाएगी. मगर रात होतेहोते उस का बुखार सिर पर चढ़ गया जिस से उस की मौत हो गई. अगर समय रहते वह डाक्टर के पास चली गई होती तो आज वह जिंदा होती.

हाउसवाइफ की यह आदत होती है कि घर में सब को खिला कर ही खाती है. रात का बचा हुआ खाना फेंकना न पड़े, इसलिए खुद ही खा लेती हैं. इस से अकसर उन में गैस या उलटी की शिकायत हो जाती है. तथ्य यह है कि भोजन को बनने के 2 घंटे के अंदर ही खा लेना चाहिए क्योंकि उस के बाद वह अपने पौष्टिक तत्त्व खोने लगता है. बासी भोजन अपच का कारण बनता है और कई तरह के नुकसान भी पहुंचाता है.

वहीं, वर्किंग वुमन काम के चक्कर में न तो सही से नाश्ता कर पाती है और न खाना खा पाती है, जिस का सीधा असर उस की सेहत पर पड़ता है. सेहत खराब होने पर वह जल्दी डाक्टर के पास भी नहीं जाती, बल्कि घरेलू उपचार से खुद को ठीक करने की कोशिश करती हैं.

डाक्टर्स का कहना है कि अकसर यह देखा गया है कि जब महिलाएं घरपरिवार और कार्यस्थल हर जगह अपना दायित्व का पालन करती हैं, उस वक्त वे सेहत पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दे पातीं. जब परेशानी हद से ज्यादा बढ़ जाती है तब अपनी सेहत की जांच करवाती हैं.

महिलाएं भी समाज का एक अभिन्न अंग हैं, इसलिए महिलाओं की चिंता सभी को होनी चाहिए, पर अकसर देखा गया है कि घर और औफिस के बीच महिलाएं अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर देती हैं. जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां काफी जटिल होती हैं. महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की बात करें तो पुरुषों की तुलना में ये काफी भिन्न हैं.

दिल की बीमारी :  लोगों का मानना है कि दिल की बीमारी सिर्फ पुरुषों को ज्यादा होती है तो ऐसा नहीं है. यह स्थिति पुरुषों और महिलाओं को लगभग समानरूप से प्रभावित करती है. 54 प्रतिशत महिलाओं में दिल से जुड़ी बीमारियों के लक्षण देखे जा सकते हैं. इन में हाई ब्लडप्रैशर, हाई कोलैस्ट्रौल या धुएं के कारण होने वाली दिल से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं. साथ ही, पीरियड्स के खत्म हो जाने के बाद यानी कि मीनोपोज में भी महिलाओं को दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा होता है.

यूटरस कैंसर : यूटरस कैंसर निचले गर्भाशय में होता है और इस की शुरुआत फैलोपियन ट्यूब से होती है. इस के कारण महिलाओं को अनियमित ब्लीडिंग और डिस्चार्ज के साथ पेड़ू में दर्द हो सकता है.

स्तन कैंसर : स्तन कैंसर महिलाओं में बड़ी तेजी से फैल रहा है. यह एक पूरी वैश्विक महिला आबादी को प्रभावित कर रहा है और स्थिति दिनबदिन और खराब होती जा रही है. कई महिलाओं में इसे ले कर जागरूकता की कमी होती है. ऐसे में जरूरी है कि महिलाओं को ब्रैस्ट कैंसर के लक्षणों से वाकिफ कराया जाए ताकि समय रहते उस का इलाज हो सके.

पीरियड्स और मीनोपोज : पीरियड्स और मीनोपोज दोनों ही महिलाओं के स्वास्थ्य का सब से गंभीर मुद्दा हैं. लेकिन देखा गया है कि महिलाओं को जब भी कभी पीरियड्स या मीनोपोज से जुड़ी कोई समस्या होती है तो वे इसे बताने में हिचकती हैं, जो उन की सेहत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. कई ऐसी हैल्थ प्रौब्ल्म्स होती हैं जिन्हें महिलाएं छिपा लेती हैं, किसी से बता नहीं पातीं और न ही परिवार या पति उन की सेहत को ले कर चिंतित दिखाई देते हैं.

पेशे से बैंक कर्मचारी मनीषा का कहना है, ‘‘बच्चे छोटे थे, तब स्कूल टिफिन सब मु?ो ही करना पड़ता था. सुबह उठ कर मैं घर के सारे काम निबटा कर औफिस के लिए निकलती थी. औफिस से आतेआते मैं काफी थक चुकी होती हूं, ऊपर से घर में बिखरा काम मु?ो आराम करने की इजाजत नहीं देता. घरबाहर पिसती मैं अपना जरा भी खयाल नहीं रख पाती. कमाऊ स्त्री की मदद कोई नहीं करता पर सुविधाएं लेने सब आ जाते हैं.

‘‘आज मैं हाई बीपी और अनिद्रा से गुजर रही हूं. काम की टैंशन की वजह से जल्दी नींद न आने की बीमारी परमानैंट हो गई है. अब सुबह जल्दी उठा नहीं जाता. बेटी बड़ी हो रही है तो घर के कामों में वह कुछ हैल्प कर देती है, वरना किसी को मेरी नहीं पड़ी.’’

मनीषा का कहना है, ‘‘वर्किंग वूमन ऐसी मोमबत्ती है जो दोनों सिरों से जलती है. 95 फीसदी वर्किंग वूमन की यही हालत है कि उन्हें अपने लिए वक्त नहीं मिल पाता. हर काम परफैक्ट करने के चक्कर में वे खुद के स्वास्थ्य से सम?ाता करती रहती हैं. हाउसवाइफ घर संभालती है, तभी पुरुष प्रगति कर पाते हैं, पर यह बात कितने पुरुष सम?ाते हैं?

आंकड़ों के मुताबिक, 15 से 44 साल के बीच की एकतिहाई महिलाएं रिप्रोडक्टिव हैल्थ यानी यौन सेहत से जुड़ी समस्याओं से परेशान रहती हैं. इस के लिए मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंध जिम्मेदार होता है. लेकिन यह बात वे जल्दी किसी से बता नहीं पातीं.

एड्स : करीब 3 दशक से महिलाएं एचआईवी इन्फैक्शन का शिकार होती चली आ रही हैं. आज भी कई महिलाएं एचआईवी के सैक्सुअल ट्रांसमिशन से खुद को बचाने की कोशिश करती

हैं. इस की वजह से महिलाएं ट्यूबरक्लोसिस की चपेट में आ जाती हैं. कम आय वाले देशों में 20-59 साल की महिलाओं में सब से ज्यादा मौतें इसी की वजह से होती हैं.

सैक्सुअल ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन : एचआईवी के अलावा गोनोरिया, क्लैमाइडिया और सिफलिस जैसी यौन संचारित बीमारियों के प्रति महिलाओं को जागरूक करने और इन की रोकथाम की जरूरत है. सिफलिस जैसी बीमारी का इलाज न होने पर आज भी हर साल

2 लाख बच्चे पैदा होने से पहले ही मां की कोख में मर जाते हैं.

मानसिक सेहत : बीमारियों के अलावा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन की मानसिक सेहत पर बहुत बुरा असर डालती है. आज भी महिलाएं अपने घर में शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार होती हैं पर किसी से कह नहीं पातीं और अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं. लेकिन शारीरिक और मानसिक रूप से इस का असर उन पर लंबे समय तक बना रहता है.

डिप्रैशन : आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं चिंता, तनाव और कुछ खास शारीरिक परेशानियों की ज्यादा शिकार होती हैं लेकिन किसी से कह नहीं पातीं. तनाव तो सब से आम समस्या है. 60 से कम उम्र की महिलाएं डिप्रैशन के चलते खुदकुशी करने जैसा बड़ा कदम उठा लेती हैं.

जब एक महिला स्वस्थ और प्रसन्न होगी तभी वह परिवार और समाज में निर्धारित अपनी अनेक भूमिकाओं को निभा पाएगी तथा दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध बना सकेगी. महिला का स्वास्थ्य उस के जीवन के हर पहलू पर प्रभाव डालता है. फिर भी अनेक वर्षों तक और आज भी, महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवा का मतलब सिर्फ गर्भाशय तथा प्रसव में दी जाने वाली मातृ स्वास्थ्य सेवाओं से अधिक कुछ नहीं रहा है. ये सेवाएं आवश्यक हैं. लेकिन ये केवल महिलाओं की, मां की भूमिका का ही ध्यान करती हैं. केवल बच्चे पैदा करने की क्षमता को छोड़ कर महिलाओं का स्वास्थ्य तथा उन से संबधित अन्य आवश्यकताओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्त्व दिया जाता है.

महिलाओं की सेहत को ले कर परिवार वालों को भी इस का दायित्व लेने की जरूरत है, साथ ही, कार्यस्थल पर समयसमय पर फिजिकल और मैंटल हैल्थ के लिए सैशन करवाना चाहिए. सजगता और जागरूकता से सेहत की समस्याएं कम की जा सकती हैं. इस के अलावा महिलाएं भी खुद के स्वस्थ्य को इगनोर न करें. खुद के लिए समय जरूर निकालें.

उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं के शरीर में कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं. महिलाओं को स्वस्थ रहने के लिए विटामिन, मिनरल्स और पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए. इस के अलावा पर्याप्त नींद लेना, तनाव रहित रहना, इमोशनल ईटिंग से बचना, जरूरत से ज्यादा डाइटिंग, ड्रिंक से दूरी, गलत साइज की ब्रा, हाई हील वाले फुटवियर्स पहनने से दूरी बनाए रखना भी जरूरी है.

अकसर महिलाओं का हैवी बैग का इस्तेमाल भी पीठ, गरदन और कंधे के दर्द का कारण बनता है. इसलिए उन्हें प्लस साइज के बजाय छोटे साइज का हैंडबैग इस्तेमाल करना चाहिए.

आज के दौर में हाई बीपी, शुगर, कोलैस्ट्रौल जैसी बीमारियां कौमन समस्या बन गई हैं. लेकिन इन्हें समय रहते कंट्रोल कर लिया जाए तो आप स्वस्थ बने रह सकते हैं. वक्त पर इन की जांच करते रहने से आप इस बात से निश्ंिचत रहते हैं कि आप का बीपी, शुगर लैवल सही है. लेकिन काम की व्यस्तता के चलते हमेशा डाक्टर के पास जाना भी संभव नहीं हो पाता तो हम आप को कुछ ऐसे मैडिकल इक्विपमैंट्स के बारे में बता रहे हैं जिन की मदद से आप घरबैठे अपनी जांच कर सकते हैं.

पल्स औक्सीमीटर : कोरोनाकाल में इस की डिमांड काफी बढ़ गई थी. पल्स औक्सीमीटर की मदद से आप घरबैठे ही अपने औक्सीजन लैवल की जांच कर सकते हैं. कई अच्छेअच्छे ब्रैंड के लेटेस्ट पल्स औक्सीमीटर बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें आप औनलाइन या औफलाइन खरीद सकते हैं.

ब्लडप्रैशर का भी रखें ध्यान : औटोमेटिक ब्लडप्रैशर मौनिटर एक आवश्यक गैजेट है. गौर करने वाली बात यह है कि ऐसे डिवाइस खरीदें जो पल्स रेट को दिखाए, साथ में दिल की धड़कन के बारे में भी जानकारी दे. बाजार में कई लेटेस्ट ब्रैंड के डिजिटल प्रैशर मौनिटर उपलब्ध हैं. इन की कीमत 2 हजार से ले कर 3 हजार रुपए तक है. औनलाइन खरीदारी पर डिस्काउंट भी मिलता है.

हार्ट हैल्थ को करें ट्रैक :  घरबैठे ही पोर्टेबल पर्सनल ईसीजी मौनिटर से बिना परेशानी के डेली ईसीजी रिकौर्ड करने में आप की मदद करेगा और साथ में आप के दिल के स्वास्थ्य को भी मौनिटर करेगा. यह स्मार्टफोन कंपैनियन ऐप के साथ आते हैं जिन पर आप अपना हैल्थ रिकौर्ड देख सकते हैं.

ग्लूकोमीटर :  यह मशीन हाईलैवल शुगर वालों के लिए बेहद जरूरी है. इस की मदद से आप कुछ सैकंड में ही अपने शुगर लैवल की जांच कर सकते हैं. इस की कीमत 1,000 से 15,000 रुपए तक होती है.

पेन रिलीफ डिवाइस :  बता दें कि दर्द को दूर भगाने के लिए मार्केट में कुछ पेन रिलीफ डिवाइस भी मौजूद हैं. अपनी आवश्यकता के अनुसार आप अच्छे ब्रैंड्स के डिवाइस खरीद सकते हैं. इस के अलावा औक्सीजन कौंसंट्रेटर, इमरजैंसी डिवाइस, मैडिकल अलर्ट सिस्टम, कौंटैक्टलैस थर्मामीटर, पोर्टेबल औक्सीजन सिलिंडर, नेब्यूलाइजर, स्टीमर, रेस्पिरेटरी ऐक्सरसाइजर जैसे मैडिकल गैजेट्स भी हैं जिन की मदद से आप घरबैठे ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं. मैडिकल प्रोफैशनल से पूछें कि कौन सा मैडिकल डिवाइस आप के लिए सही रहेगा.

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