जहां भारतीय जनता पार्टी और उस का पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बिना बड़े नेताओं के हर समय आम जनता के बीच बने रहते हैं, वहां कांग्रेस, आम जनता से दूर, अपने बड़े और बूढ़े नेताओं की खैरखबर में लगी रहती है. पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा में हार और उत्तर प्रदेश में नाममात्र की पार्टी रह जाने के बाद मातमपुरसी के लिए कांग्रेस की जो बैठक हुई उस में नेताओं ने अपने ख़याल न रखे जाने की शिकायत ज्यादा की, पार्टी के प्रभावी कार्यक्रमों की कमी की कम.

आम जनता को एक राजनीतिक दल की जरूरत इसलिए होती है कि देश का काम सुचारु रूप से चल सके और सरकार हर कोने पर उसे सहायता करती दिखाई दे. पिछले 40-50 सालों में कांग्रेस ने राज किया पर कभी भी जनता के साथ चलने का काम नहीं किया. चुनाव जीते तो इसलिए कि उस के पास कुछ इतिहास पुरुष थे जो कांग्रेस की पूंजी थे पर जैसेजैसे वे इतिहास पुरुष किताबों की कब्रों में दफन होते गए, उन ‘कंकालों’ की जगह म्यूजियमों में रह गई, चुनावी रणक्षेत्रों में नहीं.

भारतीय जनता पार्टी ने पौराणिक पुरुषस्त्री खोज कर निकाले और इस के साथ उन को पूजापाठ, सुखी जीवन, भविष्य और जीने की कला से जोड़ दिया गया. भाजपा के पास लाखों पुजारी हैं जो बिना पैसे लिए काम करते हैं. उन्हें पैसा तो भक्त अपनेआप देते हैं. उधर कांग्रेसी नेता कानूनों के सहारे जनता पर हावी होते चले गए. जनता को कांग्रेस के नेताओं की जरूरत कांग्रेस सरकार के बनाए व बुने मकडज़ाल से निकालने के लिए होती थी. कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान सैकड़ों कानून बनवाए जिन्होंने जनता का गला पकड़ रखा है और नेता अगर कुछ काम करते थे तो सिर्फ अपने कुछ चहेतों को इन जाल से निकालने का करते थे.

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आज भी कांग्रेस समझ नहीं पा रही है कि उस की दुर्गति नेताओं की अवहेलना से हुई है या जनता को भूल जाने से. कांग्रेस आज भी भाजपा के बाद सब से बड़ी पार्टी है पर उस का एजेंडा क्या है, यह सवाल उस के खुद के लिए मुंहबाए खड़ा है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को सिरमाथे पर रखना तो उद्देश्य नहीं हो सकता. उत्तर प्रदेश में दिए नारे ‘लडक़ी हूं, लड़ सकती हूं’ का मतलब कुछ होता अगर कांग्रेस राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तमिलनाडू, जहां सत्ता में है या भागीदार है, में इस प्रोग्राम को लागू करती या करवा पाती.

भाजपा इस के विपरीत हर एकादशी, अमावस्थ्या, पूर्णिमा, दशमी, चौदस… यानी लगभग हर रोज कुछ न कुछ तमाशा अपने मंदिरों में कराती रहती है. ‘जय बम बोले’, ‘जय श्री राम’, ‘जय माता दी’ आदि नारों के साथ ‘जय भाजपा’ अपनेआप निकलता है.

कांग्रेस पहले समाज का परिवर्तन कर रही थी. आज भाजपा उस के परिवर्तन पर सीमेंट का लेप लगा रही है. और कांग्रेस चुप है. उसे कोई चिंता नहीं. वह विरोध नहीं कर रही कि दिए गए आरक्षण को खत्म किया जा रहा है, औरतों को संस्कृति के नाम पर पूजापाठी बनाया जा रहा है, जनता के टैक्स का पैसा भगवा सरकार द्वारा मंदिरों, घाटों और आरतियों में फूंका जा रहा है.

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कांग्रेस में चाहे ऊंची जातियों के नेता सदा भरे रहे पर उन में से काफी उदार थे जो संवैधानिक मूल्यों को समझते थे. आज उन की दूसरीतीसरी पीढ़ी समाज से कट गई है. वह ???……??? के दंभ में गरीबों से बहुत दूर हो गई है. नाक पर फुनैल रख कर चुनाव से मात्र 10 दिनों पहले गंदी गलियों की पदयात्रा से जीत नहीं मिलती. जीत तो उन पुजारियों से मिलती है जो अछूतों के घरों में भी जाते रहते हैं और दक्षिणा में उन से पैसा भी बनाते हैं और वोट भी.

कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया कि यह आम गरीब, सताए जाने वालों की पार्टी है और रहेगी. कमेटी को तो गांधी परिवार को कोसने के अलावा कुछ नहीं मिला.

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