व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अद्भुत साहस और क्षमता का प्रदर्शन कर सारे विश्व को संदेश दे दिया है कि एक बहुत छोटा देश भी बड़े देश के सामने सिर झुकाने से इनकार कर सकता है. अमेरिका और यूरोप अभी आर्थिक शिकंजा ही कस रहे हैं पर उन से भी रूस गरीबी के गहरे गड्ढे में दशकों तक के लिए सिर्फ व्लादिमीर पुतिन की हठधर्मिता के कारण गिर जाएगा.

रूस और यूक्रेन के बीच विवाद नया नहीं है. यह विवाद 2014 से जारी है. यह वर्चस्व की एक लंबी लड़ाई है, जिस का पूर्ण समाधान हालफिलहाल निकलता नहीं दिख रहा है. इस लड़ाई में एक तरफ खुद को महाशक्ति मानने वाला रूस और उस की समर्थक सेनाएं हैं और दूसरी तरफ यूक्रेन व उस के पीछे नाटो की शक्ल में अमेरिका की कूटनीतिक ताकत है.

1991 तक यूक्रेन पूर्ववर्ती सोवियत संघ (यूएसएसआर) का हिस्सा था. यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ी हुई है. रूस के विघटन के बाद जो देश अलग हुए थे उन में यूक्रेन भी एक था. क्रीमिया भावनात्मक रूप से रूस के साथ जुड़ा हुआ था, जिस को वर्ष 2014 में रूस ने आजाद कर अपने नियंत्रण में ले लिया था. इस के अलावा यूक्रेन के डोनबास, लुहांस्कन और डोनेस्ततक इलाकों में रूसी समर्थक लोग बहुत ज्यादा संख्या में हैं. यूक्रेन के बाहर बेलारूस और जौर्जिया पूरी तरह से रूस के साथ हैं. यानी एक तरह से यूक्रेन पूरी तरह रूस और उस के समर्थक देशों से घिरा हुआ है.

आइए उन कारणों की बात करते हैं जिन की वजह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है. कई महीनों तक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर हमले की किसी भी योजना से इनकार करते रहे, लेकिन अचानक उन्होंने यूक्रेन में ‘स्पैशल मिलिटरी औपरेशन’ का ऐलान कर दिया.

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इस लड़ाई को सम?ाने के लिए हमें 8 साल पीछे यानी साल 2014 में जाना होगा जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. उस वक्त रूस समर्थित विद्रोहियों ने देश के पूर्वी हिस्से में एक अच्छेखासे इलाके पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त से ले कर आज तक इन विद्रोहियों की यूक्रेन की सेना से भिड़ंत लगातार जारी है. पुतिन ने मिन्स्क शांति सम?ाते को खत्म कर यूक्रेन के 2 अलगाववादी क्षेत्रों में सेना भेजने की घोषणा के बाद कहा था, ‘हम इन क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिए सेना भेज रहे हैं. मगर अब उन का इरादा यूक्रेन में तख्तापलट का है.’

यूक्रेन से चिढ़ते हैं पुतिन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को पश्चिमी देशों की कठपुतली मानते हैं. वे यूक्रेन की यूरोपियन यूनियन, नाटो और अन्य यूरोपीय संस्थाओं के साथ नजदीकी का विरोध करते रहे हैं. उन का कहना है कि यूक्रेन पूर्णरूप से कभी एक देश था ही नहीं. वहां रहने वाले भावनात्मक रूप से रूस से जुड़े हुए हैं. ऐसी धारणा फैला कर रूस काफी वक्त से यूक्रेन पर पूर्वी हिस्से में ‘जनसंहार’ का आरोप लगा कर युद्ध के लिए माहौल तैयार कर रहा था. उस ने विद्रोही इलाकों में लगभग 7 लाख लोगों के लिए पासपोर्ट भी जारी किए हैं. माना जाता है कि इस के पीछे रूस की मंशा अपने नागरिकों की रक्षा के बहाने यूक्रेन पर कार्रवाई को सही ठहराना है.

विवाद की बड़ी वजह है नाटो

यों तो रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई की कई वजहें हैं लेकिन इन में सब से बड़ी वजह है नौर्थ अटलांटिक ट्रीटी और्गेनाइजेशन यानी नाटो. इसी की वजह से सारा बवाल शुरू हुआ है. गौरतलब है कि वर्ष 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निबटने के

लिए अमेरिका ने नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) का गठन किया था. इस संगठन को रूस को काउंटर करने के लिए बनाया गया था.

अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं. यदि कोई देश नाटो देश पर हमला करता है तो वह हमला पूरे नाटो देश पर माना जाता है और उस का मुकाबला सभी नाटो सदस्य देश एकजुट हो कर करते हैं. यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन यह बात रूस को रास नहीं आ रही है. इसी वजह से ही विवाद जारी है.

रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो उस के सैनिक रूस-यूक्रेन सीमा पर डेरा जमा लेंगे. इस वजह से रूस को लगता है कि नाटो जैसे संगठन के सैनिक अगर उस सीमा पर आ जाते हैं तो उस के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी. रूस चाहता है कि नाटो अपना विस्तार न करे.

राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को ले कर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दबाव डाल रहे थे. गौरतलब है कि नाटो में 30 लाख से अधिक सैनिक हैं, जबकि रूस के पास सिर्फ 12 लाख सैनिक हैं. इस की वजह से रूस को बड़ा खतरा महसूस होता है. यही वजह है कि रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को इस का सदस्य नहीं बनने देना चाहता. रूस चाहता है कि नाटो उसे लिखित रूप में यह आश्वासन दे कि वह यूक्रेन को नाटो में कभी शामिल नहीं करेगा. इस के अलावा रूस का कहना है कि नाटो उन देशों को शामिल न करे, जो देश सोवियत संघ से अलग हुए हैं.

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क्रीमिया विवाद

रूस ने वर्ष 2014 में यूक्रेन के शहर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. दरअसल, क्रीमिया में रूस समर्थित लोग बहुसंख्यक हैं. वे रूसी भाषा बोलते थे और रूस से अधिक लगाव रखते थे. साल 2014 में रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति थे, लेकिन राजधानी कीव में हिंसक प्रदर्शन के बाद यानुकोविच को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इस के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह में लोगों ने रूस के साथ जाने के लिए मतदान किया. मगर तब से यूक्रेन और पश्चिमी देश क्रीमिया को रूस में मिलाने को अवैध मानते हैं.

इस के साथ ही क्रीमिया में एक बंदरगाह है, सेवस्तोपोल पोर्ट, जो रूस के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है. यह ऐसा बंदरगाह है जो रूस को साल के बारहों मास समुद्र से कनैक्टिविटी देता है. इस वजह से यूक्रेन डरा हुआ है कि रूस उस के और भी क्षेत्रों पर कब्जा कर सकता है. सो, यूक्रेन नाटो में शामिल हो कर खुद की सुरक्षा चाहता है.

गैस पाइपलाइन

रूस और यूरोप गैस पाइपलाइन विवाद भी लड़ाई की एक वजह है. रूस इस पाइपलाइन के जरिए गैस को यूरोप तक भेजता था. यह पाइपलाइन यूक्रेन से हो कर जाती थी, रूस को उन्हें ट्रांजिट शुल्क देना पड़ता है. रूस हर साल करीब 33 बिलियन डौलर का भुगतान युक्रेन को कर रहा था. यह राशि यूक्रेन के कुल बजट की 4 फीसदी है. रूस को इस कारण बहुत महंगी (10 बिलियन डौलर) नौर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन की शुरुआत करनी पड़ी. इस के जरिए रूस ने समुद्र में पाइपलाइन डाल कर यूरोप को गैस पहुंचाई थी. ऐसे में रूस को लगता है कि अगर वह यूक्रेन के कुछ क्षेत्र पर कब्जा करता है तो उसे गैस पाइपलाइन भेजना आसान होगा.

भीषण संघर्ष जारी

रूस और यूक्रेन के बीच भीषण जंग जारी है. यूक्रेन की राजधानी कीव और खारकीव में रूसी सेना के ताबड़तोड़ हमले जारी हैं. दोनों देशों के बीच बेलारूस में हुई बातचीत बेनतीजा रही. एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र यूक्रेन की मदद के लिए कमर कस कर खड़ा है वहीं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना को ‘स्पैशल अलर्ट’ पर रखने का आदेश दिया है जिस में परमाणु हथियार भी शामिल हैं. अब तक दोनों ओर से सैकड़ों सैनिकों की मौत हो चुकी है. साथ ही, दर्जनों लड़ाकू विमान, हैलिकौप्टर और टैंक नष्ट हो चुके हैं.

राजधानी कीव के करीब 40 मील तक रूसी सेना का जमावड़ा लगा है. वहीं संसाधनों की कमी के बावजूद यूक्रेन पूरी मुस्तैदी से अपनी सरहदों की रक्षा में जुटा है. चारों ओर तबाही का मंजर है. अब तक यूक्रेन में 352 लोगों की जान जा चुकी है, जिन में 16 बच्चे भी शामिल हैं. इन के अलावा 1,684 लोग घायल हुए हैं. यूनाइटेड नैशंस के मुताबिक, यूक्रेन छोड़ कर दूसरे देशों में पलायन करने वाले शरणार्थियों की संख्या 3 लाख 86 हजार से ज्यादा हो गई है.

ईयू ने लगाए प्रतिबंध

यूक्रेन पर हमला करने के बाद रूस पर ईयू ने कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. इस के जवाब में रूस ने भी बड़ा पलटवार किया है. रूस ने 36 देशों के लिए हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है जिन में यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश जरमनी, फ्रांस, स्पेन और इटली भी शामिल हैं.

इस बीच यूरोपियन यूनियन की सदस्यता के लिए यूक्रेन ने आवेदन कर दिया है. यूक्रेन के राष्ट्र्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए एक आवेदन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यूक्रेन की संसद ने बाकायदा इस का ऐलान किया है. जेलेंस्की के इस कदम से पुतिन का पारा और चढ़ गया है.

यूक्रेन को 50 करोड़ यूरो की आर्थिक मदद

यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया को 2 धड़ों में बांट दिया है. एक तरफ भारत जैसा देश तटस्थ रहने की कोशिश में है तो वहीं चीन और पाकिस्तान ने भी दूरी बना रखी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जरमनी जैसे पश्चिमी व यूरोपीय देश खुल कर रूस के सामने आ गए हैं. इन में से कई देशों ने यूक्रेन को सैन्य हथियार मुहैया कराने से ले कर अन्य मदद देने की बात कही है.

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नाटो चीफ ने यूक्रेन को एंटी टैंक हथियार और मिसाइल देने का एलान किया है. अब तक कुल 21 देशों की ओर से यूक्रेन को मदद देने का एलान हो चुका है. यूरोपीय संघ ने औपचारिक रूप से यूक्रेनी सशस्त्र बलों को उपकरण और आपूर्ति के लिए 50 करोड़ यूरो (लगभग 42 अरब 37 करोड़ 10 लाख रुपए) उपलब्ध कराने के प्रावधान को मंजूरी दे दी है. ईयू ने इस मदद में पहली बार घातक हथियारों को भी शामिल करने का फैसला लिया है.

क्यों है भारत तटस्थ

भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने से दूरी बनाई हुई है और वार्त्ता के जरिए समस्या का समाधान खोजने पर जोर दे रहा है. भारत यूक्रेन को ले कर सावधानी से कदम उठा रहा है. वह रूस और अमेरिका दोनों से ही नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता. कुछ खास वजहों पर नजर डालते हैं.

भारत के लिए यूक्रेन संकट 2 खंभों के बीच बंधी रस्सी पर चलने जैसा है, जिस की वजह से उसे अपने पुराने दोस्त रूस और पश्चिम में नए दोस्तों का दबाव ?ोलना पड़ रहा है.

रूस भारत के हथियारों की सप्लाई करने वाला सब से बड़ा आपूर्तिकर्ता है और उस ने भारत को एक बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन दी है.

भारत के पास 272 सुखोई, 30 फाइटर जेट हैं. ये भारत को रूस से ही मिले हैं. भारत के पास पनडुब्बियां और 1,300 से ज्यादा टी-90 टैंक्स हैं, जो रूस ने ही मुहैया कराए हैं.

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत रूस से एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम खरीदने के लिए अडिग रहा. एस-400 रूस की सब से एडवांस्ड लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है. इस मिसाइल सिस्टम की खरीद के लिए भारत ने रूस से 2018 में 5 अरब डौलर की डील की थी.

रूस यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में सभी मुद्दों पर भारत के साथ खड़ा रहा है.

उधर, अमेरिका ने रूस के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया के लिए भारत पर दबाव बना रखा है. भारत के लिए अमेरिका भी रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कट्टरपंथी, धार्मिक और दंभी नेता ज्यादा पसंद आते हैं जिन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी हैं.

अपने लोगों को निकालने की कवायद

जैसेजैसे युद्ध का रूप भयानक होता जा रहा है और रूस यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, वैसेवैसे वहां फंसे विदेशी नागरिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, खासतौर से छात्रछात्राओं की, जिन को निकालने की कोशिशें लगातार हो रही हैं. यूक्रेन में 80 हजार विदेशी छात्रों में सब से ज्यादा भारतीय हैं. इस के बाद मोरक्को, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान और नाइजीरिया के छात्रों का नंबर आता है.

खारकीव में भारतीय छात्र की मौत

खारकीव यूक्रेन का दूसरा सब से बड़ा शहर है जिसे रूस की सेना का पहला रणनीतिक लक्ष्य माना जा रहा है. जब रूसी सैनिक इस शहर में घुसे तो उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिस के बाद से रूस यहां बम बरसा रहा है. रूसी सेना खारकीव पर क्लस्टर बम और वैक्यूम बम जैसे विनाशकारी हथियारों से कहर बरपा रही है.

खारकीव में करीब 3,000 भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. यहां हो रही गोलाबारी में एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद से छात्रों का भय चरम पर है. वहीं फंसे एक भारतीय डाक्टर स्वाधीन ने पिछले दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से वहां के बदतर होते जा रहे हालात का जिक्र करते हुए कहा था कि वहां फंसे भारतीय छात्रों की हालत बहुत खराब है.

उन्होंने कहा था कि लोगों को खानेपीने की बहुत दिक्कत है. वे छात्रों को खाना दे रहे हैं लेकिन खुद उन के पास एक या दो दिन का ही खाना बचा था. उन्होंने कहा था कि अगर भारत सरकार ने जल्दी कोई ऐक्शन नहीं लिया तो छात्रों के लिए हालात बहुत खराब होने जा रहे हैं.

गौरतलब है कि खारकीव यूक्रेन की पश्चिमी सीमाओं से बहुत दूर है. इसलिए यहां से छात्रों को निकालना भी बहुत बड़ी चुनौती है. हवाई हमलों के बीच 1,500 किलोमीटर पैदल चल कर रोमानिया सीमा तक पहुंचना उन के लिए संभव नहीं है.

एक अनुमान के मुताबिक यूक्रेन में 20 हजार भारतीय छात्र हैं. ये वहां विभिन्न मैडिकल कालेजों में पढ़ रहे हैं. मैडिकल शिक्षा की कम लागत और आसान प्रवेश प्रक्रिया के कारण फिलीपींस और यूक्रेन को प्राथमिकता दी जाती है. भारतीय छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के भारतीय दूतावासों के संयुक्त प्रयासों से पूरी की जा रही है. इन छात्रों ने सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की बहुत छीछालेदरी की तो वह हिली और अंत में अपने नागरिकों को वापस लाने में सहयोग दिया.

युद्ध बनाम जनयुद्ध 

युद्ध सिर्फ त्रासदियों को जन्म देता है. हम ने इतिहास में कई युद्ध देखेसुने और ?ोले हैं. उन युद्धों से कुछ भी ऐसा हासिल नहीं हुआ जिसे सहेजा जाए. उन की कड़वी यादें और उन से हुए भारी नुकसान ही इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से अंकित हुए.

मौजूदा समय में पुतिन ने रूस के कपोलकाल्पनिक अस्थिर हो जाने के खतरे की संभावना मात्र के चलते एक लोकतांत्रिक व अपने से काफी कमजोर देश यूक्रेन को अस्थिर कर दिया है. सोचिए, एक शहर बसने में सदियां लग जाती हैं, सुंदर इमारतों के खड़े होने में संपत्तियां लुट जाती हैं, लेकिन उन के उजड़ने और बिखरने में मिनटभर भी नहीं लगा. आग में धूधू हो रहे कितने बेकुसूर यूक्रेनियन लोगों के घर उजड़ गए, कितने बेघर हो गए हैं, कितने मारे जा रहे हैं और कितने डर के साए में जी रहे हैं.

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रूस के और्थोडौक्स राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सनक ने दुनिया को महायुद्ध की स्थिति में ला खड़ा किया है. पुतिन एक ऐसा शासक है जो बिना जनता की राय के खुद को आजीवन सत्ता में बनाए रखने के लिए संविधान में संशोधन कर चुका है. उसी की राह पर चीन का राष्ट्रपति जिनपिंग भी वही संशोधन कर चुका है. वहीं, हमारे देश भारत के कई भारतीयों को डर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी राह जाते दिख रहे हैं, कहीं यहां भी वैसा ही न हो जाए.

दुनिया का हर तानाशाह ?ाठ बोलता है, ?ाठ नहीं बोलेगा तो तानाशाही नहीं चलेगी. हिटलर के ?ाठ से आज भी दुनियाभर के तानाशाह अपने लिए नाजीर सैट करते हैं. लेकिन वे सब यह भूल जाते हैं कि भ्रम की दुनिया एक समय तक ही रहती है.

जाहिर तौर पर पुतिन की आक्रामक हरकत से दुनियाभर में पुतिन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. यहां तक कि रूस की राजधानी मास्को में भी कई रशियन नागरिक बिना राष्ट्रवाद का उन्माद लिए अपने ही राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करते देखे गए और नारे लगाते रहे कि ‘‘पुतिन 21वीं सदी ने नया ‘जार’ है.’’

पुतिन को नागरिकों का एक युद्ध बाहर से तो एक युद्ध उस की सेना को युद्धभूमि में यूक्रेनवासियों से ?ोलने को मिल रहा है. जिस दौरान रूस के सैनिकों ने अपने भयानक हथियारों से यूक्रेन पर चढ़ाई की तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अपनी भावुक अपील से यूक्रेन और दुनिया के नाम एक संदेश दिया. उन्होंने अपने संदेश में कहा, ‘‘दुनिया ने हमें अकेला छोड़ दिया है, लेकिन हम अपनी आजादी के लिए लड़ेंगे.’’ इस संदेश के बाद जेलेंस्की खुद भी युद्ध मोरचे में चले गए.

यह बात इतिहास में दर्ज होने जा रही है कि यह युद्ध ऐसा है जिस में तकरीबन निहत्थी, कमजोर सेना व छोटे से देश के मुकाबले दुनिया की दूसरी सब से बड़ी ताकत रूस पूरी दमखम से उतर गई और उस के कमांडर इन चीफ ने जरा भी नैतिकता नहीं बरती बल्कि परमाणु बम की धमकी तक दे डाली. इस के बावजूद यूक्रेन की जनता अपनी आजादी के लिए लगातार संघर्ष करती रही.

क्या ऐसा मंजर हम ने अतीत में शीतयुद्ध के दौर में हुए अमेरिका-वियतनाम युद्ध में नहीं देखा, जब दुनिया की सब से बड़ी महाशक्ति एक नवजात, कमजोर और अपनी नईनई आजादी का जश्न मना रहे देश वियतनाम को ध्वस्त करने पर आमादा थी. लेकिन वियतनामी लड़ाकुओं के आगे अंत में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी. इतिहास में जब इस का जिक्र आता है तो अमेरिकी आक्रमणकारी और वियतनामी संघर्ष की गाथा ही कानों में सुनाई देती है.

आज गलियारों में ऐसी चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं कि कहीं पुतिन के लिए यह युद्ध ‘वाटरलू’ न साबित हो जाए. इस में सब से बड़ी बात यह कि यूक्रेन का युद्ध अब जनयुद्ध में तबदील हो गया है. यूक्रेन की जनता इस युद्ध में खुद ही शामिल हो गई है. यह यूक्रेन के लिए इमोशनल वार में बदल चुका है. इसी का परिणाम है कि पुतिन जो सोच रहे थे कि वे 2-3 दिनों के भीतर ही यूक्रेन के दो चीरे कर आगे बढ़ जाएंगे और यूक्रेन अपने हथियार डाल देगा, वह नहीं हो सका. रूस के दांत फिलहाल यूक्रेन की साहसी जनता व सेना के आगे खट्टे हो गए हैं. इस की फ्रस्ट्रेशन इसी से सम?ा जा सकती है कि अपने हिसाब से सबकुछ ठीक नहीं होने के चलते पुतिन को परमाणु बम की गीदड़ भभकी देनी पड़ गई.

मान भी लें कि अगर भविष्य में रूस यूक्रेन को कब्जा भी ले या सत्ता परिवर्तित कर किसी कठपुतली को वहां बैठा भी दे तो यह जनता को कतई मंजूर नहीं होगा.

अब परिणाम चाहे जो हो पर यह तय है कि इतिहास के पन्नों में जेलेंस्की और यूक्रेन का नाम अपनी आजादी के लिए लड़ने में शामिल होगा और पुतिन का नाम हत्यारे व आक्रमणकारी के तौर पर लिया जाने वाला है. साथ ही, इस युद्ध ने यह फिर साबित कर दिया है कि बड़ी बात, बड़ी ताकत वाले जीत ही जाएं, यह जरूरी नहीं. आज या कल, वे इतिहास के पन्नों में हारे हुए देखे जाते हैं.

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