बौलीवुड के मशहूर संगीतकार स्व.मानस मुखर्जी के बेटे व बौलीवुड गायक शान किसी परिचय के मोहताज नही है. मूलतः बंगाली होते हुए भी वह हिंदी, उर्दू, पंजाबी,बंगला,तमिल,मराठी व गुजराती सहित ग्यारह भा-नवजयााओं में गाते आ रहे हैं. शान ऐसे गायक हैं, जो कि सामाजिक मुद्दो पर ‘यूनेस्को’ के लिए भी गीत गा चुके हैं. शान महज गयक ही नहीं बल्कि टीवी शो प्रजेंटर और टीवी के रियालिटी शो के जज तथा प्रतिस्पर्धियों के मेंटर भी रहे हैं.

इन दिनों वह फिल्म ‘‘छिपकली’’ के अपने द्वारा स्वरबद्ध गीत ‘‘मैं जिंदा हूं’’ को लेकर सूर्खियां बटोर रहे हैं.

प्रस्तुत है गायक, संगीतकार व टीवी शो के जज शान से एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..

shaan

आप बहुमुखी प्रतिभा वाले गायक, संगीतकार,गीतकार हैं.आपने अभिनय भी किया. कई टीवी कार्यक्रमों का संचालन किया. कई टीवी रियालिटी शो के जज भी रहे. यदि आप अपने पूरे कैरियर पर निगाह डालते हैं, तो क्या पाते हैं?

सच कहूं तो मैं कोई बहुत बड़े सपने देखते हुए बौलीवुड से नही जुड़ा था.मैं आज भी ज्यादा सपने नहीं देखता.मैने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इतना कुछ काम करने का अवसर मिलेगा. लेकिन मुझे जितना कुछ मिला है, उसके लिए मैं ईश्वर का आभारी हूं. मेरी अब तक की इस सफल यात्रा में कई लोगों का बेहतरीन साथ और प्यार मिला है. लोगों ने अच्छे समय में तो साथ दिया ही, पर जब समय ज्यादा अच्छा नहीं चल रहा था, उस वक्त भी मुझे याद रखा. यह बात एक कलाकार के लिए बहुत मायने रखती है. हमने यहां देखा है कि जब एक कलाकार अपने कैरियर की बुलंदियों पर होता है, तब लोग उसके पीछे भागते हैं मगर जैसे ही उसके कैरियर में गिरावट आती है, तो लोग तुरंत उससे दूरी बना लेते हैं. मुझे लोग हमेश याद करते रहे, इसके लिए मैं खुद को सौभाग्यशली मानता हूं. लोगों ने हमेश मुझे बुलाकर काम दिया. मैं हर दूसरे दिन कुछ न कुछ अच्छा काम कर रहा हूं. शायद पिछले जन्म के कुछ अच्छे कर्म रहे होंगे.

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आपको नहीं लगता कि इसके पीछे कहीं न कहीं आपका अपना अच्छा स्वभाव व विनम्र व्यवहार भी एक वजह है?

मुझे ऐसा नहीं लगता. क्योंकि यहां हर किसी को अच्छा काम करना जरुरी है. हां स्वभाव का यह है कि जब आपका स्वभाव अच्छा नही होता है, मगर आपके अंदर काबीलियत होती है और आपका सितारा बुलंदी पर होता है. तो लोग आपको -हजयेलते हैं.ऐसे में लोग उसे सिर्फ काम के वक्त ही याद करते हैं.फिल्म इंडस्ट्री में मेरे सारे दोस्त हैं, जो ज्यादा काम न करते हुए भी जब चाहे तब एक दूसरे से फोन पर लंबी बात करते रहते हैं. हमारे बीच हंसी मजाक का दौर चलता रहता है.यह एक अच्छी बात है.मेेरे हिसाब से सभी अच्छे स्वभाव के ही हैं. कम से कम संगीत जगत में बुरे लोग कम ही हैं. हम सभी अच्छा काम करने के लिए प्रयासरत रहते हैं. माना कि इन दिनों काम की बजाय आपके नाम, शोहरत व सोशल मीडिया की पॉपुलारिटी के हिसाब से काम मिल रहा है.कुछ लोग आपको मिल रहे लाइक्स व व्यूज को देखकर काम देते हैं. लोग सोचते हैं कि सोशल मीडिया पर इसके फलोवअर्स ज्यादा हैं,तो इससे गंवाते हैं,जिससे गाने को ‘पुश’ मिलेगा.

आपके दादा जी गीतकार और आपके पिता जी संगीतकार थे. आपने इनसे क्या सीखा,जो आपकी हमेश मदद करती है?

यह हर कलाकार को मौलिक काम करना चाहिए.मेरे पिता जी इस बात को मानते थे. वैसे कई संगीतकार कुछ गानों से इंस्पायर होकर गाने बनाते हैं. कुछ तो नकल भी करते हैं. मेरे पिता जी के गाने भले ही कमर्शियल नहीं थे मगर उनकी खासियत थी कि वह मौलिक कम्पोजर थे. उनके किसी भी गाने को सुनकर आपके दिमाग में यह नहीं आ सकता कि यह फलां गाने से मिलता है. मेरी राय मुझे भी मौलिक काम करना बहुत जरुरी है.पर इन दिनों मैं देख रहा हूं कि यदि कोई गाना किसी लोकप्रिय गाने से मिलता हुआ है, तो लोग उसे स्वीकार कर रहे हैं.तो गाने में कैची चीज तो चाहिए. मगर किसी भी गाने की आप नकल न करें. लोग यह सुनकर न कहे कि यह गाना तो उस गाने की नकल है. या यह तो इंटरनेशनल गाना है, जिसे शान ने घुमाकर अपना बना दिया. मैं इससे हमेशा दूर रहना पसंद करता हूं. मैं जब गाना भी गाता हूं, तब भी मेरी कोशिश रहती है कि वह किसी से प्रेरित या नकल न हो. उसमें किसी अन्य की छाप न आए.गाना सुनकर लोग यह न कहे कि यह तो उस स्कूल का या उस तरह का गायक है. जब मैने गायन के क्षेत्र में कदम रखा था,उन दिनों दो स्कूल एक रवि जी का और एक किशोर कुमार दा के बने हुए थे. सौभाग्यवश मैं वैसा गायक हूं, जो कि किसी भी स्कूल से ताल्लुक नहीं रखता था. तो मैंने अपने दादा जी व पिता जी से सीखा कि हमेशा मौलिक काम ही करो.

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आप अपने पिता की कुछ धुनों को लेकर काम करने वाले थे?

हां, मैने कुछ काम किया है.उनकी कुछ बहुत अच्छी गजलें बनी हैं.अब वर्तमान माहौल में उनकी गजलों को किस तरह से मार्केट करुं या रिलीज करुं, इसी कश्मकश में हूं. लेकिन उम्मीद है कि कोई न कोई रास्ता जरुर निकलेगा. कमाल की बात यह है कि मेरे पिता जी की इन गजलों को 35 से 40 व-ुनवजर्या हो गए हैं.उस जमाने में निदा फाजली साहब ने गजलें लिखीं, जिनके लिए मेरे पिता जी धुने बनायी.जब तक मैं हॅूं, मैं चाह रहा हॅूं,कि वह लोगों तक पहुंचे. अन्यथा यह सब मेरे साथ ही चला जाएगा. क्योकि अब न निदा साहब रहे और न ही पिता जी. मेरे पिता जी का 1996 में देहांत हो गया था.‘आएगी जरुर चिट्ठी..’’

अपनी बहन सागरिका के साथ भी कुछ कर रहे हैं?

-हां जी! उनके साथ कई गाने किए हैं. उनके साथ मैने आधे अधूरे कई गाने कर रखे हैं.पर कोविड के चलते सब कुछ अधर में लटका हुआ. हमने अपने पिता जी के कुछ गाने एक साथ किए हैं,जो कि आने बाकी है. इन दिनों आप आने वाली फिल्म ‘‘छिपकली’’ के लिए स्वरबद्ध गीत ‘‘मैं जिंदा हूं’’ को लेकर चर्चा में हैं??

फिल्म के निर्माता मीमो राय मूलतः बहुत बेहतरीन संगीतकार हैं. उन्होंने कई बंगला फिल्मों में संगीत दिया है. मैंने उनकी कई बंगाली भा-ुनवजयाा की फिल्मों के लिए भी गाया है. अब उसने एक बहादुरी कदम उठाते हुए हिंदी भा-ुनवजयाा की फिल्म ‘‘छिपकली’’ बनायी है. मेरे लिए मीमो राय छोटे भाई जैसा है. आज की तारीख में फिल्म निर्माण में अपना पैसा लगाकर कई लोग बुरी तरह से घायल भी हुए हैं. इसलिए मैं मेमो को लेकर कुछ ज्यादा ही कंसर्न हूं. लेकिन बिना छलांग लगाए कहीं पहुंचा भी नही सकता. मेमो को फिल्म जगत में कुछ बेहतरीन रचनात्मक काम करना है. तो मैने सोचा कि मैं अपनी तरफ से कुछ अच्छा रचनात्मक योगदान दे दूं. मैंने इस फिल्म में एक गाना ‘‘मैं जिंदा हूं’’ को मेमो के ही संगीत निर्देशन में गाया है. यह बहुत खूबसूरत व जज्बाती गाना है. फिल्म में यह गाना उस सिच्युएशन में आता है, जहां किरदार को लगता है कि उसने खुद को ही अपनी बीबी की हत्या की है.फिल्म में जिस तरह के हालात है, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उसके अलावा कौन हत्या कर सकता है? क्योंकि कमरे में वह पति पत्नी ही थे और पत्नी की मौत हुई है.

लेकिन उसको पता है कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया है.जिसके चलते वह बहुत ही ज्यादा कन्फ्यूज है. लोग कह रहे हैं कि देखो यह कैसा इंसान है ?अपनी पत्नी का खून कर दिया है.तो उसका जो कन्फ्यूजन व गिल्ट है, उसी पर यह ‘‘मैं जिंदा हूं’’ गाना है. इसकी सिच्युएशन बहुत भयंकर है. सोहम ने बहुत अच्छा गाना लिखा है.उसके अंदर जो कुछ भी उथल पुथल मची हुई है,वह सब इस गाने में आता है. उपर से यह किरदार लेखक भी है. जो लेखक इमानदारी से अच्छा लेखन करते हैं, उनके अंदर मसाला कम होता है, तो वह लोगों को कम पसंद आता है.इस वजह से भी लेखक महोदय फंसे हुए हैं. यह बैकग्राउंड सांग है, मगर इसे गाते हुए मजा आया. जब गाने के साथ अच्छे विज्युअल हों, तो गाने में मदद मिलती है.

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जब आप खुद किसी गाने का लेखन करने के बाद उसकी संगीत की धुन बनाकर खुद अपनी आवाज में गाते हैं. उसके आनंद और दूसरे गीतकार के गीत को अन्य संगीतकार के निर्देशन में गाने में से किसमें ज्यादा आनंद मिलता है?

आपका सवाल काफी भयंकर है. जब आप खुद संगीत की धुन बनाते हैं,तो उसे आप कम्फर्ट जोन में बनाते हैं.जब मैं यह जानता हॅूं कि मुझे ही गीत गाना है, तो मुझे अहसास होता है कि मैं उसे कितना स्ट्रेच/खींच सकता हूं, तो उसी हिसाब से मैं उसका संगीत रचता हूं. आपके दायरे आपके साथ हैं.मगर हर गाने के साथ अलग स्थिति होती है.

मसलन,जब मैं फिल्म ‘छिपकली’’ का गाना ‘‘मैं जिंदा हूं’’ के रिकार्डिंग के लिए पहुंचा, तो यह बहुत उंचा गाना था, मुझे इस बात की भनक भी नहीं थी. तो दोनों हालात में काम करने का अपना अलग आनंद है.जब खुद गाना बनाते हैं, तो उसके गीत लिखने या उसकी धुन बनाने में गीत गाने से अधिक आनंद की अनुभूति होती है.मगर जब हम दूसरे संगीतकार के लिए गाते हैं, तब हमें गायक के तौर पर गाने में ज्यादा मजा आता है.क्योंकि जब हम रिकार्डिंग स्टूडियो में पहुंच जाते हैं और उस वक्त गाने की धुन मिलती है, तो उसे सजाने की एक अलग चुनौती होती है.

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जब अलबम का जमाना था और एक अलबम में आठ से दस गाने हुआ करते थे. उस वक्त आपने काफी गीत गाए.अब सिंगल का जमाना आ गया है. यह कितना सकून देता है?

सिंगल का जमाना आ चुका है. हमें भी जमाने के साथ ही चलना होता है. पहले हर गाना पांच से सा-सजय़े पांच मिनट का हुआ करता था.अब गाने की लंबाई कम हो गयी है.अब लोगों के पास वक्त ही नही है.पहले होता यह था कि आपने गाने के अलबम की सीडी खरीद ली है,तो जब आपको समय मिला आपने अपना पसंद का गाना सुन लिया. आप एक बार नही कई बार सुन लेते थे.लोग अपनी गाड़ी में सीडी प्लेअर रखते थे और सुनते थे.घर के अंदर भी सीडी प्लेअर हुआ करता था.इस तरह आप गाने के साथ जुड़ जाते थे.और आप सीडी या गाना तभी खरीदेंगे,जब आप सुनिश्चित हों कि गायक में या गीत में कुछ बात है. आपने पहले कहीं कुछ सुना हो. और आपके मन में आए कि अब मुझे इसे फिर से सुनना है. इस वजह से उसकी कीमत/वैल्यू हुआ करती थी. अब उसकी वैल्यू नही रही. इसके बावजूद आपको एक सिंगल गाना निकालकर सिक्सर मारना है, जो कि बहुत ही कठिन काम हो गया है.इसी के चलते गायक व संगीतकार ही नहीं गीतकार पर ही दबाव बनाया गया है. ऐसे में इंसान रचनात्मक स्तर पर कन्फ्यूज्ड हो जाता है कि क्या करें? इतनी भीड़ में अपने गाने की भरी इज्जत बरकरार रखने के चक्कर में उससे कई बार उलटे सुलते गाने भी बन जाते हैं. लेकिन जब हम अलबम बनाते थे तो हमारे अंदर की खूबी किसी न किसी गाने में आ ही जाती थी. अलबम करने का अपना अलग मजा है.

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आईपीएल,प्रो.कबड्डी लीग की तर्ज पर आप ने कुछ लोगों के साथ मिलकर ‘इंडियन म्यूजिक लीग’ बनायी है.इसके पीछे क्या सोच है?

संगीत के साथ कुछ बड़ा करने की सोच है.आप देख रहे होंगे कि टीवी के रियालिटी शो में जज या स्पेशल गेस्ट खुद परफार्म कर रहे हैं, गा रहे हैं.तो इसमें एक बात यह है कि जब कोई नया सिंगर/गायक गा रहा होता है,तब यह लोग बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं कि आपको इस तरह से गाना चाहिए था..वगैरह.. वगैरह..पर यह खुद करके दिखाएं, यह बात लोगों के दिमाग में आती है.तो हमें भी यह मौका मिला कि स्टेज पर जाएं, परफार्म करें,जिसे लोग देखें. इस शो के फार्मेट में कुछ बातें होती हैं कि कम्पटीशन कर दें. कम्पटीशन में किसी की हार या जीत होती ही है. कभी कभार सोच नगेटिव की ओर जा सकती है. कुछ लोगों के मन में होता है कि हम खेल रहे हैं, तो जीतकार ही जाएं. इसमें एक अलग जज्बा ओर जज्बात भी निकलते हैं. कुल मिलाकर बहुत अच्छा अनुभव रहा. कई ुनवजर्याों से हमारे जो दोस्त हैं, पर अपने अपने काम में व्यस्त होने के चलते एक साथ समय बिताना नही हो पाता, तो इस शो के वक्त हम सभी ने एक साथ लंबा वक्त भी बिताया. मजा किया.पार्टी की. कुछ अच्छी यादें संजोयी.

टीवी के रियालिटी शो, चाहे वह संगीत के हों या डांस के हों, को लेकर एक नई चर्चा शुरू हो गयी है कि क्या यह बच्चों के लिए फायदेमंद है या नुकसानदायक हैं?

यदि आप बड़ी सोच/ ब्राड सेंस में सोचें, तो आपकी सम-हजय में आएगा कि यदि किसी में हूनर है,तो उसे प्रोत्साहन मिल रहा है.अगर बच्चों की बात कर रहे हैं, तो एक रियालिटी शो के बाद किसी बच्चे को सिगर बनने का अवसर नहीं मिल पाता.पर बच्चा अपने माता पिता की देख रेख में है.दूसरी बात उस बच्चे की समझ में यह बात आ जाती है कि मेरे अंदर जो प्रतिभा है, उसका स्तर क्या है. कहां तक मैं इस प्रतिभा के बल पर पहुंच पाउंगा. उसके बाद उस पर नर्भर करता है कि वह और अधिक मेहनत कर खुद की प्रतिभा को तराश कर और बेहतर बनाता है या वह सोचे कि मुझसे बेहतर लोग हैं, इसलिए मैं अपना बोरिया बिस्तर यहीं पर बांध लूं.

अंततः नौकरी, कैरियर यह सब दुनियादारी वाली बाते हैं. जब संगीत पैशन बना जाता है, तब उससे अलग होना मुश्किल हो जाता है. आप खुद देख लीजिए कि कितने गायक सफल हो पाए हैं.रियालिटी शो से चमकने वाले मुश्किल से दो या तीन प्रतिशत गायक ही सफलता के पायदान पर हैं.फिर भी आपने कभी यह नही सुना होगा कि पहले मैं गाना गाया करता था, लेकिन आज कल मैं डाक्टर हॅूं. आपको ऐसे लोग जरुर मिलेंगें, जो पहले इंजीनियर या डाक्टर थे, वह अब गायक या संगीतकार या अभिनेता बने हुए हैं. देखिए, सच यही है कि संगीत या कला का जुनून कभी पीछा नहीं छोड़ता. यह हर माता पिता पर निर्भर करता है कि वह किस तरह अपने बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं. यदि आपने रियालिटी शो में अपने बच्चे की परफार्मेंस देखकर सिर्फ ताली बजायी और वाहवाही की, तो उसे सही मार्गदर्शन कैसे मिलेगा?

रियालिटी शो में जज के रूप में बैठी हस्तियां प्रतिस्पर्धी को लेकर जो लोग बड़े बड़े दावे करते हैं,वह एक भ्रम जाल है? क्या वह ऐसा गलत कर रहे हैं?

मैं तो जब से टीवी के रियालिटी शो से जुड़ा हॅूं, तो आज तक मुझे किसी ने भी स्क्रिप्ट नहीं दी. किसी ने मुझसे किसी प्रतिस्पर्धी को जबरन अच्छा कहने के लिए नही कहा. यदि मैं किसी शो में मेहमान के तौर पर भी गया हूं, तब भी ऐसा नही हुआ. हां, हाल ही में इस तरह की जो बात उठी है,उस शो में मैं गया नहीं था. मगर पवन जो विजेता है,  उसे मैने मैंटोर किया था,उसे काफी ट्रेनिंग दी थी. वह विजेता भी बना. उसे मैंने अपने घर में भी रखा.उसे मैने सम-हजयाया कि दुनिया में किस तरह लोगों के साथ पेश आना है.माना कि वह हिमाचल से आया था.पर फिर वह मुंबई में ही रहा. उसने फिल्म के लिए भी गाया. इसके बावजूद टोपी पहनकर यह कहना कि वह हिमाचल से आया है,तो गलत है. यह झूठ है.एक रियालिटी शो जीतने के बाद आप दूसरा रियालिटी शो कर रहे हो और किसी को पता न चलें,यह कैसे हो सकता है. इसमें खुलासा वाली कोई बात ही नहीं है.यह तो सिर्फ झूठ है. हम रियालिटी शो में जो कहते हैं,उसे कभी कभार एडिट कर दिया गया, तो गलत बात अलग है.जैसे हमारे आईपीएल में भी मिसनी थी, तो वह भी वॉयस आफ इंडिया में शोखर जी की टीम में थी.तो पता है कि वह उसकी विजेता है.पर चैनल की आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते शयद इस बात को नही उजागर किया जाता कि यह फलां चैनल के रियालिटी शो में थी. यह तकनीकी समस्या हो सकती. वर्ना जिसको अपना काम आता है,वह किसी की लिखी पटकथा के अनुसार रियालिटी षो में बोले,यह बात मैं मानने को तैयार नहीं हूं.  हर इंसान की अपनी पर्सनालिटी होती है. तो वह सोचते हैं कि इस उम्र में इसे कहां क्या समझाए. तो कुछ लोग बहुत उपर उपर से सुनते हैं.मेरे जैसे कुछ लोग बहुत गहराई में जाकर सुनते हैं. आपने सवाल किया है तो मैं झूठा जवाब नहीं देना चाहता. मेरी कोशिश रहती है कि मैं जो बोलना चाहता हूं वह सच्चाई में होनी चाहिए. मैंने कभी तकिया कलाम नही अपनाया. मैंने हमेशा दिल से काम करता हूं. मैं आज भी व्हाट्सअप पर लोगों के भेजे गाने सुनकर उन्हें सही राय देता रहता हूं. दूसरों को लेकर कोई प्रतिक्रिया देना गलत होगा.

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टीवी के रियालिटी शो का हिस्सा बनने के बाद संगीत के जुनून से कहीं ज्यादा टीवी से मिली शोहरत उस पर हावी रहती है?

हां! ऐसा स्वाभाविक है.सभी युवा लड़के लड़कियां होती हैं. इनमें उतनी परिपक्वता तो नहीं होती है कि वह शोहरत व सफलता के बीच के अंतर को समझ सकें. ऐसे वह लोग टीवी पर मिली शोहरत को ही सफलता समझ बैठते हैं.सफलता तो तब मिलेगी, जब आपका अपना मौलिक गाना सामने आएगा. अभी तो जो शोहरत मिली है, वह अस्थायी है.सफलता का अर्थ होता है कि लोग कई व-ुनवजर्याों तक आपको आपके काम की वजह से याद रखते हैं. इंस्टाग्राम का जमाना है.टीवी पर शोहरत बड़ी आसानी से मिल जाती है. लोग इंस्टाग्राम के फॉलोअवर्स देखकर खुद को महान मानने लगते हैं.पर इन सभी को सोचना चाहिए कि इस संसार से विदा लेने के बाद आप अपने पीछे क्या छोड़कर जाओगे. सिर्फ आपके गाने ही रह जाएंगे.

जब आपने करियर शुरू किया, उन दिनों लाइव रिकार्डिंग हुआ करती थी.अब ‘की बोर्ड’ व ट्यूनिंग वाला जमाना आ गया है.यह संगीत को कितना नुकसान पहुंचाती है?

एकदम शुरू शुरू में, मैंने एक या दो गाने ही लाइव रिकार्ड किए थे. मसलन फिल्म ‘राजू चाचा’ का गाना.पर अब ट्यूनिंग वाला जमानाआ गया है.‘की बोर्ड’ एक सहूलियत है. यानी कि संगीत को आप बेहतर बना रहे हो.मगर संगीत तो आपको बना है, जिसका स्तर गिर गाया है. हमें संगीत बनाना है, उसकी ट्यूनिंग करनी है.मगर आप ऐसा कुछ गा रहे हो, जिसमें दम नही है.सिर्फ ट्यूनर चल रहा है.ऐसे में श्रोता को चुनकर सुनना है. यदि चार में से तीन गाने अच्छे रखेंगे, तो लोगों को पता चल जाएगा कि कौन सा गाना खराब है. मेरी राय में की बोर्ड या कम्प्यूटर को संगीत की गिरावट के लिए दो-ुनवजया देना गलत है. सवाल यह है कि एक मशीन का हम उपयोग किस तरह से कर रहे हैं?

वर्तमान समय में गायक व संगीत कार इस मशीन का उपयोग करने की बजाय इसे अब्यूज कर रहे हैं. पर अच्छे गाने देर से ही सही अपनी जगह बना ही लेते हैं?

मैं यही मानना चाहूंगा. पर असल में ऐसा है नहीं.. जब से लाइक व व्यूज की गिनती शुरू हुई है, तब से एक अलग नजरिया बन गया है. अब लोग लाइक्स या व्यूज की संख्या देखकर ही गाना सुनना चाहते हैं. पर लाइक य व्यूज को लेकर किस तरह की धांधलेबाजी होती है, किस तरह का खेल होता है, इससे लोग अनभिज्ञ हैं. साठ के दशक के गाने ‘लग जा गले’ तो आज भी लोग सुनना चाहते हैं. उस वक्त यह गाना सफल न होता,तो आज लोग इसे कैसे जानते. इसलिए गाने का शुरू में चलना जरुरी है.मगर यदि शुरू में ही गाने को दफना दिया गया हो, तो वह कहां से आगे जाय़ेगा. जिस गाने पर अच्छी मार्केटिंग हो रही हो और उसमें बड़े स्टार हैं , तो उसका आगे जाना तय है, ऐसे में इस तरह के गाने का अच्छा बनना जरुरी है. लेकिन ऐसे गानो में भी संगीत पर काम नहीं.

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