Romantic Story : श्वेता और कुशल की कहानी एक आम प्रेम कहानी भी बन सकती थी. वे दोनों अगर सही समय पर एकदूसरे से इजहार कर देते तो शायद साथसाथ होते. जिंदगी ने उन के रास्ते अलग तो कर दिए लेकिन वह एक नया आयाम लाने वाली थी. इंटर कालेज वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागी के रूप में मेरा नाम सुनते ही कालेज के सभी छात्र खुशी से तालियां पीटने लगे. जैसे ही मैं स्टेज से ट्रौफी ले कर नीचे उतरा, दोस्तों ने मुझे कंधों पर बिठा लिया. मुझे लगा जैसे मैं सातवें आसमान पर पहुंच गया हूं. हर किसी की निगाहें मुझ पर टिकी हुई थीं. चमचमाती ट्रौफी को चूमते हुए मैं ने चीयर करते छात्रछात्राओं की तरफ देखा. सहसा ही मेरी नजरें सामने की पंक्ति में बैठी एक लड़की की नजरों से टकराईं. कुछ पलों के लिए हमारी नजरें उलझ कर रह गईं. तब तक नीचे उतरते हुए मेरे दोस्त मुझे गले लगाने लगे और मेरी तारीफें करने लगे.
‘यार, तू ने तो कमाल ही कर दिया. पिछले 2 साल से हमारा कालेज तेरी वजह से ही जीत रहा है.’’ ‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मैं तो शुक्रगुजार हूं तुम सब का जो मुझे इतना प्यार देते हो और विनोद सर का भी जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया है.’’ ‘‘पर आप हो कमाल के. वाकई कितनी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हो. मैं, श्वेता मिश्रा, न्यू ऐडमिशन.’’ सामने वही लड़की मुसकराती हुई हाथ बढ़ाए खड़ी थी जिस से कुछ वक्त पहले मेरी नजरें टकराई थीं. उस की मुसकराती हुई आंखों में अजीब सी कशिश थी. चेहरे पर नूर और आवाज में संगीत की स्वरलहरी थी. हलके गुलाबी रंग के फ्रौक सूट और नेट के दुपट्टे में वह आसमान से उतरी परी जैसी खूबसूरत लग रही थी. मैं उस से हाथ मिलाने का लोभ छोड़ न सका और तुरंत उस के हाथ को थाम लिया. उस पल लगा जैसे मेरी धड़कनें रुक जाएंगी. मगर मैं ने मन के भाव चेहरे पर नहीं आने दिए और दूर होता हुआ बोला, ‘‘श्वेता मिश्रा यानी एक ऊंची जाति की कन्या. आई गेस, ब्राह्मण हो न तुम?’’ ‘‘हां, वह तो मैं हूं. वैसे तुम भी कम नहीं लगते.’’ ‘‘अरे कहां मैडम, मैं तो किसान का छोरा, पूरा जाट हूं. वैसे कोई नहीं. आप से मिल कर दिल खुश हो गया. अब चलता हूं,’’
कह कर मैं आगे बढ़ गया. पीछेपीछे मेरे दोस्त भी आ गए और मुझे छेड़ने लगे. तभी मेरा जिगरी दोस्त वासु बोला, ‘‘यह क्या यार, तेरे पिता नगर पार्षद हैं न, फिर तुम ने उस से झूठ क्यों कहा?’’ ‘‘वह इसलिए मेरे भाई क्योंकि हमारे घर के लड़कों को लड़कियों से दोस्ती करने की इजाजत नहीं है. जानता है मां ने कालेज के पहले दिन मुझ से क्या कहा था?’’ ‘‘क्या कहा था?’’ ‘‘यही कि कभी भी किसी लड़की के प्यार में मत पड़ना. हमारे खानदान में प्यार के चक्कर में कई जानें जा चुकी हैं. सख्त हिदायत दी थी उन्होंने मुझे.’’ ‘‘अच्छा, तो यही वजह है कि तू लड़कियों से दूर भागता है.’’ ‘‘हां यार, पर यह लड़की तो बिल्कुल ही अलग है. एक नजर में ही मन को भा गई. इसलिए इस से और भी ज्यादा दूर भागना पड़ेगा.’’ श्वेता के साथ यह थी मेरी पहली मुलाकात. उस दिन के बाद से श्वेता अकसर मुझ से टकरा जाती. कभीकभी लगता कि वह मेरा पीछा करती है. पर मन का भ्रम मान कर मैं इग्नोर कर देता. यह बात अलग थी कि आजकल मन के गलियारे में उसी के खयाल चक्कर लगाते रहते थे. वह कैसे हंसती है,
कैसे चोर नजरों से मेरी तरफ देखती है, कैसे चलती है, वगैरहवगैरह. धीरेधीरे मैं ने उस के बारे में जानकारियां जुटानी शुरू कीं तो पता चला कि वह अपने कालेज की टौपर है और गाना बहुत अच्छा गाती है. उस के पिता ज्यादा अमीर तो नहीं मगर शहर में एक कोठी जरूर बना रखी है. 2 बड़े भाई हैं और वह अकेली बहन है. न चाहते हुए भी मेरी नजरें उस से टकरा ही जातीं. मैं हौले से मुसकरा कर दूसरी तरफ देखने लगता. कई बार वह मुझे लाइब्रेरी में भी मिली. किसी न किसी बहाने बातें करने का प्रयास करती. कभी कोई सवाल पूछती तो कभी टीचर्स के बारे में बातें करने के नाम पर मेरे पास आ कर बैठ जाती. वह जैसे ही पास आती, मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगतीं और मैं उसे इग्नोर कर के उठ जाता. एक दिन उस ने मुझ से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हें किसी और से प्यार है क्या?’’ उस का सवाल सुन कर मैं चौंक उठा. मुसकराते हुए उस की तरफ देखा और फिर नजरें नीचे कर बाहर की तरफ देखने लगा. श्वेता ने शायद इस का मतलब हां समझा था. उसे विश्वास हो गया था कि मैं उस में इंटरैस्टेड नहीं हूं और मेरे जीवन में कोई और है. अब वह मुझ से कटीकटी रहने लगी. 2 माह बाद ही सुनने में आया कि उस की शादी कहीं और हो गई है. उस ने पिता की मरजी से शादी कर ली थी. अब उस का कालेज आना भी बंद हो गया.
इस तरह मेरे जीवन का एक खूबसूरत अध्याय अचानक ही बंद हो गया. मैं अंदर से खालीपन महसूस करने लगा. इस बीच पिताजी ने मेरी शादी निभा नाम की लड़की से करा दी. वह हमारी जाति की थी और काफी पढ़ीलिखी भी थी. उस के पिता काफी अमीर बिजनैसमैन थे. हमारी शुरू में तो ठीक ही निभी मगर धीरेधीरे विवाद होने लगे. छोटीछोटी बातों पर हम झगड़ पड़ते. हम दोनों का ही ईगो आड़े आ जाता. वैसे भी निभा के लिए मैं कभी वैसा आकर्षण महसूस नहीं कर पाया जैसा श्वेता के लिए महसूस करता था. निभा अब अकसर मायके में ही रहने लगी. इधर मैं राजनीति में सक्रिय हो गया. पहले कार्यकर्ता, फिर एमएलए और फिर राज्य का मुख्यमंत्री भी बन गया. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कभीकभी मैं भी यकीन नहीं कर पाता था. राजनीतिक गलियारे में मेरा अच्छाखासा नाम था. लोग मुझे होशियार, शरीफ और फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले युवा नेता के रूप में पहचानते थे. विदेश तक में मेरी धाक थी. मैं कई पत्रिकाओं के कवर पेज पर आने लगा था. जनता मुझे प्यार करती. मेरे काम की तारीफ होती. मैं हर काम में अपनी नई सोच और युवा कार्यशैली को अपनाता था. पीएम भी मेरी कद्र करते.
अकसर देश की छोटीबड़ी समस्याओं पर मुझ से विचारविमर्श करते. इसी दरम्यान निभा और मैं ने आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया. वह अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती थी. मैं ने भी तुरंत सहमति दे दी क्योंकि मैं भी यही चाहता था. मैं अभी तक श्वेता को भूल नहीं पाया था. जब भी कोई दूसरी शादी की बात करता तो श्वेता का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता. जब कोई रोमांटिक मूवी देखता तो भी श्वेता का खयाल आ जाता. जब बादलों के पीछे चांद छिपता देखता तो भी श्वेता का ही खयाल आता. एक दिन मेरे जिगरी यार वासु ने मुझे खबर दी कि मेरा पहला प्यार यानी श्वेता इसी शहर में है. मैं ने उत्साहित हो कर पूछा, ‘‘श्वेता, कहां है? कैसी है वह? किस के साथ है?’’ ‘‘अरे यार, अपने पति के साथ है. पति का काम सही नहीं चल रहा है, इसलिए इधर ट्रांसफर करवा लिया है.’’ ‘‘ओके, तू पता दे. मैं मिल कर आता हूं.’’ ‘‘यह क्या कह रहा है? अब तू साधारण आदमी नहीं, सीएम है.’’ ‘‘तो क्या हुआ? उस के लिए तो वही हूं न, जो 15 साल पहले था.’’ मैं ने वासु से पता लिया और अगले ही दिन उस के घर पहुंच गया. श्वेता मुझे पहचान नहीं पाई मगर उस के पति ने मुझे पहचान लिया और पैर छूता हुआ बोला, ‘
‘सीएम साहब, आप इस गरीब की कुटिया में? मैं तो धन्य हो गया.’’ ‘‘मैं श्वेता से यानी अपनी पुरानी सहपाठी से मिलने आया हूं.’’ श्वेता ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा. अब तक वह भी मुझे पहचान गई थी. नजरें झुका कर बोली, ‘‘आप कालेज के सुपरहीरो मतलब कुशल राज हैं न?’’ ‘‘हां, मैं वही कुशल हूं. तुम बताओ, कैसी हो?’’ ‘‘मैं ठीक हूं मगर आप मेरे घर?’’ वह चकित भी थी और खुश भी. तभी उस के पति ने मुझे बैठाते हुए श्वेता से चायनाश्ता लगाने को कहा और हाथ जोड़ कर पास में ही बैठ गया. मैं ने उस के बारे में पूछा तो वह कहने लगा कि हाल ही में उस की नौकरी छूट गई है. अब वह यहां नौकरी की तलाश में आया है. मैं ने तुरंत अपने एक दोस्त को फोन किया और श्वेता के पति को उस के यहां अकाउंटैंट का काम दिलवा दिया. श्वेता का पति मेरे आगे नतमस्तक हो गया. बारबार धन्यवाद कहने लगा. तब तक श्वेता चायनाश्ता ले आई. श्वेता अब भी थोड़ी ज्यादा कौंशस हो रही थी. वह खुल कर बात नहीं कर पा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों के बीच एक अजीब सी दूरी आ गई है.
दोचार दिनों बाद मैं फिर से श्वेता के यहां पहुंचा. आज श्वेता घर में अकेली थी. मुझे खुल कर बात करने का मौका मिल गया. मैं ने उस के करीब बैठते हुए कहा, ‘‘श्वेता, क्या तुम जानती हो, तुम ही मेरा पहला प्यार हो. तुम ही एकमात्र ऐसी लड़की हो जिसे मेरे दिल ने चाहा है. आज से 15 बर्षों पहले जब पहली दफा तुम्हें देखा था, उसी दिन तुम्हें अपना दिल दे दिया था. तभी तो जब मैं ने किसी और से शादी की तो उसे प्यार कर ही नहीं पाया. मेरा दिल तो मेरे पास था ही नहीं न. ये धड़कनें तो बस तुम्हें देख कर ही बढ़ती हैं.’’ श्वेता एकटक मेरी तरफ देख रही थी. जैसे मेरी नजरों से मेरे दिल तक में झांक लेना चाहती हो. थोड़े शिकायतभरे स्वर में उस ने कहा, ‘‘यदि ऐसा था तो फिर मुझ से दूर क्यों भागते थे? कभी भी मेरे प्यार को स्वीकार क्यों नहीं किया तुम ने?’’ ‘‘क्योंकि हमारी जाति अलग थी. मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समाज से लड़ पाता. प्यार में जान गंवाना आसान है, मगर प्यार दिल में रख कर दूर रहना कठिन है. मैं तुम से दूर भले ही रहा पर दिल तुम्हारे पास ही था. आज मुझ में हिम्मत है कि मैं तुम से खुल कर कह सकूं कि बस, तुम ही हो जिस से मैं ने प्यार किया है. मेरी पत्नी निभा के साथ रह कर भी मैं उस से दूर था. अब तो हम ने आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया है.’’
श्वेता ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. हम दोनों की आंखों में आंसू और धड़कनें तेज थीं. हम एकदूसरे के दिल में अपने हिस्से की मोहब्बत महसूस कर रहे थे. अब हम दोनों ही 40 साल के करीब थे. लोग कहते हैं कि प्यार तो युवावस्था में होता है. हमें भी तो प्यार युवावस्था में ही हुआ था. मगर इस प्यार को जीने का वक्त हमें अब मिला था. श्वेता को कहीं न कहीं समाज और पति का डर अब भी था. मगर हमारा प्यार पवित्र था. यह रिश्ता ऐसा था जिसे हम बंद आंखों से भी महसूस कर सकते थे. धीरेधीरे हमारा रिश्ता गहरा होता गया. अब हम साथ होते तो कालेज जैसी मस्ती करते. कहीं घूमने निकल जाते. आजाद पंछियों की तरह गीत गुनगुनाते. हंसीमजाक करते. कभी आइसक्रीम खाते तो कभी गोलगप्पे. कभी श्वेता कुछ खास बना कर मुझे बुलाती तो कभी मैं श्वेता को अपना एस्टेट दिखाने ले जाता. ऐसा नहीं था कि हम यह सब लोगों से या श्वेता के पति से छिपा कर करते. हमारे मन में मैल नहीं था. एक परिवार के सदस्य की तरह मैं उस के घर में दाखिल होता. उस के लिए तोहफे खरीदता. एक दिन मैं शाम के समय श्वेता के घर पहुंचा. इस वक्त उस का पति औफिस में होता है. हम खुल कर बातें कर रहे थे.
तभी श्वेता का पति दाखिल हुआ. वह आज जल्दी आ गया था. श्वेता उठ कर चाय बनाने चली गई. श्वेता के पति ने मुझ से कहा, ‘‘जानते हैं, आज मेरा एक दोस्त क्या पूछ रहा था?’’ ‘‘क्या पूछ रहा था?’’ ‘‘यही कि तुम्हारी बीवी और सीएम साहब के बीच क्या चल रहा है?’’ अब तक श्वेता भी चाय ले कर आ गई थी. वह अवाक पति का मुंह देखने लगी. ‘‘फिर क्या कहा आप ने?’’ मैं ने पूछा. कहीं न कहीं मेरे दिल में एक अपराधबोध पैदा हो गया था. श्वेता के पति के लिए तो आखिर मैं एक दूसरा पुरुष ही हूं न. मगर श्वेता के पति ने मेरी सोच से अलग जवाब दिया. हंसता हुआ बोला, ‘‘मैं ने उस से कह दिया कि सीएम साहब श्वेता के दोस्त हैं. उन के प्यार में कोई मैल नहीं. उन के प्यार में कोई धोखा नहीं. मेरा और श्वेता का रिश्ता अलग है. जबकि कुशलजी वह एहसास बन कर श्वेता की जिंदगी में आए हैं जिस की वजह से श्वेता के मन में जो एक खालीपन था वह भर गया है. मैं उन दोनों के रिश्ते का सम्मान करता हूं.
’’ श्वेता अपने पति के कंधे पर सिर रखती हुई बोली, ‘‘दुनिया में प्यार तो बहुतों ने किया है मगर इस प्यार पर जो विश्वास आप ने किया वह शायद ही किसी ने किया हो. मैं वादा करती हूं, आप का यह विश्वास कभी नहीं टूटने दूंगी.’’ उस पल मुझे लगा जैसे आज हमारे प्यार को एक नया आयाम मिल गया था. मेरी नजर में श्वेता के पति की इज्जत बहुत ज्यादा बढ़ गई थी. प्यार की ऐसी परिभाषा दी थी उन्होंने जो इतनी ही पाकसाफ थी जितना कि कमल जो कीचड़ में खिलता है, लेकिन उस की सुंदरता आंखों में ऐसे बसती है कि मन मोह लेती है. खुश था मैं आज, बहुत खुश.