लेखक- हरीश जायसवाल

आज जब मैं पलट कर पीछे देखता हूं तो पाता हूं कि क्याकुछ नहीं था मेरे पास. दादादादी, मम्मीपापा और इन सब के बीच में सब से छोटा मैं. मतलब, आप में से कुछ लोगों का पसंदीदा फिल्म स्टार चकमक. दादाजी बिजनैस करते थे और उस समय के लखपति थे. पिताजी ने इस कारोबार को दो कदम आगे बढ़ाया और करोड़पति कहलाने लगे. दादाजी तो शुरू से ही प्रगतिशील विचारधारा के रहे हैं. इसी वजह से उस दौर में जब लोगों के यहां 4-5 बच्चे होते थे, तब सिर्फ 2 बच्चे मतलब पापा और बूआजी को पैदा कर दादाजी ने एक अलग हो मिसाल पेश की थी. समय के साथ पापा ने भी देशहित में फैसला लेते हुए अपने परिवार को मेरे जन्म तक ही सीमित रखा. 17 साल का होतेहोते मुझ पर फिल्मों का भूत सवार हो गया. तकरीबन हर फिल्म पहले ही दिन मैं देखता था.

धीरेधीरे यह जुनून सिर्फ देखने तक ही सीमित न हो कर फिल्मों में काम करने में बदल गया. आखिरकार एक दिन पापा व दादाजी के सामने मैं ने अपनी मंशा जाहिर कर ही दी. ‘‘क्या…? पागल हो गया है क्या? इतना अच्छा जमाजमाया कारोबार छोड़ कर भांड़गीरी करेगा?’’ पापाजी चिल्लाए थे. ‘‘पापा, यह भी कला का एक रूप है. इस में नाम, पैसा, शोहरत, रुतबा सबकुछ है,’’ मैं ने कहा. ‘‘तुम्हें जो दिखाई दे रहा है, वह बरसाती बिजली के जैसी पलभर की चमक है. इस के पीछे एक बड़ा गहरा तिलिस्म है, जिस को तोड़ना सब के लिए मुमकिन नहीं है,’’ पापा ने कहा. ‘‘आप ने और दादाजी ने अपनी मेहनत से यह मुकाम पाया है, मैं भी अपनी मेहनत से कुछ कर दिखाना चाहता हूं,’’ मैं ने कुछ मजबूत आवाज में कहा. ‘‘जमेजमाए कारोबार को छोड़ना बेवकूफी है. वहां के संघर्ष व शोषण के बारे में शायद तुम ने सुना नहीं है,’’ पापा बोले.

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‘‘आग में तप कर ही कुंदन सोना बनता है,’’ मैं ने फिल्मी डायलौग मारा. यहां पर दादाजी की प्रगतिशीलता काम आई और वे पापा से बोले, ‘‘सूरज, विवेक जैसा चाहता है करने दो इसे. समझो, यह भी एक तरह का इंवैस्टमैंट है. अगर विवेक में दम हुआ तो यह भी करोड़ों में खेलेगा, वरना हमारा बिजनैस तो संभालना ही है इसे.’’ ‘‘मतलब, मैं इसे भेज दूं?’’ पिताजी ने हैरानी से पूछा. ‘‘विवेक को अपना हुनर दिखाने का मौका मिलना ही चाहिए, मगर कुछ शर्तों के साथ,’’ दादाजी ने कहा. ‘‘कैसी शर्तें दादाजी?’’ मैं ने हैरानी से पूछा. ‘‘तुम्हें सिर्फ और सिर्फ 5 साल का समय मिलेगा. इस पीरियड में अगर तुम नाकाम रहे तो वापस आ कर अपना बिजनैस संभालना पड़ेगा,’’ दादाजी ने कहा.

‘‘ये 5 साल मेरी पहली फिल्म रिलीज होने से जोड़े जाएंगे और अगर इन 5 सालों में कोई फिल्म शुरू नहीं हो पाई, तो मैं खुद घर लौट आऊंगा,’’ मैं ने कहा. ‘‘अपने संबंधों को देखो कहीं कोई काम का आदमी मिलता है तो उस के मारफत हम विवेक को फिल्मों में पहुंचाएंगे तो बुनियाद मजबूत रहेगी,’’ दादाजी ने कहा. पापा ने अपने काम के लोग खोजने शुरू किए. आखिर एक आदमी मिल ही गया. यह पापा के दोस्त का छोटा भाई शैशव था, जो मशहूर निर्मातानिर्देशक सुभान भाई के यहां पीआरओ का काम देखता था. सुभान भाई इंडस्ट्री का बड़ा नाम थे. उन का रिकौर्ड यह था कि पिछली 3 फिल्में उन्होंने नए कलाकारों को ले कर बनाई थीं और तीनों ही फिल्में सुपरहिट रही थीं. शैशव के जरीए पापा ने सुभान भाई से मिलने का जुगाड भिड़ा लिया. ‘‘देखिए, आप के बेटे का चेहरामोहरा तो ठीक है, लेकिन इंडस्ट्री चलती है हुनर के दम पर. इस ने स्कूल के स्टेज के अलावा कहीं काम नहीं किया है, कैमरा फेस करना भी सिखाना पड़ेगा,’’

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सुभान भाई मेरी तरफ देखते हुए बोले. ‘‘अरे सुभान भाई, आप का हाथ तो पारस है, जो लोहे को भी सोना बना देता है…’’ शैशव खुशामद भरी आवाज में बोला, ‘‘इस लड़के पर भी हाथ रख दीजिए. यह भी कुछ बन जाएगा.’’ ‘‘बनानाबिगड़ना हमारे हाथ में नहीं है. हम तो सिर्फ मेहनत कर सकते हैं,’’ सुभान भाई ने डिप्लोमैटिक अंदाज में कहा. ‘‘वही हम चाहते हैं. आप के साथ रह कर यह कुछ बन जाए. यही हम सब लोगों की इच्छा है,’’ पापा हाथ जोड़ कर बोले. ‘‘काफी मेहनत करनी पड़ेगी इस लड़के पर. छोटे शहर से यहां आने पर कल्चर से ले कर ऐक्टिंग तक सभी की ट्रेनिंग देनी पड़ती है. वैसे भी फिल्म मेंिंकग अपनेआप में बड़ा महंगा सौदा है,’’ सुभान भाई किसी कारोबारी अंदाज में बोले. ‘‘पैसों की आप चिंता मत कीजिए, सब इंतजाम हो जाएगा,’’ पापा बोले. ‘‘देखिए, मेरी अगली फिल्म तो फ्लोर पर आ चुकी है. इस की स्टारकास्ट अनाउंस भी हो चुकी है. इस फिल्म में तो जगह नहीं बन पाएगी.

इसे पूरा होने में 8 से 10 महीने का समय लगेगा. तब तक यह लड़का मेरे बंगले पर रहेगा. मेरी पत्नी भी अच्छी हीरोइन रह चुकी है. वह खुद इसे तैयार करेगी. ‘‘जब तक फिल्म की रूपरेखा पूरे तौर पर तैयार नहीं हो जाती, तब तक इसे किसी से भी नहीं मिलना है, क्योंकि जैसे ही मार्केट में यह खबर आएगी कि सुभान भाई नए लड़के को तैयार कर रहे हैं तो कई छोटेछोटे निर्माता अपनी फिल्म में लेने का लालच दे कर उसे बुला सकते हैं. ‘‘उन की फिल्में शायद ही बनें और बनें तो शायद चलें. ऐसे में कैरियर बनने से पहले ही खत्म हो जाएगा,’’ सुभान भाई ने लंबा भाषण दिया. ‘‘नहीं, आप जैसा बोलें वैसा ही करेंगे,’’ पापा ने कहा. ‘‘ठीक है, मेरी अगली फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है. इस का हीरो घरेलू काम करने वाला एक नौकर है. तुम्हें इसी रोल की ट्रेनिंग मैडम से लेनी है. ठीक है?’’ सुभान भाई ने मेरी तरफ देखते हुए कहा. ‘‘जी, जैसा आप को उचित लगे,’’ मैं ने कहा. ‘‘विवेक नाम कुछ ओल्ड फैशन का लगता है. इस कारण तुम्हारा नया नाम रखेंगे और यह नाम होगा चकमक,’’ सुभान भाई बोले. ‘‘आप की फीस कितनी होगी?’’ पापा ने पूछा. ‘‘वैसे तो 80 लाख रुपए होती है. अब आप शैशवजी के साथ आए हैं,

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तो जो आप को उचित लगे दे दीजिए,’’ सुभान भाई बेझिझक बोले. ‘‘यह 40 लाख रुपए का चैक अभी ले लीजिए, बाकी का 3-4 महीनों में इंतजाम कर के पहुंचाता हूं, बच्चे का ध्यान रखिए… आप के भरोसे है,’’ पापा ने फिर हाथ जोड़ लिए. ‘‘आप बेफिक्र रहिए. अब यह लड़का हमारी जवाबदारी है,’’ सुभान भाई बोले. ‘‘अरे, रौकी भाई को तो इन्होंने गलीकूचे से निकाल कर स्टार बना दिया, फिर यह तो अपने घर का बच्चा है. आप बेफिक्र रहिए,’’ शैशव बोला. मैं सुभान भाई के साथ उन के घर चला गया. वे अपनी पत्नी सुहाना से मिलवाते हुए बोले, ‘‘यह चकमक है और अपनी अगली फिल्म का हीरो. इसे फिल्म में घरेलू नौकर का रोल करना है, इसलिए तुम इसे उस हिसाब से तैयार करो. बाजार से सब्जी लाने से झाड़ूपोंछा तक सभी कामों की ट्रेनिंग दो. मैं फिल्म में पूरी रियलिटी चाहता हूं. इस बात का ध्यान रखना.’’ ‘‘जी, ठीक है,’’ सुहाना बोली. मैं ने इस ट्रेनिंग को पूरी शिद्दत के साथ करना शुरू कर दिया. सुबह 11 बजे सो कर उठने वाला लड़का अब सुबह 5 बजे उठ जाता था.

झाड़ूपोंछा करने के बाद नाश्ते की तैयारी, खाना बनवाने में मदद, सब के नहाने के बाद कपड़े धोना और सब से बाद में झोला उठा कर सौदा लेने जाना. एक दिन सुभान भाई ने अपनी पत्नी सुहाना को छोटे कपड़े सुखाते देख लिया, तो गुस्सा होते हुए बोले, ‘‘ये कपड़े क्यों नहीं धुलवाती हो चकमक से?’’ ‘‘कैसी बातें करते हो आप, ये कपड़े मैं उस से धुलवाऊंगी?’’ सुहाना बोली. ‘‘अरे, कपड़ों की कोई जान होती है क्या. सब कपड़ों जैसे यह भी कपड़े हैं. सैट पर कोई ऐसा सीन करना हुआ और पूरे मन के साथ नहीं कर पाया तो कितनी बदनामी होगी,’’ सुभान भाई बिगड़ कर बोले. ‘‘ठीक है, यह भी धुलवा लूंगी,’’ सुहाना बोली. ‘‘कुछ डांस वगैरह आता है कि नहीं उसे?’’ एक दिन सुभान भाई ने अचानक पूछ लिया. ‘‘जी, थोड़ाबहुत डांस आता है,’’ मैं ने कहा. ‘‘आज तुम्हें बनी पार्टी में जाना है,’’ सुभान भाई ने आदेश दिया. ‘‘बनी पार्टी क्या होती है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बनी पार्टी नहीं मालूम तुम्हें, क्या आदमी हो तुम…’’ सुभान भाई बोले, ‘‘सुरेश समझा देगा तुम्हें, वह पहले जा चुका है.’

’ ‘‘जैसे कैबरे करती हुई लड़कियां बदन दिखाती हैं, उसी तरह बनी पार्टी में मर्दों को एकएक कर के अपने सभी कपड़े हटाने होते हैं. इस तरह के डांस को देखने वाली सिर्फ औरतें ही होती हैं और वे भी बेहद अमीर. यहां पर इनाम भी काफी मिलता है,’’ सुरेश ने बताया. बनी पार्टी के बेहूदे और बेशर्मी भरे अनुभव को बयान कर पाना मुश्किल है. सपने में भी शायद कोई इतना नीचे गिर कर नहीं सोच सकता. यहां आने के बाद ही पता चला कि जिगोलो भी कुछ इसी तरह का प्रोग्राम है. यहीं पर यह भी पता चला कि गे नाम का भी कोई संबंध होता है. इतना सब करतेकरते 2 साल का समय यों ही गुजर गया. सुभान भाई की फ्लोर वाली फिल्म पूरी हो कर रिलीज हो गई और हिट भी. मुझे विश्वास था कि अगली फिल्म मेरी होगी, पर ऐसा नहीं हुआ. अगली फिल्म के लिए मेरा नाम नहीं था. एक दिन अचानक पापा आ गए और मुझे इस तरह का काम करते देख बहुत दुखी हुए और गुस्सा भी. चूंकि उन्होंने दोनों पेमेंट्स चैक से की थीं, इसलिए पैसे देने के सुबूत मौजूद थे. कानूनी कार्यवाही की धमकी से डर कर सुभान भाई ने मेरे साथ फिल्म शुरू की. फिल्म साधारण रूप से हिट भी रही, पर सारा क्रेडिट सुभान भाई को ही मिला. फिल्म के बाद कुछ छोटीमोटी फिल्में जरूर मिलीं, पर वे चली नहीं. 5 साल होने वाले हैं और मैं पापा और दादाजी के बुलावे का इंतजार कर रहा हूं.

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