बिहार के जिला बेगूसराय के थाना साहेबपुर कमाल की रहने वाली चांदबीबी का नाम ऐसे ही चांदबीबी नहीं था. वह चांद जैसी सुंदर भी थी. और किसी के लिए भले ही वह चांद जैसी सुंदर न रही हो, पर मांबाप को तो वह चांद का ही टुकड़ा लगती थी.  यही वजह थी कि उस की अम्मी की नजर हर वक्त उस पर टिकी रहती थी.

चांदबीबी जैसे ही 16 साल की हुई नहीं थी कि अम्मी हर बात में रोकटोक करने लगी थीं. वह घर से निकलने लगती, तुरंत पूछ लेतीं, ‘‘कहां जा रही है चांद? कब तक लौटेगी? किस के साथ जा रही है? क्यों जा रही है?’’

चांदबीबी अम्मी के इन सवालों से खीझ उठती. लेकिन न चाहते हुए भी उसे मां के सवालों के जवाब देने ही पड़ते. भले ही वह झूठ बोल देती. क्योंकि हर बार वह सच बता नहीं सकती थी. अगर सच बता देती तो उस की अम्मी उसे कतई न जाने देतीं.

इतना ही नहीं, उस की अम्मी उस के सजनेधजने और कपड़ों पर ही उतना ध्यान ही रखती थीं. वह कितना सज रही है, कैसे कपड़े पहन रही है, इन बातों पर भी उन की नजर रहती थी.

यही वजह थी कि चांदबीबी को अम्मी का स्वभाव बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोजाना तो छोड़ो, रविवार को भी देर तक नहीं सोने देती थीं.

सवेरा होते हो वह चिल्लाने लगती थीं, ‘‘चल उठ जा चांद, देख सूरज सिर पर आ गया है. पढ़नेलिखने वाले बच्चों को इतनी देर तक बिलकुल नहीं सोना चाहिए. फिर तू तो लड़की है. लड़कियों को मर्दों से पहले उठ जाना चाहिए. कल को ससुराल जाएगी तो वहां इस तरह देर तक सोएगी तो सासससुर क्या कहेंगे? कहेंगे कि मांबाप ने यही सब सिखाया है. कितनी बदनामी होगी हमारी.’’

मां की ये बातें चांदबीबी को जरा भी नहीं सुहाती थीं. वह मन ही मन सोचती, अभी तो उस की खेलने, खाने और जिंदगी के मजे लेने की उम्र है. और एक अम्मी हैं, अभी से शादीब्याह की बातें कर रही हैं. जैसे वह सिर्फ ब्याह करने के लिए ही पैदा हुई है. अरे वह लड़की है तो क्या हुआ? क्या वह पढ़लिख कर लड़कों की तरह नौकरी नहीं कर सकती? अब्बा तो कहते भी हैं कि ‘चांद मेरी बेटी नहीं, बेटा है.’

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चांदबीबी सचमुच पढ़लिख कर सरकारी स्कूल में अध्यापिका बनना चाहती थी. इसलिए वह पढ़ने में खूब मेहनत करती थी. परिणामस्वरूप वह क्लास में प्रथम श्रेणी में पास होती थी. इसीलिए तो वह अपने अब्बू की लाडली थी. अम्मी उस की उन से कितनी भी शिकायत करतीं, वह कभी भी उसे कुछ नहीं कहते थे.

क्योंकि उन्हें अपनी बिटिया पर पूरा भरोसा था. कोई भी बात होती तो वह मुसकराते हुए कहते, ‘‘चांद की अम्मी, तुम हमेशा उस के पीछे क्यों पड़ी रहती हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि चांद मेरा नाम चांद की ही तरह रोशन करेगी.’’

चांदबीबी सचमुच अपने अब्बा का नाम रोशन करती, पर उसी बीच वह प्यार की राह पर चल पड़ी. बात 5 साल पहले यानी सन 2016 की है. चांद ने उस समय 11वीं की परीक्षा दी थी. मार्च महीने का अंतिम सप्ताह था. उस दिन रविवार था.

परीक्षा खत्म हो जाने की वजह से वह उस दिन जी भर कर सोना चाहती थी, क्योंकि एक दिन पहले ही शनिवार को उस की परीक्षा खत्म हुई थी. पर रोज की ही तरह सवेरा होते ही उस की अम्मी चिल्ला पड़ीं, ‘‘चांद सवेरा हो गया है, अब उठ जा.’’

उठने की कौन कहे, चांद ने कानों पर चादर लपेटी और करवट बदल कर सो गई. क्योंकि अभी उस का मन बिलकुल उठने का नहीं था. पर इस घर में उस के मन की कहां चलती थी. यहां तो वही होता था, जो अम्मी चाहती थीं.

उस ने सोचा था कि परीक्षाएं खत्म हो गई हैं, इसलिए अम्मी एक आवाज लगा कर शांत हो जाएंगी. पर अम्मी तो एक बार जो ठान लेती थीं, उसे कर के ही दम लेती थीं. ऐसा ही उस दिन भी हुआ.

चांदबीबी की उम्मीद के विपरीत उस की अम्मी ने चादर पकड़ कर खींची तो मजबूरन उसे उठना पड़ा. उठ कर वह चारपाई पर बैठेबैठे आंखें मल रही थी कि तभी उसे याद आया कि आज तो उसे सहेलियों के साथ बलिया कस्बे में लगा डिजनीलैंड मेला देखने जाना है. यह याद आते ही वह इस तरह फुरती से चारपाई से उठी, जैसे उसे करंट लगा हो.

उस ने घड़ी देखी तो अब तक साढ़े 8 बज चुके थे. उस की सहेलियों ने 9 बजे तक तैयार होने के लिए कहा था. अब इतने कम समय में वह कैसे तैयार होगी, यह सोच कर वह फुरती से उठ कर मां से बोली, ‘‘अम्मी, आप थोड़ा पहले नहीं उठा सकती थीं?’’

‘‘अरे, तू तो अभी भी उठने को तैयार नहीं थी. अब उठ गई है तो कह रही कि थोड़ा पहले नहीं उठा सकती थीं. कहीं जाना है क्या?’’

‘‘आज सहेलियों के साथ बलिया कस्बे में लगा डिजनीलैंड मेला देखने जाना है,’’ चांदबीबी ने कहा.

‘‘कल ही तो तुम्हारी परीक्षा खत्म हुई है. एकदो दिन आराम कर लो. उस के बाद मेला देखने चली जाना,’’ चंदा की अम्मी ने कहा, ‘‘अरे बिटिया मेला ही तो देखने जाना था. तू तो इस तरह झटके से उठी, जैसे तेरी गाड़ी छूटने वाली हो.’’

‘‘9 बजे का टाइम दिया है अम्मी. साढ़े 8 तो बज ही गए हैं. 9 बजे मेरी सहेलियां आ जाएंगी.’’ कह कर चांद दैनिक क्रियाओं से निबटने के लिए भागी.

यह तो अच्छा था कि घर में टौयलेट था, वरना उसे खेतों में जाना पड़ता तो और देर हो जाती. जल्दीजल्दी फ्रैश होने के बाद नहा कर वह कपड़े निकाल ही रही थी कि तभी उस की सारी सहेलियां आ गईं.

सहेलियों से कह कर वह अपने कमरे में कपड़े पहन रही थी कि तभी उस की अम्मी कमरे में आ गईं. जो कपड़े उस ने मेला जाने के लिए निकाले थे, उन्हें देख कर उस की अम्मी भड़क गईं. बाहर उस की सहेलियां बैठी थीं, इसलिए वह चिल्लाईं तो नहीं, फिर भी वह जिस तरह जोर से फुसफुसा कर बोली थीं, वह एक तरह से चिल्लाने जैसा ही था.

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उन्होंने कहा था, ‘‘तेरे पास मेला जाने के लिए यही कपड़े हैं? इस के अलावा और कपड़े नहीं हैं क्या?’’

‘‘इन कपड़ों में क्या बुराई है अम्मी?’’ चांदबीबी ने हैरानी से पूछा.

‘‘ये कपड़े पहन कर तू बाहर मेले में जाएगी?’’

‘‘खरीदा तो पहनने के लिए ही है न अम्मी. अगर इन्हें पहन कर बाहर नहीं जाऊंगी तो क्या इतने महंगे कपड़े घर में पहनूंगी.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. तू इन्हें पहन कर मेले में नहीं जाएगी बस. तेरे पास सलवारसूट नहीं क्या, जो तू इन्हें पहन रही है.’’ चांदबीबी की अम्मी बड़बड़ाईं.

अम्मी की इस बात से चंदा का मूड खराब हो गया. उस ने कपड़े फेंक कर गुस्से में कहा, ‘‘ठीक है, तुम नहीं चाहती कि मैं ये कपड़े पहनूं, तो मैं मेला देखने नहीं जा रही. जाओ, मेरी फ्रैंड्स से कह दो कि चांद मेला देखने नहीं जा रही.’’

‘‘जा तेरी जो मरजी हो, वह कर. तुझे यही कपड़े पहनने हैं तो इन्हें ही पहन कर जा. आजकल के बच्चे वही करते हैं, जो उन के मन में आता है. मांबाप की तो सुनते ही नहीं. कल को शादी करनी होगी, तब भी इसी तरह जिद कर लेना कि मैं तो अपने मनपसंद लड़के से ही शादी करूंगी, वरना करूंगी ही नहीं.’’

‘‘बात कपड़ों की हो रही है तो बीच में शादीब्याह कहां से आ गया,’’ चांदबीबी बोली.

‘‘तेरी जैसी लड़कियां ही शादी में भी ऐसी ही जिद करती हैं. खैर छोड़, तुझे मेला देखने जाना है न. अब अपने मन की कर के जा. तेरी सहेलियां बाहर बैठी राह देख रही हैं,’’ अम्मी बड़बड़ाईं.

कपड़े पहन कर चांदबीबी कमरे से बाहर आई तो आंगन में उस के अब्बू बैठे थे. उन के सामने हाथ फैलाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब्बू मेला देखने जा रही हूं, खर्चापानी.’’

अब्बू ने बिना कुछ कहे 500 का नोट निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए. 500 रुपए देते देख उस की अम्मी ने कहा, ‘‘इतने पैसे क्या करेगी?’’

‘‘मेले में कुछ पसंद आ गया तो वहां किस के सामने हाथ फैलाएगी. जा बेटी, तू जा.’’ चांदबीबी के अब्बू ने कहा.

बहरहाल, चांदबीबी अपनी पसंद के कपड़े पहन कर बाहर आई तो एकदम परी लग रही थी. उस की सहेलियां उसे देखती ही रह गईं. घर में तो वह कुछ नहीं बोलीं, पर घर के बाहर आते ही उन में से एक ने कहा, ‘‘यार चांद, आज तो कोई हम लोगों की ओर देखेगा ही नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ चांदबीबी ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘अरे जिसे देखना होगा वह तुझे ही देखेगा. तेरे आगे हम लोगों को कौन देखेगा?’’ उसी सहेली ने हंसते हुए कहा.

‘‘सचमुच मैं इतनी सुंदर लग रही हूं?’’

‘‘एकदम परी लग रही है आज तो तू.’’

‘‘चल, आज मैं ही मिली थी तुझे उल्लू बनाने को.’’

इसी तरह की बातें करते हुए सारी सहेलियां सड़क पर आ गईं. सड़क पर आते ही उन्हें शेयरिंग आटो मिल गया, जिस में बैठ कर सभी डिजनीलैंड मेला पहुंच गईं.

पूरा दिन मेले का आनंद लेने के बाद चांदबीबी सहेलियों के साथ दोपहर बाद 4 बजे चाट खाने पहुंची. मेला तो चाटपकौड़ी का होता ही है. चांदबीबी ने सभी के लिए आलू की टिक्की की चाट बनवाई.

उस ने जैसे टिक्की का पहला चम्मच मुंह में रखा, उस के मुंह में जैसे आग लग गई. पहले ही चम्मच में तीखी मिर्च का टुकड़ा उस के मुंह में चला गया था.

मुंह में डाला टिक्की का टुकड़ा उगल कर वह सी… सी… करने लगी. उस की आंखों से आंसू धार की तरह बह रहे थे. उस की सहेलियां ही नहीं, वहां खड़े सभी लोग उस की ओर ताकने लगे थे.

कोई कुछ समझ पाता, उस के पहले ही वहां खड़े एक युवक ने दौड़ कर उसे पानी का गिलास थमा दिया. पानी पीने से भी चांदबीबी को आराम नहीं मिल रहा था. मिर्च शायद बहुत तीखी थी.

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उसे परेशान देख कर उस की सहेलियां ही नहीं, दुकानदार और वहां खड़े सभी लोग परेशान थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

हां, कुछ लोग सलाह जरूर दे रहे थे कि चीनी खा लो या मिठाई खा लो. पर कर कोई कुछ नहीं रहा था. तभी चांदबीबी को पानी पिलाने वाले युवक ने आइसक्रीम ला कर चांद से कहा, ‘‘इसे खा लो, तुरंत आराम मिल जाएगा.’’

किसी भी तरह की शर्म या संकोच किए बगैर चांदबीबी ने युवक से आइसक्रीम ले कर खानी शुरू कर दी. थोड़ी सी आइसक्रीम खाते ही उसे आराम मिल गया.

युवक का धन्यवाद अदा करते हुए चांदबीबी ने युवक से आइसक्रीम के पैसे पूछे तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘दोस्त से कोई पैसे लेता है क्या? कभी आप भी मुझे इसी तरह आइसक्रीम खिला दीजिएगा.’’

‘‘प्रौमिस, पर आप को भी मुझ से आइसक्रीम खाने के मेरी तरह ही तीखी मिर्च खानी होगी.’’

‘‘आप के हाथ की आइसक्रीम खाने के लिए मिर्च तो क्या, मैं न जाने क्याक्या खा लूं,’’ युवक ने कहा.

उस की इस बात पर सभी हंसने लगे. चांदबीबी के लिए दुकानदार ने टिक्की की दूसरी प्लेट बना कर दी. चाट खाने के बाद चांदबीबी सहेलियों के साथ घर जाने के लिए सड़क पर आई, तो देखा वही युवक आटो लिए सवारियों के इंतजार में खड़ा था. चांदबीबी ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘आप आटो चलाते हैं क्या?’’

‘‘जी, आप लोग कहां जाएंगी?’’

‘‘साहेबपुर कमाल.’’

‘‘आइए बैठिए. मैं उधर ही जा रहा हूं,’’ युवक ने कहा.

सारी लड़कियां उस युवक के आटो में सवार हो गईं. 1-2 सवारियां और ले कर युवक आटो ले कर चल पड़ा.

रास्ते में बातचीत में पता चला कि उस युवक का नाम राजीव कुमार था. वह भी बिहार के ही जिला बेगूसराय के थाना बलिया के सतीचौक के रहने वाले कैलाश पासवान का बेटा था. वह पढ़ाई छोड़ कर आटो चलाता था.

उस का अपना आटो था, इसलिए उस की ठीकठाक कमाई हो जाती थी. उस दिन भी वह अपना आटो चला रहा था. शाम को भूख लगी तो वह चाट खाने चला गया था, जहां उस की मुलाकात चांदबीबी से हो गई थी. उसी मुलाकात में राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच दोस्ती हो गई थी. यह सन 2016 की बात है.

राजीव कुमार पासवान थाना साहेबपुर कमाल और बलिया के बीच ही अपना आटो चलाता था.

चांदबीबी इसी रास्ते से स्कूल आतीजाती थी, जिस से अकसर उस की मुलाकात हो राजीव कुमार से हो जाती थी. जब भी चांदबीबी उसे मिलती, वह आटो रोक कर उस का हालचाल जरूर पूछता था. इसीलिए धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी.

राजीव कुमार अकसर उसी समय उस रास्ते से गुजरता था, जब चांदबीबी स्कूल जा रही होती थी. शायद चांदबीबी राजीव कुमार को भा गई थी. भाती भी क्यों न, वह थी ही इतनी सुंदर.

राजीव कुमार को ही नहीं, वह तो सभी लड़कों को अच्छी लगती थी. पर वह राजीव के अलावा किसी अन्य लड़के को घास तक नहीं डालती थी.

चांदबीबी उन दिनों उम्र के उस दौर में थी, जब इंसान के जो मन में आता है,  वही करना उसे अच्छा लगता है. उस का परिणाम क्या होगा, इस बारे में वह नहीं सोचता. 17-18 साल की उम्र लड़का हो लड़की, बहुत ही खतरनाक होती है. इस उम्र में लड़का हो या लड़की, उसे बहकते देर नहीं लगती.

आखिरकार लगातार राजीव कुमार से मिलने की वजह से चांदबीबी भी बहक गई. उसे राजीव कुमार से मिलना और बातें करना अच्छा लगने लगा था. शायद यही वजह थी कि वह अब राजीव का इंतजार करने लगी थी.

राजीव कुमार चांदबीवी से उम्र में थोड़ा बड़ा था. पर इतना भी बड़ा नहीं था कि चांदबीबी से उस का मिलनाजुलना ठीक नहीं था. वह उस से ढाईतीन साल ही बड़ा था. चांदबीबी सुंदर थी, इसलिए राजीव भी उसे पसंद करता था.

लड़कों को जवानी में वैसे भी हर लड़की अच्छी लगती है. बात तो तब गंभीर हो जाती है, जब उसे किसी लड़की से सचमुच में प्यार हो जाता है.

लड़का हो या लड़की, उन्हें एकदूसरे के मन की बात सामने वाले के हावभाव से ही पता चल जाती है. ऐसा ही राजीव कुमार और चांदबीबी के मामले में भी हुआ.

लगातार मिलने से उन के मनों में चाहत जागी तो उन का देखना और बातचीत करने का तरीका बदल गया. फिर तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया है.

फिर तो चांदबीबी और राजीव कुमार ने एकदूसरे से प्यार ही नहीं किया, बल्कि एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. उस समय दोनों ने यह भी नहीं सोचा कि उन के बीच जातिपांत की ही नहीं, धर्म की इतनी चौड़ी खाई है कि उन्हें एक होने के लिए उस खाई को पार करना आसान नहीं होगा.

चांदबीबी और राजीव कुमार ही इस बारे में कैसे सोचते, इस बारे में तो कोई भी प्रेम करने वाला नहीं सोचता. राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच धर्म की बहुत ही चौड़ी खाई थी. राजीव कुमार जहां हिंदू था, वहीं चांदबीवी मुसलिम थी. राजीव कुमार के घर वाले तो किसी तरह मान भी जाते, पर चांदबीबी के घर वाले तो अपनी बेटी की शादी एक हिंदू लड़के से करने को कभी तैयार न होते.

दिनोंदिन चांदबीबी और राजीव कुमार का प्रेम गहराता गया. चांदबीबी भले ही राजीव कुमार से प्यार करती थी, लेकिन वह उस के प्यार में पागल नहीं थी. पागल वह इसलिए नहीं थी, क्योंकि वह हर हाल में राजीव कुमार को पाना चाहती थी.

इस के लिए उसे अपना कैरियर बनाना जरूरी था. क्योंकि नौकरी लगने के बाद घर वाले उस से संबंध तोड़ भी देते तो उसे अपना जीवन बिताने में खास परेशानी न होती. इसीलिए वह राजीव कुमार से इस तरह मिलती थी कि किसी को पता नहीं चल पाता था.

चोरीछिपे राजीव कुमार से मिलते हुए चांदबीबी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली. चांदबीबी भले ही बहुत संभाल कर अपने प्रेमी से मिलती थी, पर उस के प्यार की हलकीफुलकी भनक उस के घर वालों को लग ही गई थी.

क्योंकि प्यार को कितना भी छिपाओ, वह छिपता नहीं है. लेकिन यहां मजे की बात यह थी कि कभी किसी ने उसे राजीव कुमार के साथ इस तरह नहीं देखा था कि उस की पढ़ाई बंद करा दी जाती या उसे घर में कैद कर दिया जाता.

फिर भी उस पर थोड़ीबहुत नजर तो रखी ही जाने लगी थी. उन दोनों की मुलाकातों को भी शक की नजरों से देखा जाने लगा था. इसलिए दोनों ज्यादातर फोन पर ही दिल की बातें कर लेते थे. अगर मिलते भी थे तो बड़ी सावधानी से.

चांदबीबी ग्रैजुएशन कर के नौकरी की तैयारी कर रही थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद चांदबीबी बहुत कम घर से बाहर जा पाती थी. इस की एक वजह यह भी थी कि भले ही घर वालों ने उसे कभी रंगेहाथों नहीं पकड़ा था, पर उन्हें उस पर शक तो था ही.

इधर जब से स्मार्टफोन आ गया है, तब से प्रेम करने वालों को बड़ी सुविधा मिल गई है. अगर उन्हें आमनेसामने मिलने या बात करने का मौका नहीं मिलता तो वे वीडियो काल कर के एकदूसरे को देख तो लेते ही हैं. बातचीत नहीं कर पाते तो दिल की बातें संदेश भेज कर कह देते हैं.

ऐसा ही कुछ राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच भी चल रहा था. क्योंकि शक होने की वजह से उसे घर के बाहर नहीं जाने दिया जाता था.

वह राजीव कुमार को फोन भी नहीं कर पाती थी. जो कुछ भी कहना होता था, संदेश भेज कर कह देती थी. उस ने उस का नंबर भी अपनी सहेली के नाम से सेव कर रखा था. क्योंकि कभीकभी भाई उस का मोबाइल ले कर देखने लगता था.

चांदबीबी चाहती थी कि जल्द से जल्द उस की नौकरी लग जाए, जिस से वह कोर्ट में राजीव से शादी कर ले. क्योंकि अब तक वह बालिग हो चुकी थी. वह अध्यापिका बनना चाहती थी, जिस के लिए वह बड़ी मेहनत से तैयारी कर रही थी.

परीक्षा की तैयारी के लिए उसे कुछ किताबों की जरूरत थी, जो शहर में ही मिल सकती थीं. घर वालों से वह किताबों के लिए कह नहीं सकती थी. अगर कहती भी तो कोई न लाता. इसलिए उस ने किताबों के लिए राजीव कुमार को संदेश भेजा.

राजीव कुमार के लिए तो यह खुशी की बात थी. चांदबीबी के लिए वह किताबें तो क्या, अगर वह कह देती तो वह उस के लिए चांदतारे भी तोड़ कर लाने को तैयार हो जाता.

चांदबीबी ने जो किताबें मंगाई थीं, राजीव कुमार शहर से उन्हें खरीद लाया. इस बात का उस ने चांदबीबी को संदेश भेजा तो चांदबीबी ने उसे देने का स्थान बता कर रात को बुला लिया.

राजीव कुमार प्रेमिका से मिलने की खुशी में किताबें ले कर 24 अगस्त, 2021 की रात को उस स्थान पर पहुंच गया, जहां चांदबीबी ने उसे बुलाया था. चांदबीबी और राजीव कुमार ने सोचा था कि रात होने की वजह से उन्हें कोई देख नहीं पाएगा.

पर राजीव कुमार से मिलने के लिए जैसे ही चांदबीबी घर से निकली थी, संदेह होने की वजह से उस के भाई उस के पीछ लग गए थे.

यही वजह थी कि जैसे ही चांदबीबी और राजीव कुमार एकदूसरे से मिले, चांदबीबी के भाइयों ने राजीव कुमार को पकड़ लिया. इस के बाद उसे गांव ला कर उस की जम कर पिटाई की और उसे पुलिस के हवाले कर दिया.

राजीव कुमार की पिटाई से चादबीबी को बहुत दुख पहुंचा. इस बात से आहत चांदबीबी ने जहर खा लिया. क्योंकि इस पूरी घटना के लिए उस ने खुद को दोषी माना. उस का सोचना था कि अगर उस ने राजीव कुमार को न बुलाया होता तो न वह रात को उस से मिलने आता और न उस की पिटाई होती और न उसे पुलिस के हवाले किया जाता.

जहर खाने के बाद जब चांदबीबी की हालत बिगड़ी तो घर वाले उसे जिला अस्पताल ले गए. मामला आत्महत्या करने का था, इसलिए अस्पताल वालों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. फिर तो यह बात मीडिया तक पहुंच गई.

मीडिया ने जब अस्पताल जा कर चांदबीबी से बात की तो उस ने साफ कहा कि वह राजीव के बिना नहीं रह सकती. अगर उस का ब्याह राजीव कुमार से नहीं किया गया तो वह जान दे देगी.

जब मीडिया द्वारा यह बात आम लोगों तक पहुंची तो चांदबीबी और राजीव कुमार के इस प्यार के बारे में जान कर लोगों में उन के प्रति संवेदना जाग उठी.

मीडिया द्वारा ही यह बात बजरंग दल को भी पता चली तो सभी ने मिल कर राजीव कुमार और चांदबीबी की शादी कराने का निर्णय लिया. पर दिक्कत यह थी कि चांदबीबी के घर वालों ने राजीव कुमार को जेल भिजवा दिया था.

पहले तो सभी ने राजीव कुमार की जमानत कराई. उस के बाद पुलिस की ही मदद से 27 अगस्त, 2021 को राजीव कुमार और चांदबीबी का विवाह बरौनी प्रखंड के गडहरा के आर्यसमाज मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज के अनुसार करा दिया. सैकड़ों लोग इस विवाह के गवाह बने.

विवाह के बाद शपथ पत्र दे कर चांदबीबी ने हिंदू धर्म अपनाते हुए अपना नाम चांदबीबी की जगह चंदा देवी रख लिया है.

चांदबीबी के घर वाले शादी से पहले उसे काफी परेशान कर रहे थे, इसलिए उस की और राजीव कुमार की जान का खतरा महसूस करते हुए विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय संयोजक शुभम भारद्वाज ने पुलिस प्रशासन से मिल कर दोनों की सुरक्षा की मांग की. बहरहाल, दोनों प्रेमी इस विवाह से बहुत खुश हैं.

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